यौन शोषण से बाल सुरक्षा कानून में अभी और सुधार चाहिए

Afeias
28 Jun 2018
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Date:28-06-18

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भारत में 2012 से 2016 के बीच में लगातार बढ़ती बलात्कार की घटनाओं को देखते हुए सरकार ने अप्रैल, 2018 में 12 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों से बलात्कार करने पर फांसी की सजा का दंड निश्चित कर दिया है। यह देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है कि अवयस्क बच्चों के साथ जघन्य अपराधों की संख्या में लगातार वृद्धि होती जा रही थी। दिल्ली में 2012 में घटित निर्भया कांड के बाद सरकार को बलात्कार कानून पर पुनर्विचार करना पड़ा था। हाल ही में उन्नाव और कठुआ कांडों ने 2012 में हुए पोक्सो (POCSO) प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्राम सैक्सचुअल ऑफेन्सेस के सुधारों की अप्रभावशीलता की पोल खोल दी है।

  • भारतीय दंड संहिता में कुछ नए सुधार किए गए हैं, जो पाक्सो पर भी लागू होंगे। 12 साल से कम उम्र की बालिका के साथ बलात्कार करने पर 20 वर्ष की जेल में कठोर दंड की सजा, और 16 वर्ष से कम उम्र की बालिका के साथ बलात्कार करने पर भी समान दंड का प्रावधान कर दिया गया है।
  • अध्यादेश के अन्य परिवर्तनों में सरकारी कर्मचारियों के लिए समयबद्ध जांच, अपील और मुकदमा चलाए जाने के लिए कोर्ट से पूर्व अनुमति लिए जाने को जरूरी कर दिया गया है। हांलाकि सबसे बड़ा परिवर्तन 12 वर्ष से कम उम्र की बालिका के बतात्कारी को फांसी की सजा देना है।
  • पोक्सो में स्पेशल जूवेनाइल यूनिट बनाने की बात कही गई है, जो बच्चे के यौन शोषण से जुड़े मामले की जाँच-पड़ताल करेगी। अक्सर देखने में आता था कि पीड़ित बच्चे जाँच कर रही पुलिस से भयभीत हो जाते थे।
  • पोक्सो में किसी बच्चे के बयान के लिए उसकी पसंद की जगह चुनने की व्यवस्था की गई है। यह काम महिला पुलिस को सौंपा जाना चाहिए।

हम देखते हैं कि कानून की कठोरता बढ़ाने के बाद भी उसकी प्रभावशीलता में ढेरों कमियां हैं। पोक्सो अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के भाग 228ए के तहत पीड़िता के नाम को उजागर किए जाने की सख्त मनाही है। इसके बाद भी कठुआ कांड में मीडिया में लगातार इस कानून का उल्लंघन किया जाता रहा। ऐसा होने पर पीड़िता के जीवन पर अन्य प्रकार के खतरे बढ़ जाते हैं। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो भी यह बताता है कि 96 प्रतिशत बाल यौन शोषण के मामलों में अपराधी निकट के लोग ही होते हैं। इसलिए बच्चे अपराधी का नाम बताने में डरते हैं। अपराधी भी अपनी पहचान छिपाने के लिए अपराध की किसी भी सीमा तक उतर जाते हैं।

अतः केवल मृत्यु दंड पर भरोसा न करके पीड़ित बच्चों को सुरक्षा देने पर अधिक बल दिया जाना चाहिए। साथ ही आधी-अधूरी छोड़ी गई जाँच, डरा-धमकाकर बयान लेने वाली प्रथा को समाप्त करके कानून-व्यवस्था की कमजोरियों को दूर किया जाना बहुत जरूरी है। अन्याय करने वाले अपराधी को दंड देकर घुटने टेकने पर मजबूर करने से ज्यादा अहम्, न्याय की सुरक्षा करना है। बाल अपराध कानून की सबसे बड़ी समस्या यही है कि वह अपराधी को संज्ञान में अधिक लेकर चलता है। केवल दंड दे देना किसी भी अपराध का पूर्ण समाधान नहीं हो सकता।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित मुस्तफा हाजी के लेख पर आधारित। 19 जून, 2018

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