भारत के भविष्य से जुड़ी डिजीटल इंडिया नीति

Afeias
25 Mar 2019
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Date:25-03-19

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‘डिजीटल इंडिया’ के संदर्भ में भारत ने जिस प्रकार की नीति अपनाई है, उसमें ‘डाटा संप्रभुता’ के खंड की प्रशंसा निःसंदेह की जा सकती है। इस डाटा संरक्षण के ढांचे में राष्ट्रवाद की झलक मिलती है, जो पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप पर आधारित है। इसमें एक ऐसा पारिस्थितीकीय तंत्र विकसित किया जा सकता है, जिससे भारतीयों के डाटा को सुरक्षित रखने के साथ-साथ अन्य देशों को भी सेवाएं दी जा सके।

खासतौर पर यूरोपीय देशों के पास गूगल, फेसबुक जैसे कोई डाटा प्लेटफार्म नहीं हैं, और होने की उम्मीद भी नहीं है। भारत के पास वह प्रतिभा, क्षमता और श्रमशक्ति है, जिसके आधार पर वह ऐसे प्लेटफार्म बना सकता है, जिसमें से भारतीय और वैश्विक उपभोक्ता एक सामान्य से मासिक शुल्क पर अपने डाटा की गोपनीयता का पैकेज खरीद सकें। इस प्रकार से विश्व में फैलते डिजीटल उपनिवेशवाद को भी भारत रोक सकेगा, और इस क्षेत्र में अपना भविष्य तैयार कर सकेगा।

  • 21वीं सदी के लिए आवश्यक तकनीकी कौशल को अर्थव्यवस्था में स्थान दिया जाए। प्रत्येक विद्यार्थी और छोटे-से-छोटे व्यवसायी को सस्ती दर पर क्लाउड स्पेस उपलब्ध कराई जाए। इसका उद्देश्य भारत की जनता को तकनीक सिखाने के साथ ही उद्यमिता को सुगम बनाना है।
  • फ्री एण्ड ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर (FOSS) की वर्तमान नीति को अधिक महत्व देकर सॉफ्टवेयर संबंधी ज्ञान को बढ़ाया जाए। सॉफ्टवेयर को साझा करने वाली नीति से इसके प्रति समाज में लोगों का ज्ञान और समझ बढ़ेगी।
  • फ्री और ओपन सॉफ्टवेयर नीति से डिजीटल इंडिया का विस्तार हो सकेगा। अभी यह कुछ निर्माताओं व विक्रेताओं तक ही सीमित है। इसमें विद्यमान प्रतिस्पर्धा तब तक अनुचित कही जा सकती है, जब तक कि बहुत लोगों को इस क्षेत्र से जोड़ा नहीं जाता।
  • डाटा प्राइवेसी और प्रोटैक्शन को एक वैश्विक बिजनेस अवसर के रूप में लिया जाना चाहिए। नए डाटा प्रोटैकशन कानून से यूरोप के जनरल डाटा प्राइवेसी रेग्यूलेशन जैसी अनुकूलता तो बन जाएगी, लेकिन भारत को इससे आगे बढ़कर एक कानूनी, तकनीकी सेवाओं से लैस प्रो-प्राइवेसी के ऐसे केन्द्र के रूप में विकसित किया जा सकता है, जिसकी समूचे विश्व में मांग है।
  • भारत की छवि ‘मानवीय मूल्यों वाले आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस’ की होनी चाहिए। इस छवि में आने वाले समय की तकनीकी सफलता का अस्तित्व हो, लेकिन इसका विकास प्रजातंत्र, स्वतंत्रता और मानवीय गरिमा के अंतर्गत आने वाले नैतिक मूल्यों पर हो। इस विकास की प्रतिबद्धता सैन्य प्रभुत्व के लिए न होकर मानव के लिए हो।

इस मायने में भारत चैथी औद्योगिक क्रांति में एक मिसाल कायम कर सकता है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित मिशी चैधरी और एलन मोग्लेन के लेख पर आधारित। 5 मार्च, 2019

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