भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था में सुधार संभव है

Afeias
26 Nov 2018
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Date:26-11-18

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भारत के विकास लक्ष्यों में उच्च शिक्षा को कोई खास महत्व नहीं दिया गया है। उच्च शिक्षा में वर्तमान के 20 प्रतिशत पंजीकरण की तुलना में 2020 तक 30 प्रतिशत पंजीकरण बढ़ जाने का अनुमान है। लकिन इसे उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने का कोई प्रयास नहीं माना जा सकता। अगर केवल संख्या की ही बात करें, तो आखिर भारत के लगभग 900 विश्वविद्यालयों में से कोई भी अभी तक विश्व रैंकिंग के ऊपर 100 स्थानों में जगह क्यों नहीं ले पाया? वहीं चीन ने यहाँ बाजी मार ली है। सिंगापुर जैसे छोटे देश ने भी स्थान बना लिया है।

भारत के विश्वविद्यालयों की ऐसी स्थिति के चलते लगभग एक लाख युवा प्रतिवर्ष विदेशों की ओर रुख कर रहे हैं। अभी तक जहाँ अधिकांश युवा स्नातकोत्तर डिग्री के लिए विदेश जाया करते थे, वहीं पिछले कुछ वर्षों में यह चलन स्नातक डिग्री के लिए भी चल पड़ा है। इसका सीधा-सा हल यही है कि हम देश में ही अपनी युवा पीढ़ी को अध्ययन की वह गुणवत्ता उपलब्ध कराएं, जिसके लिए वे विदेश जाने को आतुर रहते हैं। सवाल है कि हम इसे कैसे संभव कर सकते हैं?

  • उच्च शिक्षा के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा तैयार किया जाए।
  • ऐसे स्नातक तैयार किए जाएं, जिनकी सार्थकता हो।
  • अनुसंधान और शोध-प्रकाशनों की ओर यथासंभव ध्यान दिया जाए।
  • पाठ्यक्रमों के निर्माण और उनके प्रतिपादन के लिए कार्पोरेट और उद्यमियों को भी शामिल किया जाए। इसमें कोई संदेह नहीं कि जिस देश में उद्यमिता और शिक्षा का उचित समन्वय होगा, वह निश्चित रूप से सफल होगा।
  • संसाधनों के वितरण में समानता का व्यवहार किया जाए।

आंकड़े बताते हैं कि मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा दी जाने वाली निधि मुख्य रूप से 150 संस्थानों को ही दी जा रही है। 90 प्रतिशत निधि ले जाने वाले इन संस्थानों में मात्र 6 प्रतिशत विद्यार्थी ही पढ़ते हैं।

दूसरी ओर निजी विश्वविद्यालयों के लिए यह विचार रखा जाता है कि उन्हें निधि की कोई कमी नहीं है। लेकिन वास्तव में तो वे भी अपना स्तर बनाए रखने एवं सरकार द्वारा वित्त पोषित संस्थानों से प्रतिस्पर्धा करने के लिए निरंतर धन की कमी से जूझते रहते हैं।

  • विदेशों की तर्ज पर हमें भी विकास लक्ष्यों में शिक्षा संस्थानों को प्राथमिकता देनी होगी। शिक्षा एवं अनुसंधान का बेहतर संयोग बनाना होगा।
  • उच्च शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए स्कूली स्तर पर भी प्रयास करने होंगे।

अमेरिका के कुछ सरकारी स्कूल तो निजी स्कूलों से भी बढ़िया हैं।

  • हमारी सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था के पिछड़ेपन की जड़ में भ्रष्टाचार का कैंसर है, जो उसे लगातार नष्ट करता रहा है। भ्रष्टाचार के ही कारण अयोग्य शिक्षक तंत्र में घुस चुके हैं। ऐसी स्थिति के रहते हम विश्व स्तरीय उच्च शिक्षा की कल्पना कैसे कर सकते हैं ?

अब वह समय है कि हम शिक्षा के समग्र विकास में जुट जाएं। अन्यथा तेजी से बदलते विश्व में हम और पिछड़ जाएंगे।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संदीप संचेती के लेख पर आधारित।

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