चीन से निपटने के चक्रव्यूह में फंसा भारत
Date:04-08-20 To Download Click Here.
वैश्विक मामलों में भारत के लिए यह एक द्वन्द भरा अजीब क्षण है , जब चीन लगातार चुनौती पर चुनौती देता जा रहा है। लेकिन ठोस कार्रवाई करने के लिए किसी प्रकार की वैश्विक हलचल नहीं है। अपनी सीमा पर भारत चीन के विरूध्द कई रणनीतियों पर काम कर रहा है। परन्तु अमेरिका के अलावा हमारे स्थानीय संघर्षों को निपटाने में वैश्विक गठबंधनों और जनमत का मूल्य दो कारणों से हमेशा सीमित रहा है। पहला , कुछ शक्तियों व्दारा प्रयोग किए गए विषम विकल्पों को बेअसर करने में अंतरराष्ट्रीय समुदाय बहुत प्रभावी नहीं रहा है। यह पाकिस्तान व्दारा इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति है। दूसरे , रक्षा को मजबूत करने से जुड़े जो भी सैन्य विकल्प भारत प्रयोग कर सकता है , उनमें रणनीतिक लाभ के प्राप्त करने का निर्णय हमारे सैन्य विशेषज्ञों पर निर्भर करता है।
भारत को यह नहीं भूलना चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय संबंध , विकास प्रतिमान के संदर्भ में बनते हैं। अगर भारत चीन के मुद्दे पर वाकई किसी का साथ चाहता है , तो उसका प्राथमिक उद्देश्य अपने विकास मॉडल के लिए अधिकतम स्थान को सुरक्षित करना होना चाहिए। अमेरिका-चीन के संबंध भी विकास की राजनीतिक अर्थव्यवस्था के तर्क से जुड़े रहे थे। इस व्यवस्था से अमेरिका में बड़े पैमाने पर बड़े कारोबारियों को लाभ हुआ।
अमेरिका-भारत के संबंधों में सवाल यह नहीं है कि अमेरिका की भारत के विकास में कोई हिस्सेदारी है या नहीं , जो हो भी सकती है ; बल्कि सवाल यह है कि क्या भारत की विकास जरूरतों को , उभरते अमेरिकी विकास प्रतिमान में फिट किया जा सकता है या नहीं ? ऐसा तो नहीं कि चीन-अमेरिकी संबंधों को तोड़ने वाली राजनीतिक-आर्थिक शक्तियां भविष्य में भारत-अमेरिकी संबंधों के लिए घातक सिद्ध हों।
रही बात चीन को साधने की , तो भारत को इसे अपने दम पर ही निपटाना होगा। यहाँ बीआरआई का उदाहरण दिया जा सकता है। कई देश इस योजना में चीन के प्रति अपने ऋण दायित्वों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इन देशों की मदद करने वाला अंतरराष्ट्रीय समुदाय कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। इसी तरह साइबर सुरक्षा और अंतरिक्ष के क्षेत्र में नए संघर्ष शुरु हो गए हैं। आंशिक रुप से इन क्षेत्रों में नियम बनाने के लिए वैश्विक कार्रवाई की कल्पना करना मुश्किल है , क्योंकि अमेरिका और रूस जैसी महान शक्तियां हमेशा अपने को अपवाद रखना चाहेंगी। हम एक विरोधाभासी दुनिया में हैं , जहाँ चीन के विरूद्ध एक साथ खड़े होने के लिए देशों की रणनीतिक आवश्यकता अधिक नहीं रही है।
इन विकट स्थितियों में भारत के लिए समस्या है कि वैश्विक प्रतिष्ठा की खोज में वह अपने पड़ोस को कैसे संभाले रखे। इसका कारण हमारी अपनी कमजोरियां हैं , जिनका समाधान भी हमें ही ढूंढना होगा।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित प्रताप भानु मेहता के लेख पर आधारित।