विश्लेषण क्षमता विकसित करने केे टूल्स-1

Afeias
01 Mar 2016
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मित्रो, इसी पत्रिका के पिछले अंक में मैंने ‘मुख्य परीक्षा का मूल है विश्लेषणात्मकता’ शीर्षक के अंतर्गत उसके अंत में टूल्स की चर्चा की थी। अब मैं इस अंक में आपको विस्तार के साथ यह बताने जा रहा हूँ कि जो कुछ भी आप करते हैं, सुनते हैं, आब्जर्व करते हैं, सोचते हैं, उनका इस्तेमाल आप किस तरीके से करें। यहाँ मैं जो ‘इस्तेमाल‘ करने की बात कह रहा हूँ, उसका संबंध पूरी तरह से एनालिटिकल पावर डवलप करने से है। यहाँ मैं ज्ञानवर्द्धन की दृष्टि से बातें नहीं कर रहा हूँ। ज्ञानवर्द्धन अलग बात है और विश्लेषण क्षमता विकसित करना अलग बात है। बिल्कुल अलग तो नहीं, लेकिन काफी कुछ अलग बात जरूर है। वह इस तरह कि ज्ञान का वर्द्धन तो हम किताबें पढ़ लें, उसमें से कुछ चीजें याद कर लें और फिर उन याद की गई चीजों को दोहराते रहें, तो हो जाएगा। हमारे इस ज्ञान को सुनकर सामने वाला भी बहुत प्रभावित होगा। उसे लगेगा यह व्यक्ति सच में कितना ज्ञानवान है, बुद्धिमान है। लेकिन जो विश्लेषण क्षमता है, उसके लिए यह जो ज्ञान है, एक तरह से कच्चेमाल का काम करता है। यानी कि यदि मेरे पास ज्ञान नहीं होगा, तो मैं विश्लेषण करूंगा कैसे?
बहुत पहले के लेख में, इसी तरह के विषय वाले लेख में मैंने लिखा था कि दो तरह की समीक्षात्मक क्षमता होती है। एक होती है-रचनात्मक, दूसरी हाती है वाकई में आलोचनात्मक। जहाँ तक रचनात्मक समीक्षा की बात है, वह बिना ज्ञान के भी हो सकती है। हम बोध से, अपनी समझ, अपने अनुभव, अपनी कल्पना, इन सब से इस तरह की समीक्षाएँ, इस तरह के विश्लेषण कर लेते हैं। जैसे कि फिल्म पर कुछ समय तक हर कोई बात कर सकता है, भले ही हमें फिल्म की विधा के बारे में कोई जानकारी न हो। यह तो रचनात्मक समीक्षा हो गयी, रचनात्मक विश्लेषण हो गया। लेकिन जिसके पास फिल्म की विधा की बहुत अच्छी समझ भी होगी, जिसे मालूम है कि फिल्म बनती कैसे है, जिसे फिल्म का पूरा इतिहास मालूम है, जिसे फोटोग्राफी के बारे में मालूम है, जिसे अभिनय के बारे में मालूम है, संगीत, नृत्य, डायलॉग, दृश्य संयोजन यानी कि फिल्म के जितने भी आस्पेक्ट होते हैं, उन सब के बारे में मालूम है, तब स्वाभाविक है कि यह व्यक्ति जब अपनी बात कहेगा, तो उसका कहना पहले वाले की तुलना में कई गुना ज्यादा महत्व रखेगा, प्रभावशाली भी होगा और गहरा भी।
सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी के मामले में आपको इस दूसरे रास्ते को ही अपनाकर चलना होगा। इसलिए मैंने यहाँ इनमें थोड़ा सा अन्तर बताने की कोशिश की है। तो अब हम यहाँ देखेंगे कि टूल्स के रूप में यानी कि जो कुछ भी हम पढ़ते हैं, जो कुछ भी हम सुनते हैं, जो कुछ भी हम देखते हैं इसमें कोई भी घटना, कोई भी बात, कोई भी विचार, जो किसी भी माध्यम से हमारे दिमाग में प्रवेश कर जाती है। उसके साथ हमारा व्यवहार कैसा होना चाहिए। कुल-मिलाकर इसी बात की चर्चा मैं इस लेख में आपसे करने जा रहा हूँ। इसका
पहला विन्दु है मित्रो, तथ्यों को याद रखना।

तथ्यों को याद रखना-
बजाए इसके कि मैं हर बार देखना, सुनना, विचार करना इन शब्दों को दोहराऊँ, बेहतर होगा कि अपनी बात पढ़ने के संदर्भ में ही कहूँ और आप इसे अन्य संदर्भों में भी फैलाकर समझ लें। हम जबकोई भी किताब पढ़ते हैं या लेख पढ़ते हैं, तो हमारे सामने दो बड़े स्पष्ट रास्ते होते हैं। पहला तो यह है कि हम उसे समझते हैं। यानी की पूरी किताब को समझते हैं या पूरे लेख को समझते हैं। दूसरा रास्ता होता है कि हम उसे याद करते हैं। जहाँ तक पहले रास्ते का सवाल है, समझने के बाद हम उसे छोड़ देते हैं। हम कैसे समझते हैं, हम उसमें से क्या समझते हैं, कितना समझते हैं, निश्चित रूप से यह फैसला इस बात पर आधारित होता है कि हम इस किताब को पढ़ क्यों रहे हैं? आप एक किताब को यूँ ही मनोरंजन के लिए पढ़ सकते हैं। कुछ जानकारी हासिल करने के लिए पढ़ सकते है। और सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए भी पढ़ सकते हैं। किताब एक ही है। लेकिन पढ़ने के चूँकि उद्देश्य अलग-अलग हैं; इसीलिए उस किताब को समझने का तरीका भी अलग-अलग हो जाएगा।
जाहिर है कि यदि आप उसे सिविल सर्विस की तैयारी करने के दृष्टि से पढ़ रहे हैं और हमारे इस लेख का विषय भी सिविल सर्विस की तैयारी के लिए ही पढ़ना है, इसलिए अब मैं केवल इसी संदर्भ में बात करूँगा।

स्पष्ट है कि आप पूरी किताब को पढ़ने के बाद क्या समझेंगे, कितना समझेंगे, कहाँ-कहाँ से समझेंगे, इसके बारे में डिटेल्स में हम बाद में आएँगे। यहाँ मैं जोर देना चाहूँगा याद करने वाले विन्दु पर। ऐसा इसलिए भी, क्योंकि ज्यादातर स्टूडेन्टस् इस आतंक के शिकार होते हैं कि वे इस किताब से, इस लेख से ज्यादा से ज्यादा याद कर लें। उनको तो यहाँ तक बैचेनी रहती है कि काश! यह पूरी किताब ही उन्हें याद हो जाती, यह पूरा लेख ही उन्हें याद हो जाता। मैं यहाँ आपको सतर्क करना चाहूँगा कि यदि यह पूरी किताब याद हो जाए और यह पूरा लेख याद हो जाए, तो आपके लिए यह किसी काम का नहीं होगा, क्योंकि ऐसी स्थिति में उसमें से अपने काम की चीज़ें निकाल पाना आपके लिए एक बहुत बड़ी चुनौती हो जाएगी। फिर आप क्या करेंगे? इसलिए आप अच्छी तरह से पढ़ने के और याद रखने के इस विज्ञान को समझ लें कि उसमें से आपको थोड़ी सी चीज़ें ही याद करनी हैं, जो आपके काम की हो। यहाँ मैं आपको इस बारे में कुछ उपाय सुझा रहा हूँ। इनके आधार पर आप अपनी किसी किताब या किसी भी आर्टीकल को पढ़कर देख सकते हैं और मैं आपको विश्वास दिलाना चाहूँगा कि ऐसा करने के बाद आप नुकसान में नहीं रहेंगे।

ऽ जैसा कि मैंने अभी कहा कि आप जरूरत के हिसाब से चीज़ों को याद कीजिए। अब आपके सामने संकट यह आएगा कि जरूरत का आप निर्धारण कैसे करें। मान लीजिए कि आप ‘भारत, गांधी के बाद’या ‘आजादी के बाद भारत’ पुस्तक पढ़ रहे हैं। ये दोनों मोटी किताबें हैं। अब आपके सामने यह संकट होगा कि इनमें से आप क्या क्या याद करें। मुझे लगता है मित्रो कि इसके बारे में आपके पास जो सबसे अचूक मंत्र है, वह आपका अनसाल्व्ड पेपर है। अनसाल्व्ड पेपर। आप देखें कि आप जिस सब्जैक्ट की किताब पढ़ रहे हैं, उस विषय पर किस तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं। हो सकता है कि शुरू में आपको उन चीज़ों को पकड़ने में, उन चीज़ों को समझने में थोड़ी दिक्कत हो। लेकिन आप बहुत जल्दी इस परेशानी से अपने-आपको उबार लेंगे और अपनी जरूरत को बहुत अच्छे तरीके से समझने लगेंगे। मुझे लगता है कि सिविल सर्विस की तैयारी े करने वाले किसी भी स्टूडेन्ट के अन्दर इस क्षमता का पैदा होना अनिवार्य है कि वह यह जान सके कि उसे क्या पढ़ना है, कितना पढ़ना है और किनको बिल्कुल छोड़ देना है। निश्चित रूप से जो अनसाल्व्ड पेपर हैं, वे इसमें आपकी मदद करेंगे।

  • मान लीजिए कि आप गुरूचरण दास जी की किताब पढ़ रहे हैं।आपको उस पूरे किताब को पढ़ने के बाद उसके बारे में एक धारणा बना लेनी चाहिए कि ये लेखक ने इस किताब में किस विचार का प्रतिपादन किया है। उस किताब के बारे मेंएक सामान्य सी समझ आपके दिमाग में होनी चाहिए। मैं यह बात इसलिए कह रहा हूँ, क्योंकि सामान्य समझ होने के बाद दूसरी चीजों को याद रखना बहुत सरल हो जाता है। किताब की यह मूल समझ आपके अन्दर एक ऐसी अदभूत क्षमता विकसित कर देती है कि बाकी चीज़ें उसकी ओर बहुत तेजी से आकर्षित होने लगती हैं और समझ की आपकी गहराई बढ़ जाती है।
  • किसी भी किताब और लेख को पढ़ते समय उसमें आपको ऐसी बहुत सी सामग्री मिलेगी, जिसका उपयोग आप रिफरेंस के रूप में कर सकते हैं।ये रिफरेंन्सेस तथ्यों के रूप में हो सकते हैं, विचारों के रूप में हो सकते हैं, घटनाओं के रूप में हो सकते हैं। इनके और भी कई-कई रूप हो सकते हैं। आप खुद इस बात को समझ जाएंगे कि ये आपके काम के हैं या नहीं। आप वे रिफरेन्सेस अलग से नोट कर लें और याद कर लें।

आँकड़े-
निश्चित रूप से अपनी बातों को प्रभावशाली तरीके से रखने और अपनी बातों से तार्किक और वैज्ञानिक निष्कर्ष निकालने में आकड़े महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जब हम अपनी कोई भी बात आकड़ों के जरिए कहते हैं, तो उससे दो-तीन तरह की क्षमताएँ अपने-आप स्पष्ट हो जाती है। पहली तो यह कि स्टूडेन्ट का अध्ययन व्यापक है। दूसरा यह कि वह अपने समय के प्रति सतर्क है। तीसरा यह कि वह इन तथ्यों का इस्तेमाल करके अपनी बात को प्रभावशाली तरीके से रखना जानता है।
लेकिन यहाँ इस बात का ध्यान रखें कि बहुत ज्यादा आकड़ें न हों। ठीक इसी तरह बहुत अधिक रिफरेन्सेस भी न हों। यदि आप ऐसा करेंगे तो उलझ जाएंगे। बजाए इसके कि बहुत सारे आकड़ों में उलझा जाए, बेहतर है कि थोड़े से आँकड़ों के साथ ही सफर किया जाए। यहाँ आपको इस बात का थोड़ा ध्यान रखना होगा कि आँकड़े अपने-आपमें महत्वपूर्ण नहीं होते। महत्वपूर्ण होता है, इन आँकड़ों का सटीक तरीके से इस्तेमाल किया जाना।
चाकू से आप सिर्फ सब्जी ही नहीं काटते। उससे आप कागज भी काट सकते हैं, पेंसिल भी छील सकते हैं तथा और भी कई काम कर सकते हैं। ठीक इसी तरह एक आकड़े का उपयोग आप कई-कई तरीके से कर सकते हैं, कई-कई जगह पर कर सकते हैं, बशर्ते कि आपको करने का तरीका मालूम हो। इसलिए मैं सतर्क करना चाहूँगा कि अधिक आँकड़े और अधिक रिफरेन्सेस का बोझ लादने के चक्कर में न पड़े। यदि आप ऐसा करेंगे, तो न केवल उलझ ही जाएंगे और आप बहुत जल्दी थक जाएंगे। ऊब भी जाएंगे।
जब भी आप कोई आर्टिकलया किताब पढ़ें, तो आप यह पकड़ने की कोशिश करें कि इसमें नया कुछ क्या हैं। यदि आपको ऐसा कुछ मिलता है, तो उसे अलग नोट कर लें, अलग से याद कर लें। ये आपकी सबसे अधिक काम की चीज़ें हैं। सिविल सर्विस की सफलता का एक बहुत बड़ा श्रेय इस बात को है कि दूसरे जो कुछ भी लिख रहे हैं, यदि आप भी वही लिख रहे हैं, तो आप कुछ विशेष नहीं कर रहे हैं। खोज इस बात की की जाती है कि आप नया कुछ क्या लिख रहे हैं। अक्सर देखा गया है कि स्टूडेन्ट जब कोई भी आर्टिकल पढ़ते हैं, तो अक्सर उसमें जो कुछ भी नया होता है, उसे छोड़ देते हैं। उसे पकड़ नहीं पाते। इसका मनोवैज्ञानिक कारण यह होता है कि वे उसमें से वही पढ़ते हैं, वही पकड़ते हैं, जो पहले से मौजूद उनके दिमाग के तथ्य और विचारों से मेल खाता है। इसीलिए वहाँ जो कुछ भी नया है, वह उन्हें दिखाई नहीं देता, पकड़ में नहीं आता।
समीक्षा के लिए बहुत जरूरी होता है कि हम तथ्य पेश करें। हम अपनी बात को तार्किक रूप से कहें। तो सवाल यह है कि वे तथ्य आयेंगेकहाँ से। वे तथ्य होते क्या हैं? अगर किसी आयोग की रिपोर्ट है, किसी संस्था की रिपोर्ट है, किसी संगठन का कोई अध्ययन है, न्यायालयों के जजमेंट्स हैं या किसी की कोई सिफारिश है, तो निश्चित रूप से ये सभी तथ्यों का काम करते हैं। इसलिए यहाँ मैं यह भी कहना चाहूँगा कि जहाँ भी आपको कोई रिपोर्ट मिलती है, कोई अध्ययन मिलता है, कोई जजमेंट मिलता है, कोई सिफारिश मिलती है, उन्हें भी नोट कर लें और याद कर लें। ये आपको आगे चलकर बहुत ताकतवर बना देंगे।
अंत में मैं इस बिन्दु के अंतर्गत यही कहना चाहूँगा कि किसी भी किताब या लेख को पढ़ने के बाद उसके सार को जानने की कोशिश कीजिए। उदाहरण के तौर पर यदि मैं समाजशास्त्र की कोई किताब पढ़ता हूँ, जो आदिवासी समाज के ऊपर है, आदिवासी संस्कृति के ऊपर है, तो पढ़ने के बाद मैं यह नतीजा निकालने की कोशिश करूँगा कि इस पूरी की पूरी किताब में क्या साबित करने की कोशिश की गई है।फिर अपने दिमाग में इसी को थाड़ा एक्सप्लेन करने की कोशिश करूँगा। इससे उस पूरी किताब पर मेरी पकड़ बन जाएगी और बाद में मैं अपनी इस पकड़ का इस्तेमाल किसी भी प्रश्न के विश्लेषण में करूँगा। निश्चित रूप से यह कम बड़ी बात नहीं होगी।
पढ़ने के बाद उस पर विचार करना
जैसा कि इससे पहले बताया जा चुका है, कोई किताब हो या लेख, उसे पढ़ने के बाद उस पर एक बार सम्पूर्णता से विचार किया जाना चाहिए। ऐसा मैं केवल इसलिए नहीं कह रहा हूँ, ताकि आपको तथ्यों को समझने और उन्हें याद रखने में ही मदद मिले, बल्कि इसलिए भी कह रहा हूँ, क्योंकि इस प्रक्रिया के दौरान दिमाग उत्तेजित हो जाता है, एक्टिव हो जाता है। इससे उसकी समीक्षा करने की क्षमता बढ़ती है, सोचने की क्षमता बढ़ती है और कहना न होगा कि उसकी यह क्षमता भी बढ़ती है कि जरूरत पड़ने परवह हमें उपयोगी जानकारी उपलब्ध करा सके। इसलिए यह लगभग-लगभग हमारी आदत में ही शामिल हो जाना चाहिए कि हम जब भी कोई किताब पढें़, तो पढ़ने के बाद थोड़ी देर के लिए उस पर विचार करें। यहाँ मैं यह बात भी स्पष्ट करना चाहूँगा कि इसका मतलब यह नहीं है कि ऐसा हम पूरी किताब पढ़ने के बाद ही करें। यदि हमने किसी किताब के पन्द्रह पेज ही पढ़े हैं, तो हमें उन पन्द्रह पेजों पर भी विचार करने में हिचक नहीं दिखानी चाहिए, क्योंकि इसके जरिए हम अपने दिमाग को ट्रेन्ड कर रहे हैं।
अब मैं आता हूँ कुछ ऐसे बिन्दुओं पर, जिनका इस्तेमाल करके आप अपने इस अध्ययन के विश्लेषण करने के उपकरण के रूप में तब्दील कर सकते हैं।

  • पढ़ने के बाद आपको चाहिए कि आपने जो कुछ भी पढ़ा है, आप उसका वर्गीकरण कर लें। क्लासिफिकेशन करने का मतलब है कि आप यह देखें कि आपने जो भी पढ़ा है, उसे किन-किन भागों में बाँटा जा सकता है। यानी कि उसके कितने कौन-कौन से खण्ड बन सकते हैं। यह आपको करना ही चाहिए।
    वर्गीकरण करने के बाद आप हर एक खण्ड के बिन्दु बनाएं, प्वाइंटस् बनाएं। उदाहरण के लिए यदि आपका एक वर्गीकरण होता है-सफलता, तो अब आपको चाहिए कि सफलता नामक इस वर्गीकरण के जो भी बिन्दु बनते हैं एक, दो, तीन, केवल उन बिन्दुओं को नोट कर लें। आपके समय की बचत की दृष्टि से मैं यहाँ यह बिल्कुल नहीं कहूँगा कि आप उसे डिटेल में नोट करें। केवल प्वाइंट में लिख लेना ही पर्याप्त होगा।
  • मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ? मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ, क्योंकि किसी भीबात को हमारा दिमाग उसी फार्मेट में रिसीव करता है, जो फार्मेट हम उसे उपलब्ध कराते हैं। जिस फार्मेट में हमारा दिमाग किसी चीज़ को रिसीव करता है, वह उसे उसी फार्मेट में अपने पास रखता है और जरूरत पड़ने पर वह उसे हमें उसी तरीके से सौंप देता है। चूँकि सिविल सर्विस परीक्षा में आपके पास वक्त बहुत कम होता है और आपको थोड़े से शब्दों में ही विश्लेषण करके सारी बातें रखनी होती हैं, इसलिए मुझे यह फार्मेट सबसे अधिक व्यावहारिक मालूम पड़ता है। यह एक प्रकार से ‘क्विक फूड’ का फार्मूला है। नुडल्स का पैकेट खोलिए, उसे गर्म पानी में डालिए, दो मिनट में नुडल्स बनकर तैयार है। क्या आपको नहीं लगता कि सिविल सर्विस के लिए भी हमें अपनी सामग्री को कुछ इसी तरीके से कूक करने का अभ्यास करना चाहिए?
  • मित्रो, यहाँ मैं एक बात और कहना चाहूँगा। वह यह कि विचार करने केे दो तरीके होते हैं।पहला तरीका, जो सबसे आसान होता है, वह यह कि जो कुछ भी कहा गया है, उस पर हम सामान्य तरीके से विचार करके अगले टॉपिक पर चले जाएं। दूसरा तरीका, जो सबसे कठिन होता है, वह यह कि जो कुछ भी कहा गया है, उस पर हम प्रश्न खड़े करें। कही गई बातों के विरोध में एक प्रश्न बनाएं। उदाहरण के तौर पर यदि लेख में यह स्थापित करने के कोशिश की गई है कि भारत विकास के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ रहा है, तो आप इसके विरूद्ध कुछ प्रश्न खड़े कीजिए। जैसे कि बहुत धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। सभी क्षेत्रों में नहीं बढ़ रहा है। किसी भी क्षेत्र में नहीं बढ़ रहा है। जो बढ़त दिखाई भी दे रही है, वह बहुत स्वाभाविक बढ़त है। केवल आँकड़ेबाजी है। यदि हम इस तुलना दूसरे देशों से करें, तो यह बढ़त कोई बढ़त नहीं होगी। यानी कि आपइस तरह के कई प्रश्न खड़े कर सकते हैं।
    इससे होगा क्या? इससे होगा यह कि जैसे ही आप प्रश्न खड़े करेंगे, आप पाएंगे कि अब आपका दिमाग उनके उत्तर ढूँढ़ने लगा है। हो सकता है कि आपके दिमाग को उत्तर ढूँढ़ने में बहुत परेशानी हो। उसे परेशान होने दीजिए। उसके ऊपर दया दिखाने की जरूरत नहीं है। यदि आप दया दिखाएंगे, तब उसे कमजोर कर देंगे। आप देखेंगे कि कुछ समय के बाद वह आपके लिए ढूँढ़-ढूँढ़कर कुछ ले आया है और आप उसे देखकर न केवल खुश ही होंगे, बल्कि एक अलग तरह के आत्मविश्वास से भी भर उठेंगे, क्योंकि यह आपके दिमाग का क्रिएशन होगा और जिस दिन आपको ऐसा लगने लगे, आप अपने ही हाथों से अपनी पीठ थपथपा सकते हैं और इस बात की घोषणा कर सकते हैं कि अब मैं सिविल सर्विस की परीक्षा देने लायक हो गया हूँ। इस प्रक्रिया के जरिए आप किसी भी लेख को उलटकर-पलटकर पढ़ सकेंगे और उसकी जाँच-परख भी कर सकेंगे। यानी कि आपको किसी भी लेख का केवल एक आर्ब्जवर नहीं बनना है, बल्कि आपको उसका इंवेस्टिगेशन आफिसर बनना है। आप देखेंगे कि अब आपको कितना अधिक मजा आने लगा है। आपकी ऊब की शिकायत खत्म हो जाएगी और यह कोई छोटी बात नहीं होगी।

विचार-विमर्श करना
अभी तक के दो विन्दुओं के अंतर्गत मैंने केवल पढ़ने के उस तरीके की चर्चा की है, जो आपको विश्लेषण के टूल्स उपलब्ध करा सकें। हो सकता है कि आप अब तक उसी तरीके से पढ़ रहे हों, जो तरीका मैंने बताया है। लेकिन यहाँ मैंने उनकी चर्चा जानबूझकर इसलिए की है, ताकि आप इसे एक बार फिर से नए प्रकाश में देख सकें। यदि नहीं कर रहे हैं, तो कर सकें और पहले से ही कर रहे हों, तो उस पर पहले की तुलना में अधिक भरोसा कर लें। इन तरीकों को अपनाने के बाद दरअसल आपने जो कुछ भी पढ़ा है, वह आपका अपना हो जाएगा। ज्यादातर मामलों में होता यह है कि हम पढ़ तो लेते हैं। जब पढ़ते हैं, तब लगता यही है कि हम सब कुछ जान गए हैं। लेकिन कुछ दिनों के बाद यह याद करना मुश्किल हो जाता है कि हमने उसमें क्या-क्या पढ़ा था। यह हमारे पढ़ने की सबसे कमजोर कड़ी है। लेकिन जो तरीके अभी मैंने बताए हैं, इस पर मुझे पूरा भरोसा है और मैं आपको भी विश्वास दिला सकता हूँ कि ऐसा करने के बाद आपके खजाने में, आपके टूल बाक्स में ऐसे छोटे-बड़े और तीखे औजार आ जाएंगे, जिनका इस्तेमाल आप किसी भी घटना, सूचना की जाँच-परख के लिए कर सकते हैं। और सिविल सर्विस आपसे इसी योग्यता की अपेक्षा करता है।
अब मैं कुछ उन बिन्दुओं की चर्चा करूँगा, जो आपमें इन टूल्स का सटीक इस्तेमाल करने की अधिक से अधिक क्षमता पैदा करेंगे।

NOTE: This article by Dr. Vijay Agrawal was first published in ‘Civil Services Chronicle’.