काम के घंटों की बजाय उत्पादकता बढ़ाना जरूरी है
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हाल ही में इंफोसिस के संस्थापक एन.आर. नारायणमूर्ति ने भारतीय युवाओं को सप्ताह में 70 घंटे काम करने की सलाह दी है। उनका मानना है कि देश को विकास की राह पर आगे ले जाने के लिए ऐसा किया जाना जरूरी है।
इस कथन के औचित्य पर कुछ बिंदु –
- 2019 का भारतीय टाइम यूज सर्वेक्षण बताता है कि 15-29 वर्ष के भारतीय के 7.2 घंटे प्रतिदिन गाँवों में रोजगार संबंधी काम में और 8.5 घंटे प्रतिदिन शहरों के रोजगार में लग जाते हैं। उत्तराखंड जैसे राज्यों में तो यह 9.6 घंटों तक भी पहुँच जाता है।
- काम के घंटे बढ़ाने के मामले में जर्मनी और जापान का भी उदाहरण दिया है कि कैसे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इन देशों ने अपने काम के घंटे बढ़ाकर 2200 से 2400 प्रतिवर्ष तक कर दिए थे। इसका औसत 8.3 से 9 घंटे, प्रति पाँच दिन होता है। जर्मनी और जापान में काम के अधिक घंटों का कारण उनके पास कार्यबल की कमी का होना बताया जाता है। जबकि भारत में बेरोजगारी के प्रतिशत को देखते हुए ऐसा करना कितना उचित हो सकता है।
- 1970 से 2020 तक भारतीयों के वार्षिक काम के घंटे औसतन 2000 से अधिक चले आ रहे हैं।
- जापान और जर्मनी में श्रमिकों की उत्पादकता के बढ़ते ही काम के प्रतिदिन औसत घंटे 5.3 से 6 हो गए थे। इसे देखते हुए लगता है कि राष्ट्र के विकास के लिए काम के घंटों को नहीं बल्कि उत्पादकता को बढ़ाने की जरूरत है।
- इसके अलावा भारत का 89% कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में संलग्न है। जर्मनी में यह 4.2% है, जबकि जापान में 8% है। कार्यबल की प्रकृति में इतना अधिक अंतर होने पर क्या इन देशों से भारत के कार्यबल की तुलना करना उचित है?
यह अलग मामला है कि चीन ने अपनी अनौपचारिक श्रम शक्ति को कृषि से निकालकर उद्योगों में लगा दिया और समाधान खोज लिया। भारत भी इस राह पर चलने का प्रयास कर रहा है। इससे निकलने के लिए भारत को कुछ उपाय करने होंगे –
- प्रतिवर्ष बढ़ते कार्यबल के अनुकूल औपचारिक रोजगार पैदा करना।
- स्व-रोजगार के लिए पूँजी की चुनौती को कम करना।
- शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाकर श्रमबल उत्पादकता के श्रेष्ठ वर्षों का पूर्ण उपयोग करना।
- कुल मिलाकर सरकार के ऐसे संपूर्ण दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो बुनियादी ढांचे के निर्माण-विनिर्माण क्षेत्र के निर्यात श्रम बाजार की कठोरता को कम करने, सार्वभौमिक स्वास्थ्य बीमा और उन्मुखी शिक्षा को प्रोत्साहित करता हो।
नारायणमूर्ति ने आपूर्ति पक्ष से जनसांख्यिकीय प्रश्न पर विचार किया है, जबकि समाधान श्रम की मांग को बढ़ाने में पाया जाना है।
विभिन्न समाचार पत्रों पर आधारित। 30 अक्टूबर, 2023
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