रोजगार के अवसरों को बढ़ाने की जरूरत है
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गत वर्षों में महामारी और उसके बाद आई यूक्रेन युद्ध की स्थिति ने वैश्विक अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव डाला है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनॉमी के डेटा के अनुसार, भारत में रोजगार और आय की स्थितियां कोविड पूर्व की स्थिति में नहीं पहुँच पाई हैं।
इससे जुड़े कुछ बिंदु-
- कार्यबल में पुरूषों की भागीदारी कोविड पूर्व के स्तर से पांच अंक नीचे है।
- परिवारों की कुल आय भी कोविड पूर्व के 90% तक ही पहुंच सकी है। यह लगभग 6000 रु. प्रति व्यक्ति हुआ करती थी।
- परिवारों की बचत बहुत कम हो गई है।
चिंताजनक विकास प्रवृत्ति –
- रिकवरी का ट्रेंड कार्पोरेट क्षेत्र के लिए उच्च लाभ दर दिखाया है।
- उच्च लाभ और कम कार्पोरेट करों से निवेश दरें नहीं बढ़ीं हैं।
- इसका बोझ सार्वजनिक क्षेत्र पर पड़ रहा है। यहाँ मांग बनाने का दबाव बढ़ गया है। इसका अर्थ ढांचागत परियोजनाओं पर पूंजीगत व्यय बढ़ाना है। यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो सका है कि यह रणनीति, कल्पना के अनुसार काम कर रही है या नहीं।
- महामारी के पहले भी भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास की कमी देखी जा रही थी। विकास दर, मुद्रास्फीति के लिए समायोजित सकल मूल्यवर्धन 2016-17 में 8% से गिरकर 2017-18 में 6% और 2019-20 तक 4% हो गयी थी।
- 2019-20 और 2022-23 के बीच अर्थव्यवस्था 3% की वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ी होगी। रोजगार की समस्या का क्या होगा?
- अच्छी गुणवत्ता वाली उत्पादक नौकरियों के अवसर उत्पन्न करना काफी मुश्किल हो चला है।
- विकासशील देशों में रोजगार के अवसरों में वृद्धि की दृष्टि से भारत की स्थिति काफी खराब है।
- क्रॉस कंट्री डेटा से पता चलता है कि जीडीपी के बढ़ने का संबंध सामान्यतः रोजगार के अवसरों में वृद्धि से लगाया जाता है। भारत के संदर्भ में यह संबंध नदारद है। पिछले 30 वर्षों में भारत में ऐसा बिल्कुल नहीं हो रहा है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि इससे रोजगार नहीं बढ़ा है। बल्कि इसका मतलब यह है कि हम रोजगार को बढ़ावा देने के लिए जीडीपी के बढ़ने पर ही निर्भर नहीं रह सकते हैं। हमें रोजगार पर ही केंद्रित एक नीति की जरूरत है।
- मरनेगा जैसे सामाजिक सुरक्षा उपायों को जारी रखना जरूरी है। अच्छा है कि राज्य सरकारें इसे शहरों में भी ला रही हैं।
- कमजोर परिवारों को रोजगार और आय के नुकसान से निपटने में मदद करना आवश्यक है।
- ढांचागत सार्वजनिक परियोजनाओं पर खर्च को बढ़ाया जा सकता है। यह न केवल प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित करता है, बल्कि व्यवसाय की सुगमता में भी सुधार करता है। निजी क्षेत्र को रोजगार सृजित करने में मदद करता है। लेकिन सूक्ष्म और लघु व्यवसायों को वास्तविक प्रोत्साहन देने के लिए, देश के छोटे कस्बों और शहरों में भारी संख्या में निवेश किया जाना चाहिए।
बड़े राजकोषीय घाटे को देखते हुए, व्यय को नियंत्रित करने के लिए भारत सरकार पर दबाव है। इसका समाधान राजस्व पक्ष के पुनर्गठन में निहित है। महामारी के दौरान धनी परिवारों को लाभ हुआ है। इनको मिलने वाले कर की छूट को कम कर दिया जाना चाहिए। इससे अप्रत्यक्ष करों की कीमत पर प्रत्यक्ष करों पर निर्भरता बढ़ती है। इस संदर्भ में यह याद रखा जाना चाहिए कि कार्पोरेट कर में छूट से निजी निवेश को कोई बढ़ावा नहीं मिला था।
बजट तो हितों को संतुलित करने का एक प्रयास होता है। इस पूरे कार्यक्रम में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के हित और सूक्ष्म, लघु व मध्यम दर्जे के उद्यमों को नहीं भूला जाना चाहिए। देश में रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के लिए ये बड़ा आधार है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अमित बसोले के लेख पर आधारित। 24 जनवरी, 2023