12-12-2022 (Important News Clippings)

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12 Dec 2022
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Date:12-12-22

Back on track

P.T. Usha can create a road map for India’s bid for the Olympics in the 2030s

Editorial

Decades ago, when P.T. Usha travelled by the Madras-Mangalore Mail, her employers, the Railways, permitted an unscheduled stop at her hometown Payyoli in North Kerala. Such was the respect she garnered for her medal-winning exploits at the Asian level while the collective heart-break she bequeathed in narrowly missing a bronze in the 400m hurdles at the 1984 Los Angeles Olympics is remembered even today. After she retired from track-and-field, she evolved as a coach, groomed fresh talent and kept an eye on the grassroots. Her latest appointment as president of the Indian Olympic Association (IOA) comes with a surfeit of goodwill. Additionally, it busts the patriarchy inherent in many sports hierarchies across India. She becomes the first woman president of the IOA, a post she was elected to unopposed. In a sense the IOA’s hand was forced as factionalism drew censure from the International Olympic Committee and there were whispers of a ban. A change of guard from the earlier well-entrenched lobby with political links was inevitable and Usha was seen as the ideal candidate. Already a nominated Rajya Sabha member, Usha’s latest sporting elevation was seen as an organic progress. Having handled many batons while running her famous relays, Usha will find the latest one perhaps the toughest to manoeuvre.

As the umbrella organisation for sports bodies in India, the IOA has to deal with sister associations lost in dissidence. Stadiums become white elephants, leased out for housing loan expos or music concerts. Age-fudging and doping are grim realities as young athletes, seeking jobs, chase medals at the zonal, age-group and national levels. Medals often secure a career opening in public sector units, banks and a few corporates and Usha is aware of this. She and her team of administrators that includes sportspersons and other officials, need to crack the whip. For all the political jostling that happens during the elections, men and women representing opposite ideologies shake hands and become entrenched in sports administration, seeking brownie points and fame. The Government’s leaning on the soft power of sports, the Sports Authority of India’s initiatives and corporate-backed academies have changed the landscape. India is beginning to aspire for golds beyond the Asian realm and Neeraj Chopra and Abhinav Bindra’s exploits in the Olympics are a pointer that the skill-sets are there and if support is provided, medals with better lustre can be secured. With India hoping to bid for the Olympics in the 2030s, Usha and her team are expected to create a road map for that too. The Payyoli Express has a tough challenge ahead.


Date:12-12-22

कोलेजियम पर रार

संपादकीय

कानून एवं कार्मिक मंत्रालय से जुड़ी संसदीय समिति ने उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में देरी पर चिंता जताते हुए यह जो कहा कि कोलेजियम पर जारी गतिरोध को दूर करने के लिए न्यायपालिका के साथ कार्यपालिका को सक्रिय होना चाहिए, उस पर दोनों को ही ध्यान देने की आवश्यकता है। इस समिति ने इस संदर्भ में यह सही सुझाव दिया कि कार्यपालिका और न्यायपालिका को इस मामले में लीक से हटकर सोचने की जरूरत है। यह तभी संभव है, जब दोनों पक्षों में इस विषय पर संवाद की प्रक्रिया प्रारंभ होगी। विडंबना यह है कि संवाद के बजाय वाद-विवाद हो रहा है। एक ओर जहां सरकार कोलेजियम व्यवस्था पर सवाल उठा रही है, वहीं सुप्रीम कोर्ट उसे न केवल उपयुक्त बताने में लगा हुआ है, बल्कि यह भी चाह रहा है कि उसे लेकर किसी तरह के प्रश्न न किए जाएं। यह स्वीकार्य नहीं हो सकता और सुप्रीम कोर्ट के यह कहने के बाद भी नहीं हो सकता कि कोलेजियम अब एक कानून है और सभी को उसका सम्मान करना होगा। भले ही कोलेजियम का निर्माण सुप्रीम कोर्ट ने किया हो, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह एक नीर-क्षीर व्यवस्था है और उसमें कहीं कोई विसंगति नहीं। वास्तव में कोलेजियम व्यवस्था में न केवल विसंगतियां हैं, बल्कि वह लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुकूल भी नहीं। इसी कारण उसे लेकर सवाल उठते रहते हैं।

सरकार की ओर से कोलेजियम व्यवस्था को विसंगतिपूर्ण ठहराने और सुप्रीम कोर्ट की ओर से उसे सही करार देने से बात बनने वाली नहीं है। उचित यह होगा कि दोनों पक्ष इस पर विचार करें कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की ऐसी कोई व्यवस्था कैसे बने, जो न तो पूरी तौर पर कार्यपालिका से संचालित हो और न ही सुप्रीम कोर्ट से। यह व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए, जिससे उच्चतर न्यायपालिका के लिए यथासंभव योग्य एवं निष्पक्ष तरीके से कार्य करने वाले न्यायाधीशों की नियुक्ति संभव हो सके। न्यायिक नियुक्ति आयोग का गठन करके ऐसी ही व्यवस्था बनाने की कोशिश संविधान संशोधन विधेयक के जरिये की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस विधेयक को असंवैधानिक करार दिया। इसे लेकर आज भी सवाल उठते हैं और इसका कारण यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक नियुक्ति आयोग की खामियों को दूर करने की कोई पहल करने के बजाय उसे सिरे से खारिज कर दिया। इससे न्यायाधीशों की नियुक्ति का अधिकार उसके पास ही बना रहा। उचित यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट यह समझे कि कोलेजियम व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता है। यह व्यवस्था पारदर्शिता की भी मांग करती है। क्या यह विचित्र नहीं कि जिस सुप्रीम कोर्ट को चुनाव आयुक्त की नियुक्ति और नोटबंदी के फैसले की फाइल चाहिए, वह कोलेजियम के तहत न्यायाधीशों की नियुक्ति का कोई विवरण देने को तैयार नहीं?


Date:12-12-22

एम्स साइबर हमले से मिला सबक

डा. शशांक द्विवेदी, (लेखक विज्ञान के जानकार हैं )

पिछले दिनों दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के सर्वर पर बड़ा साइबर हमला हुआ। हमला इतना गंभीर था कि उसका सर्वर लगातार नौ दिन तक डाउन रहा। इस दौरान एम्स का कामकाज बड़े पैमाने पर ठप रहा। अधिकांश काम को मैनुअल तरीके से निपटाए गए। इस बीच यह भी खबर आई कि हैकिंग करने वालों ने लाखों मरीजों के चुराए हुए डाटा को वापस करने और सर्वर को बहाल करने के लिए क्रिप्टोकरेंसी के माध्यम से 200 करोड़ रुपये की फिरौती भी मांगी। फिलहाल इस हमले की जांच चल रही है, लेकिन इससे यह साफ हो गया है कि देश का कोई भी संस्थान साइबर हमलों से सुरक्षित नहीं है। दरअसल एम्स के बाद इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) की वेबसाइट पर भी बड़ा साइबर हमला हुआ। हैकर्स ने एक दिन में ही करीब छह हजार बार हमले के प्रयास किए। दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के सर्वर पर भी नवंबर के मध्य में एक बड़ा साइबर हमला हुआ था। वह हमला हांगकांग से किया गया था। हालांकि आइसीएमआर के सर्वर की सुरक्षा में कोई खामी नहीं थी, जिससे हैकर्स जानकारी चुराने में विफल रहे। फिलहाल आइसीएमआर की वेबसाइट सुरक्षित है। इस तरह के साइबर हमलों की जांच-पड़ताल करने वाली दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की शाखा इंटेलीजेंस फ्यूजन स्ट्रैटेजिक आपरेशन के अनुसार हांगकांग की दो ई-मेल आइडी से एम्स के सर्वर पर हमला किया गया। दोनों ई-मेल का आइपी एड्रेस पता कर लिया गया है। आरंभिक जांच के अनुसार इसमें चीन की भूमिका भी सामने आ रही है। इसके पहले भी देश में कई बड़े साइबर हमलों में चीन की भूमिका सामने आई है।

जाहिर है भारत सहित दुनियाभर में इस तरह के साइबर हमलों का खतरा मंडरा रहा है। पिछले तीन साल में चीन से भारत पर कई साइबर हमले किए हैं। पिछले वर्ष एक बड़े साइबर हमले में एयर इंडिया के 45 लाख यात्रियों का डाटा लीक हुआ था। याद कीजिए जब अक्तूबर 2020 में पावर ग्रिड पर साइबर हमले के चलते मुंबई में किस तरह ब्लैकआउट हो गया था और हाल में नेशनल स्टाक एक्सचेंज यानी एनएसई का कामकाज भी कई घंटे प्रभावित रहा। विशेषज्ञों के अनुसार चीन के हैकर्स के पास भारत के खिलाफ साइबर हमला करने की बड़ी क्षमता है। जब भी उन्हें मौका मिलता है वे देश की व्यवस्था में बड़ी गड़बड़ी पैदा कर देते हैं। साइबर जगत के विशेषज्ञों के अनुसार यह डाटा-युद्ध का जमाना है। हम जब डाटा को टुकड़ों में देखते हैं तो नहीं समझ पाते हैं कि आखिर इसे चुराकर कोई क्या हासिल कर सकता है? लेकिन इन्हीं छोटी-छोटी जानकारियों को एकसाथ जुटाकर और उनका किसी खास मकसद से हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। यानी कि देश के आंतरिक मुद्दों, राष्ट्रीय नीति, सुरक्षा, राजनीति, अर्थव्यवस्था सबमें सेंधमारी के प्रयास किए जा सकते हैं।

एक तरफ जहां देश के संवेदनशील संस्थानों पर साइबर हमले के मामले बढ़ रहे हैं, तो दूसरी तरफ महत्वपूर्ण संस्थान साइबर हमलों से बचने के लिए पर्याप्त कदम तक नहीं उठा रहे हैं। एम्स के मामले में भी बड़ी लापरवाही सामने आई है। मसलन संस्थान में सर्वर के रखरखाव के लिए पिछले करीब साढ़े चार साल से कोई एजेंसी नियुक्त नहीं थी। सर्वर की सुरक्षा के लिए दक्ष कर्मचारियों का भी अभाव था। सर्वर और हार्डवेयर के रखरखाव की जिम्मेदारी पहले एक निजी एजेंसी के पास थी, जिसके अनुबंध का नवीनीकरण 2018 से नहीं हुआ था। उसके बाद से किसी एजेंसी के पास सर्वर के रखरखाव की अधिकृत जिम्मेदारी नहीं थी। इस वजह से सर्वर का ठीक से रखरखाव सुनिश्चित नहीं हो रहा था। साफ है एम्स के सर्वर की सुरक्षा भगवान भरोसे ही थी। ऐसे में साइबर हमले की घटना के बाद एम्स की व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। यह स्थिति तब है जब चिकित्सा व्यवस्था को पूरी तरह डिजिटल करने और डाक्टरों द्वारा मरीजों को लिखी जाने वाली दवा की पर्ची भी आनलाइन जारी करने की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। एम्स जैसी ही स्थिति देश के अधिकांश संस्थानों की है, जिन्होंने साइबर हमलों से निपटने के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किया है।

कोरोना काल से ही भारत में साइबर हमलों का खतरा बढ़ गया है। कोरोना काल तो हैकर्स के लिए बहुत अनुकूल रहा। साल 2020-2021 में भारतीय संस्थानों और यूजर्स पर सबसे ज्यादा साइबर हमले किए गए। साइबर सुरक्षा कंपनी सोनिकवाल की रिपोर्ट के अनुसार भारत में इस दौरान लाखों की संख्या में साइबर हमले हुए। महामारी के दौरान सबसे ज्यादा साइबर हमले वर्क फ्राम होम करने वाले यूजर्स पर किए गए। हालांकि इन हमलों से बचने के लिए कई संस्थानों ने पावरफुल क्लाउड-बेस्ड टूल और क्लाउड स्टोरेज तकनीक का इस्तेमाल किया।

वास्तव में साइबर जगत की सुरक्षा इस दौर की बड़ी जरूरत बन गई है। सवाल है कि साइबर हमलों से निपटने के लिए हमारा देश कितना तैयार है? क्योंकि हम सबकी इंटरनेट पर बहुत अधिक निर्भरता बढ़ने की वजह से आज के इस आधुनिक समय में साइबर सुरक्षा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मुद्दा हो चला है। साइबर विशेषज्ञों के अनुसार भारत में जितने बड़े सर्वर मौजूद हैं, उनमें अधिकांश हैकिंग प्रूफ नहीं हैं। हमारे यहां सरकार भी तभी जागती है, जब कोई बड़ा साइबर हमला हो। हैकर्स के नए तरीकों का हल ढूंढ़ने में महीनों लग जाते हैं। अब भारत को इस तरह के साइबर हमलों के लिए पहले से सतर्क होना होगा। केंद्र सरकार को डिजिटल इंडिया की तर्ज पर साइबर सुरक्षा के लिए विशेष रणनीति और असाधारण प्रयास करने होंगे, क्योकि जब सब कुछ इंटरनेट के भरोसे हो रहा है तो उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करना भी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।


Date:12-12-22

 

समानता का समीकरण

संपादकीय

समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर एक बार फिर चर्चा शुरू हो गई है। संसद में इससे संबंधित एक निजी विधेयक पेश किया गया, जिसका विपक्षी दलों ने विरोध किया, मगर मत विभाजन के जरिए उस पर चर्चा की मंजूरी मिल गई। हालांकि निजी विधेयकों पर कानून बनने के उदाहरण बहुत कम हैं, मगर इसे लेकर उम्मीद जताई जा रही है कि यह कानून की शक्ल ले सकता है। इसलिए कि समान नागरिक संहिता लागू करना खुद सरकार की वचनबद्धताओं में एक है। इसे लेकर पहले भी पहल हो चुकी है, मगर कुछ तकनीकी अड़चनों के चलते सहमति नहीं बन सकी। फिर, अभी जो निजी विधेयक पेश किया गया उसे सत्तापक्ष के ही एक सांसद ने सदन के पटल पर रखा। उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक जैसे कुछ भाजपा शासित राज्य पहले ही इसे लागू करने की प्रक्रिया शुरू कर चुके हैं। हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने समान नागरिक संहिता लागू करने का वादा किया था। यानी देश में इसे कानूनी रूप देने की जमीन पहले से तैयार है, उसमें इस विधेयक पर सदन में चर्चा का माहौल भी बन गया। इसलिए इसके सिरे चढ़ने की संभावना अधिक नजर आती है।

दरअसल, समान नागरिक संहिता का मुद्दा भाजपा ने उठाया जरूर था, मगर इसकी जरूरत सर्वोच्च न्यायालय ने शाहबानो मामले की सुनवाई के वक्त ही रेखांकित कर दी थी। शाहबानो ने तलाक के बाद अपने बच्चों के भरण-पोषण को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया था। तब अदालत ने सरकार से समान आचार संहिता बनाने को कहा था। मगर इसमें तकनीकी अड़चन यह आ रही थी कि ऐसा कानून लागू करने से अल्पसंख्यक समुदाय की धार्मिक आस्था पर चोट पहुंच सकती है, जो कि असंवैधानिक कहा जा सकता है। असल में, मुसलिम समुदाय में शादी एक करार होती है, जिसे कोई भी एक पक्ष अपनी मर्जी से तोड़ने को स्वतंत्र है। बहुविवाह का चलन भी वहां स्वीकृत है। इस तरह विवाहिता पत्नी और उससे पैदा हुए बच्चों के भरण-पोषण, संपत्ति आदि का हक बाधित होता है। इसलिए खुद मुसलिम समाज की बहुत सारी महिलाएं समान आचार संहिता लागू करने की मांग करती रही हैं। फिर इसके पक्ष में तर्क यह भी दिया जाता है कि जब संविधान में धर्म और जाति से परे समान अधिकार की बात कही गई है, तो विवाह आदि के मामले में धार्मिक आस्था को क्यों महत्त्व दिया जाना चाहिए। तरक्की पसंद मुसलमान भी इस कानून के पक्ष में रहे हैं, मगर उनका कहना है कि इसे लागू करने से पहले तमाम संवेदनशील पहलुओं पर बारीकी से विचार कर लिया जाना चाहिए।

जब केंद्र सरकार ने तीन तलाक को खत्म करने का फैसला किया, तब बड़ी तादाद में मुसलिम महिलाओं ने अपनी खुशी का खुला इजहार किया था। इस तरह समान नागरिक संहिता को लेकर भी इस समुदाय की तरफ से किसी व्यापक विरोध की आशंका नजर नहीं आती। दरअसल, यह मामला धर्म से अधिक महिलाओं के हक से जुड़ा हुआ है। बहुत सारे देशों ने विवाह के बाद पति द्वारा पत्नी और बच्चों को बेसहारा छोड़ दिए जाने की प्रथा पर कानूनी रोक लगा रखी है। सब जानते हैं कि तलाक के बाद मुसलिम महिलाओं का गुजारा मेहर की रकम से होना मुश्किल होता है। उन्हें पति की संपत्ति पर बराबर का हक मिलेगा, तो न केवल वे खुद को सशक्त महसूस कर पाएंगी, बल्कि मनमानी तलाक पर भी लगाम लगेगी। मगर इसे कानूनी रूप देने से पहले इसके सभी पहलुओं पर गंभीरता से विचार-विमर्श होना चाहिए।


Date:12-12-22

विविधता की चिंता

संपादकीय

जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण ने दुनिया को खतरे में डाल रखा है, लेकिन सुधार के प्रयास भी नाकाफी हैं। आज दुनिया में एक चौथाई जैव-विविधता विलुप्त होने के कगार पर है। ऐसे में, जैव-संरक्षण के लिए मॉ्ट्रिरयल, कनाडा में 190 से अधिक देशों के प्रतिनिधि और मंत्री विशेष सम्मेलन कर रहे हैं। कॉप15 नामक संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता शिखर सम्मेलन में 7 से 19 दिसंबर तक पृथ्वी पर सुधार के लिए विस्तृत चर्चा होगी। संरक्षण के लिए एक समझौते पर मुहर लगने की भी उम्मीद है। एक समझौता या संधि साल 2020 में भी हुई थी, क्या उसमें हम सफल हुए हैं। विश्व स्तर पर समीक्षा हो रही है, लेकिन सबसे जरूरी है, देशों को जैव विविधता संरक्षण के लिए बाध्य करना। प्रेरित करने का आह्वान अब मखौल-सा लगने लगा है। जैव विविधता हमारे हाथों से फिसलती चली जा रही है। क्या हम खेतों को नाइट्रोजन आधारित उर्वरकों से बचाने के लिए कुछ कर पाए हैं? खेत आधार हैं, खेत बिगड़े, तो पूरा खाद्यान्न क्षेत्र ही खतरे में पड़ जाएगा।

सेविंग नेचर के प्रमुख स्टुअर्ट पिम कहते हैं, हम प्रजातियों को भौतिक विकास के माध्यम से लगभग 1,000 गुना तेजी से विलुप्त होने के लिए दुष्प्रेरित कर रहे हैं। कॉप15 धूमधाम से शुरू हो गया है, लेकिन शोधकर्ताओं और नीति विशेषज्ञों को चिंता है कि ज्यादातर देश अभी भी बहुत से जरूरी मुद्दों पर असहमत हैं। ऐसे में, क्या एक प्रभावी जैव संरक्षण समझौता हो पाएगा? संकट की गंभीरता अभी भी देशों को समझ नहीं आ रही है। एक वैश्विक मूल्यांकन से पता चलता है कि 40 प्रतिशत से अधिक उभयचर विलुप्त होने का खतरा झेलरहे हैं। उदाहरण के लिए, मेंढक जैसे मूलभूत जीव भी खतरे में हैं। इंडोनेशिया में बोगोर कृषि विश्वविद्यालय की पशु चिकित्सक मिर्जा कुसरिनी के नेतृत्व में एक टीम ने अध्ययन करके बताया है कि जलवायु परिवर्तन छोटे मेंढकों के जीवन को कठिन बना रहा है। खराब कवक या तत्व पानी में बढ़ने लगे हैं, उभयचरों का जीवन संकट में पड़ गया है। मेंढकों की अनेक प्रजातियां पहले ही नष्ट हो चुकी हैं। ग्लोबल वार्मिंग, जिससे समुद्र का तापमान बढ़ रहा है, दुनिया भर में प्रवाल भित्तियों को नुकसान पहुंचाने के लिए भी जिम्मेदार है। गौर कीजिए, नौ वर्ष की अवधि में, 2018 तक, दुनिया के 14 प्रतिशत प्रवाल समाप्त हो चुके हैं।

खतरा बड़ा है, लेकिन अभी भी विनाशकारी ताकतें सक्रिय हैं। बेहिसाब पैमाने पर मछली व अन्य जल-जीव पकड़ने का काम हो रहा है। वन्यजीव व्यापार व तस्करी रोकने की दिशा में भी देशों के बीच एकजुटता नहीं आई है। अनियंत्रित विकास की वजह से मोटे तौर पर भोजन उत्पादन के लिए लगभग 75 प्रतिशत भूमि और 66 प्रतिशत महासागर क्षेत्र में काफी बदलाव हुए हैं। दुनिया से कौन-सा जीव किस वजह से विलुप्त हो रहा है, अभी इसका ही पूरा अनुमान नहीं है। जब तक हम होश में आएंगे, तब तक न जाने कितनी जैव विविधता से हाथ धो बैठेंगे। वैज्ञानिक बार-बार बोल रहे हैं कि जैव विविधता का कुछ और हिस्सा भी अगर हम खो देंगे, तो दुनिया में जीवन चक्र प्रभावित हो जाएगा, सहज जीवन पहले की तरह लौटकर नहीं आएगा। देखिए, दुनिया में जब उभयचर या मेंढक घट रहे हैं, तब अमेरिका जैसे विकसित देशों में भी मच्छरों और संक्रामक बीमारियों की आशंका तेजी से बढ़ रही है। कॉप15 को समस्याओं की सूची के साथ नहीं, समाधान व समझौते के साथ सामने आना होगा।


Date:12-12-22

जी-20 के सहारे नवाचार का केंद्र बनने की भारतीय पहल

चिंतन वैष्णव, ( अध्यक्ष, स्टार्टअप-20 )

प्रत्येक देश की उभरती जरूरतों और स्थापित मूल्यों के अनुरूप स्टार्टअप आज नवाचारों से प्रेरित आर्थिक सुधार, पुनर्संरचना और विकास के इंजन बन गए हैं। कुल 90 ट्रिलियन डॉलर की वैश्विक अर्थव्यवस्था में वैश्विक स्टार्टअप अर्थव्यवस्था की हिस्सेदारी लगभग तीन ट्रिलियन डॉलर है, और यह हिस्सेदारी तेजी से बढ़ रही है। बदलते वैश्विक परिदृश्य की जरूरतों के मुताबिक नवाचार के संचालन में स्टार्टअप की भूमिका महामारी के दौरान साफ-साफ दिखी थी। न सिर्फ जान बचाने में, बल्कि आर्थिक जीवंतता को वापस पटरी पर लाने में उसने बखूबी योगदान दिया। सतत विकास लक्ष्यों को पाने के लिए अर्थव्यवस्थाओं की मदद करने, सीमा-पार सहयोग बढ़ाने और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए स्टार्टअप निरंतर सहयोग कर रहे हैं। वे रोजगार सृजन, तकनीकी प्रगति, दीर्घकालिक विकास और संकट प्रबंधन के मामले में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

वर्ष 2023 में जी-20 की भारत की अध्यक्षता के दौरान शुरू किए जाने वाले स्टार्टअप-20 एंगेजमेंट ग्रुप का मकसद स्टार्टअप का समर्थन करना और स्टार्टअप, कॉरपोरेट जगत, निवेशकों, नवाचार एजेंसियों व इससे जुड़े इको-सिस्टम के अन्य प्रमुख साझेदारों के बीच तालमेल को संभव बनाना है। भारत का स्टार्टअप इको-सिस्टम आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा इको-सिस्टम है, जिसमें 107 यूनिकॉर्न, 83,000 से अधिक मान्यता प्राप्त स्टार्टअप और उनको सहयोग देने वाला तंत्र शामिल है, जो निरंतर विस्तार कर रहा है। स्टार्टअप-20 एंगेजमेंट ग्रुप के माध्यम से भारत जी-20 देशों के बीच रणनीतिक सहयोग के जरिये रचनात्मक स्टार्टअप की सहायता करने के लिए एक समावेशी ढांचा विकसित करने में मदद करेगा। जी-20 देशों में से प्रत्येक देश अपने यहां स्टार्टअप इको-सिस्टम बना रहे हैं, इसलिए यह समूह स्टार्टअप के वित्त-पोषण के मॉडल को संभव बनाने और विशेष रूप से वैश्विक महत्व के क्षेत्रों के लिए संगतपूर्ण और सह-निर्माण सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करेगा।

इस एंगेजमेंट ग्रुप के स्थापना-वर्ष के लिए भारत ने तीन साझा स्तंभों की पहचान की है। पहला है, नींव और गठबंधन। जी-20 की अर्थव्यवस्थाओं में स्टार्टअप और उनके काम को लेकर कई परिभाषाएं मौजूद हैं। इस स्तंभ के माध्यम से, स्टार्टअप-20 की नींव को मजबूत करने के लिए स्टार्टअप के लिए एक हैंडबुक तैयार किया जाएगा और इसके लिए आम सहमति के आधार पर परिभाषाओं व शब्दावलियों का मूल्यांकन किया जाएगा। इसके अलावा, जी-20 की अर्थव्यवस्थाओं में स्टार्टअप इको-सिस्टम के हितधारकों के बीच वैश्विक गठजोड़ बनाने के लिए रूपरेखा तैयार की जाएगी और तमाम देशों के बीच आपसी सहयोग बढ़ाया जाएगा।

दूसरा स्तंभ है वित्त। यह स्टार्टअप के वित्त-पोषण को आसान बनाने और सहयोगी वातावरण बनाने के लिए नीतियों व फ्रेमवर्क पर ध्यान देगा। तीसरा स्तंभ है, समावेशिता और स्थिरता। यह सभी देशों के साझा हित के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सतत विकास लक्ष्यों से संबंधित कमियों की भरपाई करने वाले या महिला उद्यमी, दिव्यांग जैसा उन समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाले स्टार्टअप को गति देने के लिए उपयुक्त तंत्र बनाने में मददगार होगा, जिनके समावेशन पर विशेष ध्यान देने की सख्त जरूरत है।

स्टार्टअप-20, जी-20 के देशों में स्टार्टअप इको-सिस्टम के विकास के अपने दायित्व को पूरा करने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों व सत्रों की मेजबानी भी करेगा। इस बाबत भारत के विभिन्न हिस्सों में कई कार्यक्रम प्रस्तावित हैं। इसके अलावा, भारत के स्टार्टअप इको-सिस्टम को दुनिया के सामने पेश करने की भी कल्पना की गई है। उम्मीद है, इस तरह के जुड़ाव से भारत ‘ग्लोबल इनोवेशन हब’ की हैसियत पा सकेगा।

जी-20 की अध्यक्षता के माध्यम से भारत ने ‘एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य’ की भावना को दुनिया के सामने रखा है। इसी भावना के अनुरूप स्टार्टअप-20 एंगेजमेंट ग्रुप काम करेगा, और यह स्टार्टअप की सहायता करने, उन्हें समावेशी व विभिन्न भागीदारी के माध्यम से सामूहिक भविष्य का हिस्सा बनाने संबंधी वैश्विक राय बनाने में कारगर साबित होगा।


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