हिमालय जीवन की कठिनाइयां

Afeias
24 Sep 2020
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Date:24-09-20

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विश्व की प्रसिद्ध पर्वत श्रृंखलाओं में से एक हिमालय अपने आप में पारिस्थितिकी की विविधता को समेटे हुए है। इसकी सुंदरता इसकी जटिलता में निहित है। यह विश्व के जैव विविधता वाले 36 प्रमुख क्षेत्रों में से एक है। इंटरनेशलन सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार , हिंदूकुश हिमालय क्षेत्र में लगभग 24 करोड़ लोग रहते है। पहाड़ का जीवन कठोर होता है। इनके निवासियों को आजीविका के लिए कम ही विकल्प मिलते हैं। इनकी चुनौतियों के बारे में जाना-समझा जाना चाहिए –

  • पहाडी लोगों के लिए यहां के वन , आजीविका का प्रमुख साधन हैं।
  • यहाँ प्राकृतिक संसाधनों , कृषि संबंधी उन्नत तकनीकों और बुनियादी सुविधाओं का अभाव स्थानीय जीविका के लिए चुनौती पैदा करता है।
  • जनसांख्यिकीय बदलाव , कमजोर संस्थागत क्षमता , खराब बुनियादी ढांचा और पहाड़ी विशिष्ट जलवायु पर जानकारी के अभाव से क्षमता की कमी हो जाती है।
  • अध्ययनों से पता चलता है कि भोजन की उपलब्धता की कमी और फसलों व पशुधन पर बढ़ते वन्यजीवों के हमलों के संयुक्त दबावों के कारण लगातार होने वाले युवाओं के पलायन से आत्मनिर्भरता में कमी आई है।
  • पुरूषों के पलायन में वृद्धि से महिलाओं और बुजुर्गों पर घरेलू जिम्मेदारी का बोझ आ पड़ा है। इस वर्ग के लोग पशुधन को सहेजने पर अधिक ध्यान देते हैं। कृषि की उपेक्षा से भूमि अनुत्पादक हो जाती है , और वन्यजीवों के लिए प्रवण हो जाती है।
  • सिंचाई के साधनों के अभाव और असमान व अनिश्चित वर्षा के कारण पहाड़ों में पानी की बहुत बर्बादी हुई है।
  • परंपरागत फसलों की जगह नकदी फसलों ने ले ली है। इससे क्षेत्र की कृषि जैव विविधता में गिरावट और आहार पैटर्न में बदलाव आया है। इसने पोषण संबधी असुरक्षा को बढ़ा दिया है।

समाधान में सरकार नीति निर्माताओं , स्थानीय जनता और बाहरी लोगों की क्या भूमिका हो सकती है ?

  • पहाड़ी क्षेत्र पर आधारित विशिष्ट नीतियां कृषि और गैर कृषि गतिविधियों के आधार पर आजीविका के अवसरों को मजबूत कर सकती है।
  • जैविक खेती के तरीकों , वनस्पति और जैव-खाद के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  • स्थानीय खाद्य प्रणालियों को पुनर्जीवित करने के साथ , पहाडों के उत्कृष्ट उत्पादों को विकसित करने की आवश्यकता है।
  • स्वस्थ पशुधन प्रबंधन प्रणाली को प्रोत्साहन दिया जाए।
  • औषधीय पौधों से रोजगार-क्षमता को बढ़ाया जा सकता है।
  • मार्केटिंग और बुनियादी ढांचे की मजबूती चाहिए।
  • जल सुरक्षा और स्वच्छ ऊर्जा समाधानों में भागीदारी के लिए हितधारकों को लाया जाना चाहिए।
  • सभी नीतियों और योजनाओं में स्थानीय जनता , विशेषकर महिलाओं की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए।
  • बीज , कटाई तथा पौधों की प्रजातियों के औषधीय उपयोग पर पारंपरिक ज्ञान का नीति-निर्धारण में समावेश किया जाना चाहिए।

2014 में उत्तराखंड सरकार ने 9 सितम्बर को “हिमालय दिवस” के रूप में मनाने की घोषणा की थी। इसका मुख्य उद्देश्य हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करना था। इस लक्ष्य को जनभागीदारी से ही पूरा किया जा सकता है। उम्मीद की जा सकती है कि हिमालय की सुंदरता को यथावत रखने के लिए सम्मिलित प्रयास किए जा सकेंगे।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित जूनो नेगी के लेख पर आधारित। 9 सितंबर , 2020