लैंगिक भेदभाव इतना अधिक क्यों है?
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लैंगिक भेदभाव दुनिया भर में फैला हुआ है। लेकिन भारत में यह बहुत अधिक दिखाई देता है। इससे जुड़े कुछ तथ्य –
- ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकॉनॉमिक कॉपरेशन एण्ड डेवलपमेंट ओईसीडी देशों से जुडी एक रिपोर्ट बताती है कि भारतीय पुरूष महज 19 मिनट प्रतिदिन घर के कामों में लगाते है, जबकि महिलाएं 283 मिनट प्रतिदिन लगाती हैं। यह डेटा 1990 का है।
- 2019 के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण में भी इसी तरह के आंकड़े मिलते हैं। केवल 8% पुरुष खाना बनाने, 3% कपड़े धोने और 6% घर की सफाई में शामिल होते हैं।
- सर्वेक्षण में शामिल महिलाएं घर के कामों या घर बाहर काम करने के साथ पुरूषों की तुलना में 40 मिनट कम आराम या मनोरंजन का समय पाती हैं।
- ऐसा ही अंतर 6-14 वर्ष के बच्चों में भी मिलता है।
कारण और समाधान कहाँ है –
- अधिकांश अर्थशास्त्री मानते हैं कि समस्या हमारे समाज में बच्चों के पालन-पोषण में होने वाले भेदभाव से जुडी है।
- भारतीय समाज महिलाओं को घर पर रखना चाहता है। बचपन से ही लड़कियों को गृहकार्य में कुशल बनाने की कोशिश की जाती है।
- महिला से यही अपेक्षा होती है कि वह घर के कामों को बखूबी निभाए। अगर फिर भी वह इन कार्यों में मन नहीं लगा पाती, तो उन कामों को कम करने के एवज में पति से सौदेबाजी कर सकती है। लेकिन अगर वह पति के अनुकूल दूसरे काम भी नहीं कर पाती है, तो मामला तलाक तक पहुँच जाता है।
- यहाँ समाधान के रूप में अर्थशास्त्री जोर दे सकते हैं कि विवाह के समय सही अनुबंध होना महत्वपूर्ण है। इसमें हर जिम्मेदारी और उन पर विफल होने के लिए दंड का विवरण हो।
- सच्चाई यह है कि पश्चिम की तुलना में भारतीय समाज विवाह के बारे में अधिक व्यावहारिक है। लेकिन यहाँ विवाह से पहले हर अप्रिय संभावना का विवरण देने का विचार मनोवैज्ञानिक रूप से अवास्वविक है। इसका समाधान पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर लैंगिक भेदभाव को कम करते जाना ही हो सकता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अभिजीत बनर्जी के लेख पर आधारित। 3 नवंबर, 2024
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