परीक्षक से कैसे पायें अधिक से अधिक नम्बर-2

Afeias
24 Sep 2017
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परीक्षक के मानस में दो मुख्य अभिरुचियों का संगम होता है। इनमें पहले का संबंध उसकी व्यक्तिगत अभिरुचियों से होता है, तो दूसरे का सामान्य अभिरुचियों से।

 व्यक्तिगत अभिरुचियाँ

व्यक्तिगत अभिरुचियों के अन्तर्गत उसकी शिक्षा की पृष्ठभूमि तथा निजी विचार (धारणायें) प्रमुख रूप से आते हैं। यहाँ मैंने इन दो तथ्यों को इसलिए प्रमुखता से रखा है, क्योंकि सामान्य ज्ञान के अधिकांश प्रश्न (लगभग 95 प्रतिशत) मानविकी के विषयों से होते हैं। और ये विषय विज्ञान के विषयों से इस मायने में एकदम भिन्न होते हैं कि विज्ञान के उत्तरों में जितनी वस्तुनिष्ठता होती है, उतनी मानविकी के विषयों में हो ही नहीं सकती। इसे आप इन विषयों की कमजोरी न मानकर इनकी विशिष्टता मानें, क्योंकि यहीं तो परीक्षार्थी को वह ‘स्पेस’ मिल पाता है, जहाँ उसके अपने विचारों एवं विश्लेषण की गुंजाइश निकल पाती है। जाहिर है कि इस स्पेस में (व्यक्तिनिष्ठता में) परीक्षक के लिए भी संभावनायें मौजूद रहती हैं कि वह आपके उत्तर को अपने किस नज़रिये से देखता है। यानी कि आपके उत्तर में जो विचार निहित है, वह परीक्षक के विचार से मेल खा पा रहा है या नहीं। यदि इसका उत्तर ‘हाँ’ में है, तो आपकी चाँदी हो जाती है। और यदि उत्तर ‘ना’ में है, तो यह डर बिल्कुल न पालें कि सब कुछ मिट्टी हो जायेगा। यदि हम इसे हानि की स्थिति मान लें, तो वह मात्र इतनी होगी कि आप अतिरिक्त लाभ से वंचित रह जायेंगे। केवल इतना ही।

लेकिन यह एक ऐसा पक्ष है, जिस पर आपका ही नहीं, बल्कि किसी का कोई नियंत्रण नहीं हो सकता। इसलिए यहाँ गीता में दिये गये भगवान कृष्ण के उपदेश का शब्दशः पालन करना ही एकमात्र उपाय है कि ‘‘इसकी चिन्ता मत करो।’’

फिर भी मैं सावधानी के तौर पर ट्रिक के रूप में यहाँ तीन बातें बताना चाहूंगा –

1. पहला तो यह कि जब भी किसी विचार विशेष के पक्ष-विपक्ष की स्थिति आये, तो आप किसी एक का पक्ष लेते हुए भी अपनी बात को उग्र रूप में प्रस्तुत न करें। यानी कि ‘भाषा की सौम्यता’ का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए।

2. दूसरा यह कि आप जिसका विरोध कर रहे हैं, उसमें भी कुछ न कुछ अच्छे तत्व तो होंगे ही। आपको चाहिए कि सावधानी के साथ बीच-बीच में उन तत्वों का भी उल्लेख करते रहें। इससे आपका उत्तर काफी कुछ ‘मध्यमार्गी के वेश में’ प्रस्तुत हो सकेगा। लेकिन ध्यान रहे कि विचारों की स्पष्टता बनी रहनी चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि उत्तर का स्वरूप ‘ढुलमुलपने’ वाला बन जाये।

3. तीसरा यह कि यदि आप किसी विचार या तथ्य का विरोध कर रहे हैं, तो तब तक ऐसा न करें, जब तक कि आपके पास विरोध करने के लिए प्रबल तर्क न हों। आपका विरोध प्रामाणिक होना चाहिए, और विश्लेषण ऐसा कि वह विश्वसनीय जान पड़े।ऐसा करके आप ऐसे परीक्षक से भी अपने लिए कुछ न कुछ अतिरिक्त अंक झटक सकते हैं, जिसके विचार आपके विचारों के विरोध में हैं।

सामान्य अभिरुचियां 

लेकिन आपके लिए खुशी एवं संतोष की बात यह है कि व्यक्तिगत अभिरुचियों के बावजूद परीक्षक के मानस की संरचना में सबसे अधिक समावेश सामान्य (आम) अभिरुचियों का होता है। ये वे अभिरुचियाँ हैं, जिनकी सभी परीक्षकों से अपेक्षा की जाती है कि ‘ये उनमें हों।’’ और इसके लिए यूपीएससी जैसे मानक संस्थान अपनी ओर से हरसंभव प्रयास भी करते हैं। सच पूछिये तो इनका सम्मिलित प्रभाव इतना अधिक होता है कि इनके सामने व्यक्तिगत अभिरुचियां गौण पड़ जाती हैं, भले ही वे पूरी तरह समाप्त न हो पायें।

आइये हम थोड़ा इन उपयों के बारे में जानें।

– यदि हम वैकल्पिक विषयों को छोड़ दें (इसमें आप कुछ सीमा तक निबंध तथा अभिरुचि वाले पेपर को भी शामिल कर सकते हैं), तो सामान्य अध्ययन के सभी पेपर्स का स्वरूप ‘मिश्रित’ होता है। यानी कि एक ही पेपर में कई-कई विषय शामिल होते हैं, जैसे कि सामान्य अध्ययन के प्रथम प्रश्न पत्र में इतिहास, भूगोल और समाजशास्त्र। सामान्यतया उत्तर-पुस्तिकाएं कॉलेज एवं विश्वविद्यालयों के वरिष्ठ प्राध्यापकों द्वारा जाँची जाती हैं, जो किसी एक विषय विशेष के विशेषज्ञ होते हैं। तो सवाल उठता है कि क्या एक कॉपी; जिसमें तीन विषय होते हैं, तीन अलग-अलग प्राध्यापकों द्वारा जाँचे जाती हैं?

ऐसा करना अव्यावहारिक होगा। दरअसल, होते भलेे ही एक पेपर में कई-कई विषय हैं, लेकिन वे ‘सामान्य अध्ययन’ के स्तर के होते हैं, ‘विशेष अध्ययन’ के नहीं। इस ज्ञान के अपेक्षा उनसे की ही जाती है, जो उन्हें मूल्यांकन करने के योग्य बना सके।

प्राध्यापकों को प्रश्नों के सटिक उत्तरों के स्वरूप से परिचित भी कराया जाता है। इससे सभी के दिमाग में मानक उत्तर तैयार हो जाते हैं। फलस्वरूप उनकी निजी रूचियां काफी कुछ प्रतिबंधित हो जाती हैं।

यहाँ हमें यह भी कतई नहीं भूलना चाहिए कि कॉपी जाँचने वाले प्राध्यापक बहुत अनुभवी व्यक्ति होते हैं। यह अनुभव उनके इस कार्य में नैसर्गिक रूप से संयम एवं संतुलन ला देते हैं। वे जानते हैं कि ‘ज्ञान अत्यंत व्यापक एवं बहुकोणीय होता है।’’ इसलिए तर्क एवं तथ्यों की दिप्ति से वे भी प्रभावित होते हैं। जैसे कि गुलाब को पसंद करने वाले मोगरे को नापसन्द नहीं करता है, उसी प्रकार वह उत्तरों को जाँचते समय भी अच्छे उत्तरों को केवल इस आधार पर निरस्त नहीं करता है कि ‘यह गुलाब जैसा नहीं है।’’ हाँ, यह बात अलग है कि यदि वह गुलाब जैसा होता, तो सोने में सुहागा हो जाता।

– सिविल सर्विस परीक्षा की काँपियां जाँचने के लिए प्रोफेसर्स के निवास पर नहीं भिजवाई जाती हैं। इनका मूल्यांकन एक निश्चित केन्द्रीय स्थान पर होता है। यहाँ कई-कई प्रोफेसर्स काँपियां जाँचते हैं। फलस्वरूप उनमें इस विषय पर आपस में लगातार बातचीत होती रहती है। यदि किसी को किसी तरह का कुछ संदेह होता भी है, तो वे आपस में उसका तुरन्त निराकरण कर लेते हैं। इससे अंकों के देने में एक आनुपातिक संतुलन आता रहता है।

– प्रोफेसर्स पर एक दिन में अधिक से अधिक काँपियां जाँचने का दबाव नहीं होता है। काँपियों की संख्या निर्धारित होती हैं, जो कॉलेज की कॉपियों की तुलना में बहुत ही कम होती है। उनके पास इस बात के लिए पर्याप्त समय होता है कि वे उत्तरों को अच्छी तरह से पढ़कर उन्हें नम्बर दें। अंकों को देने पर इसका भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

इस प्रकार आपके पास कॉपी जाँचने वाले के प्रति संदेह करने का कोई विशेष आधार नहीं है। मैंंने इन तथ्यों को आपके ध्यान में लाना इसलिए आवश्यक समझा, क्योंकि परीक्षार्थियों का मन इन बातों को लेकर हमेशा द्वन्द्व से गुजरता रहता है। यह आपको निद्र्वन्द्व, करने के लिए था।

तो आइये, अब हम उन तथ्यों की बात करते हैं, जिनसे आप प्रोफेसर्स को अतिरिक्त रूप से प्रभावित करके उनके हाथों से कुछ अतिरिक्त अंक अपने रोल नम्बर के आगे दर्ज करा सकते हैं।

1. सुन्दर हैंड राइटिंग की जरूरत नहीं होती। लेकिन ऐसी तो होनी ही चाहिए, जिसे परीक्षक बिना अतिरिक्त सतर्कता के पढ़ सके। बेहतर होगा कि वह आसानी से पढ़ सके। खराब हैंडराइटिंग परीक्षक को पढ़ने के लिए निरूत्साहित करके बेकार में उसका मूड खराब कर सकती है।

2. आपके उत्तर का टोटल प्रजेन्टेशन भी मायने रखता है। यानी यह कि आपकी कॉपी कितनी साफ-सुथरी है और जो उत्तर आपने लिखा है, उसका ढाँचा देखने  में कितना आकर्षक और स्पष्ट लग रहा है। यहाँ मैं तथ्यों की बात नहीं कर रहा हूँ। बात तथ्यों के प्रस्तुतिकरण की है। सौन्दर्य के प्रति प्रशंसा का भाव एक स्वाभाविक सी बात है, जिसका सकारात्मक प्रभाव हम सभी के मन पर पड़ता है।

3. भूलकर भी परीक्षक को बेवकूफ बनाने की कोशिश न करें। मानकर चलें कि वह जिस उत्तर को जाँच रहा है, उसके बारे में वह बहुत अच्छे से जानता है, और आप से कई गुना ज्यादा जानता है। सामान्य रूप से गलती होना एक बात है। यह होती ही है। परीक्षक की पारखी आँखों और सतर्क मस्तिष्क को यह समझने में बिल्कुल परेशानी नहीं होती कि ‘आपकी जानकारी गलत है’, या आप उसे मूर्ख बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यहाँ चालाकी दिखाना महँगा पड़ सकता है।

4. भाषा की तरलता में परीक्षक को अपने साथ बहाकर ले जाने का गुण होता है। अच्छी भाषा लिखकर आप परीक्षक का मन मोहकर उसका लाभ ले सकते हैं। इसलिए भाषा में अशिष्ट एवं घटिया शब्दों का प्रयोग बिल्कुल न करें। भाषणबाजी से बचें। नारेबाजी से भी बचें।  साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि आपके लिखने में वर्तनी और व्याकरण की गलतियां न हों। यदि हों भी, तो इतनी कम हों, जैसे कि दाल में नमक। भाषा की गलतियां परीक्षक को विचलित कर देती हैं।

5. पैराग्राफ का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए। इससे न केवल आपका उत्तर सुगठित ही दिखाई देता है, बल्कि परीक्षक को आपके नये-नये तथ्यों@तर्कों को पकड़ने में आसानी भी होती है। ऐसा करके आप परीक्षक की मदद कर रहे होते हैं।

6. अंतिम बात है-वस्तुपक्ष की। यानी कि आपने लिखा क्या है? क्या आपने वहीं लिखा है, जो पूछा गया है? क्या आप अपनी बात तर्कपूर्ण ढंग से रख सके हैं? आदि-आदि। सच पूछिये तो यह विषय ‘उत्तर लेखन की कला’ से जुड़ा हुआ है, जो अलग से पूरे लेख की मांग करता है। मैं यहाँ आपको बताना भी चाहूंगा कि इस टॉपिक पर मैं इससे पहले इसी पत्रिका में लिख भी चुका हूँ। इसलिए उन बातों को दुहराने का कोई अर्थ नहीं है।

यहाँ इस विन्दु के अन्तर्गत मैं आपको विश्वास दिलाना चाहूंगा कि एक अच्छा उत्तर प्रत्येक को अच्छा लगता है, और अपनी बात को तर्क एवं तथ्यपूर्ण ढंग से रखना अच्छे उत्तर की सबसे प्रमुख पहचान होती है। इसलिए यदि आप ऐसा कर पा रहे हैं, तो आपको अच्छे अंक पाने के बारे में निश्चिन्त रहना चाहिए। इसके ठीक विपरीत यदि आप ऐसा नहीं कर पा रहे हैं, तो अच्छे अंक पाने का अन्य कोई उपाय कम से कम इस परीक्षा में तो नहीं ही है।

NOTE: This article by Dr. Vijay Agrawal was first published in ‘Civil Services Chronicle’.

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