अर्थव्यवस्था में समृद्धि के लिए महिलाएँ
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इंटरनेशनल लेबर आर्गनाइजेशन की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में करीब 70 करोड़ महिलाएं घरेलु जिम्मेदारी की वजह से वर्कफोर्स का हिस्सा नहीं है। भारत में 53% महिलाएं नौकरी नही कर पाती। हमारी वर्कफोर्स में महिलाओं की भागीदारी कम होने के क्या कारण है? घरेलू जिम्मेदारियों की वजह से 74.8 करोड लोग कोई नौकरी या काम नही कर पाते जिसमें 70.8 करोड़ सिर्फ महिलाएं है। चीन में 60.5% महिलाएँ वर्कफोर्स का हिस्सा है। वही भारत में यह आंकड़ा 37%है।
वर्कफोर्स में महिलाएँ कम क्यों?
- पुरुषों की तुलना में कमाई 60% तक कम – वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स के मुताबिक जब एक पुरुष औसतन 100 रु. कमाता है, तब एक महिला सिर्फ 40 रुपये कमाती है। ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में भारत 196 देशों में 129 वें पायदान पर है।
- सिर्फ 32% शादीशुदा महिलाएं नौकरी कर रही है – नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार शादी के बाद सिर्फ 32% महिलाएँ नौकरी करती है जबकि 98% तक पुरुष शादी के बाद काम करते है। 13% भारतीय महिलाएं शादी के बाद नौकरी छोड़ देती है।
- 43% महिलाएं परिवार के कारण नौकरी छोड़ रही – बेन एंड कंपनी और गूगल के जाइंट सर्वे में 43% महिलाओं ने बताया परिवार का समर्थन न होने के कारण उन्हें अपना बिजनेस छोड़ना पड़ा। महिला स्टार्टअप को फंडिंग नही मिलती वही भारत की 0.3% फंडिंग ही महिला वाले स्टार्टअप को मिलती है।
- 90% को मिलते है असंगठित क्षेत्रों में काम – इंडिया डेवलपमेंट रिपोर्ट के अनुसार कामकाजी महिलाओं के 16.6% में 90% असंगठित क्षेत्र में काम करती है। वे कृषि या निर्माण क्षेत्रों में सक्रिय है। महिलाओं को इन क्षेत्रों में शोषण या हिंसा का सामना करना पड़ता है।
अर्थव्यवस्थाओं को ऐसे समृद्ध बना सकती हैं महिलाएं –
- 2015 की मैकंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर ग्लोबल वर्कफोर्स में महिलाएँ पुरुषों के बराबर हो तो 10 साल में 12 ट्रिलियन डॉलर अधिक जोड़े जा सकते है। वहीं भारत की GDP में 2025 तक 70 करोड़ डॉलर से अधिक जुड़ सकते है।
- क्लियर कंपनी की रिपोर्ट के अनुसार जेंडर डयवर्स (महिला पुरुष की समान भागीदारी) कंपनियां 41% अधिक मुनाफा कमाती है। विश्व स्तर पर 35% तथा भारत में 36% महिलाएँ टेक क्षेत्र में है।
- नीति आयोग द्वारा 2021 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार यदि महिला उद्यमियों को बढ़ावा दिया जाए तो देश में महिलाओं के स्वामित्व वाले MSME की संख्या वर्तमान 1 करोड़ 30 लाख से बढ़कर 2030 तक 3 करोड़ पहुँच सकती है। जिससे 15.17 करोड़ नए रोजगार भी पैदा हो सकते है।
- वेंचर फर्म ‘फर्स्ट राउंड कैपिटल’ की एक ताजा रिपोर्ट में बताया गया कि महिला नेहस्व वाली कंपरियां पुरुष संस्थापक टीमों की तुलना में 63% बेहतर प्रदर्शन करती है और ऐसी टीमें 35% अधिक रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट भी उत्पन्न करती है।
जेंडर गैप रिपोर्ट में लगातार 15वें वर्ष से आइसलैंड शीर्ष पर है। यह महिला वर्कफोर्स के लिए सर्वोत्तम है। 70.1% महिला श्रम बल भागीदारी 42% महिलाएं तो उच्च पदों पर भी है। वहाँ कंपनियों के बोर्ड में 40% महिला भागीदारी आवश्यक है। महिलाओं को 9 माह की पैरेंटल लीव भी दी जाती है। भारत में भी हमे ऐसा करने की आवश्यकता है।
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