24-06-2025 (Important News Clippings)

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24 Jun 2025
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Date: 24-06-25

Many images

Governors should not play up divisive images in official functions

Editorials

Kerala Governor Rajendra Vishwanath Arlekar’s obstinate use of contentious political iconography has shattered the veneer of harmony with the State government that marked his early months in office. Over the last fortnight, two Kerala Ministers have protested and boycotted official events held at the Raj Bhavan, taking strong exception to a garlanded portrait of Bharat Mata — Mother India — in front of a lion and holding a saffron flag against what appears to be a map of Akhand Bharat (undivided India). Leaders of the ruling Left Democratic Front decried the imagery, condemning it as a ploy to inject a Hindu nationalist agenda into the constitutional office of the Governor. Mr. Arlekar nonchalantly ascribed the idea to the spirit of nationalism and patriotism. The rift has since spilled over into the streets, leading to confrontations between workers of the Communist Party of India (Marxist) and the Bharatiya Janata Party across the State. The Mother India motif traces its origins to the late 19th century work, Anandamath, by Bankim Chandra Chattopadhyay, which personified the country as an oppressed Hindu goddess with a glorious past aspiring to regain her enormous might. It featured ‘Vande Mataram’, which became hugely popular and accepted as India’s national song. With the nationalist movement taking shape, the image found countless iterations across forms of cultural and political expression. In the early 20th century, artist Abanindranath Tagore depicted Bharat Mata as a four-armed goddess holding a piece of white cloth, sheaves of paddy, a book and a string of beads. While Anandamath came under criticism for its perceived communal undertones, with the image being appropriated by Hindu religious nationalists, Abanindranath’s image was seen as a ‘humanisation’ of the divine mother. If painter Amrita Shergill poignantly pictured Mother India as a pining mother staring into an uncertain future, political and cultural portrayals of Mother India relied on the metaphor of a woman who was a divine, benevolent custodian of customs and traditions, with the imagery drawing heavily from Hindu iconography. Her flag changed between the tricolour and saffron, depending on who portrayed the image. Calendar art pinned up many iterations in drawing rooms. While films such as Mother India cemented the stereotype, Satyajit Ray’s Devi called out the deification of women as a patriarchal tool of subjugation.

But religious nationalists continued to weaponise the symbolism, imaginatively blending the visual of a decked-up Hindu goddess with a united Hindu Rashtra. Secularists such as M.F. Husain, too, were drawn to the idea of the nation as a woman and it got deeply etched in the collective psyche of the people. Given the lack of a standard depiction of the metaphor of Mother India, the present controversy was avoidable. Governors would do well to desist from employing a Hindu majoritarian version of a multilayered iconic image for political expediency.


Date: 24-06-25

ईरान पर यूएस के हमले के बाद मूल सवाल क्या हैं?

संपादकीय

ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर ट्रम्प द्वारा बम बरसाने के बाद अहम सवाल यह नहीं है कि इस हमले का औचित्य था या नहीं। बल्कि अहम सवाल यह है कि ईरान की परमाणु इकाइयां, खासकर पहाड़ों के नीचे स्थित फोर्दो इकाई अस्तित्वविहीन (ओब्लिटरेट) हुई है या गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त । बकौल ट्रम्प पहली बात सही है और उनके मंत्रियों के मुताबिक दूसरी लेकिन ईरान का कहना है कि अमेरिकी बम संयंत्र तक नहीं पहुंच सके थे और विखंडनीय मटैरियल वहां से हटा लिए गए थे। ट्रम्प के एक और कुतर्क का मुजाहिरा तब हुआ, जब उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म टूथ सोशल पर लिखा कि ईरान में सत्ता परिवर्तन की बात कहना राजनीतिक रूप से गलत भले हो लेकिन ‘मीगा’ (मेक ईरान ग्रेट अगेन) के तहत सत्ता बदलनी चाहिए। ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या ट्रम्प को किसी देश को जबरिया ‘फिर से महान बनाने के लिए उस पर बम गिराने का अधिकार है? क्या ट्रम्प ने अमेरिकी संविधान के अनुच्छेद 1 (8) में वर्णित दूसरे देश पर हमले के लिए संसद की राय की अपरिहार्यं जरूरत को पढ़ा था? या उसके तहत बने सन् 1973 के बार पावर रिजोल्यूशन जिसके तहत संसद की आज्ञा जरूरी है- को संज्ञान में लिया था? ट्रम्प के खैरवाहों ने तो विश्व शांति पर थोपे इस गंभीर संकट को इस बात में ही उलझा दिया है कि हमला युद्ध कहा जाए या लिमिटेड स्ट्राइक (सीमित हमला)।


Date: 24-06-25

संकट में विश्व

संपादकीय

अमेरिका की ओर से ईरान के तीन परमाणु संयंत्रों को नष्ट किए जाने के बाद इजरायल ने भी इनमें से ही एक परमाणु संयंत्र को निशाना बनाया। अमेरिका, इजरायल, यूरोपीय देशों और ईरान के हमदर्द-दोस्त समझे जाने वाले रूस और चीन के बयानों को देखते हुए यह स्पष्ट हो रहा है कि ईरान का संकट बढ़ रहा है।

इसी के साथ विश्व का भी संकट बढ़ रहा है, क्योंकि वे स्रोत और मार्ग बाधित हो सकते हैं, जो ऊर्जा उत्पादन एवं आपूर्ति के माध्यम हैं। ईरान भी ऊर्जा उत्पादन एवं आपूर्ति का एक केंद्र है। भारत अपनी ऊर्जा जरूरतें ईरान और पश्चिम एशिया के अन्य देशों से पूरी करता है। भारत ईरान में बंदरगाह भी तैयार कर रहा है।

ईरान कहे और करे कुछ भी, वह असहाय सा दिख रहा है। चूंकि भारत के इजरायल और ईरान, दोनों से अच्छे संबंध हैं, इसलिए उसने सैन्य टकराव टालने पर जोर देने और तटस्थता का परिचय देना तय किया। फिलहाल यही उचित भी है। भारत को विश्व शांति के साथ अपने हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी।

इसलिए और भी, क्योंकि खुद को युद्ध विरोधी बताने और नोबेल शांति सम्मान की ललक रखने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इजरायल के पक्ष में खड़े होकर ईरान पर परमाणु हथियार बनाने की जिद पकड़ने एवं आतंक का सबसे बड़ा समर्थक होने का दोष मढ़कर उस पर तो हमला बोला, लेकिन पाकिस्तान के प्रति प्रेम दिखा रहे हैं। यह आतंक के प्रति दोहरी नीति और भारत के हितों की अनदेखी है।

जैसे ईरानी सत्ता परमाणु हथियार हासिल करने के साथ हमास, हिजबुल्ला जैसे आतंकी संगठनों का साथ देती है, वैसे ही पाकिस्तान भी लश्कर, जैश आदि आतंकी गुटों को पालता है। यदि हमास, हिजबुल्ला इजरायल संग अमेरिका के लिए भी खतरा हैं, वैसे ही पाकिस्तानी सेना की ओर से पाले जा रहे लश्कर, जैश भारत के लिए।

इससे ट्रंप परिचित भी हैं, क्योंकि ये आतंकी संगठन अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र से भी प्रतिबंधित हैं। अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप पाकिस्तान को धोखेबाज और आतंकियों को पालने वाला बता चुके हैं। आखिर उन्हें पाकिस्तान आतंक का दूसरा, तीसरा सबसे बड़ा समर्थक क्यों नहीं दिखता?

यह देखने-समझने के बजाय उन्होंने हाल में पाकिस्तान के जिहादी सोच वाले सेना प्रमुख आसिम मुनीर को अमेरिका निमंत्रित किया और उनकी तारीफ भी की। क्या इसलिए कि अपने निजी स्वार्थ साध सकें या फिर पाकिस्तान को झांसा दे सकें?

जो भी हो, लगता नहीं कि रूस या चीन जैसे देश ईरान के पक्ष में बयान देने के अलावा और कुछ कर सकेंगे। चीन की अपनी सीमाएं हैं और रूस पहले से ही यूक्रेन में उलझा है। यदि पश्चिम एशिया के हालात और बिगड़े तो विश्व शांति के साथ अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरे बढ़ सकते हैं।


Date: 24-06-25

दुष्प्रचार से लड़ने के लिए सधे नजरिये की जरूरत

अजय कुमार, ( लेखक यूपीएससी के चेयरमैन और पूर्व रक्षा सचिव हैं )

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान एक नया मोर्चा खुलता साफ दिखाई दिया। इस मोर्चे पर लड़ाई मिसाइल और मशीनों से नहीं बल्कि गलत धारणाओं एवं दुष्प्रचार को हथियार बनाकर लड़ी गई। सभी तरफ से मनगढंत कहानियां परोसी जा रही थीं और इन्हें इस कदर गढ़ा गया था कि वे जनमानस की सोच को प्रभावित कर रही थीं और लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा कर रही थीं। यद्यपि, इन दुष्प्रचारों से लड़ने में तथ्यों की जांच करने वाले दलों (फैक्ट चेकिंग इकाइयों) ने पूरी मेहनत की लेकिन वे एक सधी रणनीति के साथ फैलाए जा रहे दुष्प्रचार एवं लोगों को प्रभावित करने की उनकी क्षमता के आगे टिक नहीं पाए। सूचना युग की वास्तविकता यह है कि सच्चाई स्वतः नजर नहीं आती है बल्कि उसे लोगों के सामने सही रणनीति के साथ रखना पड़ता है।

दुष्प्रचार तेजी से फैलता है क्योंकि उन्हें रोचक कहानियों के जरिये आगे बढ़ाया जाता है जिन्हें लोग तथ्यों से अधिक याद रखते हैं। कहानियां हमारा ध्यान खींचती हैं, भावनाओं को जगाती हैं और हमें चीजों को समझने में मदद करती हैं, भले ही वे सही हो या न हों। उदाहरण के लिए षड्यंत्र के सिद्धांत पेचीदा विषयों का सहज जवाब देते हैं जिन्हें दूसरों के साथ साझा करना आसान और भूलना मुश्किल होता है। अल्गोरिडा से चलने वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म मुश्किलें और बढ़ा देते हैं क्योंकि वे ऐसी सामग्री दिखाते हैं जो उपयोगकर्ताओं ( यूजर) की मौजूदा धारणाओं एवं भावनाओं के साथ मेल खाती हैं। इसका परिणाम यह होता है कि लोग केवल उसी विषय या घटना से संबंधित पोस्ट देखते है जिनके बारे में उनके मन में पूर्व से ही एक धारणा तैयार रहती है। यानी वे वही सुनते एवं देखते हैं जो वे सुनना एवं देखना चाहते हैं। यह समस्या अधिक विकराल हो जाती है क्योंकि लोग स्वाभाविक रूप से उन विचारों का बचाव करते हैं जो उनके समूह या उनकी पहचान से मिलते-जुलते हैं और उन तथ्यों को अस्वीकार कर देते हैं जो उनकी राय का समर्थन नहीं करते हैं। ऐसे में फर्जी कहानियां न केवल अपनी जगह बना लेती हैं बल्कि वे लोगों का भरोसा भी जीत लेती हैं। केवल सच्चाई सरल रूप में लाकर दुष्प्रचार से मुकाबला नहीं किया जा सकता बल्कि गहरे भावनात्मक जुड़ाव को एवं समूहों से उनका जुड़ाव खत्म करना पड़ता है। मुख्यधारा की मीडिया को इस नए युग में कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। मौजूदा समय में सोशल मीडिया सार्वजनिक चर्चा की दिशा तय कर रहा है। जिसे देखते हुए परंपरागत समाचार माध्यम लोगों का ध्यान खींचने की होड़ में फंस कर रह गए हैं। इस चक्कर में वे तथ्यों की व्यापक जांच किए बगैर आनन- फानन में खबरें परोसते हैं और सनसनी मचाने की कोशिश करते हैं। एक समय था जब तथ्यों की जांच पत्रकारिता में सर्वाधिक महत्त्व रखती थी। आर्थिक कारणों और विभिन्न डिजिटल प्लेटफॉर्म के बीच दर्शकों के बंटने से समाचार चैनल वैसी सामग्री अधिक दिखाने लगे हैं जो विशेष समूहों को आकर्षित करते हैं। वह बदलाव जाने-अनजाने में दुष्प्रचार को बढ़ावा देता है।

फर्जी खबरों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने 2019 में पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) फैक्ट चेक यूनिट की स्थापना की थी और 2021 में नियमों में संशोधन किए थे। इन संशोधनों के बाद सरकार द्वारा अधिसूचित फैक्ट चेक यूनिट को सरकार के काम-काज से जुड़ी भ्रामक खबरों को खोज निकालने और मध्यस्थों (सोशल मीडिया या मेनस्ट्रीम मीडिया) को इन्हें हटाने के लिए कहने का अधिकार मिला गया। कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने भ्रामक एवं फर्जी खबरों पर लगाम लगाने के उपाय किए हैं। इन उपायों में किसी तीसरे पक्ष के फैक्ट चेकर के साथ साझेदारी, क्राउड सोर्स वेरिफिकेशन का तरीका अपनाना और उपयोगकर्ताओं के सुझावों एवं प्रतिक्रियाओं के आधार पर सूचना समितियों का गठन एवं डिस्क्लेमर देना आदि शामिल हैं। हालांकि, ये प्रयास केवल दो निष्कर्षो पर पहुंच कर रह जाते हैं- सामग्री को केवल ‘सत्य’ या ‘फर्जी’ के रूप में चिह्नित कर दिया जाता है।

फैक्ट चेकिंग इकाइयों के अस्तित्व में आने के बावजूद उनका प्रभाव सीमित ही है क्योंकि वे नौरस तरीके से काम करती हैं और लोगों के साथ भावनात्मक स्तर पर जुड़ने में विफल रहती हैं। फर्जी खबरों को खारिज करने की उनकी औपचारिक तकनीक लोगों की भावनाओं को उकसाने वाली फर्जी खबरों के प्रभाव को कम नहीं कर पाती है। इसका एक प्रभावी तरीका दिलचस्प रूप में तथ्यों का प्रस्तुतीकरण हो सकता है। कहानी कहने का तरीका अधिक प्रभावी है तथ्यों को संबंधित, आकर्षक और सांस्कृतिक रूप से परिचित कथाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया जा सकता है फैक्ट चेकिंग इकाइयां वास्तविक जीवन के दृश्य, शॉर्ट क्लिप या रोजमर्रा की ऐसी दिलचस्प कहानियों का सहारा ले सकती हैं जो लोगों के दिलो-दिमाग पर असर डाल सकते हैं। यह तरीका भ्रामक खबरों को उजागर करने के साथ-साथ लोगों की धारणा बदलने में भी सहायक होता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘मन की बात’ कार्यक्रम में जिस तरह कहानियों के जरिये संवाद करते हैं उससे काफी कुछ सीखा जा सकता है। इस कार्यक्रम में आम नागरिकों के जीवन से जुड़ी रोचक एवं प्रेरक घटनाओं का इस्तेमाल सकारात्मक संदेश देने और राष्ट्रीय पहल को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है। लोगों के प्रयासों का उल्लेख कर प्रधानमंत्री नीतिगत संदेश को भावनात्मक रूप से प्रस्तुत करते हैं जिसे आसानी से याद रखा जा सकता है। फैक्ट चेकिंग इकाइयां इसी दृष्टिकोण के साथ अपना काम कर सकती हैं। मानव केंद्रित कहानियों के जरिये प्रामाणिक खबरें एवं जानकारियां प्रस्तुत करने से लोग सच्चाई से अधिक जुड़ाव महसूस करते हैं। केवल फर्जी खबरों के खंडन एवं उन्हें भ्रामक बताने से वास्तविकता लोगों तक नहीं पहुंचती है।

जिस तरह मन की बात में वास्तविक लोगों की आवाज को बढ़ावा दिया जाता है उसी तरह फैक्ट चेकिंग से जुड़ी पहल उन लोगों का उदाहरण पेश कर सकती है जो फर्जी खबरों या दावों से नुकसान उठा चुके हैं, मगर बाद में संभल गए हैं। इस कार्य में अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं एवं वैज्ञानिकों की मदद से तथ्यों को संवाद के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है। जब लोग स्वयं अपने आप को किसी कहानी में पाते हैं तो वे अपनी धारणाओं में बदलाव को लेकर अधिक तैयार रहते हैं।

लोगों के वास्तविक जीवन एवं मूल्यों जैसी सहानुभूति एवं उत्साह से जुड़ी बातें प्रामाणिक खबरों को और अधिक यादगार बना सकती हैं। साक्ष्य, व्यंग्य, रील या लोक कथाओं के माध्यम से सच्चाई लोगों के बीच अधिक मजबूती के साथ पहुंचाई जा सकती है जब सच्चाई ठोस एवं बेहतर तरीके से लोगों के सामने रखी जाती है तो यह दुष्प्रचार का असर लोगों के मन से निकाल सकती है।

भ्रामक खबरों एवं दुष्प्रचार की काट अब भी मौजूद हैं मगर आधिकारिक स्रोतों से पुष्टि नहीं किए जाने के कारण बहुत अधिक सफलता नहीं मिलती है। अगर तथ्यों की जांच करने वाली आधिकारिक विश्वसनीय इकाइयां तैयार की जाए तो दुष्प्रचार पर प्रभावी रूप से नियंत्रण पाया जा सकता है।

अगर फैक्ट चेकिंग इकाइयों को दुष्प्रचार से सुरक्षा का मजबूत कवच बनाना है तो उन्हें लोगों तक ठोस नजरिया ले जाने में सबसे आगे रहना होगा। सच्चाई को उबाऊ और नीरस रूप में प्रस्तुत करने से दुष्प्रचार का जंजाल नहीं तोड़ा जा सकता। फैक्ट चेकिंग टीम को उन रोचक कहानियों एवं आख्यान का सहारा लेना चाहिए जो लोगों के दिल और दिमाग में जगह बना सकते हैं। वैसे भी वर्तमान समय में मीडिया की इस सुनामी में अगर आप अपनी कहानी स्वयं नहीं बताएंगे तो कोई और इसे अपने तरीके से लोगों को सुनाएगा।


Date: 24-06-25

आर्थिक चुनौतियों से जूझते छोटे उद्यम

अजय जोशी

भारत की अर्थव्यवस्था के लिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम यानी एमएसएमई अत्यंत उपयोगी है। यह क्षेत्र रोजगार सृजन, उत्पादन वृद्धि और निर्यात में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। इससे देश के आर्थिक विकास में तेजी आती है। अप्रैल 2025 से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम का जो वर्गीकरण किया गया है, उसके अनुसार सूक्ष्म उद्यम वह है, जहां संयंत्र और मशीनरी या उपकरण में निवेश 2.5 करोड़ रुपए और कारोबार दस करोड़ रुपए से अधिक नहीं है। लघु उद्यम वह है, जहां संयंत्र और मशीनरी या उपकरण में निवेश 25 करोड़ रुपए और कारोबार 100 करोड़ रुपए से अधिक नहीं है। मध्यम उद्यम वह है, जहां संयंत्र और मशीनरी या उपकरण में निवेश 125 करोड़ रुपए और कारोबार 500 करोड़ रुपए से अधिक नहीं है।

उद्यम पोर्टल पर सात अप्रैल 2025 तक देश में पंजीकृत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों की संख्या 6.23 करोड़ है। इन्होंने 26.66 करोड़ लोगों को रोजगार दिए हैं। एमएसएमई क्षेत्र ने भारत के कुल निर्यात में 45 फीसद से अधिक योगदान किया है। यह क्षेत्र देश के आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभाता है। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग की सूची में विनिर्माण – और सेवा क्षेत्र के कई प्रकार के व्यवसाय शामिल हैं। सूक्ष्म उद्यम में कंघी, छाते के फ्रेम और प्लास्टिक खिलौने आदि जैसे हजारों उत्पाद सम्मिलित हैं। लघु उद्यम में विनिर्माण क्षेत्र में इंजीनियरिंग जैसे स्टील अलमारी, वाल्व, बायर कटर आदि हैं। सेवा क्षेत्र में आइटी समाधान जैसे सर्वर बैंक बनाना, ‘एप्लिकेशन’ सेवा प्रदाता, स्मार्ट कार्ड अनुकूलन आदि सम्मिलित हैं। मध्यम उद्यमों में विनिर्माण क्षेत्र में सिरेमिक और कांच उत्पाद जैसे छत की टाइलें, कांच की फर्श टाइलें, ग्रेनाइट और सेवा क्षेत्र में प्लेसमेंट सेवाएं, प्राकृतिक सुगंध, फोटोकापी केंद्र आदि सेवाएं सम्मिलित हैं।

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम देश के सकल घरेलू उत्पाद में 29 फीसद से अधिक का योगदान करते हैं। विनिर्माण क्षेत्र में भी इनका योगदान 33 फीसद है। यह क्षेत्र कुल निर्यात में 45 फीसद से अधिक का योगदान करते हैं भारत सरकार ने एमएसएमई के विकास के लिए कई योजनाओं और कार्यक्रमों की शुरुआत की है। इन उद्यमों के लिए संघ भी हैं जो इनके विकास में सहायता करते हैं। इनके लिए राष्ट्रीय पोर्टल पर कई उपयोगी लिंक और संसाधन उपलब्ध हैं, जिनके माध्यम से इन क्षेत्रों में कार्यरत उद्यमियों को विभिन्न प्रकार की सेवाएं और सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।

सरकार ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न योजनाओं और पहलों को लागू किया है, इनमें सरकारी ‘ई- मार्केटप्लेस’ (जीईएम) और प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना और विश्वकर्मा योजना आदि सम्मिलित है। सरकार ने एमएसएमई में निवेश, वित्तीय सहायता, छोटे और मध्यम आकार के व्यवसायों को सहायता करने के लिए आत्मनिर्भर भारत कोष, आपातकालीन क्रेडिट गारंटी योजना भी बनाई हुई है। ये योजनाएं परिचालन लागत को पूरा करने और अपनी क्षमताओं का विस्तार करने या नई परियोजनाओं को शुरू करने में सहायता करती हैं। सरकार ने इन उद्यमों से अन्य बड़े उद्योगों द्वारा ली गई सेवाओं और क्रय किए र गए उत्पादों का समय पर भुगतान सुनिश्चित करने के लिए कानूनी प्रावधान किए हैं। इनके अनुसार सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम से क्रय किए उत्पादों और प्राप्त सेवाओं के लिए 45 दिन के भीतर हो, यह व्यवस्था की गई है।

भुगतान में 45 दिनों से अधिक की देरी होने पर सूक्ष्म, लघु और मध्यम आपूर्तिकर्ता सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अधिनियम के तहत गठित सूक्ष्म और लघु उद्यम सुविधा परिषद से संपर्क कर सकते हैं। एमएसएमईडी अधिनियम की धारा 16 के तहत, आपूर्तिकर्ताओं को भुगतान में देरी होने पर रिजर्व बैंक द्वारा अधिसूचित बैंक दर के तीन गुना मासिक चक्रवृद्धि ब्याज के साथ भुगतान करना होता है सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय मौजूदा उद्यमों को सहयोग और नए उद्यम शुरू करने के प्रयासों को प्रोत्साहन देकर संबंधित मंत्रालयों, विभागों, राज्य सरकारों और इससे जुड़े अन्य पक्षों के सहयोग से इस क्षेत्र के विकास और विस्तार में सहायता करता है।

इन सभी सेवाओं और सुविधाओं के बावजूद इस क्षेत्र की समस्याएं भी कम नहीं हुई हैं। इस क्षेत्र के लिए जितनी बुनियादी ढांचे की जरूरत है उतना उपलब्ध नहीं है। हालांकि सरकार ने इस क्षेत्र में ऋण की उपलब्धता की कई योजनाएं में बनाई है। फिर भी जमीनी स्तर पर उन योजनाओं के मध्यम से ऋण और गारंटी प्राप्त करना आसान नहीं है। विशेष रूप से छोटे और नए व्यवसायों के लिए वित्तीय संस्थानों से ऋण प्राप्त करना कठिन होता है बड़े व्यवसायों द्वारा समय पर भुगतान के प्रावधानों के बावजूद कई तकनीकी बाधाएं उपस्थित कर समय पर भुगतान नहीं किया जाता, जिससे उनकी वित्तीय स्थिरता प्रभावित होती है।

एमएसएमई को सरकार की योजनाओं के अतिरिक्त किसी अन्य प्रकार की वित्तीय आवश्यकताओं के लिए अक्सर बैंक से लिए गए ऋण पर उच्च ब्याज दरें चुकानी पड़ती हैं, जिससे उनकी लागत बढ़ जाती और प्रतिस्पर्धाां कम हो जाती है। इस क्षेत्र की प्राकृतिक संसाधन और परिवहन की पर्याप्त सुविधाओं तक पहुंच नहीं होती है या ये सुविधाएं उनको अधिक लागत पर उपलब्ध होती हैं, जिससे उनकी परिचालन लागत बढ़ जाती है।

दूरदराज के क्षेत्रों में बहुत से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को बिजली और पानी की अपर्याप्त आपूर्ति और कमजोर संचार सुविधाएं मिल पाती हैं, जिससे उनकी उत्पादन लागत प्रभावित होती है। एमएसएमई को घरेलू और वैश्विक बाजार में बड़े उपक्रम के उत्पादों और सेवाओं के मामले में मूल्य और गुणवत्ता में कड़ी प्रतिस्पर्धा का भी सामना करना पड़ता है। बड़े व्यवसायों की तुलना में एमएसएमई के पास अक्सर सीमित संसाधन होते हैं। इस कारण भी वे बड़े उद्योगों से पिछड़ जाते हैं। एमएसएमई में प्रौद्योगिकी और कौशल की कमी भी दृष्टिगत होती है। वित्तीय कमजोरी के कारण उनके लिए कई बार तकनीक अपनाने में कठिनाई होती है, जिससे वे अपनी उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार नहीं कर पाते हैं। कुछ एमएसएमई में श्रमिकों के पास आवश्यक कौशल की कमी होती है, जिससे उनकी उत्पादन की गति और गुणवत्ता प्रभावित होती है।

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम को कर अनुपालन और श्रम कानून में बदलाव की चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है, जिससे उनको बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस क्षेत्र को और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के प्रयासों के बावजूद, विनियमों और कर पंजीकरण का अनुपालन मुश्किल बना हुआ है, जिससे पूंजी मिलने में कठिनाई होती है और ये उपक्रम बंद हो रहे हैं। एमएसएमई के लिए ही अच्छी विपणन व्यवस्था भी बड़ी समस्या है। इसके लिए पर्याप्त विज्ञापन और समुचित वितरण व्यवस्था का होना भी जरूरी है असंगत और छिटपुट विपणन प्रयासों से कोई परिणाम नहीं मिलता।

इन सभी समस्याओं और चुनौतियों के बावजूद, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम भारत की अर्थव्यवस्था में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। सरकार और संबंधित पक्षकारों द्वारा यदि मिल-जुल कर इनके विकास और विस्तार के लिए और अधिक प्रयास किए जाएं, तो ये उपक्रम बेरोजगारी दूर करने, नियत को बढ़ावा देने और सकल घरेलू उत्पाद को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।