17-06-2023 (Important News Clippings)

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17 Jun 2023
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Date:17-06-23

Mounting tensions

Criminal cases should not be allowed to take a communal colour

Editorial

Festering communal tensions in Purola in Uttarakhand, nearly 400 kilometres north of Delhi, have resulted in the fleeing of most of the town’s handful of Muslims. A clutch of self-styled protectors of Hindu interests had called for a congregation on June 15, which was cancelled at the eleventh hour, even as the Uttarakhand High Court asked the State government to ensure that law and order was maintained. Tensions arose from an alleged attempt by a Muslim man to kidnap a minor Hindu girl from the town, on May 26. The man and his Hindu friend were arrested, and the incident soon became the new war cry for outfits that have been peddling the notion of love jihad, an alleged Islamic scheme to entrap Hindu girls in liaisons. Muslims in Purola became the target of a social boycott, and Hindu landlords were reportedly forced to evict their Muslim tenants. Several such incidents of targeting interfaith relationships have been reported in Uttarakhand in recent months. In a rather bizarre case, an interfaith couple had to call off their marriage even after their families had agreed to their match. Individual rights and choices are being trampled upon by hooligans who claim to protect community interests, a trend that is a serious threat to the rule of law and social harmony.

The Chief Minister of Uttarakhand, Pushkar Singh Dhami, has amplified the hate rhetoric of love jihad in recent months even as these disturbances continue. He also ordered the demolition of over 600 tomb shrines associated largely with Muslims, on grounds of encroachment of public or forest land. He has promised strict action against the so-called love jihad and a vaguely framed ‘verification drive’ of people to keep the State free of disturbances. Meanwhile, random organisations that seek the cleansing of ‘devbhoomi’ — a reference to Hindu shrines in the Himalayan State — of other faiths, are finding the ruling party’s tacit or direct endorsement. A demand for excluding Muslims from the businesses associated with the Chardham pilgrimage circuit is also being given a sympathetic hearing by the administration. Since 2017, Uttarakhand has been in the news for campaigns and hate speeches against people from the minority community, which has been noted by both the Supreme Court of India and the High Court. The State should remain impartial in enforcing the law. The criminal case of attempted kidnapping in Purola should be investigated quickly, and nobody should be allowed to make use of it to propagate communal politics. The leaders should be fair and impartial, and be seen so.


Date:17-06-23

सही शिक्षा से ही स्वर्णिम भविष्य सम्भव होगा

संपादकीय

इस वर्ष के बजट पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने ट्वीट किया था कि अभी तक का शिक्षा के मद में यह सबसे बड़ा व्यय होगा, जो भारत को ‘ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था’ बनाएगा। नई शिक्षा नीति 2020 में इस व्यय को जीडीपी का छह प्रतिशत करने का भी वादा था। लेकिन पिछले चार वर्षों से शिक्षा पर केवल 2.9% खर्च हो रहा है, जो सन् 2013-14 में 3.10% था। राशि में ‘अब तक की सबसे बड़ी वृद्धि’ इसलिए अहम नहीं है क्योंकि पिछले 70 साल से हर साल जीडीपी हो या बजट, यह राशि बढ़ती ही है। सच यह है कि प्रतिशत के रूप में भी पिछले कुछ वर्षों में कुल व्यय में शिक्षा पर खर्च घटता रहा है। किसी भी समाज के आर्थिक विकास के दो मूल आधार होते हैं- स्वास्थ्य और शिक्षा स्वास्थ्य के पैरामीटर्स पर (कोरोनाकाल के अप्रत्याशित व्यय को छोड़ कर ) स्वयं सरकार मानती है कि गरीबों की जेब से भी स्वास्थ्य के मद में पहले से ज्यादा खर्च हो रहा है और एनएफएचएस-5 भी कहता है कि 90% बच्चे पोषक तत्वों की न्यूनतम स्वीकार्य सीमा से नीचे हैं। उच्च शिक्षा में एनरोलमेंट तो वर्ष 2013-14 के 24.3% के मुकाबले वर्ष 2020-21 में 27.3% (सरकार के सबसे हालिया आंकड़े) बढ़ा है, लेकिन क्या यह गति ठीक है और क्या जो शिक्षा दी जा रही है, वह एआई के दौर में तार्किक वैज्ञानिक सोच विकसित करने में सहायक है ?


Date:17-06-23

मोदी की अमेरिका यात्रा का फोकस डिफेंस टेक्नोलॉजी पर

मनोज जोशी, ( ‘अंडरस्टैंडिंग द इंडिया चाइना बॉर्डर’ के लेखक )

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा को लेकर बहुत उत्साह जताया जा रहा है। कुछ कह रहे हैं कि यह किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की अभी तक की सबसे महत्वपूर्ण अमेरिका यात्रा है। इसे हाल के समय में किसी भी विदेशी नेता की सबसे महत्वपूर्ण वॉशिंगटन डीसी यात्रा तक बताया जा रहा है, क्योंकि यह भारत की भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक सम्भावनाओं को बदल सकती है। यात्रा का प्रमुख उद्देश्य है भारत और अमेरिका के आर्थिक सम्बंधों की बुनियाद को मजबूत बनाना, विशेषकर डिफेंस टेक्नोलॉजी सेक्टर में। इसके सम्बंध में प्रमुख वार्ताएं जनवरी में ही हो चुकी थीं, जब भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल वॉशिंगटन पहुंचे थे। उन्होंने अपने अमेरिकी समकक्ष जैक सुलीवन के साथ इनिशिएटिव फॉर क्रिटिकल एंड एमर्जिंग टेक्नोलॉजीज़ (आईसेट) को लॉन्च किया था। इसकी घोषणा मई 2022 में तब की गई थी, जब टोकियो में मोदी की बाइडन से भेंट हुई थी।

आईसेट की लॉन्चिंग पर व्हाइट हाउस से जारी बयान में कहा गया था कि ‘इसके बाद अब दोनों देश अपनी स्ट्रैटेजिक टेक्नोलॉजी पार्टनरशिप और डिफेंस इंडस्ट्रीयल को-ऑपरेशन को न केवल सरकारों, बल्कि कारोबारी और शैक्षिक संस्थानों के स्तर तक बढ़ाने को तैयार हैं।’ पीएम की यात्रा में एलसीटी तेजस एमके2 और एएमसीए जैसे भारतीय लड़ाकू विमानों को और सशक्त बनाने के लिए जीई-414 जेट इंजिन के लाइसेंस मैन्युफेक्चर हेतु एक प्रोजेक्ट की घोषणा की जा सकती है। वर्तमान में इन दोनों लड़ाकू विमानों का निर्माण जारी है। तेजस के मौजूदा एमके1 वर्शन में पुराने जीई 404 इंजिन का उपयोग किया जा रहा है। भारत और अमेरिका दोनों देशों के डिफेंस इनोवेशन सेक्शन के बीच सहभागिता को बढ़ाने के लिए इंडस एक्स इनिशिएटिव भी औपचारिक रूप से लॉन्च करेंगे। साथ ही 18-30 एमक्यू-9 रीपर आर्म्ड ड्रोन्स के अधिग्रहण सम्बंधी घोषणा भी की जाएगी। पिछले सप्ताह भारत सरकार ने इनके क्रय की अनुमति दे दी है।

इस यात्रा के लिए बड़े पैमाने पर योजनाएं बनाई गई हैं और अथक प्रयास किए गए हैं। इस महीने की शुरुआत में अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन नई दिल्ली आए थे। उन्होंने यहां अपने भारतीय समकक्ष राजनाथ सिंह के साथ इंडो-यूएस डिफेंस इंडस्ट्रीयल को-ऑपरेशन के लिए रोडमैप बनाने पर चर्चा की। दोनों ने मई में हुए एडवांस्ड डोमेन्स डिफेंस डायलॉग पर भी चर्चा की। उसमें सुरक्षा से सम्बंधित सभी डोमेन्स- विशेषकर स्पेस व एआई के क्षेत्र में सहभागिता बढ़ाने पर बात की गई थी। 6 जून को एक और महत्वपूर्ण घटना तब घटी, जब वॉशिंगटन डीसी में भारत-अमेरिका स्ट्रैटेजिक ट्रेड डायलॉग की स्थापना की गई। भारतीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई विदेश सचिव वी.एम. क्वात्रा कर रहे थे। भारत का लक्ष्य सेमीकंडक्टर्स, स्पेस, टेलीकॉम, क्वांटम टेक्नोलॉजी, एआई, डिफेंस, बायोटेक जैसे महत्वपूर्ण डोमेन्स में विकास और व्यापार को बढ़ावा देना है। अच्छी बात यह है कि अमेरिका के निर्यातों पर नियंत्रण रखने वाली उसकी ताकतवर ब्यूरोक्रेसी भारत-अमेरिका तकनीकी सम्बंधों को आगे बढ़ाने को लेकर अपने राजनेताओं से सहमत है।

मोदी की यात्रा से एक सप्ताह पहले जैक सुलीवन नई दिल्ली आए थे, ताकि यात्रा की तैयारियों को अंतिम रूप दे सकें। इसके बाद उन्होंने अजित डोभाल से मिलकर आईसेट को आगे बढ़ाने के लिए कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी में भाग लिया। डोभाल ने इस अवसर पर कहा कि शुरू में वे निश्चित नहीं थे कि यह विचार कारगर साबित होगा या नहीं, लेकिन दोनों देशों की सरकारों, उद्योग-समूहों, वैज्ञानिकों और शोध संस्थाओं का रिस्पॉन्स देखकर मैं उत्साह से भर गया हूं और मेरा विश्वास बढ़ा है। आईसेट भारत-अमेरिका सम्बंधों के लिए एक क्रांतिकारी कदम साबित होगा।

यह सब तब हो रहा है, जब खुद अमेरिका सेमीकंडक्टर्स की मैन्युफेक्चरिंग को सब्सिडाइज्ड करके, अपने जर्जर होते बुनियादी ढांचे के कायाकल्प के लिए बड़े पैमाने पर पैसे देकर और ग्रीन टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देते हुए अपनी घरेलू नीति को बदलने की कोशिश कर रहा है। अब अमेरिका ओपन ट्रेड के अपने परम्परागत रुख से दूर हो गया है। वह अपने बाजारों को दुनिया के लिए खोलने से संकोच करने लगा है और डब्ल्यूटीओ जैसे संस्थानों को शक की नजर से देखता है। लेकिन चीन पर अंकुश लगाने के लिए वह भारत को एक डिफेंस व सिक्योरिटी पार्टनर की तरह देखता है। अमेरिका पहले ही भारत का प्रमुख ट्रेड पार्टनर है। अब वह हमसे अपनी डिफेंस टेक्नोलॉजी भी शेयर करना चाहता है। भारत और चीन की ताकत में आज जितना अंतर है, उसे पाटने के लिए हमें भी अमेरिकी टेक्नोलॉजी की जरूरत है।


Date:17-06-23

सहकारिता में नए युग का सूत्रपात

रमेश कुमार दुबे, ( लेखक लोक नीति विश्लेषक हैं )

आज देश में 91 प्रतिशत गांव ऐसे हैं, जहां कोई न कोई सहकारी संस्था काम करती है। मोदी सरकार सहकारिता के इस विशाल ढांचे से हर परिवार को जोड़ने में जुटी है, ताकि परिवार की समृद्धि से देश समृद्ध बने। प्रधानमंत्री मोदी ने ‘सहकार से समृद्धि’ का मूल मंत्र दिया है। इसी के तहत जुलाई 2021 में अलग सहकारिता मंत्रालय के गठन के बाद सरकार नई सहकारी नीति तैयार कर रही है। नई राष्ट्रीय सहकारी नीति का मसौदा तैयार करने के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था। आशा है कि समिति द्वारा सौंपी रिपोर्ट पर विचार-विमर्श के बाद जुलाई तक नई सहकारी नीति घोषित हो जाएगी। सहकारिता को जन-जन तक पहुंचाने के क्रम में मोदी सरकार प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) को 2,000 जन औषधि केंद्र खोलने की अनुमति देने के साथ-साथ सहकारिता क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी अन्न भंडारण योजना शुरू कर रही है। पैक्स के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में जन औषधि केंद्र खुलने से न केवल पैक्स से जुड़े लोगों की आय बढ़ेगी, बल्कि ग्रामीण क्षेत्र में रहने वालों को कम कीमत पर दवाइयां मिल पाएंगी। इनमें से 1,000 जन औषधि केंद्र इस साल अगस्त तक और 1,000 दिसंबर तक खोले जाएंगे। अभी तक 9,400 से अधिक जन औषधि केंद्र खोले जा चुके हैं। इनमें 1,800 प्रकार की दवाइयां और 285 अन्य चिकित्सा उपकरण उपलब्ध हैं। ब्रांडेड दवाइयों की तुलना में जन औषधि केंद्रों पर दवाइयां 50-90 प्रतिशत तक सस्ती हैं।

भारत में खेती–किसानी की एक विडंबना यह रही कि यहां जितना जोर उत्पादन पर दिया गया, उतना उपज के भंडारण-विपणन-प्रसंस्करण पर नहीं। यही कारण है कि न केवल बड़े पैमाने पर अनाज की बर्बादी होती है, बल्कि किसानों को उनकी उपज की वाजिब कीमत भी नहीं मिल पाती है। इस कमी को दूर करने के लिए मोदी सरकार सहकारिता क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी अन्न भंडारण योजना शुरू कर रही है। एक लाख करोड़ रुपये की इस योजना का मुख्य उद्देश्य देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना, फसलों के नुकसान को कम करने के साथ-साथ फसलों की खरीद-बिक्री का विकेंद्रित तंत्र स्थापित करना है। अब तक देश की अनाज भंडारण व्यवस्था चुनिंदा फसलों और क्षेत्रों तक ही सिमटी है। उदाहरण के लिए पंजाब में भारतीय खाद्य निगम द्वारा संचालित गोदामों की संख्या 611 है तो ओडिशा में इनकी संख्या 46 और बंगाल में मात्र 30 है। इसी तरह भंडारण व्यवस्था भी गेहूं-धान तक सिमटी है।

नई भंडारण योजना के जरिये पांच वर्षों में सात करोड़ टन अतिरिक्त भंडारण क्षमता विकसित होगी। अभी देश की अन्न भंडारण क्षमता 14.5 करोड़ टन है। इस योजना के क्रियान्वयन के बाद कुल भंडारण क्षमता 21.5 करोड़ टन हो जाएगी। यह सहकारी क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना है। इस योजना के तहत प्रत्येक ब्लाक में 2,000 टन क्षमता का गोदाम स्थापित किया जाएगा और इसके लिए प्रत्येक पैक्स को वित्तीय सहायता दी जाएगी। इन गोदामों में केवल गेहूं-धान ही नहीं मोटे अनाज और दलहनी-तिलहनी उपज भी भंडारित की जाएंगी। पैक्स केवल गोदाम निर्माण नहीं करेगी, बल्कि भारतीय खाद्य निगम और राज्य एजेंसियों के लिए खरीद का काम भी करेंगी। वास्तव में मोदी सरकार पैक्स को बहुउद्देशीय बना रही है, ताकि वह न केवल उचित दर की दुकान के रूप में कार्य करे, बल्कि प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित करे, जिसमें कृषि उपज की जांच, छंटाई और ग्रेडिंग आदि का कार्य शामिल है।

सरकार खेती को गेहूं-धान जैसी चुनिंदा फसलों से बाहर निकालकर बहुफसली बनाना चाहती है। स्थानीय स्तर पर विकेंद्रित खरीद से खाद्यान्न की बर्बादी रुकेगी और खाद्य सुरक्षा को मजबूती मिलेगी। किसान बहुत कम मूल्य पर उपज की आकस्मिक बिक्री नहीं करेगा। किसान अपनी उपज का भंडारण पैक्स द्वारा प्रबंधित गोदाम में कर सकेंगे और अपनी सुविधा से बेच सकेंगे। इस योजना का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि खरीद केंद्रों से गोदाम तक और उसके बाद गोदाम से उचित दर की दुकानों तक खाद्यान्न ले जाने वाले भारी-भरकम खर्च में काफी कमी आएगी। मौजूदा व्यवस्था में धान खरीदकर पंजाब ले जाया जाता है और फिर धान से चावल निकालकर उसकी आपूर्ति बिहार को की जाती है। इससे न केवल ढुलाई लागत बढ़ती है, बल्कि अनाज की बर्बादी भी होती है।

सहकारी संस्थाओं को पारदर्शी बनाने और हर स्तर पर जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सरकार 63,000 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों का कंप्यूटरीकरण कर रही है। इन समितियों से 13 करोड़ किसान जुड़े हैं, जिनमें अधिकांश लघु एवं सीमांत किसान हैं। पांच वर्षों में इन समितियों की संख्या बढ़ाकर तीन लाख करने का लक्ष्य है। इससे हर दूसरे गांव में प्राथमिक कृषि ऋण समितियों की पहुंच हो जाएगी। अमूल की भाति स्वयं सहायता समूह अपनी सोसायटी बनाकर काम कर सकें, इसके लिए मोदी सरकार कानूनी ढांचा बना रही है। सहकारिता मंत्रालय पैक्स से संबंधित उप-नियम तैयार कर रहा है, ताकि पैक्स की उपयोगिता बढ़े। इसके तहत 25 से अधिक व्यावसायिक गतिविधियां चिह्नित की गई हैं। इनमें ऋण, डेरी, मत्स्य के साथ-साथ गोदामों की स्थापना, खाद्यान्न, उर्वरक, कीटनाशकों की खरीद, पीएनजी-सीएनजी-पेट्रोल-डीजल वितरण, कामन सर्विस सेंटर, उचित दर की दुकान, सामूहिक सिंचाई योजना और सामूहिक ड्रोन जैसी गतिविधियां शामिल हैं। सरकार सभी पैक्स को प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र में बदलेगी। इसके साथ-साथ जैव उर्वरकों के विपणन में पैक्स को भागीदार बनाया जाएगा, ताकि रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता में कमी आए। जैव उर्वरकों का विपणन भी पैक्स के माध्यम से किया जाएगा।


Date:17-06-23

सामाजिक सुरक्षा की कीमत

टी.एन.नाइनन

आधे-अधूरे आर्थिक सुधारों के कारण पूर्वी एशियाई देशों की तरह वृद्धि हासिल न होने और विनिर्माण, वाणिज्यिक निर्यात तथा रोजगार आदि क्षेत्रों में सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद पिछड़े होने के बीच अब राजनेताओं के मन में बड़ा विचार यह आया है कि मूल्य सब्सिडी और नकद भुगतान के जरिये वित्तीय हस्तांतरण की पुरानी परखी हुई तरकीब को पुन: अपनाया जाए। वे इसे लेकर इसलिए उत्साहित हैं कि बार-बार चुनावों के समय ऐसा करना कारगर सिद्ध हुआ है। यह तरीका अपनाकर पहली जीत शायद द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) ने सन 1967 में तत्कालीन मद्रास राज्य में हुए चुनावों में हासिल की थी। उस वक्त उसने एक रुपये की दर पर एक निश्चित मात्रा में चावल देने का वादा किया था। यह वादा राजधानी के बाहर पूरा नहीं हो सका क्योंकि यह आर्थिक दृष्टि से व्यावहारिक नहीं था। द्रमुक से अलग होकर अपनी पार्टी बनाने के बाद एमजी रामचंद्रन ने विद्यालयों में नि:शुल्क मध्याह्न भोजन के सीमित कार्यक्रम को बहुत व्यापक पैमाने पर लागू किया। इससे जुड़े कई लाभ थे: पोषण स्तर में सुधार, विद्यालयों में उपस्थिति में सुधार और इस तरह साक्षरता में सुधार तथा जन्म दर में कमी। अब यह एक देशव्यापी कार्यक्रम बन चुका है। सन 1983 में आंध्र प्रदेश में एन टी रामा राव ने द्रमुक से सीख लेते हुए दो रुपये प्रति किलो चावल देने की घोषणा करते हुए विधानसभा चुनावों में बेहतरीन जीत दर्ज की। हाल के वर्षों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) बड़े वादों को पूरा कर पाने में नाकाम रही है- उदाहरण के लिए किसानों की आय दोगुनी करना या अर्थव्यवस्था को पांच लाख करोड़ डॉलर का बनाना। यही वजह है कि उसने कल्याणकारी पैकेज पर ध्यान केंद्रित किया: किसानों को नकद भुगतान, नि:शुल्क खाद्यान्न, नि:शुल्क शौचालय, आवास के लिए सब्सिडी, नि:शुल्क चिकित्सा बीमा आदि। परंतु अन्य दलों द्वारा ऐसे कदमों को वह ‘रेवड़ी’ करार देती है। ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना पेश करने वाली कांग्रेस भी घरेलू उपभोक्ताओं के एक खास हिस्से को नि:शुल्क बिजली देने के मामले में आम आदमी पार्टी का अनुसरण कर रही है। कर्नाटक में हाल में संपन्न विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने हर बेरोजगार डिप्लोमाधारक/स्नातक को 1,500/3,000 रुपये और हर परिवार की महिला मुखिया को 2,000 रुपये प्रतिमाह तथा नि:शुल्क बिजली और अनाज देने का वादा किया। अन्य स्थानों पर पार्टियां मुफ्त टीवी, स्मार्ट फोन और लैपटॉप, सोना, पालतू पशु, पंखे और साइकिलें आदि दे रही हैं।

राज्य दर राज्य तथा लोकसभा के स्तर पर भी जब चुनावी नतीजों को देखते हैं तो पता चलता है कि जनता इन पर मुहर लगाती है। अगले दौर के विधानसभा चुनावों में हमें और अधिक कल्याणकारी वादे और नि:शुल्क उपहार देखने को मिलेंगे। व्यापक रुख ऐसा प्रतीत होता है मानो अगर अर्थव्यवस्था पर्याप्त रोजगार नहीं तैयार कर पा रही है और अगर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा क्षेत्र कहीं पीछे छूट जा रहा है तो चुनाव जीतने की राह मुफ्त उपहारों और नकदी स्थानांतरण से ही निकलती है। इसके प्रतिवाद में यही कहा जा सकता है कि ये रोजगार, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं का बहुत खराब स्थानापन्न हैं। परंतु अगर राज्य ये सेवाएं नहीं दे पा रहा है तो कल्याण योजनाएं अवश्यंभावी हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था आर्थिक मुश्किलों और सामाजिक अशांति को इसी तरह ढकती है। यह दलील भी दी जा सकती है कि नि:शुल्क अनाज और चिकित्सा बीमा, रोजगार तैयार करने के लिए सार्वजनिक कामों, बुजुर्गों-बेरोजगारों आदि को नकदी हस्तांतरण, बिजली-घरेलू गैस तथा घर जैसी जरूरी वस्तुओं को रियायती दर पर उपलब्ध कराने जैसे कदमों के साथ अनियोजित तरीके से एक सामाजिक सुरक्षा ढांचा तैयार करने की दिशा में बढ़ रहा है। इसकी शिकायत भी कौन कर सकता है? एक ऐसी अर्थव्यवस्था में जहां अभी भी गरीबी मौजूद है और असमानता बढ़ी है और (जैसा कि अमेरिकी दार्शनिक थॉरो ने 19वीं सदी के मध्य कहा था) ‘अधिकांश लोग खासी निराशा का जीवन जीते हैं, वहां जाहिर तौर पर एयर इंडिया, सरकारी दूरसंचार कंपनियों और सरकारी बैंकों के घाटे की भरपाई पर हजारों करोड़ रुपये व्यय करने के बजाय ऐसी कल्याणकारी व्यवस्था पर खर्च को प्राथमिकता भी मिलनी चाहिए।

मुश्किल केवल धन की है। अमीर देश भी अब कल्याण योजनाओं पर व्यय में आर्थिक दिक्कत महसूस कर रहे हैं। अमीर दिल्ली मुफ्त बिजली का बोझ सह सकती है लेकिन क्या कर्ज ग्रस्त पंजाब ऐसा कर सकता है? प्रधानमंत्री ने ‘रेवड़ियों’ पर सवाल उठाते हुए जो सवाल उठाया था वह वाजिब है। उन्होंने पूछा था कि क्या ये सभी मुफ्त तोहफे एक आधुनिक अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी अधोसंरचना निवेश की कीमत पर दिए जा रहे हैं? दूसरी तरह से देखें तो क्या भारत पर्याप्त उत्पादक अर्थव्यवस्था तैयार कर रहा है जो इतने कर जुटा सके कि उनसे इन कल्याण योजनाओं की भरपाई हो सके? जवाब यह है कि बीते तीन दशक में प्रति व्यक्ति आय चार गुना होने के बाद भी कर-जीडीपी अनुपात में खास सुधार नहीं हुआ है। क्या हम बस सरकारी कर्ज बढ़ा रहे हैं, जिसकी भरपाई हमारे कर राजस्व का 40 फीसदी हिस्सा निगल लेती है? आज केंद्रीय राजनीतिक-अर्थव्यवस्था के प्रश्न का निराकरण करना जरूरी है। नीति आयोग या किसी निजी थिंक टैंक को इस दिशा में पहल करनी चाहिए।


Date:17-06-23

सियासी पाठ्यक्रम

संपादकीय

आजादी के बाद जब शिक्षा नीति बनी तो उसका उद्देश्य उदारवादी ढंग से ज्ञान परंपराओं को समाहित करके बच्चों में तार्किक, वैज्ञानिक और नवोन्मेषी दृष्टि विकसित करना था। उसी ढंग से पाठ्यपुस्तकें तैयार की गईं। उन पुस्तकों को बनाने के लिए विभिन्न अनुशासनों और चिंतन-पद्धतियों के लोगों को शामिल किया गया। सबसे बड़ी बात कि पाठ्यपुस्तकों को दलीय राजनीति और सरकारी दबाव से बिल्कुल मुक्त रखा गया। मगर पिछले कुछ सालों से जिस तरह विभिन्न राज्यों और केंद्रीय संस्था एनसीईआरटी की किताबों में से पुराने पाठों को पूरा या आंशिक रूप से हटाने या नए पाठ जोड़ने को लेकर लगातार विवाद देखे जाते रहे हैं, उससे भारतीय शिक्षा-व्यवस्था पर स्वाभाविक ही सवाल उठने लगे हैं। पाठ्यपुस्तकों में राजनीतिक आग्रह या दुराग्रह आखिरकार विद्यार्थियों के सीखने की प्रक्रिया को बाधित करते हैं। पिछले दिनों एनसीइआरटी की पुस्तकों में से कुछ पाठ हटाए गए थे। उसे लेकर पूरे देश में खासा विवाद पैदा हुआ था कि आखिर सरकार बच्चों को किस प्रकार की शिक्षा देना चाहती है। अब एनसीइआरटी की राजनीति विज्ञान और समाज विज्ञान की पुस्तकों की सलाहकार समितियों से जुड़े करीब तैंतीस विद्वानों ने पत्र लिख कर अनुरोध किया है कि उन किताबों की सलाहकार समिति से उनका नाम हटा दिया जाए, क्योंकि जो किताबें उन्होंने तैयार की थीं, उनका स्वरूप अब वही नहीं रह गया है।

उधर कर्नाटक सरकार ने राज्य परिषद की पुस्तकों में से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार और वीर दामोदर सावरकर आदि से संबंधित पाठ पुस्तकों से निकालने और उसकी जगह नेहरू, सावित्रिबाई फुले, आंबेडकर आदि की रचनाओं को शामिल करने की मंजूरी दे दी है। हालांकि कांग्रेस ने इसकी घोषणा अपने विधानसभा घोषणापत्र में ही कर दी थी। ऐसी घटनाएं दूसरे राज्यों में भी हो चुकी हैं। यह बिल्कुल हाल की प्रवृत्ति भी नहीं है। पिछले बीस सालों से इस प्रवृत्ति ने अब जैसे जड़ें पकड़ ली है। यह बहुत खतरनाक और चिंताजनक स्थिति है। बच्चों को क्या पढ़ाना है, यह इस बात से तय होता है कि भविष्य में देश को कैसा बनाना है। पहले ही शिक्षा के क्षेत्र में कई तरह की विसंगतियां पैदा हो चुकी हैं। अब धीरे-धीरे शिक्षा गरीब लोगों के हिस्से से बाहर होती जा रही है। ऐसे में अगर सरकारें पाठ्यपुस्तकों में अपने नेताओं का महिमामंडन करने और विपक्षी दल के महापुरुषों का मानमर्दन करने पर तुल जाएं, तो आखिर हमारे देश की नई पीढ़ी की बुनियाद कैसी होगी, अंदाजा लगाया जा सकता है।

जब भी पाठ्यपुस्तकें तैयार की जाती हैं तो उनमें पाठों का चुनाव करते वक्त इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि उससे बच्चे को व्यावहारिक और कार्य जीवन के लिए क्या सीखने को मिल सकता है। उसमें अपने समाज, पर्यावरण, संस्कृति, सभ्यता, मानवीय मूल्यों, राजनीतिक व्यवस्था आदि से जुड़े कितने आयाम वह ग्रहण कर सकता है। उससे उसकी कल्पनाशक्ति का कितना विकास हो सकता है। पुस्तकों का मकसद सिर्फ शिक्षित व्यक्ति नहीं, जिम्मेदार नागरिक तैयार करना होता है। पुस्तकों को सियासी रंग में रंग कर यह मकसद क्या हासिल किया जा सकता है? शिक्षा में दलगत राजनीति का प्रवेश किसी भी रूप में बच्चों के भविष्य के लिए अच्छा नहीं हो सकता। जब सत्ताधारी दल अपना निहित स्वार्थ किताबों में भर देना चाहते हैं, तो वे किताबें सिर्फ बोझ बन जाती हैं, ज्ञान की पोथी नहीं। इसलिए यह अपेक्षा शायद बेमानी नहीं कि राजनीतिक दल और सरकारें बच्चों की किताबों में खुद को न थोपें।


Date:17-06-23

भारत का बढ़ता दबदबा

प्रह्लाद सबनानी

भारत कुछ समय पूर्व तक रक्षा के क्षेत्र में पूर्णत: आयातित उत्पादों पर ही निर्भर रहता था। छोटे से छोटा उत्पाद भी विकसित देशों से आयात किया जाता रहा है। परंतु, हाल ही के समय में भारत ने सुरक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने की ओर अपने कदम बढ़ा दिए हैं। हाल ही में रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी एक जानकारी के अनुसार, भारत में वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान रक्षा क्षेत्र से जुड़े उत्पादों का उत्पादन 1.07 लाख करोड़ रुपये के मूल्य का रहा है। भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि देश में रक्षा क्षेत्र से जुड़े उत्पादों के उत्पादन का मूल्य एक लाख करोड़ रु पये के आंकड़े को पार कर गया है। यह राशि 1200 करोड़ अमेरिकी डॉलर के बराबर है जबकि वित्तीय वर्ष 2021-22 में रक्षा क्षेत्र से जुड़े उत्पादों का उत्पादन 95,000 करोड़ रु पये का रहा था। इस प्रकार, भारत रक्षा क्षेत्र में घरेलू उत्पादन बढ़ाकर आत्मनिर्भरता की ओर मजबूती से आगे बढ़ रहा है।

अभी हाल ही में रक्षा विभाग ने 928 उत्पादों की एक सूची जारी की है, इस सूची में दिए गए समस्त उत्पादों का निर्माण अब पूर्णत: भारत में ही किया जाएगा एवं आगामी वर्षो में इन उत्पादों का आयात पूर्णत: बंद कर दिया जाएगा। वर्तमान में इन उत्पादों पर 715 करोड़ रुपये की राशि खर्च की जा रही है। उक्त सूची में वर्णित उत्पादों को भारत में ही निर्माण की मंजूरी भी दे दी गई है। इस प्रकार की तीन सूचियां पूर्व में भी रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी की जा चुकी हैं। केंद्र सरकार के इस क्रांतिकारी निर्णय से रक्षा क्षेत्र से जुड़े उत्पादों का निर्माण अब भारत में ही होने लगा है एवं पूर्व में इन उत्पादों के आयात पर भारी-भरकम विदेशी मुद्रा खर्च की जाती थी, अब उस विदेशी मुद्रा की भी देश को बचत हो रही है। केंद्र सरकार ने रक्षा क्षेत्र के उत्पादों का आयात लगातार कम करते हुए अब कई रक्षा उत्पादों का निर्यात प्रारम्भ कर दिया है। अभी हाल ही में भारत का स्वदेशी निर्मिंत तेजस हल्का लड़ाकू विमान मलयेशिया की पहली पसंद बना कर उभरा है। मलयेशिया ने अपने पुराने लड़ाकू विमानों के बेड़े को बदलने के लिए प्रतिस्पर्धा की थी जिसमें चीन के जेएफ-17, दक्षिण कोरिया के एफए-50 और रूस के मिग-35 के साथ साथ याक-130 से कड़ी प्रतिस्पर्धा के बावजूद मलयेशिया ने भारतीय विमान तेजस को पसंद किया है। आकाश मिसाइल भी भारत की पहचान है एवं यह एक स्वदेशी (96 प्रतिशत) मिसाइल है। दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों वियतनाम, इंडोनेशिया और फिलिपींस के अलावा बहरीन, केन्या, सउदी अरब, मिस्र, अल्जीरिया और संयुक्त अरब अमीरात ने भी आकाश मिसाइल को खरीदने में अपनी रु चि दिखाई है। आकाश मिसाइल के साथ ही कई अन्य देशों ने तटीय निगरानी पण्राली, राडार और एयर प्लेटफार्मो को खरीदने में भी अपनी रु चि दिखाई है।

भारत जल्द ही दुनिया के कई देशों यथा फिलीपींस, वियतनाम एवं इंडोनेशिया आदि को ब्रह्मोस मिसाइल भी निर्यात करने की तैयारी कर रहा है। कुछ अन्य देशों जैसे सउदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात एवं दक्षिण अफ्रीका आदि ने भी भारत से ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने में अपनी रुचि दिखाई है। आज भारत से 84 से अधिक देशों को रक्षा उपकरणों का निर्यात किया जा रहा है। इस सूची में कतर, लेबनान, इराक, इक्वाडोर और जापान जैसे देश भी शामिलैहैं, जिन्हें भारत द्वारा बॉडी प्रोटेक्टिंग उपकरण, आदि निर्यात किए जा रहे हैं। वित्तीय वर्ष 2023-24 का बजट रक्षा क्षेत्र के लिए भी एक बड़ी सौगात लेकर आया है। केंद्रीय बजट में वर्ष 2023-24 के लिए रक्षा क्षेत्र को कुल 5.94 लाख करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई है, जो कुल बजट की राशि का 8 प्रतिशत है। बजट में आवंटित की गई इस राशि का उपयोग हथियारों की आत्मनिर्भर तकनीक और भारत में ही इन उत्पादों के निर्माण के कार्य पर किया जाएगा। इससे देश में ही रोजगार के लाखों नये अवसर निर्मिंत होंगे।

चूंकि भारत सरकार द्वारा रक्षा क्षेत्र से जुड़े उत्पादों को भारत में ही निर्मिंत करने के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है तथा रक्षा उत्पादों का भारत में ही निर्माण एवं भारत से निर्यात जिस तेज गति से आगे बढ़ रहा है, इससे अब यह आभास होने लगा है कि वर्ष 2027 भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 3.50 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा और वर्ष 2031 तक भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 7.5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर तक पहुंच जाने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है और इस प्रकार भारतीय अर्थव्यवस्था अमेरिका एवं चीन के बाद वि की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। यदि भारत मेड इन इंडिया के अपनी महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम को अच्छे से कार्यान्वित करता है, तो यकीनन रक्षा क्षेत्र में एक बड़े निर्यातक के रूप में उभर सकता है।


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