16-09-2019 (Important News Clippings)

Afeias
16 Sep 2019
A+ A-

To Download Click Here.


Date:16-09-19

नागरिक संहिता का वक्त

संपादकीय

समान नागरिक संहिता की दिशा में कोई काम न होने की सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद देश का ध्यान इस ओर जाना ही चाहिए कि ऐसी किसी संहिता का निर्माण किस तरह अभी भी लंबित है। सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि 1956 में हिंदू कानून बनने के बाद समान नागरिक संहिता की दिशा में आगे बढ़ा जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता की दिशा में कुछ न किए जाने पर टिप्पणी की हो। वह इसके पहले भी कई बार इस तरह की टिप्पणियां कर चुका है, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात वाला ही रहा।

देखना है कि सुप्रीम कोर्ट की ताजा टिप्पणी के बाद समान नागरिक संहिता के निर्माण के लिए उपयुक्त माहौल बनाए जाने की कोई शुरूआत होती है या नहीं? यह सही समय है कि इस पर न केवल व्यापक बहस हो, बल्कि किसी नतीजे पर भी पहुंचा जाए। यह काम जितनी जल्द हो उतना ही अच्छा, क्योंकि पहले ही अनावश्यक देर हो चुकी है। इस देरी का कारण वे घिसे-पिटे तर्क हैैं जिनके तहत कभी यह कहा जाता है कि अभी समान नागरिक संहिता के लिए सही समय नहीं आया और कभी यह कि इतनी अधिक विविधता वाले देश में विवाह और उत्तराधिकार संबंधी कानून एक समान नहीं हो सकते। ये तर्क एक तरह की बहानेबाजी ही हैैं, क्योंकि गोवा में समान नागरिक संहिता लागू है। आखिर जो व्यवस्था गोवा में लागू हो सकती है वह शेष देश में क्यों नहीं स्वीकार हो सकती?

नि:संदेह देश के सभी नागरिकों के लिए समान संहिता का निर्माण केवल इसलिए नहीं होना चाहिए कि संविधान निर्माताओं ने इसकी जरूरत रेखांकित की थी, बल्कि इसलिए भी होना चाहिए कि देश में समानता का भाव जाग्रत हो सके और जाति एवं मजहब के आधार पर किसी के साथ भेदभाव न हो सके। सच तो यह है कि तीन तलाक को अवैध घोषित किए जाने के बाद इसकी आवश्यकता और बढ़ गई है कि समान नागरिक संहिता की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए जाएं।

चूंकि इस मामले में कुछ ज्यादा ही हीलाहवाली हुई है इसलिए सरकार को चाहिए कि वह समान नागरिक संहिता के निर्माण के मामले में वैसी ही इच्छाशक्ति का परिचय दे जैसी कि उसने अनुच्छेद 370 को हटाने के मामले में दिखाई। उसे यह स्पष्ट संकेत देने में संकोच नहीं करना चाहिए कि यह वह विचार है जिस पर अमल करने का समय आ गया है। बेहतर होगा कि समान नागरिक संहिता का कोई मसौदा देश के सामने रखा जाए ताकि इस संहिता को लेकर होने वाले दुष्प्रचार को थामा जा सके।


Date:16-09-19

निर्यात की समस्या

संपादकीय

केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के ताजा आंकड़े बताते हैं कि अगस्त 2019 में देश का निर्यात 6 फीसदी तक कम हुआ। यह निर्यात क्षेत्र में लंबे समय से चली आ रही मंदी की स्मृति को ताजा कराने वाला वाकया है। यह सच है कि इस ढांचागत समस्या का देश के बाहरी संतुलन की स्थिरता पर कोई तात्कालिक असर नहीं होगा क्योंकि घरेलू मांग में कमी के चलते आयात में भी गिरावट आ रही है। परंतु फिर भी निर्यात की इस समस्या का हल आवश्यक है। इंजीनियरिंग वस्तुओं के निर्यात में गिरावट खासी दिक्क्तदेह है क्योंकि गत वित्त वर्ष में इसमें सुधार नजर आया था।

केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल का यह कहना सही है कि निर्यात वृद्धि किसी भी विकास नीति के केंद्र में होती है। उन्होंने गत सप्ताह बोर्ड ऑफ ट्रेड की एक बैठक में कहा था कि अगर देश को सरकार द्वारा तय विकास लक्ष्य हासिल करने हैं तो उसे निर्यात में 19-20 फीसदी की दर से वृद्धि हासिल करनी होगी। उन्होंने यह भी कहा था कि अगले पांच वर्ष में एक लाख करोड़ डॉलर मूल्य का निर्यात किया जा सकता है और चीन तथा अमेरिका के व्यापारिक युद्ध के बीच भारतीय निर्यातकों के लिए काफी अवसर हैं। इस कारोबारी जंग से उत्पन्न वैश्विक मंदी की स्थिति भी भारत के लिए एक अवसर लेकर आई है। फिलहाल विश्व व्यापार में बमुश्किल 2 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाला भारत नए बाजारों में विस्तार कर सकता है।

भारत के लिए यह निर्यात वृद्धि अहम है लेकिन दिक्कत यह है कि यह लक्ष्य हकीकत से दूर नजर आता है। अगस्त में आई गिरावट कोई पहला अवसर नहीं है बल्कि इस वित्त वर्ष में दूसरी बार निर्यात वृद्धि में सालाना आधार पर कमी आई है। इस संदर्भ में देखें तो केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सप्ताहांत पर निर्यात को बढ़ावा देने के लिए जिन उपायों की घोषणा की है वे और अधिक मायने रखते हैं। सीतारमण ने निर्यातकों को नए प्रोत्साहन की घोषणा की जिन्हें शुल्क में छूट या उत्पाद निर्यात में कर छूट का नाम दिया गया है। यह भारत से होने वाले वाणिज्यिक निर्यात संबंधी उस योजना का स्थानापन्न है जो विवादित होकर विश्व व्यापार संगठन तक जा पहुंची। सवाल यह है कि क्या मामूली रद्दोबदल से देश का निर्यात लंबी अवधि में प्रतिस्पर्धी बन सकेगा। हमारे यहां लाल फीताशाही और ऋण की उपलब्धता जैसी ढांचागत समस्याएं भी हैं जिन्हें हल करने की आवश्यकता है। हालांकि सीतारमण ने उस दिशा में भी पहल की है। जैसा कि मंत्री ने कहा भी, निर्यातकों के लिए वस्तु एवं सेवा कर के इनपुट कर क्रेडिट का स्वचालित रिफंड कार्यशील पूंजी की कमी की समस्या को हल करने में मदद करेगा। इसी प्रकार आरबीआई द्वारा निर्यातकों को प्राथमिक क्षेत्र के ऋण मानकों में शिथिलता का भी लाभ मिलेगा। ये दोनों पिछले कुछ समय से लागू हैं और सीमारमण के पैकेज में कुछ खास नया नहीं है।

असली अंतर निर्यात क्षेत्र में वैश्विक मानकों को अपनाने से आएगा। वित्त मंत्री ने कहा कि निर्यात मंजूरी के जो काम अभी हाथ से किए जाते हैं उनको जल्दी ही डिजिटल किया जाएगा। उन्होंने इस बदलाव के लिए दिसंबर की समय सीमा तय की है। इस प्रक्रिया में तकनीक का इस्तेमाल केवल अपने काम में नहीं बल्कि बंदरगाह पर जहाजों और ट्रकों के लौटने के समय को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने में भी किया जाना चाहिए। वैश्विक बंदरगाहों पर जहाज आधे दिन में हट जाते हैं जबकि ट्रक आधे घंटे में। हमें यह लक्ष्य लेकर चलना होगा। अगर हम इसे हासिल कर सके तो देश की निर्यात प्रतिस्पर्धा में बड़ा सुधार नजर आएगा।


Date:16-09-19

A commitment to stem desertification

ET Editorials

Ensuring the health of land is critical to the success of global efforts to prevent catastrophic climate change and mass extinction of species, and for the continuation of life as we know it. At the end of the 14th round of discussions under the aegis of the United Nations Convention to Combat Desertification (UNCCD) held in Delhi, leaders from 196 countries agreed to focus on measures that would slow down land desertification, restore land so that it can support vegetation, and step up efforts to help populations deal with droughts. The outcome enshrined in the New Delhi Declaration, a political statement, outlines the agreement of the way forward to preserve, conserve and improve the health of a crucial resource: land.

Human use of land accounts for nearly 23% of greenhouse gas emissions, 80% of biodiversity loss and 85% of water stress. Without concerted measures to address land, by 2025, water stress would affect nearly two-thirds of the world and displace as many as 135 million persons. While governments have recognised the problem, there is need for action, including increased investments — estimated at $450 billion annually. At the national level, countries need to put in place policies to stem land degradation, improve water conservation and use. Collectively, countries must develop solutions and address issues such as migration.

As chair of the UN-led global efforts for the next two years, India must push the world to address the issues of land more proactively. It has taken an important first step by showing ambition and committing to restore 26 million hectares of land, setting up a research centre and pushing for a global agenda on water. India and the world must do more to sustain food, water and the ecosystem services that sustain us.


Date:14-09-19

A milestone in greater transparency, accountability

The launch of the Jan Soochna Portal in Rajasthan is a vital cog in access to the right to information

Madan Lokur, [Retired judge of the Supreme Court of India]

The Jan Soochna Portal (JSP) launched by the government of Rajasthan yesterday is a remarkable achievement in furtherance of the right to information (RTI) — especially Section 4 of the RTI Act — that deals with proactive disclosure of information. Transparency must be accompanied by accountability, and that is where the JSP has great value and significance since it places the power of making the State government accountable to everyone who accesses the information made available on the portal.

Has transparency accompanied by accountability brought about transformation in any system? During my association with the eCommittee of the Supreme Court of India, and keeping transparency in the justice delivery system in mind, a National Judicial Data Grid was launched. This gave information about all pending cases across the country. Some time back, a year-wise breakup of pending cases was given on the grid and it was found that more than 70,000 cases were pending for over 30 years. These figures meant nothing until the justice delivery system was asked to account for the enormous delay in such a large number of cases. Chief Justices and Registrars in many courts appreciated the fact that they needed to answer questions relating to such enormous delays; now many courts have begun to concentrate on the disposal of old cases with considerable success. This is a good example of transparency accompanied by accountability brought about by civil society.

Several access points

I had the privilege of a sneak preview of the JSP. Details of every activity of the government such as availability of food grains and ration shops and their distribution, implementation of various schemes and their beneficiaries and a variety of other information are available on a real-time basis virtually making it a Janta Information System. The portal has been arrived at through a regular and rigorous consultative process between government officials, IT professionals and civil society. Such a process of dialogue should be practised in all spheres to genuinely harness the benefits of information technology. Digital divide is indeed a serious problem in India. To bridge this, care should be taken to ensure that access points are open and free.

Since the information is available on the Internet, every citizen, right down to the municipal ward and panchayat, has access to the information. For example, I saw that on a random basis, a number of identified persons in a particular area had not availed themselves of any rations for several months. Such persons can be easily contacted and if they do not want to avail the benefits available to them, they can surrender it in favour of some other deserving person. Similarly, the government of Rajasthan, like some other States, has waived farmers’ loans. The portal gives the details of every farmer in every bank branch whose loans have been waived, along with the amounts. Another significant piece of information is about mining leases. Illegal mining has been a major issue in different parts of the country, with people unable to determine the details of clearances given. This portal gives the list of mines in every district, provides geographical coordinates, and the area where mining has been permitted, including the land deed identifiers. It also provides details about pollution and environment clearances. Finally, the portal provides details of production and royalties and taxes paid. This kind of information can facilitate a progressive partnership between government and citizens for a cleaner society.

What is important is that a tremendous amount of information is available on the files of the government of Rajasthan, which till date could only be accessed through the filing of RTI applications. However, with the use of technology and digitisation of records and information, this information is made freely available on the JSP. To this extent, there is no need for anyone to take recourse to the RTI Act and await a response. All information can be accessed immediately, free of cost.

Key challenges

The mere launch of the JSP is not enough. There are huge challenges with regard to maintenance issues and ensuring that there is no let-up in the availability of information. With this in mind, draft guidelines have been framed for the development and maintenance of the JSP. Once implemented, this will ensure that the information system continues uninterrupted. Various departments of the government of Rajasthan, called Line Departments, have been given a set of obligations that they are expected to fulfil. For example, they are expected to ensure digitisation of records. In addition, the Department of Information Technology will serve as the nodal department for the development, operationalisation and maintenance of the JSP.

This department has been informed of its obligations, which includes adherence to the norms and standards laid down by a digital dialogue advisory group. To ensure that the responsibilities are carried out, the advisory group will be the monitoring agency. Grievance redressal officers will be appointed so that citizens can make the State government truly accountable.

Training for citizens

The government of Rajasthan has also taken steps to train citizens so that they are aware of the facilities available. This by itself may not be enough. Therefore, it has been decided to host the JSP in decentralised locations, right down to the municipal ward and panchayat levels. They will have access to welfare schemes, revenue activities such as mining, and other service delivery issues such as health and education.

It would be wonderful if all other State governments follow the Rajasthan government’s initiative, which aims to make people, including the marginalised sections, a part of the governance process.