11-10-2024 (Important News Clippings)
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Date: 11-10-24
First responder
India and Maldives let subtle diplomacy surpass muscular posturing
Editorial
Nearly a year after his election, Maldives President Mohamed Muizzu made his first bilateral visit to Delhi, seen as an attempt to mend fences with Delhi. India was not his first bilateral destination, a tradition leaders of friendly neighbouring countries observe, although Mr. Muizzu and Prime Minister Narendra Modi met briefly at a summit in the UAE in December 2023 and he attended Mr. Modi’s swearing-in in June. Tensions between India and Maldives were originally a consequence of Mr. Muizzu’s Presidential campaign, that was built on the opposition’s “India Out” campaign. Next came a controversy that pitched tourism in Lakshadweep as an alternative to the Maldives following criticism of Mr. Modi by Maldivian Ministers that led to a “Boycott Maldives” campaign in India. Mr. Muizzu’s decision to travel to Turkey, China and the UAE before he came to India also rankled. Even as Mr. Muizzu said he would pursue a “Maldives first” policy, critics in New Delhi grew concerned over Male’s economic initiatives and defence pact with China. Amidst the change in regimes in Bangladesh and Sri Lanka, India has been under some fire over its Neighbourhood First policy, further fuelled by this perceived distancing from the Maldives. As Mr. Modi and Mr. Muizzu held their first formal bilateral negotiations, some of the work in smoothening their path had been done. After India acceded to Mr. Muizzu’s demand that Indian troops stationed in the Maldives since 2012, for aircraft maintenance, be replaced by technical personnel, both sides turned course, with their Foreign Ministers exchanging visits and new joint projects being announced. India’s decision to extend $100 million in SBI subscriptions of Maldivian T-bills enabled Male to make its debt service payments at a time it was in danger of defaulting. Mr. Muizzu has also softened his rhetoric and sacked the Ministers who were critical of Mr. Modi.
India’s extension of $400 million in support and Indian ₹3,000 crore in a currency swap arrangement has shored up Male’s record-low currency reserves. The joint announcement of infrastructure projects, Free Trade Agreement talks, and the outline of a vision statement on a comprehensive and maritime security partnership to be concluded indicate a change. In Mumbai and Bengaluru, Mr. Muizzu made a strong case for the return of Indian tourists to previous levels, and offered more avenues for investment and employment. The turnaround is welcome news, given the historic relationship, and shows how sensitive and subtle diplomacy can surpass muscular posturing and brash statements. This also allows the natural logic of close geography to reassert itself, which has ensured that India is always, as Mr. Modi put it, the “first responder” for the Maldives in times of need.
Date: 11-10-24
मूल्यवान विरासत
संपादकीय
रतन टाटा (Ratan Tata) ने करीब दो दशक से अधिक वक्त तक देश के सबसे बड़े कारोबारी समूह का नेतृत्व किया। सन 1991 में जेआरडी टाटा विरासत में 34 सूचीबद्ध और गैरसूचीबद्ध कंपनियों के एक असमान समूह को जिस हालात में छोड़ गए थे, उन्होंने उसे मजबूती प्रदान की।
यह सही है कि टाटा समूह की आय और उसके लाभ का बड़ा हिस्सा पहले की तरह (रतन टाटा के टाटा संस का चेयरमैन बनने के पहले) अब भी तीन बड़ी कंपनियों टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), टाटा मोटर्स और टाटा स्टील पर निर्भर है लेकिन आर्थिक उदारीकरण के दौर में विरासत संभालने वाले रतन टाटा ने इस विशालकाय समूह को एक दूरदर्शी और एकजुट समूह बनाया।
लाइसेंस-परमिट राज में फलने-फूलने वाले अन्य प्रमुख उद्योगपतियों मसलन मोदी, सिंघानिया, रुइया और बिड़ला परिवार के कुछ सदस्यों का जहां पतन हो गया, वहीं टाटा समूह का लगातार मजबूत बने रहना कोई छोटी उपलब्धि नहीं है।
समूह का नेतृत्व संभालने के पहले नेल्को में अपने कार्यकाल के दौरान रतन टाटा ने कोई उल्लेखनीय कारोबारी समझ नहीं दिखाई थी। अपने कार्यकाल के आरंभ में ही उन्हें कई अग्नि परीक्षाओं से गुजरना पड़ा। समूह के कद्दावर लोगों ने उनका विरोध किया और टाटा मोटर्स की पुणे इकाई में सबसे बड़ी हड़ताल आरंभ हुई।
उन्होंने दोनों चुनौतियों से निपटने में बहुत अधिक कौशल दिखाने के बजाय अपना ध्यान समूह के तत्कालीन कारोबारों को दुरुस्त और मजबूत बनाने में लगाया। वह उन कारोबारों से बाहर निकल गए जिनमें होड़ का कोई लाभ नजर नहीं आ रहा था। ये कारोबार थे-सौंदर्य-प्रसाधन, पर्सनल केयर, औषधि, कंप्यूटर हार्डवेयर और सीमेंट।
सदी के करवट लेने के साथ ही रतन टाटा ने अपने स्वदेश केंद्रित समूह को वैश्विक बाजारों के मुताबिक ढालना आरंभ किया जिसके मिलेजुले परिणाम निकले। वर्ष 2007 में एंग्लो-डच कोरस स्टील और 2008 में वित्तीय संकट से पहले जगुआर-लैंड रोवर के अधिग्रहण ने समूह की वित्तीय स्थिति पर असर डाला। परंतु एक के बाद एक इन बड़े अधिग्रहणों ने वैश्विक स्तर पर समूह को अन्य कारोबारी समूहों के मुकाबले काफी आगे खड़ा कर दिया।
विमानन और मोबाइल कलपुर्जा निर्माण पर उनके ध्यान ने समूह को भविष्य की सोचने वाला बनाया। प्रबंधकीय शैली में उन्होंने वे सभी विरोधाभास दर्शाए जो एक कारोबारी उत्तराधिकारी दिखा सकता है। उनके कुछ बड़े दांव ऐसे थे जो केवल एक मालिक द्वारा ही लिए जा सकते थे, न कि किसी ऐसे पेशेवर प्रबंधक द्वारा जो तिमाही नतीजों पर भी नजर रखता हो। ऐसे कदमों में एक था एक लाख रुपये से कम कीमत की कार बनाना और बेचना।
इसके बावजूद 2008 में आई टाटा नैनो एक विफल प्रयोग साबित हुई। इसकी इंजीनियरिंग अच्छी नहीं थी और छोटी कारों के बाजार में उस समय की मजबूत होड़ के सामने वह टिक नहीं सकी। उसे 2018 में बंद कर दिया गया। देश की सबसे बड़ी ट्रक निर्माता कंपनी टाटा मोटर्स को कार निर्माण की दिशा में ले जाने के कारण भी कंपनी को कुछ समय तक नुकसान हुआ, हालांकि बाद में बेहतर इंजीनियरिंग और ब्रांडेड उत्पादों की मदद से वह देश की दूसरी सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी बन गई।
घाटे में चल रही सरकारी विमानन कंपनी एयर इंडिया के अधिग्रहण के बाद समूह के नए-नए विमानन कारोबार पर क्या असर होगा यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। सेवानिवृत्ति से पहले रतन टाटा ने इस सौदे पर भरपूर ध्यान दिया था।
अन्य भारतीय समूहों के उलट हालात ने टाटा समूह को पेशेवर प्रबंधकों के भरोसे छोड़ दिया। इससे समूह अपेक्षाकृत कुशल ढंग से चला लेकिन वहां संगठनात्मक जांच परख या जोखिम लेने की प्रवृत्ति दिखनी कम हो गई। अपने तमाम आकर्षण और करिश्मे के बावजूद रतन टाटा आलोचना को पसंद नहीं करते थे। वर्ष 2013 में टाटा की जगह समूह के पहले गैर पारिवारिक चेयरमैन बनने वाले (अब दिवंगत) साइरस मिस्त्री के साथ उनका टकराव इस कमजोरी को रेखांकित करने वाला रहा।
मिस्त्री ने रतन टाटा के कार्यकाल के कुछ गलत निर्णयों को स्पष्टवादी तरीके से पलटने की कोशिश की जो बॉम्बे हाउस की संस्कृति के अनुरूप नहीं था। उनकी अचानक बर्खास्तगी ने टाटा ट्रस्ट की ताकत दिखाई लेकिन इससे पारदर्शिता के मोर्चे पर रतन टाटा की प्रतिष्ठा पर असर पड़ा।
गौरतलब है कि टाटा ट्रस्ट, टाटा संस में 66 फीसदी का हिस्सेदार है। बहरहाल इस बात पर कोई संदेह नहीं कर सकता है कि तीन दशक पहले विपरीत हालात में शुरुआत के बाद रतन टाटा अपने उत्तराधिकार के लिए एक मूल्यवान विरासत छोड़ गए हैं।