08-02-2025 (Important News Clippings)

Afeias
08 Feb 2025
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Date: 08-02-25

Prime time

The government must engage with the Opposition constructively

Editorial

The Prime Minister’s parliamentary interventions are always keenly watched, as they are expected to provide the clearest insights into the government’s priorities and its responses to pressing concerns and criticisms, particularly from the Opposition. This week, Prime Minister Narendra Modi spoke extensively in both Houses. However, his speeches largely sidestepped critical national issues. Key developments such as the inhumane way in which Indian deportees were flown back by the United States, the stampede at the Maha Kumbh in Prayagraj, and the transformative advancements in Artificial Intelligence, each with significant implications for India’s future, received little to no substantive acknowledgment. Instead, Mr. Modi’s speeches relied heavily on campaign slogans, minimal engagement with the Opposition, and repeated attacks on past governments, particularly the Congress. He even took a dig at the fact that Sonia Gandhi and her children, Rahul and Priyanka, have become Members of Parliament simultaneously. His speech also made mention of Ms. Gandhi’s poorly chosen words when she re- ferred to President of India Droupadi Murmu as a “poor thing”, as well as Leader of the Opposition’s Rahul Gandhi’s controversial remark about his political fight being against the Indian state. While Mr. Modi undoubtedly scored political points, his addresses fell short of providing the country with the reassurance and clarity needed on key domestic and global challenges. In an increasingly uncertain world, foreign policy must remain above partisan bickering, and the government must do more to build consensus on India’s development trajectory, particularly in the face of rapid technological disruption. Rahul Gandhi’s argument for India to develop its own Al model and indigenous production ecosystem resonates with a broad segment of the population, and the government would do well to engage with such ideas rather than dismiss them outright.

Mr. Modi can rightfully claim credit for some of the better governance initiatives that have shaped India’s trajectory since 2014. However, slogans alone cannot resolve mounting challenges. The government’s legislative agenda, rhetoric, and refusal to be accountable on crucial issues indicate a lack of effort in forging a cohesive national vision. While it may argue that its stance is merely a response to an adversarial Opposition, it ultimately remains the government’s responsibility to lead, govern, and deliver. At a time when political hostility is at its peak, what India needs most is a shift toward constructive engagement and consensus-building, something only the government can initiate.


Date: 08-02-25

अब गिग वर्कर्स बनाम दिहाड़ी मजदूर का सवाल

संपादकीय

देश के 1 करोड़ गिग वर्कर्स के लिए पेंशन स्कीम बन रही है। केंद्रीय श्रम मंत्रालय इन वर्कर्स का ई-पोर्टल के जरिए एक यूनिवर्सल अकाउंट नंबर देगा और एग्रीगेटर्स को हर उस बिल पर जो वर्कर द्वारा डिलीवर किए गए सामान / सेवा के आधार पर बना है- एक या दो प्रतिशत जमा करना होगा। दरअसल गिग वर्कस और अन्य प्रवासी या दिहाड़ी मजदूर में एक मूल अंतर है कि गिग वर्कर्स के मामले में सेवा या उत्पाद की बिक्री ई-पेमेंट के जरिए होती है, लिहाजा वह ट्रांजेक्शन छिप नहीं सकता। कोरोना त्रासदी के बाद प्रवासी मजदूरों का भी पंजीकरण शुरू किया गया था और अब तक 30.58 करोड़ श्रमिक पंजीकृत किए गए हैं। समस्या यह है कि ये खेती के सीजन में वापस चले जाते हैं और दिहाड़ी और अन्य कारणों से एक राज्य से दूसरे राज्य में सेवाएं देते हैं। इनका पारिश्रमिक नकदी में मिलता है। केरल में बिहारी निर्माण मजदूर को गृह स्वामी अगर काम देता है तो मजदूर भी नकदी के रूप में भुगतान चाहता है। वही श्रमिक कुछ माह बाद पंजाब में खेतों में काम करता है और दिहाड़ी भी कैश में पाता है। पंजाब की खेती, केरल में निर्माण और तमिलनाडु में छोटे कल-कारखानों में या मछली पकड़ने में अपना श्रम देने वाला बिहार, ओडिशा और यूपी का श्रमिक अभी तक किसी सामाजिक सुरक्षा योजना का लाभ नहीं पा सका है। इन करोड़ों कामगारों और उनके परिवारों का भविष्य सुनिश्चित नहीं है।


Date: 08-02-25

नई बहस शुरू : आखिर क्यों ट्रम्प गाजा पर कब्जा करना चाहते हैं?

संपादकीय

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के गाजा पर अमेरिकी कब्जे की योजना ने हर किसी को हैरान किया है। वे गाजा को मिडिल ईस्ट का रिविएरा या आकर्षक जगह बनाना चाहते हैं। अरब देशों की सरकारें चिंतित हैं कि इससे अस्थिरता बढ़ेगी। ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी ने प्रस्ताव की तीखी आलोचना की है। संयुक्त राष्ट्र का कहना है, यह नस्लीय सफाये के समान होगा। अमेरिका में कुछ रिपब्लिकन नेताओं ने राष्ट्रपति की योजना को शानदार बताया है। वहीं, कुछ अन्य ने संदेह जताया है। वैसे, ट्रम्प की योजना का लागू होना मुश्किल है। अरब देश इसके लिए तैयार नहीं होंगे। मिडिल ईस्ट नए संकट में फंस जाएगा।

इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से मुलाकात के बाद ट्रम्प ने कहा, अमेरिका लंबे समय तक गाजा पट्टी का मालिकाना हक चाहता है। वहां जरूरत पड़ने पर अमेरिकी सेना भेजी जा सकती है। राष्ट्रपति का कहना है, वे इस मामले में पूरी तरह गंभीर हैं। कुछ अमेरिकियों के लिए यह योजना साम्राज्यवादी सनक है। यह ट्रम्प की ग्रीनलैंड खरीदने जैसी योजना से ज्यादा खतरनाक है। कुछ अमेरिकी चिंतित हैं कि ट्रम्प अफगानिस्तान और इराक में अमेरिका का खूनी अभियान भुला चुके हैं। कुछ लोग सोचते हैं कि क्या टैरिफ लगाने की धमकियों के साथ यह भी बातचीत में बेहतर सौदेबाजी का दांव है।

बहरहाल, ट्रम्प की योजना पर शोरगुल के बीच व्हाइट हाउस ने जल्द पैंतरा बदल लिया। प्रेस सेक्रेटरी ने कहा, फिलिस्तीनियों को अगर ने हटाया गया तो वह अस्थायी होगा। राष्ट्रपति की योजना गाजा में सेना तैनात करने की नहीं है।

पता लगा है, ट्रम्प अपने आइडिया पर कई सप्ताह से बात कर रहे थे। लेकिन अधिकारियों ने अब तक कोई योजना नहीं बनाई है। इजराइल और फिलिस्तीनियों के बीच शांति के अधिकतर प्रस्तावों में फिलिस्तीनी और यहूदी देश बनाने के प्रस्ताव शामिल हैं। लेकिन 1948 में ब्रिटेन के हटने के बाद फिलिस्तीन पर पश्चिमी देशों के कब्जे पर कभी विचार नहीं किया गया है।

नेतन्याहू की टीम को उम्मीद थी कि ट्रम्प हमास से युद्धविराम के बाद इजराइल से दूसरे दौर की बातचीत शुरू करने के लिए कहेंगे। इजराइली सेना की पूरी तरह वापसी होगी। तीसरे दौर में गाजा का पुनर्निर्माण होगा। इससे सऊदी अरब से इजराइल के संबंध सामान्य होने का रास्ता खुलेगा। फिलिस्तीनी देश बनने के बाद अमेरिका, इजराइल और पश्चिमी देशों की समर्थक सरकार बनेगी। लेकिन इजराइल ने गाजा पर अमेरिकी कब्जे की कल्पना नहीं की थी।

नेतन्याहू को ट्रम्प की योजना से पैदा होने वाली मुश्किलों का अहसास है। गाजा के लोग स्वेच्छा से नहीं हटेंगे। अरब नेता निजी बातचीत में फिलिस्तीनियों की व्यथा को नजरअंदाज करते हैं। फिर भी, वे उन्हें अपनी जमीन से बाहर करने में भागीदार नहीं बनना चाहेंगे। कोई भी अरब देश और अधिक असंतुष्ट फिलिस्तीनियों को नहीं लेना चाहता है। मिस्र और जॉर्डन पहले ही इंकार कर चुके हैं। नेतन्याहू ट्रम्प से रिश्ते मजबूत बनाने के साथ उनकी योजना का अपनी स्थिति मजबूत बनाने के लिए इस्तेमाल करेंगे। प्रधानमंत्री के धुर दक्षिणपंथी सहयोगी धमकी दे रहे हैं कि यदि उन्होंने युद्धविराम किया तो वे उनकी सरकार गिरा देंगे। ट्रम्प की योजना से नेतन्याहू को नया जीवन मिलेगा। इधर सऊदी अरब ने फिर कहा है कि फिलिस्तीन देश का निर्माण हुए बगैर वह इजराइल के साथ कूटनीतिक संबंध कायम नहीं करेगा। अरब देशों के नेता ट्रम्प को नाराज नहीं करना चाहते हैं। लेकिन अगर ट्रम्प अपने नए प्रस्ताव पर गंभीर हैं तो अरब देश उसका कड़ा विरोध करेंगे।


Date: 08-02-25

ठगी की दुकानें

संपादकीय

अवैध रूप से अमेरिका पहुंचे भारतीयों को लौटाए जाने के बाद पंजाब से आई इस खबर से बिल्कुल भी संतुष्ट को आज सकता कि नौकरी दिलाने के नाम पर विदेश भेजने वाले ट्रैवल एजेंटों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी गई है। यह देर से उठाया गया ऐसा कदम है, जिसे दुरुस्त नहीं कहा जा सकता। क्या पंजाब सरकार अभी तक इससे अनजान थी कि राज्य में किस तरह लोगों को झूठे सपने दिखाकर अवैध तरीके से अमेरिका, कनाडा, यूरोप भेजने वाले गिरोह सक्रिय हैं ये और कुछ नहीं, खुली ठगी करते हैं। इन कथित ट्रैवल एजेंटों ने काह- जगह अपनी दुकानें खोल रखी हैं। वे विदेश में नौकरी के इच्छुक लोगों को सब्जबाग दिखाते हैं और वैध तरीके से वहां भेजने के बहाने लाखों रुपये वसूलते हैं। पैसा मिल जाने के बाद वे उन्हें पहले दुबई, शारजाह आदि भेजते हैं। फिर आम तौर पर कोलंबिया निकारागुआ, ग्वाटेमाला, अँडुरास आदि। इन देशों में सक्रिय मानव तस्करों के गिरोह उन्हें की रूट कहे जाने वाले खतरनाक जंगली रास्तों के जरिये मैक्सिको भेजते हैं। इन गिरोहों की सागां अपने-अपने देशों को पुलिस और सीमा सुरक्षा दस्तों से होती है। इसी के चलते लोगो से अमेरिका में अवैध रूप से पुसते हैं।

यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि पंजाब में संदिग्ध किस्म के ट्रैवल एजेंटों का संबंध-संपर्क दक्षिण अमेरिकी देशों के मानत्र तस्करी में लिप्त उन गिरोहों से है, जो बेलगाम मफिया बन गए हैं। पंजाब की तरह युवाओं को लगने वाले ट्रैवल एजेंट हरियाण और गुजरात में भी सक्रिय हैं। इनसे सक्रियता दशकों से है, लेकिन शायद से उनके खिलाफ कभी ठोस कार्रवाई की गई। अभी भी जो कार्रवाई की जा रही है, वह दिखावटी साबित हो तो हैरानी नहीं बेहतर भारत सरकार राज्यों और खासकर पंजाब एवं हरियाणा से छल-कपट से विदेश भेजने वाले ट्रैवल एजेंटों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करने को कहें, क्योंकि उनकी हरकतें केवल कुवाओं का भय ही नहीं बर्बाद कर रहीं, बल्कि देश को बदनामों का कारण भी कर रहे हैं भारत को अमेरिका और उसके पड़ोसी देशों से अपने वहां के मानव तस्कर गिरोहों के खिलाफ भी कारवाई का आग्रह करना होगा। इसके साथ ही विदेश में नौकरी का सपना पाले बुओं और उनके अभिभावकों को भी चेतना होगा। अवैध तरीके से विदेश जाना जानबूझकर मुसीबत को निमंत्रण देना है। 50-60 लाख और कुछ मामलों में तो 80-90 लाख रुपये अनुचित तौर-तरीकों में लिप्त ट्रैक्स एजेंटों से देकर अवैध रूप से विदेश जाने का कोई तुक नहीं वह आत्मापाती रास्ता है। इतने पैसे में तो देश में हो कोई अच्छा कमा सकता है। कह नावनी ही है कि अवैध तरीके से विदेश जान जाए और फिर भी वह मान लिया जाए कि कहीं कोई समस्या नहीं होगी।


Date: 08-02-25

राहत की दर

संपादकीय

भारतीय रिजर्व बैंक ने आखिरकार लंबे इंतजार के बाद, रेपो दर में पच्चीस आधार अंक की कटौती की है। करीब पांच वर्ष पहले चालीस आधार अंक की कटौती की गई थी, जिससे ब्याज दर चार फीसद पर पहुंच गई थी। मगर बढ़ती महंगाई पर काबू पाने के मकसद से तीन वर्ष पहले थोड़े-थोड़े अंतराल पर पांच बार पच्चीस-पच्चीस आधार अंकों की बढ़ोतरी की गई, जिससे ब्याज दर साढ़े छह फीसद पर पहुंच गई। तब से यह दर इसी स्तर पर बनी हुई थी। रेपो दर ऊंची होने का असर बैंकों से लिए गए कर्ज के ब्याज पर पड़ रहा था। जिन लोगों ने मकान, वाहन या किसी रोजगार के लिए कर्ज लिए हैं, उन्हें अधिक ब्याज चुकाना पड़ रहा था। इसलिए मांग की जा रही थी कि रेपो दर में कटौती की जाए। मगर रिजर्व बैंक इस दिशा में कदम बढ़ाने से इसलिए हिचक रहा था कि महंगाई पर काबू पाना चुनौती बना हुआ था। अब महंगाई का रुख कुछ नीचे की तरफ नजर आने लगा है। अगले वित्त वर्ष में इसके चार फीसद के आसपास रहने का अनुमान है। रिजर्व बैंक का लक्ष्य भी यही है कि महंगाई को चार फीसद के आसपास समेट दिया जाए।

स्वाभाविक ही, रेपो दर में कटौती से मकान, वाहन आदि के लिए कर्ज पर ब्याज का बोझ कुछ कम होगा। दरअसल, केंद्रीय दर में बढ़ोतरी इसलिए की जाती है कि बाजार में पूंजी के प्रवाह को रोका जा सके, मांग घटे, ताकि महंगाई की दर नीचे उतरनी शुरू हो जाए। इसलिए रेपो दर में कटौती से बाजार में पूंजी का प्रवाह कुछ बढ़ सकेगा। इस तरह मांग भी कुछ बढ़ेगी। मगर देखने की बात है कि केवल पच्चीस आधार अंक की कटौती से बाजार में छाई सुस्ती कितनी टूट पाएगी। दरअसल, बैंकों का कारोबार भी काफी मंद पड़ा हुआ है। इसलिए वे एकदम से रेपो दर में हुई कटौती का लाभ अपने ग्राहकों को देना शुरू कर देंगे, कहना मुश्किल है। लंबे समय से रेपो दर ऊंची रहने से लोगों ने वाहन और मकान वगैरह खरीदने से हाथ रोक रखा था, ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि फिर से लोग इन क्षेत्रों की तरफ आकर्षित होंगे। सबसे चिंता की बात पिछले कुछ समय से विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट बनी हुई थी। जिस विनिर्माण क्षेत्र के बल पर सकल घरेलू उत्पादन ऊंचा बना हुआ था, वह मांग घटने की वजह से तीन फीसद के आसपास सिमट गया है। तेजी से बिकने वाले उपभोक्ता उत्पाद की बिक्री पर भी बुरा असर देखा जाने लगा है। ऐसे में, रेपो दर में कटौती का कुछ अच्छा असर विनिर्माण क्षेत्र पर पड़ने की उम्मीद है।

मगर, बाजार में छाई सुस्ती और मांग में कमी आने की वजह केवल ऊंची रेपो दर नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण प्रति व्यक्ति आय में कमी है। कोरोना की बंदी के बाद बाजार तेजी से पटरी पर तो लौटा, मगर लोगों की आमदनी में बढ़ोतरी नहीं हो पाई। कई मामलों में प्रति व्यक्ति आय घटी है, जबकि उसकी तुलना में महंगाई काफी बढ़ गई है। इसलिए लोगों ने अपने दैनिक उपभोग में कटौती की है। रेपो दर में कटौती से जरूर लोगों की जेब पर पड़ने वाला बोझ कुछ कम होगा, मगर पच्चीस आधार अंक की कटौती इतनी मामूली है। कि वह लोगों के उपभोग व्यय के रूप में रूपांतरित हो पाएगी, कहना मुश्किल है।


Date: 08-02-25

इनके बारे में भी सोचना होगा

कुमार समीर

भारतीय कामगारों का वर्किंग कल्चर, स्टाइल, काम करने के घट हमेशा से बहस का मुद्दा रहे हैं कस कड़ी में स्किल्ड, अन- स्किल्ड को केंद्र में रखकर विभेद की भी बात सामने आती रहती हैं। हाल में जारी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट भी इस बात की तस्दीक करती है। काम के घंटे को लेकर कुछ दिनों पहले काफी विवाद देखा गया।

इससे इतर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की हाल में जारी कैब चालक डिलीवरी ब्वाय जैसे कामगारों (गिग वर्कर्स) की स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई है। रिपोर्ट में साफ साफ शब्दों में माना गया है कि गिग वर्कर्स यानी ऐप आधारित कैब चालक, डिलीवरी ब्वाय या इसी तरह का अन्य काम करने वाले 83 फीसद कामगार रोजाना चुनौतियों का सामना करते हुए औसतन दस घंटे से भी अधिक काम कर रहे हैं। नतीजतन इन कामगारों को न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक तनाव का भी सामना करना पड़ता है। रिपोर्ट में टारगेट डिलीवरी को खतरनाक माना गया है और कहा गया है कि गिग वर्कर्स को एक निश्चित समयावधि में समान की डिलीवरी करनी होती है। समय पर टारगेट पूरा नहीं होने से शारीरिक, मानसिक रूप से तनाव बढ़ता है। रिपोर्ट में गिग वर्कर्स के लिए मौजूदा रेटिंग प्रणाली पर कड़ी आपत्ति व्यक्त की गई है और इसे मनमानी करार देते हुए इसकी समीक्षा पर बल दिया गया है। कई बार बेहतर काम करने के बावजूद इन गिग वर्कर्स को खराब रेटिंग मिलती है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इन गिग वर्कर्स की चुनौतियों को दूर करने व सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए नियामक ढांचा तैयार करने और इसके जरिए लक्षित प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया गया है। इनकी चुनौतियों में लंबे समय तक काम करना, वित्तीय तनाव और शारीरिक थकावट शामिल है। इनके लिए थोड़ी राहत वाली बात यह है कि झारखंड, कर्नाटक और राजस्थान जैसे कुछ राज्य इन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, लेकिन स्वास्थ्य बीमा, न्यूनतम मजदूरी, तनाव मुक्त कार्य स्थितियों से संबंधित उनकी अन्य चिंताओं को दूर करने के लिया और अधिक उपकर करने की और कहते हैं। हालांकि केंद्र सरकार ने इस आगामी 2025-26 वित्तीय वर्ष के बजट में देश के गिग वर्कर्स जिनकी संख्या एक करोड़ से भी अधिक है, उन सभी कामगारों को पहचान देने के लिए पंजीकरण करने और आयुष्मान भारत योजना के तहत स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने का प्रावधान किया गया है। इससे उम्मीद जगी है और इसी तरह की उम्मीद कारपोरेट जगत के कामगारों में जगाने की जरूरत है क्योंकि यहां के कर्मचारी भी जबरदस्त तनाव में रहते हैं। ये लोग औसतन दूस घंटे से कहीं अधिक समय तक काम करने को मजबूर हैं। इनके नारायण मूर्ति, एस. एन. सुब्रमण्यम जैसे मालिकानों की सोच बदलनी होगी और उन्हें अहसास दिलाना होगा कि उनकी इस तरह की सोच, नजरिया से न तो उनका और ना ही कामगारों का भला होने वाला है। आर्टिफीशिय इंटेलीजेंस के दौर में जब दुनिया बड़े पैमाने पर बेरोजगारी के खतरे को महसूस कर रही है, तब काम के घंटे बढ़ाने के कारण देश में और भी बेरोजगारी बढ़ेगी, यह तय है। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि अर्थनीति की दिशा बदली जाए काम के घंटे घटाकर ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार दिया जाये और रोजगार को संवैधानिक अधिकार बनाकर राज्य की जिम्मेदारी तय की जाए कि वह नौजवानों के लिए रोजगार / नौकरी को सुनिश्चित करे।

स्वीडन ने छह घंटे कार्यदिवस की नीति अपनाई, जिससे कर्मचारियों की उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई और उनके जीवन की गुणवत्ता बेहतर हुई। जर्मनी ने भी कार्य घंटों को सीमित कर कर्मचारियों को दक्षता और कुशलता के साथ कार्य करने के लिए प्रेरित किया। इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि कार्य घंटों को घटाने से कर्मचारियों की संतुष्टि और उत्पादकता दोनों में सुधार होता है, जो संगठनों की दीर्घकालिक प्रगति के लिए भी फायदेमंद है। भारत में इस दिशा में सुधार के लिए व्यापक नीतिगत बदलावों की आवश्यकता है।

श्रम कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए, ताकि कार्यदिवस के घंटे तय हों और कंपनियां इन नियमों का सख्ती से पालन करें। ‘स्मार्ट वर्क’ के विचार को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे कर्मचारी अपनी दक्षता और तकनीकी उपकरणों का उपयोग करते हुए कम समय में बेहतर परिणाम दे सकें । अंततः संगठनों को यह समझना होगा कि उत्पादकता केवल काम के घंटों पर निर्भर नहीं करती, बल्कि यह कर्मचारियों की प्रेरणा, कौशल-सम्मान और प्रोत्साहन पर आधारित होती है। कर्मचारियों को बेहतर परिणाम देने के लिए प्रेरित करना और उनकी क्षमताओं का सही आकलन करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। संतुलित कार्यसंस्कृति न केवल कर्मचारियों को संतुष्टि प्रदान करती है, बल्कि उनकी उत्पादकता और समर्पण को भी बढ़ाती है।


Date: 08-02-25

ब्याज में राहत

संपादकीय

भारतीय रिजर्व बैंक ने पांच साल बाद रेपो रेट में कमी करके जो संकेत दिए हैं, वे बहुत उपयोगी और अनुकरणीय है। रेपो रेट अर्थात रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों को दिए जाने वाले कर्ज की व्याज दर में कमी करने की जरूरत पिछले वर्ष से ही महसूस होने लगी थी। वास्तव में, भारतीय अर्थव्यवस्था में तरक्की की रफ्तार धीमी पड़ने लगी है। तिमाही दर तिमाही विकास दर में कमी देखी जा रही है, अतः तेजी लाने के लिए बाजार में ज्यादा धन या नकदी की जरूरत है। जब रेपो रेट 25 आधार घटकर 6.25 हो गया है, तब बैंकों को सक्रियता दिखानी चाहिए। बैंकों के पास अब ज्यादा धन उपलब्ध होगा, तो इससे वह ज्यादा कर्ज देने की स्थिति में होगे आवास ऋण वाहन ऋण व्यक्तिगत ऋण और अन्य प्रकार के ऋणों के ब्यान दर में की होगी, तो लोग कर्ज लेने के लिए आगे आएंगे। उद्यमों को भी आसानी से कर्ज मिलेगा, ताकि वे व्यवसाय बढ़ा सकें। लोगों की जेब में पैसा पहुंचे तो बाजार में खर्च होगा या किसी निवेश में लगेगा। इससे आर्थिक गतिविधियां बढ़ेगी और जीएसटी से भी सरकार की कमाई बढ़ेगी। यह अर्थव्यवस्था के लिहाज से फायदेमंद होगा। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने रेपो रेट के साथ ही इस अनुमान की भी घोषणा की है कि अगले वर्ष के लिए वास्तविक वृद्धि लगभग 6.75 प्रतिशत होगी। यह माना जा रहा है कि भारत को अपनी विशाल आबादी के साथ विकसित देश की ओर कदम बढ़ाते हुए कम से कम 8 प्रतिशत की विकास दर चाहिए। वैसे आज के समय में 6.75 प्रतिशत की विकास दर भी कम नहीं है, अमेरिका जैसा महाशक्ति देश अभी 2.7 प्रतिशत की दर से विकास कर रहा है, पर इस बात को समझना होगा कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था विशालकाय है और भारत से बहुत आगे है। एक करोड़पति अगर तीन प्रतिशत की दर से विकास करे, तो एक साल में उसके पास एक करोड़ तीन लाख रुपये होंगे, पर अगर कोई लखपति दस प्रतिशत की दर से भी विकास करे, तो उसके पास एक साल बाद एक लाख दस हजार रुपये ही होंगे। भारत की यात्रा चूंकि लंबी है, इसलिए उसके विकास की रफ्तार भी ज्यादा होनी चाहिए। अतः विकास की गति बढ़ाने की रिजर्व बैंक की इस कोशिश का स्वागत होना चाहिए। हालांकि, सवाल यह भी है कि क्या केवल ऐसे मौद्रिक प्रयासों से विकास की गति को बढ़ाया जा सकता है?

ध्यान देने की बात है कि कोरोना लॉकडाउन के समय रेपो रेटो को स्थिर किया गया था, ताकि अर्थव्यवस्था को सहारा दिया जा सके, पर अब आगे बढ़कर मौद्रिक प्रबंधन को तेज विकास के अनुरूप सुधारने की जरूरत है। भारतीय मुद्रा का जो लगातार अवमूल्यन हो रहा है, उसकी भी चिंता रिजर्व बैंक के साथ सरकार को भी होनी चाहिए। ध्यान रहे, भारतीय रिजर्व बैंक की ताजा घोषणा के बावजूद बॉम्बे शेयर बाजार में करीब 200 अंकों की गिरावट दर्ज हुई है। मतलब, रेपो रेट के अलावा भी कुछ कदम उठाने की जरूरत आन पड़ी है। भारत जैसे देश में महंगाई को नियंत्रित रखना भी जरूरी है। महंगाई जब बढ़ती है, तब रेपो रेट को बढ़ाना पड़ता है, पर फिलहाल रेपो रेट को घटाया गया है। अब स्वयं रिजर्व बैंक का अनुमान है कि महंगाई दर आगामी वर्ष में 4.5 प्रतिशत से बढ़कर 4.8 प्रतिशत हो जाएगी। संकेत स्पष्ट है, महंगाई तभी कम चुभेगी, जब अर्थव्यवस्था को निवेश, नवाचार और कुशल प्रबंधन से बल प्रदान किया जाएगा।