
10-03-2025 (Important News Clippings)
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Date: 10-03-25
जानी-पहचानी सुस्ती
संपादकीय
यह निराशाजनक है कि लंबित आपराधिक मामलों को निपटाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालयों को अस्थायी न्यायाधीशों को नियुक्त करने की जो अनुमति दी थी, उसके ‘अनुरूप किसी उच्च न्यायालय ने आगे बढ़ने की आवश्यकता नहीं समझी। वैसे तो सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों को अस्थायी न्यायाधीश नियुक्त करने की सुविधा करीब चार वर्ष पहले प्रदान की थी, लेकिन कोई प्रगति होते न देख उसने लगभग एक महीने पहले अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधी शर्तों में छूट भी प्रदान कर दी थी। यह आश्चर्यजनक है कि इसके बावजूद किसी उच्च न्यायालय ने अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति करने में कोई रुचि नहीं ली। क्या इसका आशय यह है कि उच्च न्यायालयों को लाखों लंबित मामलों का निपटारा करने की कहीं कोई चिंता नहीं । वस्तुस्थिति जो भी हो, यह ठीक नहीं कि लोगों को समय पर न्याय देने के मामले में कहीं कोई उत्साह नहीं दिखाया जा रहा है।
इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि देश के सभी उच्च न्यायालयों में करीब 62 लाख मामले लंबित हैं। इनमें से 18 लाख मामले आपराधिक हैं। इन्हीं आपराधिक मामलों का निपटारा करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालयों को अस्थायी न्यायाधीश नियुक्त करने की अनुमति एवं सुविधा प्रदान की थी। उसने यह अनुमति प्रदान करते हुए अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति करने के कई कारण भी बताए थे और वह भी स्पष्ट किया था अगर रिक्त पद स्वीकृत संख्या के बीस प्रतिशत से अधिक हों तो उच्च न्यायालय अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति कर सकते हैं। कोई नहीं जानता कि यह नियुक्तियां क्यों नहीं की गईं, क्योंकि देश का शायद ही कोई उच्च न्यायालय ऐसा हो जहां न्यायाधीशों के पद रिक्त न हों। करीब दो माह पूर्व राज्यसभा में दी गई एक जानकारी के अनुसार विभिन्न उच्च न्यायालयों में करीब 350 पद रिक्त थे। अकेले इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कुल 160 में से 70 से अधिक न्यायाधीशों के पद रिक्त थे। इसी तरह की स्थिति अन्य अनेक उच्च न्यायालयों की भी थी। यह पहली बार नहीं है जब उच्च न्यायालयों ने न्याय चक्र को गति देने में उत्साह का प्रदर्शन न किया हो। इसके पहले यह सामने आया था कि उच्च न्यायालय पूर्व एवं वर्तमान जनप्रतिनिधियों के आपराधिक मामलों की सुनवाई कर रहीं एमपी- एमएलए अदालतों की अपेक्षित निगरानी नहीं कर रहे हैं । उचित यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट और साथ ही केंद्र सरकार यह देखे कि उच्च न्यायालयों से जो कुछ अपेक्षित है, वह क्यों नहीं हो रहा है। इसी के साथ यह भी आवश्यक है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की कोलेजियम व्यवस्था में भी सुधार हो, क्योंकि उच्चतर न्यायपालिका में स्थायी न्यायाधीशों के रिक्त पदों को भरने में बहुत समय लगता है। यह भी किसी से छिपा नहीं कि कोलेजियम व्यवस्था अनेक विसंगतियों से ग्रस्त है ।
Date: 10-03-25
स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ें सुनियोजित कदम
सुनीता नारायण
हमारी दुनिया बदल चुकी है और इस बारे में किसी को भ्रम नहीं होना चाहिए। जलवायु के जोखिम भरा यह डॉनल्ड ट्रंप का युग है। जलवायु परिवर्तन रोकने के प्रयासों का विरोध पहले से हो रहा है और यह बढ़ता ही जाएगा चाहे दुनिया को बढ़ती गर्मी का कितना ही खराब असर क्यों न झेलना पड़े। गर्म होती दुनिया’ अमीर तगड़े नुकसान झेलेंगे, बीमा कराने वाले इन आपदाओं से सुरक्षा हासिल नहीं कर पाएंगे क्योंकि इनकी कीमत बढ़ती जाएगी और बीमा कंपनियां अपना हाथ खींच लेंगी।
यह सब लिखने के पीछे मेरी मंशा वह बताने की नहीं है, जो सामने आता दिख रहा है बल्कि उन कामों की ओर ध्यान दिलाने को लिख रही हूं, जो जलवायु के जोखिम कम करेंगे और हमारी दुनिया की आजीविका तथा अर्थव्यवस्थाओं को सुधारेंगे। इस वक्त कार्बन उत्सर्जन कम करने की राह पर चलते हुए समावेशी और सतत विकास के लाभ हासिल करना बड़ी चुनौती है। उत्सर्जन कम करना विकासशील देशों के लिए ज्यादा कारगर और अहम है।
स्वच्छ ऊर्जा अपनाने की बात ही ले लीजिए। भारत के लिए लाखों लोगों की आजीविका सुरक्षित करने के मकसद से बिजली देना जरूरी है। आज भी देश में बड़ी संख्या में परिवार बिजली की किल्लत झेल रहे हैं। उन्हें या तो बिजली की भरोसेमंद आपूर्ति नहीं होती या बिजली उपलब्ध ही नहीं होती और होती भी है तो बहुत महंगी पड़ती है। कई लोग तो आज भी बिजली की लाइट नहीं जला पाते और उनके परिवार की महिलाएं उपले या कोयले से खाना बनाने को मजबूर हैं।
दूसरी ओर उद्योग भी इससे प्रभावित हो रहा है और तब हो रहा है, जब ऊर्जा पर आने वाला खर्च तय करता है कि उद्योग कितनी होड़ कर सकता है। यही कारण है कि भारतीय उद्योग कोयले जैसा ईंधन इस्तेमाल कर खुद बिजली बनाना (कैप्टिव पावर) पसंद करता है। इसलिए हमें अधिक ऊर्जा, स्वच्छ ऊर्जा और सस्ती ऊर्जा के लिए नीतियां बनानी होंगी। अगर ऊर्जा का परिवर्तन सही तरीके से करा लिया गया तो हम कार्बन के कम उत्सर्जन के साथ विकास की राह पर बढ़ सकते हैं, जो हमारे लिए कारगर होगा और दुनिया को तबाही की ओर ले जा रहे उत्सर्जन को कम करेगा।
इसीलिए 2030 तक 500 गीगावॉट स्वच्छ बिजली उत्पादन क्षमता हासिल करने की सरकार की योजना सराहनीय है। सरकार जानबूझकर कोयले को पूरी तरह नहीं हटा रही क्योंकि अब भी 75 फीसदी बिजली कोयले से बनती है। सरकार चाहती है कि कोयले की जगह किसी और स्रोत से स्वच्छ बिजली बनाई जाए। इसके लिए सौर और पवन ऊर्जा जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा दिया जा रहा है, जो 2030 तक बिजली की 44 फीसदी मांग पूरी कर सकती है। इसके लिए स्वच्छ ऊर्जा दोगुनी से भी ज्यादा करनी होगी क्योंकि इसी दरम्यान भारत की बिजली की खपत भी दोगुनी हो जाएगी। सरकार स्वच्छ बिजली की तरफ बढ़ने के लिए पूरी तरह से तैयार है।
लेकिन हमें गैर – जीवाश्म स्रोतों से बिजली तैयार करने की भारत की क्षमता को ठीक से समझना होगा। भारत में आज 200 गीगावाट स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन करने की क्षमता है, जो मार्च 2024 में देश की कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता की 45 फीसदी थी। मगर कुल ऊर्जा उत्पादन में इस क्षमता का बमुश्किल एक चौथाई योगदान ही रहा। अगर आप निवेश और स्थापना के मामले में साल दर साल तेजी से इजाफा करने वाले पवन और सौर ऊर्जा स्रोतों को ही देखें तो वे भी 13 फीसदी बिजली ही बना पाए। ऐसे तो हम स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ते नहीं दिखते। सरकार ने खुद कहा है कि कोयले की जगह लेने के लिए इन दो स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को 2030 तक 30 फीसदी बिजली बनानी पड़ेगी।
क्या सौर और पवन ऊर्जा की स्थापित क्षमता और उनसे हो रहे उत्पादन में फर्क है? यदि हां, तो क्यों ? इसके लिए देखना होगा कि चालू संयंत्रों की कितनी क्षमता का इस्तेमाल हो रहा है। लेकिन यह आंकड़ा केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के संयंत्रों के लिए ही मिल सकता है निजी क्षेत्र के पवन और सौर ऊर्जा संयंत्रों के लिए नहीं । वास्तव में इस बात के सार्वजनिक आंकड़े ही नहीं हैं कि देश में कितनी इकाइयां शुरू की गई, कितनी बिजली बनती है और बिजली कहां बेची या भेजी जाती है। विडंबना है कि ताप ऊर्जा संयंत्रों की यह जानकारी मिल जाती है नई ऊर्जा की नहीं।
लगता है कि इस निजी उद्योगों और निवेशकों वाले इस कारोबार में सबने चुप रहने की ठान ली है। सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सेकी) की वेबसाइट ता है कि जून 2024 तक कई परियोजनाएं शुरू ही नहीं हुई थीं जबकि उनके बिजली खरीद समझौतों के मुताबिक परियोजना का ठेका तभी दिया जाता है, जब बिजली खरीद समझौता हो जाता है यानी एक तय कीमत पर बिजली खरीदने की बात पक्की हो जाती है। यह भी तब होता है जब परियोजना शुरू करने वाली कंपनी बता देती है कि उसके पास निवेश, जमीन और दूसरी सुविधाएं हैं। सेकी के अनुसार ऐसी 34.5 गीगावॉट की सौर, पवन और हाइब्रिड परियोजनाएं हैं।
उनके अलावा 10 गीगावॉट या ज्यादा (सरकारी आंकड़ा नहीं हैं मगर उद्योग का अनुमान है) की परियोजनाओं को बिजली खरीद समझौते (पीपीए) का इंतजार है। ये इसलिए अटकी हैं क्योंकि राज्य की बिजली खरीद एजेंसियां बताई जा रही कीमत पर समझौता करने को राजी नहीं हैं। यह तब हो रहा है जब नई कोयला परियोजना से मिलने वाली बिजली सौर परियोजना की बिजली से महंगी पड़ती है। इसकी एक वजह यह बताई जाती है कि सौर और पवन ऊर्जा हमेशा नहीं मिलतीं। दोनों तभी मिलेंगी, जब धूप खिलेगी और हवा चलेगी। इसलिए ऐसी परियोजनाएं बनाई जाएं जो 24 घंटे बिजली दे सकें चाहे बैटरी – स्टोरेज के साथ हो या ज्यादा क्षमता वाले संयंत्र लगाकर । लेकिन सेकी के मुताबिक ये परियोजनाएं ‘फंसी’ हुईं हैं और शुरू नहीं हो रही हैं। भारत को 500 गीगावॉट स्वच्छ बिजली का लक्ष्य पूरा करना है तो हमें ये कमियां दूर करनी होंगी। यह वाकई बहुत जरूरी है।
Date: 10-03-25
मोटापे का मर्ज
संपादकीय
भारत में जिस तरह लोगों की जीवन शैली बदली है, उसके दुष्परिणाम अब सामने आने लगे हैं। मोटापा उनमें से एक है। इस समस्या ने बड़ी संख्या में लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है। शहरों में रहने वाली लगभग एक तिहाई आबादी मोटापे की शिकार है। इसे अब महज वजन बढ़ने के रूप में नहीं लिया जा सकता । मोटापे की वजह से जिस तरह हृदयरोग, उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं, वह चिंता का विषय है। इसने कैंसर के जोखिम तक को बढ़ा दिया है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले दो दशकों में भारत में मोटापे की दर लगभग दोगुनी हो गई है। यह किस कदर जानलेवा हो सकता है इसे लेकर प्रधानमंत्री ने जो चिंता जताई है, उसे गंभीरता से लेने की जरूरत है। उन्होंने देश के नागरिकों को आगाह किया है कि वर्ष 2050 तक चौवालीस करोड़ से अधिक भारतीय मोटापे से ग्रस्त हो जाएंगे। निस्संदेह यह आंकड़ा डरावना है। तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि अब बच्चे भी मोटापे का शिकार हो रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रपट के मुताबिक बचपन और किशोरावस्था में मोटापा भविष्य में उनके जीवन की गुणवत्ता और जीवन प्रत्याशा को कमजोर कर देता है।
यह कितना बड़ा संकट है, इसे इस तथ्य से समझा जा सकता है कि आने वाले समय में हर परिवार में कोई एक मोटापे से ग्रस्त होगा। ऐसी स्थिति को टालने के लिए ही प्रधानमंत्री नागरिकों को जागरूक करना चाहते हैं। आज मोटापे की वजह से न केवल युवा, बल्कि सभी उम्र के लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं, तो इसके मूल कारणों को समझने और सजग होने की जरूरत है। हम अपनी कुछ आदतें बदल लें, तो खुद को मोटापे से बचा सकते हैं। दरअसल, तैलीय, डिब्बाबंद भोजन तथा शारीरिक गतिविधियां कम होने से देश में मोटापे की समस्या पुरुषों और महिलाओं में समान रूप से बढ़ी है। जाहिर है कि अब यह समस्या व्यक्तिगत नहीं रह गई है। भविष्य में मोटापे के शिकार होने वालों की इतनी बड़ी संख्या को देखते हुए समाज और पूरे देश के लिए विचारणीय सवाल है कि हम इस समस्या से कैसे बाहर निकलेंगे ?
Date: 10-03-25
चांद पर ज्यादा जल
संपादकीय
वैज्ञानिकों की निगाह चांद पर लगी हुई है। अमेरिकी अंतरिक्ष संस्थान नासा की मदद से दो निजी यान इन दिनों चांद पर जल की खोज में लगे हैं। एथेना मिशन उतना कामयाब नहीं लग रहा है, पर सबसे नए ब्लू घोस्ट मिशन से अमेरिका को काफी उम्मीदें हैं। इस बीच भारत के चंद्रयान-3 मिशन के डाटा पर आधारित नए शोध से पता चला है कि ध्रुवों के पास चंद्रमा की सतह के नीचे पहले से कहीं ज्यादा जगहों पर बर्फ मौजूद हो सकती है। कम्युनिकेशंस अर्थ ऐंड एनवायर्नमेंट में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि स्थानीय तापमान में बदलाव बर्फ के निर्माण को कैसे प्रभावित कर सकता है, जिससे समय के साथ इसकी उत्पत्ति और गति पर प्रकाश पड़ेगा। अहमदाबाद में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला के वैज्ञानिक डॉक्टर दुर्गा प्रसाद करनम ने बताया है कि इन बर्फ के कणों की जांच से चंद्रमा के शुरुआती भूगर्भीय इतिहास से संबंधित जानकारियां मिल सकती हैं। गौर करने की बात है कि चंद्रयान- 3 के विक्रम लैंडर ने चांद की सतह के नीचे 10 सेंटीमीटर तक की गहराई का भी तापमान दर्ज किया था। उस तापमान से भी जल की खोज में मदद मिली है।
ध्यान रहे, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा तैयार चंद्रयान-3 साल 2023 अगस्त में चंदमा के दक्षिणी ध्रुव पर कामयाबी से उतरा था । यान जहां उतरा था, वहां शोध दल ने पाया कि तापमान नाटकीय रूप से भिन्न था, दिन के समय अधिकतम तापमान 82 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था और रात में -170 डिग्री सेल्सियस तक नीचे चला गया था । आसपास के तापमान को भी दर्ज किया गया और तापमान के अंतर के अध्ययन से यह नतीजा निकाला गया कि सूर्य से दूर 14 डिग्री या उससे अधिक के कोण पर स्थित ढलानें इतनी ठंडी हो सकती हैं कि वहां सतह पर बर्फ जम जाए। चांद पर जल की खोज जरूरी है, इससे चांद पर मानव मिशन भेजने में भी सुविधा होगी। अमेरिका आर्टेमिस मिशन की तैयारी में है, जिसके तहत चांद पर फिर इंसान को उतारने की कोशिश होगी।
ऐसे में, नए अमेरिकी मून मिशन की उपयोगिता और बढ़ गई है। अमेरिकी मिशन का एक लक्ष्य चांद पर जल की खोज भी है। यह पता लगाना जरूरी है कि क्या चांद पर मौजूद सामग्री से जल तैयार किया जा सकता है और अगर चांद पर जल की बूंदें तैयार कर ली जाएं, तो क्या उनका उपयोग किया जा सकता है? अनेक सवाल हैं, जिनका जवाब वैज्ञानिक खोजने में लगे हैं।
खैर, चंद्रयान-3 की कामयाबी एक बार फिर साबित हुई है। वैज्ञानिक उससे मिले आंकड़ों की गहन पड़ताल में लगे हैं। वैसे, डॉक्टर करनम बताते हैं कि अत्यंत कम वायुमंडलीय दबाव के चलते चंद्रमा पर तरल पानी मौजूद नहीं हो सकता। जिसका अर्थ है कि चांद पर बर्फ तरल रूप में पिघलने के बजाय सीधे वाष्प में बदल जाती होगी। मतलब बर्फ से पानी लेने के लिए नई विधि या नई तकनीक की जरूरत पड़ेगी। चांद पर जल की संभावना वाले कणों को लेकर अध्ययन करना होगा। इतना तो स्पष्ट है कि पूरे चांद पर पानी का होना या बनना मुश्किल है। चांद के ध्रुवों पर ही पानी की संभावना दिख रही है। अगर चांद के ध्रुवों पर ही पानी की संभावना है, तो भविष्य में ध्रुवों पर ही अभियान भेजने की जरूरत है। अगर कभी चांद पर मानव बस्तियां बसीं, तो ध्रुवों पर ही बसेंगी। फिलहाल, अमेरिकी ब्लू घोस्ट मिशन से नए नतीजों की उम्मीद करनी चाहिए।