07-06-2025 (Important News Clippings)

Afeias
07 Jun 2025
A+ A-

To Download Click Here.


Date: 07-06-25

Beyond The Cut

RBI can’t do anything about sluggish incomes

TOI Editorials

RBI’s generous 50bps rate cut cheered markets on Friday, and should ease pressure of EMIS on borrowers soon. But a bigger test lies ahead – will it spur demand, and growth? Although Q4 data for fiscal 2025 was encouraging, its 7.4% growth was mostly powered by govt-led construction. Manufacturing growth remained sluggish, which is a dampener for the central bank’s “growth aspiration” of 7-8%. RBI has already set its growth expectation for the current fiscal at a modest 6.5%. For India to grow in the target range, private consumption – which accounts for close to 60% of GDP – must shift gears, and the three rate cuts this year-altoget- her 100bps – will make borrowing significantly cheaper. RBI and govt will hope this stimulates demand for housing and automobiles, key industries that employ millions and have significant multiplier effects.

While inflation has finally cooled to a comfortable level, creating room for rate cuts, some experts have diagnosed sluggish demand and slowing price rise as a sign of weak incomes. Post-Covid, the housing and automobile markets became premiumised. Small hatchbacks, once the base of the car market, are now a tiny segment. Likewise, smaller apartments fell off builders’ plans. Essentially, mid-income earners got priced out. Cheaper credit could change that, and if private demand booms, so will private capex. That’s the hope. But if these rate cuts don’t translate into growth, govt will seriously need to look at the problem of income stagnation. RBI has already changed its policy stance from accommodative to neutral, signalling a reluctance to make more cuts this year.


Date: 07-06-25

ट्रम्प और मस्क के विवाद ने अमेरिका को शर्मिंदा किया

संपादकीय

ट्रम्प और मस्क में मतभेद देखते ही देखते तू-तू, मैं-मैं तक पहुंच गया है। राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रम्प ने मस्क को अमेरिकी प्रशासन को सक्षम बनाने का काम दिया और बगैर किसी कानूनी हैसियत के कैबिनेट और टॉप सीक्रेट बैठकों में पहुंच भी प्रदान की। लेकिन आज मस्क ट्रम्प को ‘एहसान फरामोश’ और ट्रम्प मस्क को ‘व्हाइट हाउस की याद में पागल हुए’ बता रहे हैं। मस्क ट्रम्प के ‘बिग ब्यूटीफुल बिल’ (टैक्स बिल) को संसद में गिराने की अपील कर रहे हैं और ट्रम्प उनके उद्यमों को दी जाने वाली अरबों डॉलर की राहत और सब्सिडी खत्म करने की धमकी दे रहे हैं। मस्क ने प्रशासनिक क्षमता बढ़ाने के नाम पर हजारों लोगों को नौकरी से निकाला है और ट्रम्प ने भी उनके स्पेस कार्यक्रम के लिए लाखों डॉलर दिए, वही मस्क अचानक यह कहने लगे हैं कि मेरी मदद के बगैर ट्रम्प राष्ट्रपति न बन पाते। इस सबसे अमेरिकी समाज के विवेक और उसकी सोचने की शक्ति के ह्रास का अंदाजा लगता है। मस्क ने सार्वजनिक रूप से ट्रम्प और रिपब्लिकन प्रत्याशियों की जीत के लिए 2400 करोड़ रुपए खर्च किए थे। ट्रम्प ने भी उनका व्यापार बढ़ाया। भारत में भी कई नेता किसी दल से नाता तोड़ कर नई पार्टी में चले जाते हैं और अपनी ही पुरानी पार्टी के खिलाफ आग उगलने लगते हैं। लेकिन जनता की नजरों में यह उपयुक्त आचरण नहीं माना जाता ।


Date: 07-06-25

भारत अब केवल कूटनीति पर ही निर्भर नहीं रहने वाला है

शशि थरूर, ( पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद )

अब जब ऑपरेशन सिंदूर को एक महीना पूरा होने आया है, उससे जुड़े कुछ निष्कर्षों को ठीक से समझ लेना जरूरी है। भारत की सेना ने पाकिस्तानी क्षेत्र में आतंकवादी ठिकानों और अन्य फेसिलिटीज पर जोरदार लेकिन ऐहतियाती और टारगेटेड हमला किया था। यहां तक कि आक्रमण का समय भी रात को इसलिए चुना गया ताकि नागरिकों को होने वाली क्षति से बचा जा सके। पाकिस्तान हाई अलर्ट पर था, इसके बावजूद भारत ने सफलतापूर्वक उसकी डिफेंसिव -लाइंस को भेद दिया और अपने लक्ष्यों पर प्रहार करके कुछ आतंकवादियों का खात्मा करने में सफलता पाई। याद रहे कि इन आतंकवादियों के अंतिम संस्कार में उच्च-स्तरीय पाकिस्तानी अधिकारी शामिल हुए थे।

इस ऑपरेशन के बाद पाकिस्तान से भारत के इंगेजमेंट्स की शर्तें हमेशा के लिए बदल गई हैं, क्योंकि अब भारत ने सैन्य कार्रवाई को लेकर झिझक छोड़ दी है । एक अरसे तक कश्मीर मुद्दे के ‘अंतरराष्ट्रीयकरण’ के अंदेशे ने भारत को निरर्थक कूटनीतिक प्रक्रियाएं अपनाने के लिए प्रेरित किया था, लेकिन उनसे हमें बहुत कम हासिल हो सका। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद प्रतिबंध समिति ने भी लंबे समय तक पाकिस्तान को अपने एक स्थायी सदस्य को छत्रछाया में रहने की अनुमति दी है।

भारत अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को छोड़ नहीं रहा है, लेकिन अब वह केवल उसी पर निर्भर भी नहीं रहेगा। इसके बजाय, भारत अब आतंकवाद का सैन्य बल से जवाब देगा और किसी भी जवाबी कार्रवाई का स्पष्ट और दृढ़ संकल्प के साथ सामना भी करेगा। लेकिन भारत पाकिस्तान को उसके परमाणु हथियारों की धाँस दिखाने की अनुमति नहीं देने वाला। 2016 में सीमा पार सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर 2019 में खैबर पख्तूनख्वा में हवाई हमले तक, भारत ने अपने अभियानों के दायरे का उत्तरोत्तर विस्तार किया है और ऐसा करते हुए नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा दोनों को लांघा है। ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के गढ़ में प्रहार किए गए। भारत ने दिखाया है कि आतंकवाद का मुकाबला परमाणु युद्ध को आमंत्रित किए बिना भी एक संतुलित सैन्य प्रतिक्रिया से किया जा सकता है।

पाकिस्तान के सैन्य नेतृत्व अब जब भविष्य में कश्मीर या अन्य जगहों पर तबाही मचाने के लिए आतंकवादियों को भेजने पर विचार करेगा, तो पहले उसे खुद से पूछना होगा कि क्या वह भारत के जवाबी हमले के लिए भी तैयार है? उलटे इससे पाकिस्तान के लोगों को पानी की किल्लत हो सकती है। भारत ने सिंधु जल संधि को स्थगित करके यही संदेश दिया था। जहाँ उसके बाद से भारत ने जलप्रवाह को मोड़ने के लिए कोई इच्छा नहीं दिखाई है, लेकिन इस संदेश ने उपमहाद्वीप की भू-राजनीति को मौलिक रूप से बदल दिया है। भारत अब शांति के लिए बातचीत भर नहीं कर रहा है; वह पानी की निरंतर आपूर्ति के बदले में आतंकवाद की समाप्ति की मांग भी कर रहा है।

ऑपरेशन सिंदूर के जरिए भारत ने दुनिया को यह भी याद दिलाया है कि पाकिस्तान के आतंकवाद से कितने गहरे ताल्लुक हैं। युद्ध विराम को अंजाम देने वाली परदे के पीछे की बातचीतों के बारे में नए विवरण निस्संदेह सामने आएंगे, लेकिन यह निर्विवाद है कि यह भारतीय सैन्य दबाव के बिना संभव नहीं था। इसके बाद अब निकट भविष्य में भारत और पाकिस्तान के द्विपक्षीय संबंधों में कोई खास बदलाव होने की संभावना नहीं है, क्योंकि ऐसी कोई भी बातचीत – खासकर कश्मीर मुद्दे पर फिलहाल दूर की संभावना है। वैसे भी कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का मूल कारण नहीं है, यह तो पाकिस्तान द्वारा भारतीय क्षेत्र पर अपने दावों को सही ठहराने के लिए फैलाया गया एक मिथक है। यह नैरेटिव एक ऐसे कट्टरपंथी तर्क पर आधारित है जिसे हाल ही में पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने दोहराया था कि मुसलमान गैर-मुस्लिम बहुसंख्यक देश में नहीं रह सकते।

भारत व पाकिस्तान में कोई तुलना नहीं है। भारत की जीडीपी पाकिस्तान से 11 गुना अधिक है और उसकी सैन्य श्रेष्ठता के आगे भी पाकिस्तान नहीं टिकता । पाकिस्तान में उसकी फौज को हासिल अत्यधिक अधिकार, राष्ट्रीय बजट पर नियंत्रण, चीन और तुर्किए के साथ रणनीतिक गठबंधन उसे सशस्त्र संघर्ष को बनाए रखने के लिए शक्तिशाली उपकरण प्रदान करते हैं, जबकि किसी भी पारंपरिक युद्ध में भारत हमेशा पाकिस्तान पर न केवल जीत हासिल करेगा, बल्कि उसे काफी नुकसान भी पहुंचा सकता है। भारत ने सीमापार आतंकवाद का सामना करने में जैसी दृढ़ता दिखाई, उस पर वह गर्व कर सकता है।


Date: 07-06-25

भारतीय शिक्षण संस्थानों के पास टैलेंट को देश में रोकने का मौका

संपादकीय

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा अमेरिका में उच्च शिक्षा के खिलाफ सख्त कार्रवाई से भारत विश्वविद्यालयों के लिए अवसर बन सकते हैं। ट्रम्प ने विश्वविद्यालयों की फंडिंग रोकने के साथ ही विदेशी छात्रों के वीसा इंटरव्यू टाल दिए हैं। यह भारत के लिए प्रतिभा पलायन रोकने का मौका है। मशहूर आईआईटीज के 100 टॉप छात्रों में 60% से अधिक विदेश चले जाते हैं। इनमें अधिकतर अमेरिका पहुंचते हैं। अमेरिका में पढ़ रहे एक तिहाई विदेशी छात्र भारतीय हैं।

अनुमान है कि ट्रम्प की नीतियों से अमेरिकी विश्वविद्यालयों के लिए भारतीय छात्रों की अर्जियां साल और अगले साल एक चौथाई कम हो सकती हैं। लेकिन भारत के टॉप कॉलेज उच्च शिक्षा के ग्लोबल मार्केट में होड़ करने में सक्षम नहीं हैं। हार्वर्ड के साथ भारतीय विश्वविद्यालयों की तुलना बहुत मुश्किल है।

अमेरिका की आईवी लीग (रिसर्च और उच्च शिक्षा के आठ नामी विश्वविद्यालयों को आईवी लीग कहते हैं।) के 3-9% के मुकाबले कई बार भारत के नामी संस्थानों में एडमिशन की दर 0.2% तक गिर जाती है। दुनिया में यूनिवर्सिटी जाने वाली उम्र के आधे लोग भारत में हैं। अंग्रेजी जानने वालों की संख्या ज्यादा होने के कारण भारत के लिए स्थितियां अनुकूल हैं। फिर भी विश्व के 100 टॉप उच्च शिक्षण संस्थानों में भारत के लिए कोई जगह नहीं है।

पिछले साल न्यूयॉर्क स्थित अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क स्कॉलर्स एट रिस्क और स्वीडन के रिसर्च ग्रुप वी डेम ने अकादमिक फ्रीडम इंडेक्स में भारत को निचली रैंकिंग दी है। हालांकि सुधार के प्रयास भी किए जा रहे हैं। भारत में 2017 में अच्छे विश्वविद्यालयों को बढ़ावा देने के लिए इंस्टीट्यूशंस ऑफ इमिनेंस कार्यक्रम लॉन्च किया गया था। सरकार ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत सरकार की निगरानी और दखल रोकने के लिए सिफारिशें की गई हैं। हालांकि विश्वविद्यालयों में अंग्रेजी की जगह हिंदी के उपयोग से यूनिवर्सिटीज को ग्लोबल अकादमिक सिस्टम में होड़ करने में मुश्किल होगी।

इसलिए हैं भारत के पास अवसर

• अमेरिका में पढ़ने वाले एक तिहाई छात्र भारतीय हैं। वहां सख्ती भारत के लिए फायदे के लिए सौदा हो सकता है।

• अब अमेरिका जाने वाले छात्रों की संख्या में एक चौथाई तक कमी आ सकती है।

• यूनिवर्सिटी जाने वाली उम्र की आधी आबादी भारत में ही रहती है।

• बीस साल पहले देश में केवल बीस प्राइवेट यूनिवर्सिटी थीं। आज 400 से अधिक हैं।

• शिक्षा में सुधार के काम भी हो रहे हैं।

ये चुनौतियां भी हैं

• पिछले दशक में भारत ने जीडीपी का 4.1% से 4.6% शिक्षा पर खर्च किया है। चीन ने भी इतना ही खर्च किया है लेकिन उसकी जीडीपी पांच गुना ज्यादा है।

• विश्वविद्यालयों पर यूजीसी की नजर रहती है। उच्च स्तरीय नियुक्तियों में सरकारी दखल है। सरकारी विश्वविद्यालयों में भर्तियां सत्ताधारी दल की मर्जी पर निर्भर करती हैं।

• हार्वर्ड की तुलना करने योग्य यूनिवर्सिटीज अभी नहीं है।

• दुनिया के टॉप-100 उच्च शिक्षण संस्थानों भारतीय संस्थानों की मौजूदगी नहीं।

• आईआईटी के टॉप स्टूडेंट्स पढ़ने विदेश चले जाते हैं।


Date: 07-06-25

साकार हुआ एक बड़ा सपना

संपादकीय

उधमपुर – श्रीनगर-बारामुला रेल नेटवर्क परियोजना के पूरा होने और वंदे भारत एक्सप्रेस के जरिये कटड़ा से श्रीनगर रेल सेवा का शुभारंभ होने के साथ कश्मीर से कन्याकुमारी की धारणा न केवल नए रूप में नए सिरे और पुष्ट हुई, बल्कि यह भी स्पष्ट हुआ कि भारत सरकार जम्मू-कश्मीर का समग्र विकास करने और अपने इस अभिन्न भूभाग को हर संभव तरीके से विकास के जरिये राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए प्रतिबद्ध है। यह रेल नेटवर्क कश्मीर की जनता के साथ-साथ पाकिस्तान और विश्व समुदाय को भी एक संदेश है। यह संदेश यही है कि पाकिस्तान कश्मीर की बेतुकी रट लगाना बंद करे और विश्व समुदाय भारत-पाक के बीच विवाद को कश्मीर से जोड़कर देखने की अपनी संकीर्ण प्रवृत्ति का परित्याग करे । इस परियोजना का पूरा होना कितना बड़ा और अनोखा काम है, इसे जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के इस कथन से समझा जा सकता है कि जो अंग्रेज नहीं कर पाए, वह आपके राज में हो गया प्रधानमंत्री मोदी जी वह रेल नेटवर्क और विशेष रूप से चिनाब नदी पर बना विश्व का सबसे ऊंचा रेलवे पुल भारत की इंजीनियरिंग, तकनीकी कौशल के साथ इसका भी परिचायक है कि भारत अब कुछ भी करके दिखा सकता है और देश के साथ दुनिया को भी चमत्कृत कर सकता है।

यह उल्लेखनीय है कि पहलगाम में भीषण आतंकी हमले और उसके जवाब आपरेशन सिंदूर के बाद उपजे हालात के बीच भारत ने यही जताया कि वह किसी भी तरह की चुनौतियों का सामना करते हुए राष्ट्र निर्माण के अपने पथ से नहीं डिगेगा । इस रेल परियोजना का सपना दशकों पहले देखा गया था। समय-समय पर विभिन्न सरकारों ने इस परियोजना को आगे बढ़ाने के प्रयत्न किए, लेकिन एक समय असंभव से माने जाने वाले इस काम को मोदी सरकार ने जिस तत्परता और संकल्प के साथ पूरा कर दिखाया, वह अपने आप में एक मिसाल है। यह रेल नेटवर्क भारतीय रेलवे की सबसे कठिन और महत्वाकांक्षी रेल परियोजना है। इसका महत्व इसलिए और अधिक बढ़ जाता है, क्योंकि वह राष्ट्रीय एकता एवं सामाजिक-आर्थिक विकास का बड़ा वाहक बनने जा रही है। इस परियोजना को साकार करते समय प्रतिकूल मौसम के साथ जटिल भूगर्भीय चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। इस परियोजना को पूरा करने में मोदी सरकार की प्रतिबद्धत्ता को रेखांकित करने के साथ रेलवे और अन्य अनेक विभागों के उन कर्मचारियों एवं अधिकारियों के योगदान की भी सराहना करनी होगी, जो दुर्गम परिस्थितियों, निर्माण की कठिन चुनौतियों से जूझते हुए कर्तव्य पथ पर डटे रहे और आतंकी हमलों के खतरे का भी सामना करते रहे। उन्हें सुरक्षित रखने के लिए सुरक्षा बलों के जवानों को भी अतिरिक्त चौकसी बरतनी पड़ी। यह परियोजना हर दृष्टि से एक गौरवशाली राष्ट्रीय उपलब्धि है।


Date: 07-06-25

प्रतिस्पर्धी हवाई अड्डे जरूरी

संपादकीय

एमिरेट्स के प्रेसिडेंट टिम क्लार्क और इंडिगो के मुख्य ए कार्याधिकारी (सीईओ) पोटर एल्बर्स के बीच द्विपक्षीय हवाई सेवा समझौतों को लेकर हालिया असहमति यह दिखाती है कि पश्चिम एशिया की सरकारी विमानन कंपनियों और भारत के निजी क्षेत्र द्वारा संचालित विमानन उद्योग के बीच प्रतिस्पर्धा में तेजी आ रही है। अंतरराष्ट्रीय हवाई परिवहन महासंघ (आईएटीए) की सालाना आम बैठक में पश्चिम एशिया की सबसे बड़ी विमानन सेवा के प्रमुख क्लार्क ने विदेशी विमानन कंपनियों के साथ द्विपक्षीय सीट समझौते को लेकर प्रतिबंधात्मक नीतियों के लिए भारत सरकार की आलोचना की थी। कंपनी भारत और दुबई के बीच सीट क्षमता को 65,000 प्रति सप्ताह से बढ़ाकर 1,40,000 प्रति सप्ताह करना चाहती थी।

भारत सरकार ने अपनी दलील में कहा कि उसे उन विमानन कंपनियों के अनुचित लाभ पर कदम उठाना होगा जो अपने सरकारी हवाई अड्डों के माध्यम से अधिक यात्रियों को अमेरिका और यूरोप के लिए संपर्क वाली उड़ानों में ले जाने की क्षमता रखती हैं और इससे भारतीय विमानन कंपनियों की लंबी दूरी की उड़ानों पर असर पड़ रहा है। इंडिगो के सीईओ ने क्लार्क की आलोचना को नकारते हुए कहा कि भारत सरकार का रुख ‘निष्पक्ष और संतुलित है। इन दोनों की राय के बीच भारतीय विमानन कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय संपर्क के लिहाज से रणनीतिक बदलाव के लिए सक्षम बनाने का सवाल बना हुआ है। एक नजरिये से देखें तो भारत सरकार का रवैया संरक्षणवादी माना जा सकता है। परंतु घरेलू विमानन कंपनियों का तर्क है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में उनके विस्तार को भारतीय हवाई अड्डों को हब के रूप में विकसित करने के व्यापक प्रश्न के हिस्से के रूप में देखा जाए।

यहां बात यह है कि भारतीय विमानन उद्योग अंतरराष्ट्रीय संपर्क में महत्त्वपूर्ण इजाफा करना चाहता है। वर्ष 2023 में टाटा के स्वामित्व वाली एयर इंडिया ने एयरबस और बोइंग से 470 विमान खरीदने का विशाल ऑर्डर दिया। इसके बाद उसने गत वर्ष एयरबस को 100 और विमानों का ऑर्डर दिया। इंडिगो ने इस सप्ताह चौड़े आकार वाले एयरबस विमानों के ऑर्डर को दोगुना करके 60 कर दिया। इससे पहले उसने 2023 में 500 विमानों का ऑर्डर दिया था। इसमें कोई शक नहीं है कि ये विमानन कंपनियां जीवंत और बढ़ते विमानन बाजार में अंतरराष्ट्रीय विमानन कंपनियों से मुकाबला कर सकती हैं। उनका यह कहना सही है कि ऐसा करना इस बात पर बहुत अधिक निर्भर है कि भारत के प्रमुख हवाई अड्डों को केंद्र के रूप में विकसित किया जाए जो खाड़ी देशों के ऐसे मजबूत केंद्रों का मुकाबला कर सकें। एक पूर्व-पश्चिम केंद्र के रूप में विकसित होने के लिए भारत के अतीत के प्रयास इन दोनों मोचों पर विफल रहे हैं।

भारत में 34 अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे और 124 घरेलू हवाई अड्डे हैं। इनमें से केवल दिल्ली ही एशिया प्रशांत और पश्चिम एशिया के शीर्ष 10 हवाई अड्डों में आता है। मुख्य रूप से ऐसा संपर्क के मामले में है, न कि अधोसंरचना की गुणवत्ता और सेवाओं के मामले में। इसके अलावा बैगेज प्रबंधन, सीमित टर्मिनल क्षमता और अपर्याप्त रनवे आदि भारतीय हवाई अड्डों की आम समस्याएं हैं। दिल्ली देश का इकलौता हवाई अड्डा है जहां चार लगभग समांतर रनवे हैं। मुंबई में दो ऐसे रनवे हैं जो एक दूसरे को काटते हैं। यानी इनका उड़ान भरने और उतरने के लिए एक साथ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। दुबई में दो समांतर रनवे हैं लेकिन जल्दी ही वहां इनकी संख्या बढ़कर पांच होने वाली है। केवल छह भारतीय हवाई अड्डे कैट 3 बी मानकों को पूरा करते हैं यानी वे हर मौसम में उड़ान भरने के लायक हैं। केवल 22 हवाई अड्डे ही मुनाफे में हैं और यह बात प्रबंधन की कमियों को दर्शाती है। अगर इसमें एविएशन टर्बाइन फ्यूल की उच्च कीमतों को शामिल कर दिया जाए (इसमें राज्यों द्वारा भारी भरकम कर लगाए जाने का भी योगदान है) तो यह साफ है कि भारतीय हवाई अड्डों को अंतरराष्ट्रीय केंद्रों की हैसियत पाने में अभी कुछ समय लगेगा। अगर भारत सरकार देश के हवाई अड्डों में बदलाव की गति तेज करती है तो वह द्विपक्षीय हवाई समझौतों में मजबूती से बातचीत कर सकेगी।


Date: 07-06-25

राहत की दर

संपादकीय

पिछले दिनों अर्थव्यवस्था के लिहाज से सकारात्मक खबरों के बीच अब भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआइ की ओर से नीतिगत दरों में कमी से यही संकेत उभरता है कि महंगाई अब नियंत्रण में है और आर्थिक मोर्चे पर खड़ी चुनौतियों से पार पाने में देश आगे की राह पर है। आरबीआइ ने शुक्रवार को प्रमुख नीतिगत दर यानी रेपो दर में 0.5 फीसद की कमी करके उसे 5.5 फीसद कर दिया। इसे उम्मीद से ज्यादा की कमी माना जा रहा है। इसके अलावा, एक चौंकाने वाले फैसले के तहत आरबीआई ने बैंकों के लिए भी नकद आरक्षित अनुपात यानी सीआरआर में भी एक फीसद की कटौती की घोषणा की। यह लगातार तीसरी बार है, जब केंद्रीय बैंक ने रेपो दर में कटौती की है। इससे पहले आरबीआइ ने इसी वर्ष फरवरी और अप्रैल में पच्चीस आधार अंकों की कटौती की थी। जाहिर है, यह न केवल देश के भीतर आर्थिक उतार-चढ़ाव से निपटने की कोशिश है, बल्कि फिलहाल दुनिया भर में जैसी चुनौतियां खड़ी हो रही हैं, उसमें इन उपायों से अर्थव्यवस्था को संभालने में भी मदद मिलेगी।

दरअसल, रेपो दरों में कमी को मुख्य रूप ऋण के लिहाज से सुविधाजनक माना जाता रहा है कर्ज सस्ता या महंगा होने का हिसाब इसी पर टिका होता है और इसका सीधा और पहला असर उन उपभोक्ताओं पर पड़ता है, जिन्होंने घर, वाहन, अन्य सामान या फिर शिक्षा जैसी जरूरतों के लिए बैंकों से ऋण लिया होता है या फिर वे लोग, जो इस बात का इंतजार करते हैं कि रिजर्व बैंक की ओर से कब नीतिगत दरों में कमी की जाए और कर्ज सस्ता होने के बाद वे कुछ खरीदने या निवेश करने की योजना बनाएं। गौरतलब है कि रिजर्व बैंक की नीतिगत दरों के अनुरूप ही व्यावसायिक बैंक उपभोक्ताओं को दिए जाने वाले ऋण और अन्य सावधि जमा के मद में ब्याज की दरें निर्धारित करते हैं। इसलिए उम्मीद है कि रेपो दरों में कमी के बाद व्यावसायिक बैंक भी कर्ज की दरें घटाएंगे। इसके बाद स्वाभाविक रूप से कर्ज सस्ता होगा और मासिक किस्तों में कमी की वजह से बैंकों से ऋण लेने वाले उपभोक्ताओं की मांग बढ़ सकती है। साथ ही, पिछले कुछ समय से वाहन बाजार और खासतौर पर जमीन-जायदाद के कारोबार में जिस तरह की मंदी की आशंका जताई जा रही थी, नीतिगत दरों में कटौती के बाद उसमें सुधार आने की उम्मीद की जा सकती है।

इस लिहाज से देखें तो रिजर्व बैंक की ओर से नीतिगत दरों में बड़ी कमी की जो घोषणा की है, वह एक तरह से अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने की दिशा में एक अहम कदम है मगर जरूरत इस बात की है कि इस तरह के फैसले सिर्फ घोषणाओं और अर्थव्यवस्था के जटिल गणित तक ही न सिमटे रहें। इसका असर जब तक जमीन पर नहीं दिखेगा, आम लोगों को इसका सीधा फायदा नहीं मिलेगा, वे अपनी जरूरत के लिए घर या कोई अन्य चीज की खरीदारी को लेकर सहज और निद्वंद्व नहीं होंगे, तब तक इस तरह के फैसले अर्थव्यवस्था की चुनौतियों को दूर करने में सहायक साबित नहीं हो सकते। महंगाई से राहत और क्रय शक्ति की सीमा में खरीदारी में सहजता से यह तय होगा कि रेपो दरों में कमी का लाभ आम लोगों तक कितना पहुंच पाता है। ऋण लेने का उत्साह उसे चुकाने की स्थितियों पर टिका रह सकता है। इसलिए रोजगार और आय के अन्य माध्यमों की बुनियाद मजबूत करने की स्थिति पैदा करनी होगी, ताकि लोग अपने निवेश और अन्य आर्थिक फैसलों को लेकर सुरक्षित महसूस करें।


Date: 07-06-25

मानवता के लिए बड़ा खतरा

राजनाथ सिंह, ( लेखक रक्षा मंत्री हैं )

आतंकवाद पूरी दुनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती बन कर खड़ा है। यह मानवता, शांति, सह-अस्तित्व, विकास और लोकतंत्र जैसे मूल्यों का शत्रु है। आतंकवाद एक ऐसी कट्टर सोच का परिणाम है, जो सिर्फ विनाश, भय और नफरत को जन्म देती है। यह न तो कोई समाधान है, न ही किसी बदलाव का माध्यम बन सकता है। इतिहास साक्षी है कि आतंकवाद ने कभी कोई स्थायी या सार्थक परिणाम नहीं दिया है। आतंकवाद सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए विध्वंसक आडंबर मात्र है

यह सोचना भी एक भ्रम है कि कोई आतंकवादी किसी का स्वतंत्रता सेनानी हो सकता है। कोई भी धार्मिक, वैचारिक या राजनीतिक कारण आतंकवाद को जायज नहीं ठहरा सकता। आतंकवाद की कोख से क्रांति नहीं, बल्कि सिर्फ घृणा, बर्बादी और हताशा जन्म लेते हैं। एक सच्चा और मानवीय उद्देश्य कभी भी खून-खराबे और हिंसा के बल पर हासिल नहीं किया जा सकता हमारे सामने जितनी भी प्राकृतिक आपदाएं और महामारियां आईं, वे समय के साथ समाप्त हो गईं। लेकिन आतंकवाद ऐसी महामारी है जो अपने आप खत्म नहीं होगी। इसके खात्मे के लिए ठोस और सामूहिक प्रयास जरूरी हैं। जब तक इसका अस्तित्व रहेगा, यह समाज, विकास और संसाधनों को नुकसान पहुंचाता रहेगा।

भारत ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पूरी दुनिया के सामने मिसाल पेश की है। पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का भारत दशकों से शिकार रहा है। हाल में पहलगाम में जो हमला हुआ, उसमें बेगुनाह पर्यटकों को केवल उनके धर्म के आधार पर मारा गया। यह क्रूरता और बर्बरता की पराकाष्ठा थी। इस हमले का मकसद भारत की एकता को तोड़ना और देश में डर फैलाना था, लेकिन ऐसी कोशिशें हमेशा असफल ही साबित होती हैं। यह सच है। कि कोई भी मजहब निर्दोषों की हत्या को उचित नहीं ठहरा सकता। आतंकवादी केवल धर्म का नाम लेकर अपने कुकर्मों को वैधता देने की कोशिश करते हैं। अब हमारी नीति है कि आतंकवादी जहां भी हैं, हम उन्हें समाप्त करने से नहीं हिचकेंगे। आतंकवाद को प्रायोजित करने वाली सरकार और आतंकवाद के मास्टरमाइंड के बीच अंतर किए बिना मुंहतोड़ जवाब देंगे। भारत अब पहले की तरह केवल प्रतिक्रिया जताने वाला देश नहीं रहा। हमारी नीति में मौलिक परिवर्तन आया है। अब हम आतंकवाद के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति पर चलते हैं।

आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पहला और सबसे बुनियादी कदम आतंकवाद की एक सर्वस्वीकृत और व्यावहारिक परिभाषा तय करना होगा। भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के समक्ष ‘अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन’ के माध्यम से इस दिशा में प्रयास किया है, किंतु अब तक कोई सर्वसम्मति नहीं बन पाई है।

दूसरा, केवल आतंकी संगठनों को निशाना बनाना पर्याप्त नहीं है। उन देशों की आर्थिक व्यवस्था को भी प्रभावित करना होगा जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आतंकवाद को प्रायोजित करते हैं। पाकिस्तान इसका स्पष्ट उदाहरण है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों को समझना होगा कि पाकिस्तान को दिए जाने वाले बेलआउट पैकेज और ऋण किस प्रकार सीमापार आतंकवाद के पोषण में खर्च होते हैं। जब तक पाकिस्तान अपने आतंकी नेटवर्क को पूर्णतः और ईमानदारी से समाप्त नहीं करता, तब तक उसे किसी भी प्रकार की वित्तीय सहायता नहीं दी जानी चाहिए।

तीसरा, ऑपरेशन सिंदूर के पश्चात यह तथ्य और स्पष्ट हो गया है कि पाकिस्तान में स्टेट और नॉन-स्टेट एक्टर्स की गतिविधियों में कोई विभाजन रेखा नहीं बची है। यह तथ्य तब और भी पुष्ट होता है जब लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों के आतंकवादियों को राज्य के अधिकारियों द्वारा सम्मान के साथ अंतिम संस्कार दिया जाता है एक ऐसे देश, जिसके सैन्य अधिकारी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नामित आतंकियों की अंत्येष्टि में भाग लेते हों, से आतंकवाद के विरुद्ध सहयोग की अपेक्षा करना भोलापन होगा। यह खतरा भी लगातार बना हुआ है कि पाकिस्तान में परमाणु हथियारों की सुरक्षा कमजोर पड़ सकती है, और वे नॉन-स्टेट एक्टर्स के हाथों में पहुंच सकते हैं। अतः आवश्यक है कि पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की निगरानी में लाया जाए।

चौथा, प्रॉक्सी युद्ध की चुनौती भी उतनी ही खतरनाक है। कुछ देश अपने मित्र राष्ट्रों की आड़ में अपने पड़ोसी देशों में अस्थिरता फैलाते हैं, और जब तक इस प्रवृत्ति को सार्वजनिक रूप से उजागर नहीं किया जाएगा, तब तक यह सिलसिला चलता रहेगा। आतंकी हमलों पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया किसी विशेष स्थान या पीड़ितों की राष्ट्रीयता पर आधारित नहीं होनी चाहिए।

पांचवां, पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी संगठनों के सुरक्षित ठिकानों का प्रभाव दक्षिण एशिया तक सीमित नहीं है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, नैनोटेक्नोलॉजी, ऑगमेंटेड रियलिटी और स्वचालित प्रणालियों जैसी तकनीकों के प्रयोग ने इन संगठनों की पहुंच को वैश्विक स्तर पर विस्तृत कर दिया है। अब ये खतरे किसी भौगोलिक सीमा तक सीमित नहीं रहते। इनसे निपटने के लिए वैश्विक सहयोग अनिवार्य है।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 9/11 हमलों के पश्चात संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा था कि हमें आतंकवाद के लिए किसी भी वैचारिक, राजनीतिक या धार्मिक औचित्य को दृढ़ता से अस्वीकार करना होगा। उन्होंने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के शब्दों को उद्धृत करते हुए कहा था कि अब प्रत्येक देश की सुरक्षा की चिंता में पूरे विश्व के कल्याण की भावना भी समाहित होनी चाहिए। हम विश्व के सभी शांतिप्रिय राष्ट्रों से आह्वान करते हैं कि वे अपने राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठ कर इस संघर्ष में साथ आएं। आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित, शांत और स्थिर विश्व की रचना हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है।


Date: 07-06-25

कश्मीर में मिसाल

संपादकीय

शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर में विकास के नए दौर का आगाज हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के सबसे ऊंचे रेल पुल का उद्घाटन करके कश्मीर को शेष भारत से बहुत मजबूती के साथ जोड़ दिया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि दुनिया का यह खास पुल भारत में बुनियादी ढांचा के विकास के मोर्चे पर एक बेहतरीन मिसाल है। यह वास्तव में हाशिये पर छूटे भारत को मुख्यधारा के भारत से सतत जोड़ने वाला सेतु है। अब किसी भी मौसम में श्रीनगर जाने में कोई परेशानी नहीं होगी और इससे बेशक, कश्मीर के व्यापक विकास को बल मिलेगा। यह उधमपुर- श्रीनगर-बारामुला रेल लिंक परियोजना उन तमाम लोगों को संदेश भी है, जो कश्मीर में ऐसे किसी पुल की कल्पना भी नहीं कर पाते थे। यह पुल अलगाववाद और उसकी साजिशों का मुंहतोड़ जवाब भी है, इसकी जितनी प्रशंसा की जाए, कम होगी। चेनाब नदी पर भारत ने जो निर्माण किया है, वह वास्तु और इंजीनियरिंग का भी नमूना है, इससे कश्मीरवासियों को बहुत प्रेरणा मिलेगी, मुख्यधारा में आने के लिए उनका मनोबल बढ़ेगा। अब कटरा और श्रीनगर के बीच दो वंदे भारत एक्सप्रेस चलेगी। अन्य रेलगाड़ियों का भी संचालन होगा।

आश्चर्य नहीं कि एफिल टॉवर से भी 35 मीटर ऊंचे इस पुल के आकार-प्रकार की चर्चा घर घर में हो रही है। इस रेल लिंक के रास्ते में 36 सुरंगें और 943 पुल पड़ेंगे, जिससे इस रूट पर एक सफर भी हमेशा के लिए यादगार हो जाएगा। प्रधानमंत्री ने ठीक ही कहा है कि यह रेल लिंक कश्मीर में गतिशीलता को बदल देगा, समृद्धि लाएगा और कश्मीरियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करेगा। ध्यान रहे, ऐसा कोई दूसरा रेल रूट अपने देश में नहीं है। यह रेल रूट देश का एक सपना है, जो 1970 के दशक के आखिर में देखा गया था। इसकी पहली नींव साल 1983 में ही डाली गई थी और उसके अगले दशक में काम शुरू हुआ। हम यह कह सकते हैं कि जम्मू से श्रीनगर को रेल संपर्क से जोड़ने की यह कामयाबी कम से कम तीस साल की मेहनत का नतीजा है। इस सपने को साकार करने में अनेक सरकारों का योगदान है। यह एक प्रमाण है कि बदलती सरकारों के बावजूद एक देश कैसे विकास के पथ पर लगातार आगे बढ़ता है। ऐसे विकास के कार्यों में राजनीति को कभी बाधक नहीं बनना चाहिए और आज कश्मीर में इस पुल व रेल लिंक के प्रति जो जोश है, वह वहां अगर तरक्की के जुनून में बदल जाए, तो जन्नत जैसे कश्मीर की रौनक में चार चांद लग जाएंगे।

कश्मीर के लोगों को अक्सर यह शिकायत रहती थी कि सर्दियों के मौसम में बर्फ की वजह से जम्मू से संपर्क लगभग टूट जाता है। यह शिकायत जब दूर हो गई है, तब आने वाले दिनों में कश्मीर की तरक्की तेज हो जाएगी, बाकी देश के साथ उसका जुड़ाव बढ़ जाएगा। नए आर्थिक-सामाजिक निवेश के रास्ते खुलेंगे। अब वहां के लोगों को यह समझना होगा कि भारत सरकार वहां विकास के लिए कितनी समर्पित है। मोटे तौर पर लगभग सवा करोड़ कश्मीरियों की सुविधा के लिए अरबों रुपये खर्च हुए हैं और इस खर्च की तुलना पाक अधिकृत कश्मीर में होने वाले खर्च से की जा सकती है। अब कोई तुलना ही नहीं है, भारत अपने कश्मीर के साथ बहुत आगे बढ़ चला है। खास बात यह भी है कि यह निर्माण भारत ने अपनी तकनीक व अपने बल पर किया है। अब ऐसे निर्माण की सुरक्षा, संरक्षण, संवर्द्धन में रत्ती भर भी कमी नहीं छोड़नी चाहिए। जम्मू-कश्मीर के शासन और प्रशासन, दोनों को ही पूरे समर्पित भाव से इस रेल लिंक की सार्थकता सिद्ध करने में जुट जाना चाहिए।