07-06-2017 (Important News Clippings)
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सतत विकास का लक्ष्य
कार्यकाल का आधा समय पूरा होने के बाद आम तौर पर सत्ताधारी नेता अगले चुनाव की तैयारियों में लग जाते हैं। उनका ध्यान तुरंत नतीजा देने वाले कुछ ऐसे कार्यों पर केंद्रित हो जाता है, जिनकी वे आगामी चुनाव में चर्चा कर जनता से अपने लिए वोट मांग सकें। लेकिन यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आत्मविश्वास ही है कि वे 2019 की नहीं, बल्कि 2022 की बात कर रहे हैं – चुनावी नहीं, बल्कि देश के विकास के संदर्भ में। इसकी मिसाल उच्च नौकरशाहों के साथ उनकी बैठक में देखने को मिली। इसमें उन्होंने विभिन्न् केंद्रीय मंत्रालयों के सचिवों से उन लक्ष्यों की पहचान करने को कहा, जिन्हें 2022 तक हासिल किया जा सके। निर्देश दिया कि ऐसा करते वक्त देश के सबसे पिछड़े 100 जिलों को ध्यान में रखा जाए।
मोदी पहले भी उल्लेख करते रहे हैं कि आजादी के बाद साठ-पैंसठ वर्षों में देश को विकास के मार्ग पर तेजी से आगे नहीं बढ़ाया जा सका। सरकारों में इच्छाशक्ति का अभाव और प्रशासन की लेटलतीफी वाली कार्यशैली इसके कारण रहे। तो अब प्रधानमंत्री चाहते हैं कि देश की नौकरशाही कामकाज के पुराने तौर-तरीकों से बाहर निकले। उन्होंने अफसरों से कहा कि देश के विकास के लिए उन्हें ‘प्रशासनिक तंत्र से ऊपर उठकर काम करना चाहिए। उन्हें अलग-अलग मंत्रालयों के दायरे में नहीं बंधे रहना चाहिए, बल्कि समग्र दृष्टि से विकास कार्य आगे बढ़ाना चाहिए। सरकारी संस्थानों को भी परिमाणमूलक बनाना होगा। तभी दुनिया की कुल आबादी के छठे हिस्से के जीवन को बदला जा सकेगा। उन्होंने याद दिलाया कि 2022 में देश अपनी स्वतंत्रता की 75वीं सालगिरह मनाएगा। उस समय तक हमें क्या-क्या हासिल कर लेना है, इसकी पहचान अविलंब होनी चाहिए। फिर उन लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।
कह सकते हैं कि सरकार इस सोच और संकल्प के साथ आगे बढ़ी, तो अगले पांच साल में देश की तस्वीर बदल सकती है। दरअसल, ऐसा इरादा पहले दिखाया गया होता, तो अब तक भारत की कुछ और ही स्थिति होती। ऐसा ना होने का क्या परिणाम है, इसे बिजली की स्थिति से समझा जा सकता है। अभी तीन साल पहले तक देश के हजारों गांवों में बिजली नहीं पहुंची थी। क्या छह दशक का समय इस छोटे लक्ष्य को पाने के लिए कम था? जाहिर है, ऐसा नहीं था। ठोस योजना के साथ काम करते हुए क्या हासिल किया जा सकता है, इसका उदाहरण प्रधानमंत्री ने दिया। कहा कि पिछले तीन साल के दौरान कई लक्ष्य पूरे किए गए। यह समस्त सरकारी तंत्र के साझा प्रयास का नतीजा हैं। जन-धन योजना और केंद्रीय टीकाकरण योजना में मिली सफलताएं इस बात को पुष्ट करती हैं। जब ये हो सका, तो कोई कारण नहीं है कि वर्ष 2002 के लिए तय किए जाने वाले लक्ष्य हासिल ना हों। बहरहाल, मोदी सरकार को याद रखना चाहिए कि लोग उसे अब इन्हीं लक्ष्यों की कसौटी पर परखेंगे। यानी उसके पास लापरवाही बरतने का कोई विकल्प नहीं है
एक अकेला इसरो
जीएसएलवी मार्क-3 के सफल प्रक्षेपण के साथ भारत का नाम उन चंद देशों में शामिल हो गया जो भारी-भरकम रॉकेट प्रक्षेपित करने में कामयाब रहे हैं। करीब 13 मंजिली इमारत जितने ऊंचे और 640 टन वजन वाले इस रॉकेट के जरिये लगभग तीन टन के संचार उपग्र्रह को अंतरिक्ष में तय स्थान पर स्थापित किया गया। इस कामयाबी का महत्व इसलिए कहीं अधिक है, क्योंकि अभी तक भारत को 2300 किलो से अधिक वजन वाले संचार उपग्र्रहों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता था। इस संचार उपग्रह से डिजिटल भारत के अभियान को गति देने में मदद मिलेगी। इस सफलता ने न केवल दूसरे देशों पर निर्भरता खत्म की है, बल्कि अंतरिक्ष तकनीक के बाजार में इसरो का कद भी बढ़ाया है। अब तक के सबसे वजनी रॉकेट और उपग्र्रह के प्रक्षेपण के साथ ही भारत ने चांद पर मानव भेजने के अपने अभियान को भी बल प्रदान करने का काम किया है। इसरो की ताजा कामयाबी का सबसे खास पहलू यह है कि जिस क्रायोजेनिक इंजन के सहारे सबसे वजनी रॉकेट को प्रक्षेपित किया गया वह स्वदेशी तकनीक पर आधारित है। इसके पहले भारत ने रूस से यह इंजन हासिल करने की कोशिश की थी, लेकिन अमेरिका ने उस पर न केवल अडंगा लगाया, बल्कि ऐसे कदम भी उठाए जिससे भारत किसी भी देश से यह इंजन न ले सके। आखिरकार भारतीय वैज्ञानिकों ने उसे खुद तैयार कर लिया। यह संभव हो पाया उन्नत से उन्नत तकनीक में आत्मनिर्भर होने की लगन से। दरअसल इसी जज्बे ने इसरो को प्रतिष्ठा के ऊंचे पायदान पर स्थापित किया है। आज दुनिया में जिन कामयाब संस्थाओं से भारत की प्रतिष्ठा में चार चांद लगते हैं उनमें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन शीर्ष पर है। बहुत दिन नहीं हुए जब इसरो ने एक साथ एक सौ चार उपग्रह छोड़कर दुनिया को चकित किया था। इसके पहले इसरो की कीर्ति ध्वजा मंगल अभियान की सफलता के दौरान फहराई थी।
इसरो की एक के बाद एक कामयाबी तकनीक के साथ अंतरिक्ष विज्ञान में भारत की श्रेष्ठता को रेखांकित करती है। यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जैसी कामयाबी इसरो अपने नाम लिखने में सक्षम है वैसी ही अन्य तकनीकी और वैज्ञानिक संस्थाए क्यों नहीं लिख पा रही हैं? इस मामले में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन अर्थात डीआरडीओ का खास तौर पर जिक्र होना सहज है। आखिर उन्नत लड़ाकू विमान, टैंक, पनडुब्बी आदि का देश में ही निर्माण करने के मामले में भारत इतना पीछे क्यों है? यह कोई संतोष का विषय नहीं कि एक अदद लड़ाकू विमान बनाने में दशकों खप गए। यदि भारत वास्तव में महाशक्ति बनने का इरादा रखता है तो उसे रक्षा सामग्र्री का सबसे बड़ा खरीददार नहीं, बल्कि उत्पादक बनना चाहिए। कम से कम इतना तो होना ही चाहिए कि सामान्य हथियारों के मामले में हम अन्य देशों पर निर्भर न रहें। नि:संदेह बात केवल रक्षा सामग्र्री की ही नहीं, आधुनिक तकनीक आधारित अन्य उपकरणों और मशीनों की भी है। बेहतर हो कि हमारे नीति-नियंता इसरो की कामयाबी पर गर्व करने के साथ ही इस पर विचार भी करें कि अन्य तकनीकी-वैज्ञानिक संस्थान उसकी बराबरी करने में सक्षम क्यों नहीं? कामयाबी के सफर में एक अकेला इसरो ही क्यों?
भारी कामयाबी
तेरह मंजिला इमारत जितना ऊंचा और तीन सौ करोड़ रुपए की लागत से बना देश का सबसे बड़ा और शक्तिशाली स्वदेशी रॉकेट भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यानी जीएसएलवी-एमके 3 सोमवार को निर्धारित समय शाम पांच बजकर अट्ठाईस मिनट पर सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित कर दिया गया। ‘फैट बॉय’ उपनाम वाले इस यान का कुल वजन 460 टन यानी दो सौ हाथियों के बराबर है। इसमें चार टन के भारी-भरकम संचार उपग्रह जीसैट-19 को भेजा गया है। पच्चीस घंटे की उलटी गिनती पूरी होने के बाद इसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की देखरेख में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से छोड़ा गया। इसरो ने इसे ऐतिहासिक दिन करार दिया है, और ऐसा कहना कतई गलत नहीं है। इसे अंतरिक्ष में भारत की लंबी छलांग के तौर पर देखा जा रहा है।
इस कामयाबी का पहला और सबसे बड़ा लाभ देश को यह होगा कि भविष्य में अंतरिक्ष यात्री भेजे जा सकेंगे। इंटरनेट की गति बढ़ेगी। वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया है जी-सैट 19 प्रति सेकेंड चार गीगाबाइट डेटा देने में सक्षम है। यह पुराने छह-सात संचार उपग्रहों के बराबर है और इसकी उम्र तकरीबन पंद्रह साल होगी। इसरो के अध्यक्ष एएस किरण कुमार ने कहा है कि यह अब तक का सबसे बड़ा प्रयोग है। अगले डेढ़ साल के भीतर दो और संचार उपग्रहों-जीसैट-11 और जीसैट-20 को भी अंतरिक्ष में भेजने की योजना है। इससे पहले जीएसएलवी-एमके-2 के जरिए जब दो टन के उपग्रह को भेजा गया था तो इसरो ने प्रक्षेपण क्षमता तो विकसित कर ली थी, लेकिन रॉकेटों की डिजाइन में रूस का गहरा प्रभाव था। लेकिन इस प्रक्षेपण की सारी तकनीक भारत ने खुद विकसित की है। जैसा कि इसरो अध्यक्ष ने दावा किया है कि यह तकनीक उपग्रह प्रक्षेपित करने की भारत की क्षमता में कई गुना वृद्धि करेगी। असल में भारत ने शुरुआत में क्रायोजनिक तकनीक खरीदने के लिए रूस के साथ करार किया था, लेकिन 1990 के दशक के आरंभ में अमेरिका ने मिसाइल तकनीक नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) का हवाला देते हुए इसमें रोड़ा अटका दिया था।
इसका असर यह हुआ कि रूस ने तकनीक तो नहीं दी, मगर छह क्रायोजनिक इंजन मुहैया कराए। भारत ने पिछले साल ही एमटीसीआर में प्रवेश किया है। इसरो ने रूसी इंजन के साथ पहला जीएसएलवी रॉकेट बनाया, लेकिन उसकी गति इतनी नहीं थी कि वह उपग्रह को कक्षा में प्रक्षेपित कर पाता। आखिरकार इसरो इस चुनौती से रूबरू हुआ कि वह अपनी तकनीक और इंजन खुद विकसित करे, जिसका नतीजा एमके-3 के रूप में सामने आया। इसकी सफलता से मानव मिशन की योजना को जल्द अमल में लाया जा सकेगा। जानकारों का कहना है कि हालांकि एमके-3 के निर्माण में देरी हुई है और इसे एक दशक पहले ही निर्मित हो जाना चाहिए था। लेकिन क्या यह बात कई और भी उपलब्धियों की बाबत नहीं कही जा सकती! जो हो, अब अपने भारी-भरकम उपग्रहों के लिए विदेशी रॉकेटों पर इसरो की निर्भरता खत्म हो गई है। वह अब दो से चार टन के संचार उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने में सक्षम है। लिहाजा, अब भारत को इसके कारोबारी लाभ के बारे में भी सोचना चाहिए।
Ideas for the future
Decisive policy actions by the Modi government will help the economy surge
As the Modi government completes three years in office, one must look back to understand its policy trajectory and outcomes, and also the way forward. When the government was sworn in in 2014, India was running the risk of a sovereign rating downgrade (to junk status) which could have led to its isolation from global capital markets. Today, the situation has turned around and there is speculation about the possibility of a rating upgrade. India has successfully cemented its position as a Global Macro Hot Spot, a far cry from the label of Fragile Five which was assigned to our economy in 2013.
Decisive policy actions by the government have been a cornerstone of this transformation and policymakers have adopted the principle of festina lente — make haste slowly. The key element of these reforms has been a renewed IDEA — international collaboration, domestic reforms, ease of doing business and active consensus building — for the future.International collaboration: The government has leveraged diplomatic channels and determined policy engagements to enhance India’s trade linkages, while also establishing an active role for India in the global geopolitical landscape.
Domestic reforms with outcome orientation: The GST, Make in India, Skill India, fuel price deregulation, and re-contouring of the FRBM are the structural reform pillars which will enable boosting India’s potential GDP growth by at least 1.5 per cent in the medium term. The setting-up of the NITI Aayog, Monetary Policy Committee (within the RBI), the codification of insolvency and bankruptcy procedures, and the creation of the MUDRA Bank and RERA are the institutional reform pillars which will help sustain 8-plus per cent GDP growth in the near future and 9-10 per cent beyond 2020.Most importantly, the behavioural reforms undertaken by the government have stood out. The JAM trinity helped to leapfrog financial inclusion. Additionally, the bold reform of demonetisation is expected to drive swachh vitteykaran. It is comforting to know that the country has added 9.1 million new taxpayers in 2016-17, representing an 80 per cent jump over the previous year. Going forward, this is likely to boost India’s relatively low tax/GDP ratio of 11.3 per cent in 2016-17.
Ease of doing business: It was one of the first objectives of the new government. Various policies and reforms outlined earlier like the GST, FDI liberalisation, digitisation, etc., have been tailored around this objective. Additionally, the government has ensured that this impact trickles down at the state level through competitive fiscal federalism.Active consensus building: Critical policies like the GST, Bankruptcy Code, FDI, etc., bring out the importance of political unison and the concept of Team India in a meaningful manner. I believe that the focus for the next few years will be on reviving private investment and boosting job creation. As programmes like Skill India take flight, we will see an impetus to employment, which will be key to reaping the benefits of India’s demographic dividend.
Soon, people born in the new millennium will start entering the labour force. With the changing nature of jobs in a world which is at the crossroads of globalisation, industrial revolution 4.0 and protectionism, a policy focus on boosting employment and nurturing MSMEs — as an extension of existing policies — will yield desired outcomes.
MSMEs generate close to 45 per cent of the total industrial employment and are critical for the ground-level consummation of the Make in India dream. While the GST will provide a shot in the arm, cluster-based development will further help MSMEs reap economies of scale. Further, a specific focus financing for MSMEs through attractive corporate tax structures, the building of a robust ratings and exchange trading culture, will go a long way in strengthening these enterprises.Finally, vocational training under skill development is critical in a world where disruption and exponential change is the new paradigm. In addition, I believe that we will see the policy emphasis on DICE (Design Innovation Creativity led Entrepreneurship) getting further energised through Stand Up India and Start Up India.
The economic energy in the current team of policy architects is palpable and infectious. After renovating the house, I am confident that the government is now ready to take the next leap. India took 31 years to increase the size of its economy by 10x to $2.3 trillion. Now, armed with the four tectonic changes, in the form of IDEA, I believe India’s next phase of 10x transformation to a $20 trillion economy will take less than half the time.