04-09-2025 (Important News Clippings)
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Heavy Lifting on GST Done at Last
Tax regime needs to be streamlined further
ET Editorials
Finally, GST rates have been collapsed and bulk of goods and services have been pushed to lower slabs. Opposition to reform has dissipated, and it has been relatively easy to collapse rates. But consensus-building is still required to widen coverage. The true potential of a VAT derives from having a single rate, which makes it easier to implement and police. India now has 4 rates, including exempted items and a demerit rate, but effectively GST is now a 2-trick pony. That is close to the textbook version of GST.
The development dovetails into a policy-induced push for consumption. Mass migration of items to lower rates is expected to complement I-T and interest-rate cuts announced earlier this year. The switch is designed to set right the consumption pattern with a bigger reduction in tax incidence for items of mass consumption. Since this coincides with a spell of low and stable inflation, revenue impact may be softened. The move is also timed to offset recent trade friction with the US, India’s biggest export destination. Uncertainty over trade fragmentation places special emphasis on reviving domestic consumption.
Revenue implications are yet to be evident. They’re unlikely to be of an order that should require any special dispensation for shortfalls in collections by states. With every layer of rationalisation, GST should increase the economy’s potential growth rate. Incrementally, reforming the system becomes easier as benefits manifest themselves to stakeholders. GST also becomes easier to administer with rate rationalisation and shrinkage of exemptions. This sets off a virtuous cycle, which progressively allows for lower rates of taxation. The heavy lifting is largely done. But the tax regime needs further streamlining.
गरीब-अमीर की खाई असंतोष बढ़ा सकती है
संपादकीय
आईटी विभाग के वर्ष 2024-25 के रिटर्न्स पर आधारित आंकड़े बताते हैं कि एक साल में 10 करोड़ सालाना कमाने वाले 73% बढ़े, 5 से 10 करोड़ आय वाले 66.96%, 1 से 5 करोड़ आय वाले 47.56%, 50 लाख से 1 करोड़ आय वाले 31.92% और 10 से 50 लाख आयवर्ग वाले 17.23% । लेकिन 5 से 10 लाख आय वाले वर्ग में मात्र 10.93% वृद्धि हुई। यानी जो लोग पहले ही उच्च आय वर्ग में हैं, उस वर्ग में आय बढ़ाने के मौके ज्यादा हैं। इस तालिका से यह भी पाया गया कि हर माह 1 करोड़ कमाने वाले के पास आयवृद्धि के मौके ज्यादा होंगे और यह विस्तार कम आय के कम होता जाएगा। यानी जो लोग हर माह 1 लाख से कम आय करते हैं, उनके आय बढ़ाने के अवसर कम हैं। इसके अलग एक और आंकड़ा है, जिसके तहत सबसे बड़े आधार- 1 लाख से 5 लाख सालाना (या 8 हजार से 42 हजार महीने तक की कमाई ) – वाला वर्ग 18.59% बढ़ा। इन आंकड़ों से पता चलता है कि व्यापक निजी क्षेत्र खासकर टेक – ड्रिवन जॉब्स में तो उच्च और मध्यम श्रेणी के कामगारों की वेतन वृद्धि हो रही है, लेकिन औद्योगिक उपक्रमों या वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों में जहां पारम्परिक सेवाओं में नियोजन होता है, आय बढ़ने के अवसर कम हैं। नीतिकारों को सोचना होगा कि कृषि – जो 46% रोजगार देती है- में मजदूरों की स्थिति बदतर क्यों है ?
Date: 04-09-25
अंतरराष्ट्रीय सम्बंधों में संतुलन साधना ही हमारी ताकत रही है
शशि थरूर, ( पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद )

वैश्विक कूटनीति के रंगमंच पर भारत ने लंबे समय से एक सधा हुआ संतुलन साधने में दक्षता हासिल की है- सिद्धांत रूप में गुटनिरपेक्ष, व्यवहार में व्यावहारिक। आज जैसे-जैसे भू-राजनीतिक तनाव बढ़ रहे हैं, निष्ठाएं बदल रही हैं और विश्व-व्यवस्था बिखर रही है, भारत एक बार फिर अपनी स्थिति को सुधारने के लिए बढ़ते दबाव का सामना कर रहा है।
अमेरिका से हमारे संबंध विशेष रूप से तनावपूर्ण हो गए हैं। ट्रम्प टैरिफ के व्यापक आर्थिक परिणाम होंगे, क्योंकि पिछले साल भारत के कुल निर्यात में अमेरिका का योगदान 18% था। लेकिन यह केवल एक व्यापारिक मुद्दा भर नहीं है।
अमेरिका और भारत एक चौथाई सदी से भी अधिक समय से अपने रणनीतिक संबंधों को गहरा कर रहे थे और अमेरिका उभरते भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीनी प्रभाव के एक महत्वपूर्ण प्रतिकार के रूप में देखता आता रहा है। लेकिन नए टैरिफ इस बात की याद दिलाते हैं कि मजबूत साझेदारियां भी किसी नेता की सनक के आगे झुक सकती हैं।
पाकिस्तान के साथ अमेरिका की गलबहियां रणनीतिक रूप से और परेशान करने वाली हैं। अमेरिका के दीर्घकालिक आर्थिक, तकनीकी और सामरिक हित अभी भी भारत के साथ जुड़े हैं। इन हालात में चीन का पाकिस्तान को समर्थन भारतीय सुरक्षा के लिए जोखिम को बढ़ाता है।
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन ने पाकिस्तान को सैन्य और राजनयिक समर्थन की पेशकश की थी। वह पाकिस्तान को सैन्य उपकरणों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता भी है और उनमें वे हथियार भी शामिल हैं, जिनका इस्तेमाल पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ किया है।
इसके अलावा चीन की बेल्ट एंड रोड पहल की सबसे बड़ी परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा है, जो दक्षिण-पश्चिमी पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह पर केंद्रित है। चीन-पाकिस्तान धुरी अब महज एक सामरिक गठबंधन नहीं; रणनीतिक समझौता भी है। यह भारत से व्यापक प्रतिक्रिया की मांग करता है, जिसमें घरेलू आर्थिक लचीलापन, सैन्य तैयारी और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कूटनीतिक पहुंच शामिल है।
इस सबके बीच, रूस के साथ भारत की साझेदारी मजबूत साबित हुई है। शीत युद्ध के गुटनिरपेक्षता के दौर में गढ़े गए इस द्विपक्षीय संबंध का आधार दोनों देश की रणनीतिक स्वायत्तता के प्रति साझा सम्मान है। हालांकि दोनों देश हर बात पर सहमत नहीं हैं, फिर भी भारत रूस से महत्वपूर्ण रक्षा उपकरण प्राप्त करता है और पुतिन इस वर्ष के अंत में भारत यात्रा पर आने वाले हैं। लेकिन यहां भी चिंता का एक कारण है। जैसे-जैसे रूस चीन पर अधिकाधिक निर्भर होता जा रहा है, रूस के साथ भारत की साझेदारी को भी क्षति पहुंच सकती है।
बढ़ते भू-राजनीतिक जोखिमों के इस दौर में भारत अपनी अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों में विविधता ला रहा है। यूरोप अपनी आपूर्ति शृंखलाओं के पुनर्गठन की कोशिश कर रहा है, ऐसे में भारत ने यूके से मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत करने और ईयू के साथ सुस्त हो चुकी व्यापार वार्ता को फिर गति देने का अवसर देखा था।
फ्रांस और जर्मनी जैसे देश चीन के लोकतांत्रिक विकल्प के रूप में भारत को अपनाने के लिए उत्सुक हैं। भारत अफ्रीका के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को भी पुनर्जीवित कर रहा है। जहां चीन ने लंबे समय से इस महाद्वीप के प्रति शोषणकारी दृष्टिकोण अपनाया है, वहीं भारत पारस्परिक रूप से लाभकारी साझेदारियों को बढ़ाने के लिए काम कर रहा है, जिनमें स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और डिजिटल बुनियादी ढांचे में भारतीय निवेश का विस्तार करना भी शामिल है।
खाड़ी क्षेत्र में 80 लाख से ज्यादा भारतीय रहते और काम करते हैं, और उनके द्वारा भेजी जाने वाली धनराशि उनके परिवारों के लिए आर्थिक जीवनरेखा का काम करती है। आज खाड़ी देश तेल के कारोबार के अलावा भी अपने आयामों में विविधता लाने की कोशिश कर रहे हैं।
ऐसे में भारत के पास उन्हें देने के लिए बहुत कुछ है : तकनीक, प्रतिभाएं और व्यापार। यूएई से भारत का व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता और साथ ही सऊदी अरब से उसका बढ़ता रक्षा सहयोग रणनीतिक गहराई की ओर बदलाव का संकेत देता है।
एशिया में भारत को निश्चित रूप से शिंजो आबे के नेतृत्व की कमी खल रही है, जिन्होंने जापान से पहले से ही हमारे घनिष्ठ संबंधों को और गहरा करने का प्रयास किया था। लेकिन भारत की वास्तविक ताकत उसकी रणनीतिक चपलता में निहित है। कठोर गठबंधनों से बंधे रहने के बजाय हम अपने हितों से संचालित होते हैं। बदलते परिदृश्य में भी हमें समावेशी, नियम-आधारित और लोकतांत्रिक विश्व-व्यवस्था के दृष्टिकोण का समर्थन करते रहना होगा।
रोका जाए धार्मिक स्वतंत्रता का दुरुपयोग
सीबीपी श्रीवास्तव, ( लेखक सेंटर फार अप्लायड रिसर्च इन गवर्नेंस के अध्यक्ष हैं )
उत्तराखंड सरकार ने विधानसभा के अगले सत्र में पेश किए जाने वाले धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक 2025 को मंजूरी दे दी है। इस विधेयक में प्रविधान है कि नौकरी, धन या अन्य उपहारों का लालच देकर किसी व्यक्ति का मतांतरण करने के प्रयास को जबरन पंथ परिवर्तन माना जाएगा। धार्मिक स्वतंत्रता व्यक्ति के जीवन का अभिन्न अंग है, क्योंकि इसमें अंतःकरण की स्वतंत्रता भी शामिल है।
अंतःकरण व्यक्ति के ज्ञान, अंतर्ज्ञान और तर्कशक्ति का मिश्रण है, जो उसे किसी मत-मजहब के सिद्धांतों को समझने और उसके अनुसार कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। कई बार हम आस्था में परिवर्तन को भी एक अधिकार मान लेते हैं। इसलिए जब भी राज्य उपासना पद्धति की स्वतंत्रता के अधिकार की सीमा निर्धारित करने या मत परिवर्तन रोकने का प्रविधान करता है तो कुछ लोग इसे अपने मौलिक अधिकार का उल्लंघन करार देते हैं। यह अक्सर विवाद और टकराव का रूप ले लेता है।
मध्य प्रदेश, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश और तमिलनाडु सहित करीब दस राज्यों में ऐसे कानून लागू हैं। उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश ने भी मत परिवर्तन निषेध कानून बनाए हैं। कई और राज्य भी इस दिशा में पहल कर रहे हैं। मतांतरण के विरुद्ध राजस्थान सरकार ने भी ऐसा एक विधेयक प्रस्तुत किया है। इन सभी कानूनों में एक बात समान है कि विवाह के लिए मतांतरण को संज्ञेय और दंडनीय अपराध घोषित किया गया है।
हालांकि आलोचकों का कहना है कि ऐसे कानून धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के विरुद्ध हैं। इसलिए इन अधिकारों के संवैधानिक पहलुओं को समझना जरूरी है। इसलिए और भी, क्योंकि छल-छद्म से मतांतरण के मामले सामने आते ही रहते हैं। उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में कथित छांगुर बाबा की ओर से कराए जाने वाले मतांतरण अभियान का षड्यंत्र आंखें खोलने वाला है।
संविधान में अनुच्छेद 25-28 के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है। एक ओर ये अधिकार समानता के सिद्धांत पर आधारित हैं, वहीं दूसरी ओर इनका सार धार्मिक सहिष्णुता है। यही भारत में पंथनिरपेक्षता का आधार भी है। इसीलिए संविधान (42वां संशोधन) अधिनियम, 1976 द्वारा उद्देशिका में ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द जोड़े जाने के बाद इसे परिभाषित करने की आवश्यकता नहीं रही, क्योंकि धार्मिक सहिष्णुता इसे स्पष्ट कर देती है।
एसआर बोम्मई बनाम भारत संघ, 1994 मामले में उच्चतम न्यायालय ने न केवल पंथनिरपेक्षता को संविधान के मूल ढांचे में शामिल किया, बल्कि यह भी कहा कि भारतीय संविधान लागू होने के समय से ही पंथनिरपेक्ष था। अनुच्छेद 25-28 के तहत मिले अधिकारों में अंतःकरण की स्वतंत्रता के साथ-साथ अपनी उपासना पद्धति को स्वतंत्र रूप से मानने, आचरण करने और उसके प्रचार-प्रसार करने का अधिकार भी शामिल है।
भारत में पंथनिरपेक्षता धार्मिक सहिष्णुता पर आधारित है। इसी कारण राज्य सामान्यतः धार्मिक गतिविधियों में हस्तक्षेप नहीं करता, पर सांप्रदायिकता भड़कने की आशंका की स्थिति में हस्तक्षेप कर सकता है। इसीलिए अनुच्छेद 25(2) में उल्लेख है कि राज्य पंथ से संबंधित राजनीतिक, वित्तीय या अन्य लौकिक गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए कानून बना सकता है।
इस आधार पर यह कहना उचित है कि भारत में पंथनिरपेक्षता संविधान में राज्य की नीति के रूप में शामिल है। यह न तो किसी मत के पक्ष में है, न उसके विरुद्ध और न ही यह किसी मत के प्रति तटस्थ है। यह मतविरोधी नहीं, बल्कि संप्रदायवाद विरोधी है। ये सभी प्रविधान दर्शाते हैं कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में मतांतरण का अधिकार शामिल नहीं है, लेकिन कुछ लोग और संस्थाएं इसे अधिकार की तरह इस्तेमाल करती हैं।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1948 में अपनाए गए मानवाधिकारों के सार्वभौमिक घोषणापत्र के अनुच्छेद 18 में स्पष्ट रूप से यह उल्लेख किया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी उपासना पद्धति को मानने, न मानने या उसे बदलने का अधिकार है। भारत संयुक्त राष्ट्र की नीतियों और अंतरराष्ट्रीय समझौतों का सम्मान करता है, लेकिन भारत की विविधतापूर्ण संस्कृति और सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए यह उपबंध है कि कोई व्यक्ति अंतःकरण की स्वतंत्रता के आधार पर अपनी उपासना पद्धति बदल तो सकता है, लेकिन वह इस अधिकार का दावा नहीं कर सकता। मत परिवर्तन के इस अधिकार को न देने के पीछे मूल विचार सांप्रदायिक प्रवृत्तियों को रोकना है। अफसोस कि ये प्रवृत्तियां थम नहीं रहीं और इसीलिए राज्य सरकारें कानून बनाने के लिए विवश हैं।
यदि मत परिवर्तन के अधिकार को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के एक अभिन्न अंग के रूप में दिया जाएगा तो इसका दुरुपयोग बढ़ेगा और जबरन मतांतरण की घटनाओं में भी वृद्धि होगी। संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार इस प्रकार दिया गया है कि भारत का पंथनिरपेक्ष चरित्र मजबूत रहे और इन अधिकारों के किसी भी दुरुपयोग की स्थिति में राज्य सांप्रदायिक ताकतों को नियंत्रित कर सके। हमें यह देखना ही होगा कि मतांतरण में संलग्न ताकतें देश के पंथनिरपेक्ष चरित्र में छेड़छाड़ न करने पाएं।
खतरे का संकेत
संपादकीय
हिमनदों का तेजी से पिघलना जलवायु परिवर्तन और इसके परिणामस्वरूप आने वाली प्राकृतिक आपदाओं का संकेत है। इससे विनाशकारी बाढ़, जल संकट, समुद्र के स्तर में वृद्धि और पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन जैसे संकट की स्थिति और गंभीर हो सकती है। यह भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। हिमनदों के पिघलने से पहाड़ों पर नई झीलें बन रही हैं और पहले से बनीं झीलों का दायरा भी बढ़ रहा है, जो कभी भी आसपास के इलाकों में भयंकर तबाही मचा सकती हैं। केंद्रीय जल आयोग की हालिया रपट में कहा गया है कि भारत के हिमालयी क्षेत्र में 432 हिमनद झीलों का आकार चिंताजनक रूप से बढ़ रहा है। इस वर्ष जून के दौरान इन झीलों के जल क्षेत्र में वृद्धि देखी गई है। सवाल यह है कि ये झीलें बढ़ते पानी का दबाव आखिर कब तक झेल पाएंगी ? ऐसे में इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि भविष्य में जल का यह अथाह भंडार बड़ी आपदाओं का कारण बन सकता है। इसलिए जरूरी है कि इन हिमनद झीलों का गहन अध्ययन किया जाए और इनकी नियमित रूप से निगरानी की जाए। केंद्रीय जल आयोग की रपट के मुताबिक, लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के हिमालयी क्षेत्र में हिमनद तेजी से पिघल रहे हैं और वहां बनी झीलों का आकार लगातार बढ़ रहा है। भारत में हिमनद झीलों का कुल क्षेत्रफल वर्ष 2011 में 1,917 हेक्टेयर था, जो वर्ष 2025 में बढ़ कर 2,508 हेक्टेयर हो गया। यानी इन झीलों के क्षेत्रफल में 30.83 फीसद की वृद्धि हुई है, जो आसपास की आबादी के लिए कभी भी प्रलयकारी साबित हो सकती है।
अरुणाचल प्रदेश में सबसे अधिक 197 विस्तारित हिमनद झीलें हैं। इसके बाद लद्दाख में 120, जम्मू-कश्मीर में 57, सिक्किम में 47, हिमाचल प्रदेश में छह और उत्तराखंड पांच हिमनद झीलों का क्षेत्रफल बढ़ा है। देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान और दून विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में भी पाया गया है कि उत्तराखंड में हिमनदों के पिघलने से बन रही झीलों में मिट्टी, मलबा और पत्थर भी जमा हो रहे हैं। प्रदेश में पिछले दस वर्षों में हिमनद झीलों की संख्या 19.2 फीसद तक बढ़ी है। इससे साफ है कि खतरा लगातार बढ़ रहा है।
वैज्ञानिक अध्ययनों से यह बात साफ हो चुकी है कि बढ़ता वैश्विक ताप और जलवायु परिवर्तन हिमनदों के पिघलने का मुख्य कारण है। इसका नतीजा न केवल विनाशकारी बाढ़ के रूप में देखने को मिल सकता है, बल्कि गंभीर जलसंकट जैसी स्थितियां भी पैदा हो सकती हैं। ऐसे में जरूरी है कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाकर और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देकर सतत विकास के माडल पर ध्यान केंद्रित किया जाए। सरकार, समाज, विज्ञान और जनमानस को मिल कर इस चुनौती से निपटने के उपायों पर काम करना होगा। जिन पर्वतीय इलाकों में हिमनद झीलों का विस्तार हो रहा है, वहां निचले इलाकों में रह रहे समुदायों के लिए वास्तविक समय पर आधारित निगरानी प्रणाली और उपग्रह – आधारित सतर्कता एवं पूर्व चेतावनी तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए। साथ ही पहाड़ों पर ऐसी गतिविधियों को भी सीमित करने की अत्यंत जरूरत है, जिनसे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, जो भविष्य में किसी बड़ी त्रासदी का कारण बन सकता है।
क्या फिर शीतयुद्ध
संपादकीय
दुनिया में क्या शीतयुद्ध-2 की शुरुआत हो गई है ? यह फिर दो ध्रुवों पर दिख रही है और दोनों के बीच परस्पर तनाव बढ़ता ही जा रहा है। यह ध्यान देने की बात है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उनकी चीन में मेजबानी को लेकर शी जिनपिंग की आलोचना की है। स्वभाव सेकुछ ज्यादा ही मुखर डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर आरोप लगाया है कि वह अमेरिका के खिलाफ साजिश कर रहा है। ट्रंप यहीं नहीं रुके, उन्होंने चीनी नेता को संबोधित करते हुए कटाक्ष किया है किवहरूस और उत्तर कोरिया के नेता के प्रति ‘हार्दिक सम्मान’ प्रकट करें। हालांकि, इसका जवाब रूस ने यह कहकर दिया है कि चीन में वैश्विक नेताओं का समागम अमेरिका के खिलाफ नहीं है। लगभग यही बात भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी तियानजिन में बोल चुके हैं। तियानजिन की बैठकको ट्रंप सकारात्मक ढंग से ही ले, तो अच्छा है। दुनिया अगर किसी दूसरे ध्रुव की ओर झुकती लग रही है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि पहले ध्रुव के खिलाफ साजिश रची जा रही है।
हां, खुद को पहला या अकेला ध्रुव मानने वाले अमेरिका को अवश्य यह विचार करना चाहिए कि वह दुनिया के ज्यादा से ज्यादा देशों को कैसे साथ लेकर चल सकता है। जब वह दुनिया के ज्यादातर देशों को साथ लेकर चल रहा था, तब ज्यादा मजबूत था । इसमें कोई दोराय नहीं है कि आज चीन की जो तरक्की हुई है, उसमें अमेरिकी तकनीक व उसके प्रयोगों का भारी योगदान है। आज जब चीन दुनिया का एक बड़ा विनिर्माता बन चुका है, तब यह बात अमेरिका को चुभ रही है। टैरिफ की पूरी लड़ाई एक तरह से चीन से ही शुरू हुई थी, परट्रंप ने इसे इतना विस्तार दे दिया है कि इसको समेटने में बहुत वक्त लगेगा। खुद अमेरिकी विशेषज्ञ बता रहे हैं कि अनेक अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने दशकों से जो मेहनत की थी, ट्रंप ने सब पर पानी फेर दिया है। ऐसे में, चीन के सामरिक साजो-सामान के प्रदर्शन पर सबकी निगाह गई है। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति की 80 वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में बीजिंग में आयोजित सैन्य परेड में ब्लादिमीर पुतिन की मौजूदगी चौंकाती नहीं है, पर वहां किम जोंग उन के होने से चिंता है। दुनिया बदल रही है और सारे बदलाव विश्व शांति के पक्ष में नहीं हैं। यह चीन का अब तक का सबसे बड़ा सामरिक प्रदर्शन है, जिसमें उसके करीबी वैश्विक नेताओं की मौजूदगी साफ संदेश है कि चीन बदलती दुनिया में नेतृत्व के लिए पूरी तरह तैयार है।
दुनिया के इस बदलते समीकरणको समझने में डोनाल्ड ट्रंप नाकाम हो रहे हैं और उन्होंने फिर कहा है, ‘भारत के साथ हमारे रिश्ते बहुत अच्छे हैं, पर कई वर्षों से यह एकतरफा रिश्ता है।’ अच्छे संबंधों को केवल टैरिफ तक घटाकर देखना अमेरिका के लिए नुकसानदायक है। ट्रंप प्रशासन टैरिफ को लेकर ही नहीं, बल्कि भारत के साथ समय संबंध को लेकर प्रतिकूल व्यवहार कर रहा है। अस्थिर पाकिस्तान के साथ उसकी बढ़ती नजदीकी अलग प्रकार से भारत को चिंतित कर रही है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब शीतयुद्ध शुरू हुआ था, तब भी भारत दोनों ध्रुवों से अलग अपनी गुटनिरपेक्षता लिए मजबूती से खड़ा था । चीन का विशाल सामरिक प्रदर्शन अगर द्वितीय शीतयुद्ध का आगाज है, तो भारत कहाँ खड़ा होगा? हमारी नीति कहती है कि हमें युद्ध के विरुद्ध खड़ा होना है, लेकिन इसके लिए सबसे जरूरी है, अमेरिका हमारे साथ कुछ वैसे ही खड़ा हो, जैसेरूस खड़ा है।
Date: 04-09-25
हमारी तकनीकी महारत की मिसाल सेमीकंडक्टर
प्रवीण कौशल, ( तकनीक और सामाजिक उद्यमी )

बीते मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पहली स्वदेशी सेमीकंडक्टर चिप ‘विक्रम-32’ सौंपी गई। यह केवल तकनीकी उपलब्धि नहीं है, बल्कि भारत की तकनीकी आकांक्षाओं का ऐतिहासिक मोड़ भी है। भारत अब डिजाइन और सॉफ्टवेयर में ही नहीं, बल्कि सेमीकंडक्टर निर्माण की वैश्विक दौड़ में भी नेतृत्व करने को तैयार है।
भारत ने वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग में दशकों से बड़ी भूमिका निभाई है, लेकिन मुख्य रूप से उसकी यह भूमिका डिजाइन और सॉफ्टवेयर तैयार करने तक सीमित रही। दुनिया की हर बड़ी चिप कंपनी, इंटेल से लेकर क्वालकॉम तक के डिजाइन केंद्र बेंगलुरु, हैदराबाद और नोएडा में मौजूद हैं। आईआईटी और अन्य शीर्ष संस्थानों से निकले हजारों भारतीय इंजीनियर इनमें अगली पीढ़ी की चिप डिजाइन कर रहे हैं। लेकिन अब तक इनका निर्माण ताइवान, दक्षिण कोरिया या अमेरिका में होता था। विक्रम-32 के निर्माण ने इस कहानी को अब बदल दिया है। भारत अब चिप उत्पादन की पूरी श्रृंखला में आत्मनिर्भर बनेगा। आप सोच रहे होंगे कि यह कामयाबी इतनी अहम क्यों है? सेमीकंडक्टर डिजिटल युग की रीढ़ हैं। स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक वाहन, रक्षा प्रणाली, सुपर कंप्यूटर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, यानी एआई सब इन्हीं चिप पर आधारित हैं। जिन देशों का चिपों पर नियंत्रण है, उनकी आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा व राष्ट्रीय सुरक्षा में बढ़त है। कोविड काल में चिप की कभी ने यह साफ कर दिया था कि इसके आयात पर निर्भरता कितनी खतरनाक हो सकती है।
हमारी बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए सेमीकंडक्टर निर्माण में आत्मनिर्भरता विकल्प नहीं, बल्कि अनिवार्यता है। भारत के पास तीन बड़ी ताकत हमेशा से रही है। एक प्रतिभा । दुनिया के सबसे बड़े ‘स्टेम स्नातक’ भारत से निकलते हैं। आईआईटी, आईआईएससी और एनआईटी जैसे संस्थान इस क्षेत्र के लिए उत्कृष्ट मानव संसाधन उपलब्ध करा रहे हैं। दूसरी शक्ति है बाजार। स्मार्टफोन से लेकर इलेक्ट्रिक वाहन तक भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स की मांग लगातार बढ़ रही है। और तीसरी ताकत है नीतिगत समर्थन | इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन (आईएसएम) के तहत केंद्र और राज्य सरकारें चिप निर्माण, पैकेजिंग और शोध एवं विकास में हजारों करोड़ रुपये का निवेश कर रही हैं।
भारत के सामने दो चुनौती थी- बड़े पैमाने पर निर्माण अवसंरचना और उद्योग अकादमिक सहयोग। पहली कभी गुजरात और तमिलनाडु जैसे राज्यों में नए फैब्स से पूरी की जा रही है, तो दूसरी कमी को आईडीएसपीएस इंडस्ट्री कंसोर्टियम जैसी पहल से दूर किया जा रहा है, जहां 50 से भी अधिक वैश्विक कंपनियां व शीर्ष शैक्षणिक संस्थान मिलकर काम कर रहे हैं। सेमीकंडक्टर उद्योग देशमें रोजगार सृजन के लिहाज
से भी काफी महत्वपूर्ण साबित होने जा रहा, क्योंकि हरेक फैब्रिकेशन प्लांट (फैब्स) हजारों प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार पैदा करते हैं। पैकेजिंग और जांच कंपनियों से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (एमएसएमई) क्षेत्र और आपूर्ति श्रृंखला को मजबूती मिलती है। फिर चिप डिजाइन स्टार्टअप नए बौद्धिक संपदा बनाते हैं। सबसे बड़ी बात, अपने सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम से भारत रणनीतिक स्वायत्तता हासिल कर सकेगा।
विक्रम-32 पहला कदम है। असली काम अभी बाकी है। इस दशक के अंत तक तीन-चार वाणिज्यिक फैन्स शुरू करने होंगे। हमें एक लाख से अधिक विशेषज्ञ तैयार करने होंगे। पैकेजिंग व सिस्टमइंटीग्रेशन पर विशेष ध्यान देना होगा, जहां भारत सबसे तेजी से आगे बढ़ सकता है। स्टार्टअप को और बढ़ावा देना होगा, ताकि देशी चिप बनाई जा सके।
इस सफलता ने साफ कर दिया है कि भारत अब वैश्विक प्रौद्योगिकी श्रृंखला में केवल उपभोक्ता नहीं रहेगा, वह निर्माता और नेता भी बनेगा। हमारे पास दृष्टि है, अपार प्रतिभाएं हैं और अब अवसर भी हैं। जरूरत है, तो केवल ठोस क्रियान्वयन की। यह तो निर्विवाद है कि भविष्य की दुनिया, यानी डिजिटल दुनिया सिलिकॉन पर खड़ी होगी और विक्रम-32 के साथ भारत ने पहली पंक्ति में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है।