04-05-2023 (Important News Clippings)

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04 May 2023
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Date:04-05-23

अपने बच्चों को मोबाइल के एडिक्शन से बचाना जरूरी

चेतन भगत, ( अंग्रेजी के उपन्यासकार )

हाल ही में भारत आए एपल के सीईओ टिम कुक ने माता-पिता को सलाह दी कि बच्चों का स्क्रीन टाइम कम करें। उन्होंने कहा, ‘अब बच्चे पैदाइशी डिजिटल हो गए हैं। इसलिए सीमाएं तय करना जरूरी है।’ भारतीय बच्चों पर किए गए विभिन्न सर्वेक्षणों के नतीजे चेताने वाले हैं। करीब 1000 बच्चों और उनके माता-पिता पर किए गए सर्वे में सामने आया कि 92% छात्र बाहर खेलने की बजाय मोबाइल गेम खेलना पसंद करते हैं। करीब 82% स्कूल से लौटकर फोन मांगते हैं। लगभग 78% बच्चों को खाना खाते हुए फोन देखने की आदत है। लोकल-सर्कल द्वारा किए एक अन्य सर्वे के मुताबिक 9-13 वर्ष के बच्चों के पास दिनभर स्मार्टफोन रहता है। अन्य रिपोर्ट बताती हैं कि भारतीय बच्चे सबसे जल्दी स्मार्टफोन पाने वाले बच्चों में शुमार हैं। हम अक्सर देखते हैं कि बच्चे खाना खाते हुए मोबाइल देख रहे हैं। उन्हें मोबाइल दिया जाता है ताकि बड़े लोग बातें कर सकें। हो सकता है आपके बच्चे भी फोन पर बहुत वक्त बिता रहे हों। हमें यह रोकना होगा। फोन का दिमाग पर वैसा ही असर हो रहा है, जैसा नशीले पदार्थों का होता है। स्मार्टफोन के ज्यादा इस्तेमाल की न्यूरोकेमिस्ट्री वही है, जो नार्कोटिक ड्रग की होती है। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की प्रो. ऐना लेंब्के के मुताबिक ‘हम अपनी पसंद का डिजिटल ड्रग ले रहे हैं और इसमें स्मार्टफोन का इस्तेमाल भी शामिल है। यह डिजिटल वायरों में उलझी पीढ़ी के लिए नशे की सुई की तरह है।’

वे सही हैं। एक तरह से हम सभी को लत लग चुकी है। पर बच्चों में फोन की लत भयानक हो सकती है। सभी को इसके आम नुकसान तो पता हैं- एकाग्रता की कमी, सुस्ती, आंखों पर जोर और समय की बर्बादी। हालांकि यह कम ही समझा गया है कि डिवाइस की भी लत लग सकती है और नतीजे घातक हो सकते हैं। जब भी हमें आनंद की अनुभूति होती है तो दिमाग में डोपामाइन नाम का न्यूरोकेमिकल रिलीज होता है। डोपामाइन की वजह से हम आनंद देने वाला वैसा ही अनुभव या पदार्थ और चाहते हैं। यह खाना, शराब, धूम्रपान, ड्रग्स, वीडियो गेम, पोर्नोग्राफी या फोन देखते रहना भी हो सकता है। अगर यह अनुभव हमसे छीना जाता है तो उसे पाने की और इच्छा होती है। विड्रॉल सिम्प्टम (लत छोड़ने पर शरीर पर होने वाले असर) भी दिखते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारे दिमाग में आनंद और दर्द एक ही जगह प्रोसेस होते हैं। दिमाग हमेशा आनंद और दर्द को एक-दूसरे से संतुलित करने की कोशिश करता है। जब हमें ड्रग या स्मार्टफोन नहीं मिलता तो हम असहज महसूस करने लगते हैं और फिर इनका ज्यादा इस्तेमाल करना चाहते हैं। इसलिए हममें से ज्यादातर लोग लगातार फोन खोजते, उठाते, देखते रहते हैं। हमारी आनंद की अनुभूति की व्यवस्था का एक और पहलू किसी चीज का आदी होना भी है। कुछ समय बाद हमें आसानी से मिल रहे आनंद की आदत हो जाती है। फिर हम सामान्य महसूस करने के लिए लत वाली चीजे इस्तेमाल करते हैं। धूम्रपान की लत वाला कोई भी व्यक्ति आपको यह बता देगा। इसी तरह एक बार आपको फोन की लत लग जाती है और फोन आपसे छीन लिया जाता है तो आप सिर्फ दर्द में रहते हैं। दर्द, एंग्ज़ायटी (चिंता), निरुत्साह, अवसाद और चिढ़चिढ़ेपन में बदल जाता है। फिर किसी चीज में आनंद नहीं आता। क्या आपके बच्चे में भी ऐसे लक्षण दिखते हैं? इसका कारण फोन हो सकता है।

एक बार आपके बच्चे को फोन की लत लग गई, तो उसके दिमाग में आनंद पैदा करने वाली व्यवस्था गड़बड़ा जाएगी। वह अब दर्द और गिरे हुए मनोबल का जीवन जिएगा। इससे भी बुरा यह है कि बहुत कम उम्र में ऐसा होने पर उसके दिमाग के बढ़ते हुए न्यूरोसर्किट पर गहरा असर पड़ सकता है। बच्चे के लिए सामान्य महसूस करना हमेशा के लिए मुश्किल हो जाएगा। वे दूसरे नशीले पदार्थों की तरफ भी जा सकते हैं। कृपया अपने बच्चों को फोन इस्तेमाल न करने दें या उन्हें यह आसानी से उपलब्ध न कराएं। बड़े बच्चों के मामले में भी फोन के इस्तेमाल पर नजर रखें। बतौर माता-पिता आपको पता होना चाहिए कि वे क्या और कितनी देर देख रहे हैं। इसके समाधान के लिए, जिन बच्चों को लत लग चुकी है, उन्हें डिजिटल डिटॉक्स की सलाह दी जाती है। आदर्श रूप में, बच्चे से कम से कम तीस दिन के लिए फोन ले लेना चाहिए (या बेहद जरूरी काम के लिए ही देना चाहिए)। उसे व्यायाम या खेल जैसी गतिविधियां रोज करना चाहिए। बच्चों को अच्छी परवरिश देना हम भारतीयों की जिम्मेदारी है।


Date:04-05-23

साइबर खतरा

संपादकीय

कोई भी व्यक्ति या समाज अपनी सामान्य दिनचर्या में मौजूदा दौर के किसी नई तकनीकी के भी इस्तेमाल को लेकर सहज हो जाता है तो इसके पीछे उसके जरिए कामकाज के सुरक्षित होने को लेकर आश्वस्ति का भाव होता है। बल्कि कई बार तकनीक के उपयोग को इसी दलील पर बढ़ावा दिया जाता है कि वह पुराने तौर-तरीकों के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित, पारदर्शी और सुविधाजनक है। लेकिन एक ताजा अध्ययन में बताया गया है कि आनलाइन गतिविधियों में धोखाधड़ी या ठगी के मामलों में जिस कदर बढ़ोतरी हो रही है और जल्दी इससे निपटने के प्रयास नहीं हुए तो आने वाले वक्त में डिजिटल दुनिया बहुत सारे लोगों के लिए एक परेशान करने वाला अनुभव साबित होगा। भारत में इंटरनेट आधारित कामकाज या अन्य गतिविधियों के अभी बहुत वक्त नहीं बीते हैं, लेकिन अभी ही जो तस्वीर उभर कर सामने आ रही है, वह चिंता पैदा करने के लिए काफी है। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन साल में करीब उनतालीस फीसद भारतीय परिवार आनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी के शिकार हुए हैं। वैसे तमाम लोग हैं, जिन्हें एटीएम या डेबिट कार्ड या फिर क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल करते हुए ठग लिया गया। इसके अलावा, इंटरनेट आधारित कारोबार और बैंक खाते को लिंक कराने से लेकर अन्य कई अन्य तरीके से लोगों के साथ धोखाधड़ी हुई।

यह स्थिति तब है जब भारत में अभी बहुत बड़ा क्षेत्र सारे काम के लिए आनलाइन पर पूरी तरह निर्भर नहीं हुआ है। आमतौर पर कोई भी तकनीक अपने आप में किसी काम को आसान बनाने का जरिया होती है। लेकिन किसी भी तकनीक का सुरक्षित होना इस बात पर निर्भर करता है कि उसका उपयोग करने वाला व्यक्ति उसके बारे में किस स्तर तक प्रशिक्षित है। पिछले कुछ सालों के दौरान समूची दुनिया में अमूमन हर क्षेत्र में डिजिटल गतिविधियों को प्रोत्साहित किया गया है। बल्कि कई जगहों पर तो इसके जरिए कोई काम कराना लगभग अनिवार्य बना दिया गया है। खुद सरकारी महकमों में सारे कामकाज को आनलाइन बनाने का प्रयास चल रहा है। लेकिन हकीकत यह है कि इंटरनेट के प्रसार के साथ-साथ ठगी, धोखाधड़ी जैसे अपराधों के पुराने तरीके भी बदल कर इसी मुताबिक नए हो रहे हैं। साइबर ठगों का एक नया संजाल खड़ा हो रहा है, जो स्मार्टफोन या कंप्यूटर जैसे इंटरनेट आधारित यंत्रों को हैक करके बड़े अपराधों को भी अंजाम दे रहा है।

आए दिन ऐसी खबरें आती हैं जिसमें ठगी के लिए लोगों के मोबाइल पर संदेश भेजा जाता है या उन्हें उलझाने वाली बात की जाती है। अगर वे इस जाल में फंस कर कोई पासवर्ड या पिन नंबर आदि साझा करने लगते हैं तो कुछ ही देर में उनके बैंक खाते से पैसे गायब हो जाते हैं। आधार कार्ड जैसे संवेदनशील दस्तावेज का ब्योरा जिस तरह बिना हिचक हर जगह दे दिया जाता है, उसके कई खतरे हैं। फिर ऐसी वेबसाइटें भी हैं, जो खरीदारी के नाम पर उपभोक्ता से पैसे तो ले लेती हैं, मगर उन्हें सामान नहीं मुहैया कराया जाता या फिर खराब उत्पाद भेज दिया जाता है। इसके अलावा, अन्य तरह की कुछ अवांछित गतिविधियां भी हैं, जिनमें उलझा कर पैसे ठग लिए जाते हैं या निजता में घुसपैठ कर भयादोहन किया जाता है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि शहर से लेकर गांवों तक डिजिटल तकनीकी के बढ़ते इस्तेमाल के साथ-साथ उसी अनुपात में अगर इसके सुरक्षित उपयोग के मामले में आम लोगों को जागरूक, सावधान और प्रशिक्षित नहीं किया गया तो यह आधुनिक तकनीक सुविधा या फायदे के बजाय ज्यादा नुकसान का ही वाहक बनेगा। खुद सरकार को डिजिटल गतिविधियों को पूरी तरह सुरक्षित बनाने के लिए एक ठोस और चौकस तंत्र बनाना चाहिए।


Date:04-05-23

ऑनलाइन ठगी

संपादकीय

पिछले तीन साल के दौरान करीब 39 प्रतिशत भारतीय परिवार किसी न किसी ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी का शिकार हुए और इनमें से 24 प्रतिशत को ही उनका पैसा वापस मिल पाया। यह सनसनीखेज खुलासा लोकल सर्किल्स की मंगलवार को जारी रिपोर्ट में किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, सर्वे में 23 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे क्रेडिट या डेबिट कार्ड से की गई धोखाधड़ी का शिकार बने । तेरह प्रतिशत का कहना था कि उन्हें खरीद, बिक्री और वर्गीकृत वेबसाइट उपयोगकर्ताओं द्वारा धोखा दिया गया। सर्वे में देश के 331 जिलों के 32 हजार लोगों की राय ली गई। इनमें 66 प्रतिशत पुरुष और 34 प्रतिशत महिलाएं थीं। ऑनलाइन भुगतान और डिटिजलीकरण के माध्यमों के उपयोग से जीवन में सहूलियत बढ़ी है, लेकिन इसी के साथ लोगों के साथ बैंक खाता धोखाधड़ी और अन्य तरीकों से चूना लगाने के मामले भी तेजी से बढ़े हैं। ऐसे अपराधों को काबू में रखने के लिए साइबर थाने खोले गए हैं, और पुलिस स्टाफ को भी साइबर अपराधों से पार पाने में सक्षम बनाने की गरज से प्रशिक्षित किया जा रहा है। लेकिन हालत ये है कि इस प्रकार के अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं। बेशक, इन्हें रोकने के लिए पुलिस और अन्य एजेंसियों खासी सतर्क रहती हैं । लेकिन मात्र इतने भर से ही बात नहीं बनेगी। लोगों को भी सतर्क और जागरूक होना पड़ेगा । जरूरी है कि लोग अपने एहतियात बरतें। लेन देन डिटिजल किए जाने पर एक प्रकार की सहूलियत का अहसास होता है, लेकिन इस दौरान जरा भी लापरवाह हुए नहीं कि साइबर अपराधी अपना काम कर जाते हैं। एटीएम पर धोखाधड़ी के मामले आये दिन सुनने में आते हैं। बीते 9 साल में भारत में डिटिजल कायाकल्प हुआ है, इस दौरान देश में स्मार्टफोन, यूपीआई या आधार- आधारित लेन देन का बड़े स्तर पर चलन बढ़ा है। लेकिन इसी के साथ साइबर सुरक्षा और साइबर अपराध की चुनौतियां भी देश के सामने तेजी से उभरी हैं। इस मामले में भारत के लिए यह निराशाजनक खबर है कि मैसाच्यूस्ट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॅजी ने ऑनलाइन और साइबर ठगी का सर्वाधिक निशाना बन सकने वाले 20 देशों की जो सूची बनाई है, भारत उसमें 17वें स्थान पर है। यकीनन इसी से जाहिर हो जाता है कि हमें साइबर सुरक्षा और साइबर अपराधों को रोकने के लिए खासे प्रयास करने होंगे। निवेश करना होगा।


Date:04-05-23

गरमी में ऐसी बारिश

संपादकीय

भारत के ज्यादातर इलाकों में अभी भी बारिश और हल्की ठंडी हवा से मौसम खुशगवार बना हुआ है। मई का महीना शुरू हो गया है, लेकिन अभी ढंग से गरमी की शुरुआत नहीं हुई है। कुछ राज्यों में तो पंखे बंद रखने की स्थिति बनी हुई है। अप्रैल में भी सामान्य से कम तापमान रहा था और मई में भी देश के ज्यादातर इलाकों में सामान्य से कम तापमान की स्थिति रहेगी। पश्चिमी विक्षोभ की वजह से यह स्थिति बन रही है और कुल मिलाकर मई में मौसम कहीं भी ज्यादा परेशान नहीं करेगा। भारतीय मौसम विभाग के विस्तारित पूर्वानुमान के अनुसार, इस महीने पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और गुजरात सहित उत्तर-पश्चिम और पश्चिम-मध्य भारत में दिन के समय तापमान सामान्य से कम रहेगा। इसके विपरीत, पूर्व-मध्य, पूर्व, पूर्वोत्तर और प्रायद्वीपीय भारत में अधिकतम तापमान सामान्य से कुछ अधिक रहेगा। अच्छी बात यह है कि रात के समय पारा का स्तर देश के अधिकांश हिस्सों में सामान्य और सामान्य से नीचे बना रहेगा। एक अनुमान यह भी है कि बिहार, झारखंड, ओडिशा, गंगीय पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश में निवासियों को इस माह में कुछ गरमी का सामना करना पड़ सकता है।

मार्च-अप्रैल में उत्तर भारत के ज्यादातर इलाकों में सामान्य से 60 प्रतिशत से भी ज्यादा बारिश हुई है। पूर्वोत्तर के राज्यों के अलावा कर्नाटक और केरल के ही कुछ इलाके ऐसे हैं, जहां सामान्य से बहुत कम बारिश हुई है। आम तौर पर मई में अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर होता है, पर इस बार ऐसा नहीं हो रहा है। गरमी से सबसे ज्यादा राहत का एहसास राजस्थान, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा सहित देश के कुछ हिस्से में होने वाला है। ऐसा इन इलाकों में सामान्य से अधिक बारिश की वजह से हो रहा है। मई में भी अनेक इलाकों में सामान्य से अधिक बारिश होगी। मौसम विभाग के अनुमान के मुताबिक, यह संभव है कि वर्ष के इस समय उत्तर पश्चिमी भारत को प्रभावित करने वाला पश्चिमी विक्षोभ पूर्वी भारत के मौसम को प्रभावित न करे। हालांकि, कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बार गरमियों के दिन सूखे रहेंगे और खूब तपेंगे। बारिश से जो राहत मिल रही है, वह सप्ताह भर के समय में बीत जाएगी।

कुल मिलाकर, मौसम में जो हो रहा है, वह अनिश्चित ही है। इस अनिश्चितता की वजह स्थानीय भी हो सकती है, लेकिन ऐसा पूरे विश्व में हो रहा है। मौसम से जुड़ी अनिश्चितताएं बढ़ती चली जा रही हैं, जिनका व्यापक असर अर्थव्यवस्था और जनजीवन पर हो रहा है। इस मौसम में सब्जियों की खेती में धूप का बहुत महत्व होता है, लेकिन इधर कुछ दिन ऐसे बीते हैं, जब सूरज को कम ही तपते देखा गया है। घर या दफ्तर में बैठने वालों के लिए तो यह मौसम खुशी की बात है, लेकिन वास्तव में यह खेती-किसानी के अनुरूप नहीं है। ऐसे मौसम का असर स्वास्थ्य पर भी पड़ सकता है। ऐसे मौसम में चिकित्सक खान-पान को ठीक रखने की सलाह देते हैं। अब जलवायु परिवर्तन इतना महत्वपूर्ण मसला बन गया है कि मौसम के प्रति हर व्यक्ति को सजग रहना होगा। मौसम विभाग ने 6 मई को बंगाल की खाड़ी से एक तूफान के उठने की आशंका जताई है। उम्मीद करनी चाहिए कि यह तूफान ज्यादा खतरे न पैदा करे। उधर, पहाड़ों में यात्रा का समय है, कुछ जगहों से भूस्खलन की भी शिकायत आई है, अत: समुद्र किनारे से मैदानों और पहाड़ों तक इस मौसम में सावधानी समय की मांग है।


Date:04-05-23

संयुक्त राष्ट्र में भारत का दमदार दावा

कंवल सिब्बल, ( पूर्व विदेश सचिव )

संयुक्त राष्ट्र में सुधार की भारत की बढ़ती मांग के गहरे निहितार्थ हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर इसके लिए काफी सक्रिय हैं। हम सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्य के रूप में शामिल होना चाहते हैं, जिसमें हमें जापान, जर्मनी और ब्राजील का साथ मिल रहा है। सुधार की यह मांग सिर्फ स्थायी सदस्यों के लिए नहीं, अस्थायी सदस्यों के लिए भी है। इसकी वजह यह है कि सुरक्षा परिषद में लातीन अमेरिका व अफ्रीका का कोई स्थायी प्रतिनिधित्व नहीं है। अभी इसमें कुल 15 सदस्य हैं, जिनमें से पांच (चीन, फ्रांस, रूस, अमेरिका व ब्रिटेन) स्थायी हैं और शेष अस्थायी। स्थायी देशों में भी चीन (एशियाई) को छोड़कर बाकी सभी राष्ट्र पश्चिम के हैं। सुधार इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि सुरक्षा परिषद में आने वाले मसले अमूमन विकासशील देशों से जुड़े होते हैं, जबकि उनकी कोई भागीदारी इसमें नहीं है।

सवाल है कि हमें क्यों इसका हिस्सा बनना चाहिए? दरअसल, भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के साथ-साथ अब सबसे बड़ी आबादी वाला देश भी है। हम शुरू से संयुक्त राष्ट्र में सक्रिय भूमिका निभाते रहे हैं। निरस्त्रीकरण का मसला हो या शांति अभियानों का, हमने बढ़-चढ़कर हर जिम्मेदारी निभाई है। ऐसे वक्त में, जब आर्थिक और राजनीतिक रसूख में हो रहे बदलाव के कारण अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था तेजी से बदल रही है और हम एक बड़ी भूमिका निभाने को उत्सुक हैं, तब संयुक्त राष्ट्र में सुधार ही हमारी राह आसान बना सकती है। यही नहीं, चीन हमारे हितों को लगातार चोट पहुंचा रहा है, इसलिए एशिया में ताकत के संतुलित बंटवारे के लिए भी यह सुधार अनिवार्य है।

हालांकि, इस राह में रोड़े भी कम नहीं हैं। सुरक्षा परिषद को लेकर जब यह तर्क दिया जाता है कि इसमें यूरोप का प्रतिनिधित्व अधिक है, तब जर्मनी को इसमें शामिल करने से उसका दबदबा और बढ़ जाएगा। इसी तरह, जापान को लेकर भले ही हमारा रुख सकारात्मक है और एशियाई देश होने के नाते सुरक्षा परिषद में उसके शामिल होने को लेकर हम हिमायती हैं, लेकिन वह जी-7 का भी सदस्य है, जो उन्नत अर्थव्यवस्थाओं का समूह है। चूंकि जापान पश्चिम के साथ है, इसलिए सुरक्षा परिषद में उसके शामिल होने का अर्थ होगा, परिषद् पर पश्चिमी प्रभाव बढ़ना। एक तथ्य यह भी है कि रूस शायद ही जर्मनी को लेकर राजी हो, जबकि जापान और भारत को लेकर चीन का रुख सकारात्मक नहीं रहेगा। फिर, ‘कॉफी क्लब’ में भी गहरे मतभेद हैं, जिसमें जर्मनी के नाम पर इटली, तो भारत के नाम पर पाकिस्तान का इनकार बना रह सकता है। ब्राजील को लेकर भी इस टोली के एक सदस्य अर्जेंटीना की आपत्ति है।

हमें निस्संदेह कई देशों का समर्थन हासिल है, फ्रांस, ब्रिटेन, रूस और अमेरिका जैसे स्थायी सदस्यों ने हमारा साथ देने का खुलेआम एलान किया है। मगर यह उनको भी मालूम है कि हाल-फिलहाल ऐसा होना संभव नहीं है। हां, हमारा समर्थन करके वे कूटनीतिक लाभ जरूर कमा रहे हैं। इसमें अमेरिका की स्थिति कहीं ज्यादा उलझी हुई प्रतीत होती है। वह संयुक्त राष्ट्र के सीमित विस्तार का हिमायती है। वह सुरक्षा परिषद में स्थायी और अस्थायी सहित कुल 21 सदस्य चाहता है। अगर ऐसा होता है, तो अफ्रीका के खाते में दो सीटें आ सकती हैं, लेकिन वे दो सदस्य कौन होंगे, इसको लेकर अफ्रीकी यूनियन में एकता नहीं है। नाइजीरिया और दक्षिण अफ्रीका अपना दावा जरूर पेश कर रहे हैं, लेकिन अरब दुनिया के देश भी खुद को अफ्रीका का हिस्सा बताते हैं। इसीलिए, जब तक अफ्रीका कोई फैसला नहीं लेगा, बात शायद ही आगे बढ़ेगी। फिर, सुरक्षा परिषद में दावा करने वाले देशों की संख्या 25 से अधिक है। जाहिर है, 21 देशों की बाध्यता आकांक्षी मुल्कों में तनाव बढ़ाने का ही काम करेगी।

विकासशील देशों में यह भावना तो है कि संयुक्त राष्ट्र में सुधार होना चाहिए, लेकिन इसके लिए महासभा में दो-तिहाई बहुमत की भी दरकार है, जिसको लेकर फिलहाल तस्वीर साफ नहीं है। हमारी कोशिश यह भी है कि महासभा में संयुक्त राष्ट्र के विस्तार के सिद्धांत गढ़ लिए जाएं। यह प्रयास अरसे से चल रहा है, लेकिन मुश्किल यह है कि महासभा के अध्यक्ष यदि इस मसले को आगे बढ़ाते हैं, तो चीन अड़ंगा डाल देता है। वह अध्यक्ष तक को पद से हटाने में सफल हो जाता है। परदे के पीछे की इस राजनीति की काट ब्राजील, जापान और जर्मनी के साथ मिलकर निकाली जा रही है। एक बार नियम तैयार कर लिए गए, तो हमारी उम्मीदवारी की मांग कहीं ज्यादा मुखर हो सकती है। फिर, दो-तिहाई सदस्यों का साथ मिलने को लेकर अभी भले ही अस्पष्टता है, पर पिछले कुछ वर्षों के साझा बयानों पर गौर करें, तो 80 से अधिक देशों ने हमारा समर्थन करने का भरोसा दिया है। यही नहीं, महासभा के चुनावों में हमें काफी अधिक वोट मिलते हैं। मगर तमाम उम्मीदों के बावजूद स्थायी सदस्यता का प्रयास जटिल मसला है। इसके कूटनीतिक जोखिम का गुणा-भाग हमें पहले करना होगा।

कुछ लोग जी-20 से भी उम्मीद लगाए बैठे हैं। मगर यह मंच हमारी ज्यादा मदद नहीं कर सकेगा। इसकी संभावित बैठक में बेशक सभी देश हमारा समर्थन करें, लेकिन असलियत में वह कितना प्रभावी होगा, कहना मुश्किल है। चीन को यहां भी अपवाद नहीं मान सकते। फिर, रूस-अमेरिका और चीन-अमेरिका के रिश्ते फिलहाल इतने बिगड़ गए हैं कि कोई आम सहमति बनाना काफी दुरूह काम होगा।

ऐसे में, हाल-फिलहाल भारत का सुरक्षा परिषद में शामिल होना मुश्किल है। हां, अगले चार-पांच साल बाद बात बन सकती है, जब हमारी गिनती विश्व की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक ताकत में होने लगेगी। हमें इसके लिए वैश्विक समर्थन की भी जरूरत होगी, जिसकी तरफ भारत सरकार ने कदम बढ़ा दिए हैं। नई दिल्ली न सिर्फ जरूरत के समय अन्य देशों की मदद कर रही है (कोरोना टीके की आपूर्ति इसका बड़ा उदाहरण है), बल्कि कैरिबियाई या प्रशांत महासागर के देशों के साथ अपने संबंध कहीं ज्यादा मजबूत बना रही है। जैसे-जैसे हमारी वैश्विक भूमिका बढ़ती जाएगी, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता का हमारा दावा कहीं ज्यादा मजबूत होता जाएगा।