समाज , सरकार और बाजार का सामंजस्य
Date:15-07-20 To Download Click Here.
प्रधानमंत्री ने गत दिनों जिस आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का संदेश दिया है , उसकी बुनियाद मानव आधारित वैश्वीकरण पर रखी जानी है। इसके लिए भारतीय व्यापारिक समुदाय को ऐसे कदम उठाने होंगे , जो देश को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन का गढ़ बना दे। यही वह समय है , जब हमें अपने मन-मस्तिष्क में निर्धनों का ध्यान रखते हुए आर्थिक प्रशासन में परिवर्तन लाना होगा।
इसके लिए हमें प्रगति और विकास को अलग-अलग करके देखना होगा। आत्मनिर्भर भारत की दिशा में कुछ ऐसे आवश्यक तत्व हैं , जिनको ध्यान में रखा जाना चाहिए –
- वस्तु और सेवा का केवल बाजार मूल्य न देखा जाए , बल्कि उसके समग्र प्रभाव को ध्यान में रखा जाए।
- बाजार व्यवस्था को सुचारु रखने और उत्पादकों को सही मूल्य मिल सके , इसके लिए अधिकतम उत्पादन और समान वितरण की नीति अपनाई जाए। इससे कृत्रिम कमी और मूल्य वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकेगा।
- प्रत्येक नागरिक के लिए भोजन , स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं सुनिश्चित की जाएं।
- प्रकृति का सदुपयोग हो। उसे खत्म न किया जाए। पारिस्थितिकी के प्रभाव , प्राकृतिक संतुलन और आने वाली पीढि़यों की आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखा जाए।
- पूंजी-गहन उद्योगों के स्थान पर श्रम-आधारित उद्योगों पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए , क्योंकि रोजगार विस्तार के साथ दक्षता का सामंजस्य भी जरूरी है।
- कारखाने के बजाय , घर को उत्पादन के केन्द्र में रखा जाए। इसके लिए उत्पादन प्रक्रियाओं के विकेन्द्रीकरण पर जोर देने के साथ , स्वदेशी तकनीक विकसित करने पर ध्यान केन्द्रित करना होगा।
- श्रमिकों के लाभ के लिए प्रौद्योगिकी को उत्पादन की पारंपरिक तकनीकों में यथाचित रूप से अनुकूल परिवर्तन लाने होंगे। इसमें ध्यान रखना होगा कि बेरोजगारी में वृध्दि न हो , उपलब्ध प्रबंधकीय और तकनीकी कौशल का अपव्यय न हो , और उत्पा्दन के मौजूदा साधनों का पूरा खात्मा न हो।
- प्रत्येक उद्योग में श्रम को पूंजी का रूप माना जाना चाहिए। प्रत्येक श्रमिक के श्रम का मूल्यांकन हिस्से्दारी के रूप में किया जाना चाहिए और श्रमिकों को शेयरधारकों की स्थिति में लाने का प्रयत्न किया जाना चाहिए।
- उद्योग और श्रम जैसे औद्योगिक तत्वों के साथ समाज भी एक तीसरा अनिवार्य पक्ष माना जाना चाहिए। इसके हितों को अन्य दो के साथ समान स्तर पर माना जाना चाहिए।
संक्षेप में कहें , तो प्रगति के लिए व्यक्ति , बाजार और सरकार के बीच निरंतर प्रभावी संपर्क महत्वपूर्ण होता है। प्रो. रघुराम राजन ने अपनी पुस्तक ‘द थर्ड पिलर’ में इस बात के लिए सुंदर तर्क प्रस्तुत किए हैं कि कैसे मानवीय संबंध , मूल्य और मानदंड एक ही ताने-बाने का हिस्सा हैं। उन्होंने बढ़ती निराशा और अशांति को खत्म करने के लिए स्थाानीय सामुदायिक संस्कृति की ओर वापसी का महत्व भी बताया है।
अत: आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते हुए समाज , सरकार और बाजार जैसे तीनों तत्वों को लेकर चलने में ही सफलता है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित सुरेश प्रभु और प्रदीप मेहता के लेख पर आधारित। 4 जुलाई , 2020