बाल विवाह पर नियंत्रण
Date:19-04-18
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भारत में बाल-विवाह की प्रथा सदियों से चली आ रही है। इसे कानून बनाकर प्रतिबंधित करने और सामाजिक जागरुकता कार्यक्रम चलाए जाने के बाद भी यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में गत वर्ष कई नाबालिग लड़कियों का विवाह हुआ है।
बाल विवाह के अनेक नकारात्मक परिणाम होते हैं। लड़कियों का स्वास्थ्य खराब होता है। वे अशिक्षित रह जाती हैं या बहुत कम शिक्षा ले पाती हैं। सशक्त होने के अभाव में वे घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं। यह सब देखते हुए केंद्र सरकार, राज्य सरकार और न्यायालय ने अनेक प्रयास किए हैं।
- उच्चतम न्यायालय ने किसी भी नाबालिग के साथ, चाहे वह विवाह की परिधि में आते हों, शारीरिक संबंध बनाने को अपराध की श्रेणी में रख दिया है। यह बात अलग है कि समाज के जागृत हुए बिना कानून भी बेअसर सिद्ध हो जाते हैं। ऐसी जागरुकता लाने के लिए अन्य प्रयास किए जा रहे हैं।
- अलग-अलग राज्यों से एकत्रित डाटा यह प्रमाणित करते हैं कि स्कूल छोड़ देने वाली लड़कियों का विवाह जल्दी कर दिया जाता है।
- इसे रोकने के लिए पूर्व अनुभवों के आधार पर अगर 14 वर्ष की उम्र से लड़कियों के लिए 8000 रुपये प्रतिवर्ष की राशि दी जाए, तो शायद उनकी शिक्षा जारी रह सकेगी, और वे बाल-विवाह से बच जाएंगी। इसके परिणामस्वरूप माध्यमिक स्तर पर लड़कियों के स्कूल पंजीकरण में 19 प्रतिशत की वृद्धि भी देखने में आई है।
- अधिकतर लड़कियां मासिक धर्म की शुरुआत के साथ ही स्कूल छोड़ देती हैं।
- सरकार स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था न होना भी उनके स्कूल छोड़ने का कारण बनता है।
इन समस्याओं से निपटने के लगातार प्रयास किये जा रहे हैं।
- माध्यमिक स्तर के स्कूलों तक जाने के लिए आवागमन सुरक्षित साधनों का अभाव होना एक बड़ा अवरोध है। सर्वेक्षण बताते हैं कि लड़कियों को साइकिल दिए जाने से इस समस्या का समाधान हो सकता है। आंध्रप्रदेश में बाइसिकिल स्कीम के अंतर्गत ऐसा प्रयास किया गया, जो सफल रहा है।
कुल मिलाकर यह कहा सकता है कि लड़कियों को सशक्त, शिक्षित और आत्म-निर्भर बनाकर बाल-विवाह को बंद किया जा सकता है।
‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ में प्रकाशित बिओर्न लॉम्बोर्ग और मनोरमा बक्शी के लेख पर आधारित