प्रतिस्पर्धा से प्रशासनिक सुधार

Afeias
10 Apr 2019
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Date:10-04-19

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देश के शिक्षा विभाग में कर्मचारियों की संख्या सबसे अधिक है। सीधे शिक्षण से जुड़े कर्मचारियों के अलावा इस पूरे विभाग के संचालन के लिए भी बहुत से अधिकारी और प्रशासक हैं। विभाग के आकार को देखते हुए एक बात का सुनिश्चित किया जाना जरूरी है कि इस क्षेत्र में किया जाने वाला कोई भी सुधार इसके हितधारकों के लिए समान रूप से लाभदायक हो। कदाचित ऐसा होना दुष्कर होता है। यही कारण है कि शिक्षा के रूपांतरण के लिए राज्यों द्वारा चलाए जाने वाले कार्यक्रम अक्सर विफल हो जाते हैं। लेकिन हरियाणा राज्य ने एक ऐसा मॉडल प्रस्तुत किया है, जिसने शिक्षा क्षेत्र के प्रशासनिक विभागों में भी ‘सक्षम’ बनने की होड़ लगा दी है।

  • इस ‘सक्षम’ योजना में उत्तीर्ण होने के लिए शिक्षा विभाग के ब्लॉक को 80 प्रतिशत या अधिक विद्यार्थियों को कक्षानुरूप सक्षम सिद्ध करना होता है।
  • अनेक सहायक कार्यक्रमों, शिक्षकों के प्रशिक्षण और आंतरिक मूल्यांकन के बाद एक ब्लॉक अगर 80 प्रतिशत के लक्ष्य पर खरा उतरने में अपने को सक्षम समझता है, तो वह ‘सक्षम घोषणा’ के लिए स्वयं को मनोनीत कर सकता है।
  • तत्पश्चात् ब्लॉक को किसी स्वतंत्र संस्था द्वारा मूल्यांकन के लिए सौंप दिया जाता है। अगर वह उत्तीर्ण हो जाता है, तो इसके अधिकारियों की सराहना स्वयं मुख्यमंत्री द्वारा की जाती है। प्रोत्साहन स्वरूप घोषणा कार्यक्रम के अलावा अनेक पुरस्कार भी दिए जाते हैं।
  • इस तरह कई ब्लॉक जुड़ते-जुड़ते पूरा जिला ‘सक्षम’ घोषित कर दिया जाता है।

इस मॉडल से 2019 में हरियाणा को मिली अपार सफलता के बाद अन्य राज्यों ने भी इस पद्धति को अपनाने का निर्णय लिया है। मॉडल से हुए लाभों को देखा जाना चाहिए।

  • प्रशासनिक ईकाइयों में प्रतिस्पर्धा का बीज डालने से कर्मचारियों में मिलकर काम करने की प्रवृत्ति बढ़ गई।
  • प्रतियोगिता से बच्चों के सीखने के स्तर के लक्ष्य को वास्तविक धरातल पर प्राप्त कर लेने में सफलता मिली।
  • इससे उन अधिकारियों की मानसिकता में परिवर्तन आया, जो शिक्षा-क्षेत्र में ऐसे लक्ष्यों को प्राप्त करना असंभव मानते रहे थे।
  • इस मॉडल से यह सिद्ध हुआ कि राज्यों के विकास के लिए राजनैतिक इच्छा-शक्ति के दम पर बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता है।

नीति आयोग के प्रयास

नीति आयोग ने राज्यों पर बेहतर प्रदर्शन के लिए दबाव डालते हुए ‘स्कूली शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक’ (एस ई क्यू आई) तैयार किया है।

  • सूचकांक में राज्यों को उनकी शैक्षणिक उपलब्धियों के लिए स्कोर दिए जाते हैं। उन्हें सार्वजनिक किया जाता है।
  • इस सूचकांक में राष्ट्रीय सर्वेक्षण जैसे तीन डाटा स्रोतों को ध्यान में रखा जाता है। साथ ही सीखने की क्षमता को विकसित करने को सबसे ज्यादा महत्व देते हुए 33 संकेतकों की कसौटी पर संस्थानों को कसा जाता है। इसमें दो स्तरीय रैंकिंग होती है।

नीति आयोग ने प्रशासनिक सुधार की दृष्टि से जिला स्तर के कार्यक्रम की भी शुरुआत की है। इसमें चिन्हित पाँच विभागों में शिक्षा विभाग भी है, जिसका महत्व 30 प्रतिशत रखा गया है।

  • जिलों की वास्तविक प्रगति का निरीक्षण करके उन्हें रैंक दिया जाता है।
  • प्रत्येक संकेतक का निरीक्षण उससे संबंद्ध मंत्रालय के जिम्मे होता है, जबकि नीति आयोग का काम डाटा संग्रह और उसका विस्तार करना है।
  • किसी भी जिले के सफल डाटा को अन्य जिलों व राज्यों तक फैलाने पर अधिक जोर दिया जाता है, जिससे स्थानीय प्रशासन को एक प्रकार का प्रोत्साहन मिलता है। प्रतिस्पर्धा भी विकसित होती है।

इस कार्यक्रम को अपार सहयोग मिल रहा है। प्रधानमंत्री स्वंय सभी भागीदारों को लक्ष्य की प्राप्ति के लिए समय-समय पर प्रेरित करते रहते हैं। इससे सिद्ध होता है कि सही समय पर उचित प्रोत्साहन देकर प्रशासनिक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। इससे सेवा प्रदान करने की गुणवत्ता में कई गुणा बढ़ोत्तरी होती है।

शिक्षा के क्षेत्र में भी राज्यों में चलाए जाने वाले प्रोत्साहन कार्यक्रमों से जो परिणाम सामने आ रहे हैं, वे वैश्विक पटल पर भारत की स्थिति को और ऊँचा उठाने में निश्चित रूप से सहयोगी बनेंगे।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित अमिताभ कांत के लेख पर आधारित। 20 मार्च, 2019