पर्यावरण से खिलवाड़ करती सरकारें

Afeias
08 Sep 2020
A+ A-

Date:08-09-20

To Download Click Here.

कई सौ वर्षों से अरावली पहाड़ियां गंगा के उत्तरी क्षेत्रों के मौसम को दिशा देती आईं हैं। इन पहाड़ियों के लगातार खनन ने और अवैध निर्माण से राजस्थान के रेगिस्तान का विस्तार हरियाणा और पश्चिम उत्तरप्रदेश तक होता जा रहा है। कई चेतावनियों के बावजूद सरकार इन पहाड़ियों की रक्षा में विफल रही हैं। हाल ही में एक बार फिर उच्चतम न्यायालय ने अरावली में बन रहे कई अवैध फार्म हाऊसों को हटाने का आदेश दिया है।

क्या है मामला

हरियाणा विधान सभा में पंजाब भूमि परिरक्षण संशोधन विधेयक, 2019 पारित कर अरावली संरक्षित क्षेत्र में अवैध निर्माण के एक बड़े हिस्से को वैध बनाने और इस क्षेत्र में पेड़ काटने और निर्माण करने की अनुमति दे दी थी। इस हेतु अधिनियम में संशोधन किए गए थे।

2018 में भी उच्चतम न्यायालय को राजस्थान में फैली इन पहाड़ियों के एक चौथाई हिस्से के खत्म होने की सूचना दी गई थी। इसके बाद से ही न्यायालय इस ओर सजग रहा है।

न्यायालय ने हरियाणा विधान सभा द्वारा पारित संशोधित नए कानून को लागू करने पर रोक लगा दी थी।

न्यायालय का वर्तमान कदम

राज्य सरकारें और स्थानीय प्रशासन को शायद ऐसा लगता है कि हिमालय से लेकर पश्चिमी घाट तक की पहाड़िया अगर खनन या सड़क या घर आदि के निर्माण कार्य में काम न आ सकीं, तो उनका होना व्यर्थ है। यही कारण है कि सरकारें, न्यायालय की अवमानना से भी पीछे नहीं हटती हैं।

हरियाणा सरकार ने प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र के नोटिफिकेशन की इस हद तक अवहेलना की है कि उच्च न्यायालय के साथ-साथ उच्चतम न्यायालय को भी हस्तक्षेप करना पड़ा है।

हरियाणा सरकार का यह कदम पर्यावरण प्रभाव ( ई आई ए ) के मसौदे के लिए चुनौतीपूर्ण है। पर्यावरण की रक्षा के क्षेत्र में भारत को एक ऐसा नियमन ढांचा चाहिए, जो पर्यावरण और विकास दोनों को साथ लेकर चल सके।

सुधार की आवश्यकता

  • हमारे देश में यदि एक बार पर्यावरण स्वीकृति मिल जाती है, तो वह आजीवन वैध रहती है। अमेरिका में जलविद्युत परियोजनों को 30 वर्ष तक की स्वीकृति दी जाती है। इसके बाद नए सिरे से स्वीकृति लेनी होती है। इस अवधि के बाद परियोजना को बंद कर देने से कार्यदायी संस्थाय को कोई हानि नहीं होती।

सरकार को चाहिए कि पर्यावरण स्वीकृति संबंधी कानून को सख्त  बनाए ताकि, केवल उन परियोजनाओं को स्वीकृति मिले, जो वास्तव में जीडीपी बढ़ाती हैं।

  • पर्यावरण के मामले में न्यायालयों को शीघ्र निर्णय देना चाहिए। इनसे जुड़े आर्थिक मामलों में विवादों को जल्दी सुलझाया जाना चाहिए, जिससे परियोजना का काम समय पर शुरू होकर तय सीमा में खत्म हो जाए।
  • फिलहाल पर्यावरण प्रभाव आकलन करने के लिए किसी संस्था को ठेका दिया जाता है। ऐसी संस्थाएं, कार्यदायी संस्था के हित में ही आकलन करती हैं, और तमाम दुष्प्रवभावों को छुपा जाती हैं।

सरकार को ई आई ए के लिए एक अलग आयोग गठित करना चाहिए, जो अपने आकलन को बिना कार्यदायी संस्था  के हस्तक्षेप के कराए।

पर्यावरण और आर्थिक विकास साथ-साथ चल सकते हैं। समस्या की जड़ में सरकार और न्यायालय की धीमी कार्यशैली है और इसी के चलते अरावली पहाड़ियों में अवैध निर्माण जैसी गतिविधियां जोर पकड़ती जाती हैं। पर्यावरण रक्षा कानून को सख्त बनाने के साथ ही हमें सरकारी और न्यायालयों की कार्यविधि में सुधार करना चाहिए।

समाचार पत्रों पर आधारित।