धन-विधेयक (Money Bill)
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मार्च, सन् 2016 में मोदी सरकार ने आधार अधिनियम के पुराने स्वरूप के स्थान पर धन विधेयक प्रस्तुत किया, जिसको आधार अधिनियम 2016 के नाम से जाना जाता है। राज्य सभा के सदस्य जयराम रमेश ने इस विधेयक की न्यायिकता पर प्रश्न उठाते हुए इसे न्यायिक चुनौती दी है। अब उच्चतम न्यायालय इससे संबंधित जनहित याचिका पर सुनवाई शुरू करने वाला है। यहाँ आकर, आधार विधेयक और उसे धन-विधेयक में परिवर्तित करने से संबंधित कुछ तथ्यों को जानना और समझना आवश्यक है।
- आधार योजना की शुरूआत भारत के हर एक नागरिक को एक विशिष्ट पहचान नंबर प्रदान करने के लिए हुई थी, एक ऐसा नंबर, जिसके माध्यम से नागरिकों को सुविधाओं और सब्सिडी का समान लाभ दिया जा सके। इस योजना का कोई वैधानिक आधार नहीं था। प्रजातांत्रिक प्रशासन की दृष्टि से भी यह गलत था। 2010 में इसे राज्य सभा में एक सामान्य अधिनियम की तरह प्रस्तुत किया गया था। इस अधिनियम के मसौदे में ऐसी गंभीर आशंकाएं नज़र आ रही थीं कि तत्कालीन संसदीय समिति ने भविष्य में नागरिक सुरक्षा और निजता को होने वाले खतरों को देखते हुए सरकार को आगाह किया और एक लंबी रिपोर्ट भी बनाई।
- इसके बाद इस योजना के विरूद्ध अनेक जनहित याचिकाएं दायर की गईं। इनको देखते हुए न्यायालय ने इसे अनिवार्य बनाने के विरूद्ध कई अंतरिम आदेश भी निकाले थे।
- अब, जबकि वर्तमान सरकार ने इसे धन-विधेयक के रूप में प्रस्तुत किया और लोकसभा से इसे कानून के रूप में पारित भी करवा लिया है, जयराम रमेश इसे संविधान के विरूद्ध बता रहे हैं।
- धन विधेयक की व्याख्या, संविधान के अनुच्छेद 110 के अनुसार की गई है। यह एक ऐसा कानूनी दस्तावेज है, जो अनुच्छेद 110 में उल्लिखित या अन्य किसी भी मामले की व्यवस्था रखता है।
- इस विधेयक में मुख्य रूप से सात विशेषताएं हैं।
- करों का निर्धारण एवं नियमन
- भारत सरकार के लिए ऋण संबंधी नियमन
- भारत की समेकित निधि में से धन-निकालना वगैरह-वगैरह।
- अनुच्छेद 110 में यह भी कहा गया है कि अगर किसी विधेयक के धन विधेयक होने के बारे में कोई विवाद है, तो लोकसभा के अध्यक्ष का निर्णय अंतिम माना जाए। लेकिन ऐसे बहुत से उदाहरण मिलते हैं, जब अध्यक्ष के निर्णय में उनकी दुष्प्रवत्ति की झलक मिली और इसे देखते हुए उसे माना नहीं गया है।
अगर आधार अधिनियम पर गौर करें, तो पता चलता है कि यह अनुच्छेद 110 में दिए गए सात बिंदुओं से काफी अलग है।
सामान्यतः किसी भी विधेयक के मसौदे को धन विधेयक तब समझा जाता है, जब वह किसी कार्यकारी को किसी विशेष कार्य के लिए निधि देने से संबंधित होता है। आधार विधेयक में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है।आधार अधिनियम से नागरिकों की निजता भंग होती है। इस मामले में सरकार का कहना है कि यह नागरिकों का मौलिक अधिकार नहीं है।
कुछ भी कहा जाए, लेकिन आधार अधिनियम को धन विधेयक के रूप में प्रस्तुत किए जाने से स्थितियाँ और भी बिगड़ेंगी। न्यायालय को चाहिए कि वह वर्तमान विवाद को एक वृहद पीठ को सौंपे, जिससे इस पर गहन विचार और विस्तृत चर्चा की जा सके।
‘द हिंदू‘ में प्रकाशित सुरित पार्थसारथी के लेख पर आधारित।