जनभागीदारी की आवश्यकता

Afeias
16 Nov 2016
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हमारे देश में प्रजातंत्र में नागरिक भागीदारी का काफी अभाव है। खास तौर पर शहरी क्षेत्रों के नागरिक इसमें उत्साह और जागरूकता के साथ भाग लेते दिखाई नहीं पड़ते। किसी एक संसदीय क्षेत्र का सांसद लगभग 3,00,000 मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करता है। परंतु जब क्षेत्र की समस्याओं के निराकरण के लिए नीतियां बनाने का समय आता है, तो उसमें न के बराबर मतदाताओं के मत लिए जाते हैं। मतदाता भी अपने पार्षद पर ही अधिक निर्भर रहते हैं। वे भी सांसद के कार्यक्षेत्र में न तो हस्तक्षेप करते हैं, न ही उंगली उठाते हैं। देश के कई क्षेत्रों में मतदाताओं ने जागरूकता दिखाई भी है। समय-समय पर उन्होंने संगठन बनाकर अपने क्षेत्र का विकास करने में मुस्तैदी दिखाई और इसका उन्हें लाभ भी मिला है।

बेंगलुरू में कुछ जागरूक नागरिकों ने वार्ड-स्तर पर जनाग्रह नामक संस्थाएं बनाकर बार्ड-निधि के सदुपयोग में बढ़चढ़कर भाग लिया।इसी प्रकार राजस्थान के कई गांवों के लोगों ने मिलकर मजदूर किसान संघर्ष समिति बनाई। इस समिति ने मुख्य चुनाव आयुक्त से गुहार करके गांवों के सभी वयस्क नागरिकों के नाम मतदाता सूची में जुड़वाए। उनके इस अभियान से सात लाख मतदाताओं को अपना अधिकार मिल सका।2003 में उड़ीसा में नवयुवकों के समूह ने राज्य बजट प्रस्तुत होने से पहले उसमें नागरिक भागीदारी का अभियान चलाया। इसके फलस्वरूप राज्य के छः आदिवासी जिलों में युवकों के ऐसे समूह बन गए, जो स्थानीय मांगों के अनुरूप बजट बनाने में भाग लेने लगे। इससे इन जिलों के विकास में निश्चित रूप से प्रभाव पड़ा।फिर भी स्थानीय स्तर पर अभी भी जन भागीदारी का बहुत अभाव है, जिसे बढ़ाकर ही क्षेत्रगत विकास की उम्मीद की जा सकती है।ऊँचे स्तर पर भी हमारी संसादीय प्रक्रिया किसी भी विधेयक पर जनभागीदारी को अनिवार्य नहीं समझती। कुछ एक अपवाद ऐसे रहे हैं, जैसे खनन एवं खनिज विधेयक, राष्ट्रीय खेल विधेयक, जिन्हें जनता के समक्ष कुछ समय पहले रखा गया था। अन्यथा लोकतंत्र में ऐसे उदाहरण बहुत कम दिखाई देते हैं।

  • विदेशों में जन भागीदारी
    • अमेरिका की सीनेट किसी भी विधेयक को लाने से पहले उस पर जनता की लिखित स्वीकृति अनिवार्य मानती है। जन समिति की स्वीकृति के पश्चात् इसे जनता के अवलोकन के लिए रखा जाता है। कानून बनने के बाद भी जनता की उपस्थिति में ही विधेयक की समीक्षा की जाती है।
    • आस्ट्रेलिया में भी किसी बिल को संसद में लाने से पूर्व उस पर अलग-अलग क्षेत्रों में कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं। तत्पश्चात् अंतिम रिपोर्ट की प्रतिलिपि प्रकाशित की जाती है।
  • जनभागीदारी बढ़ाने के लिए कदम
    • वार्ड स्तर पर मतदाता सूची, गरीबी रेखा से नीचे आने वालों की सूची, व्यय आदि के आंकड़े स्पष्ट एवं वास्ततिक रूप में उपलब्ध कराए जाएं।
    • केरल और पश्चिम बंगाल की तर्ज पर स्थानीय समिति, पड़ोसी क्षेत्रों के समूह एवं गैर सरकारी संगठनों को डिजीटल प्लेटफार्म के जरिए अपनी वार्ड समिति से तालमेल बनाने को प्रोत्साहन दिया जाए।
    • केरल में एक लाख की जनता पर एक वार्ड समिति का गठन किया गया था। इस समिति को नगर निगम की नीतियां बनाने में शामिल किया जाता था।
    • किसी भी विधेयक के प्रारूप को विशेषज्ञों एवं आम नागरिकों की सहमति लेने के लिए शैक्षणिक संस्थानों, मजदूर संघों, व्यापारिक संगठनों आदि के बीच भेजा जाना चाहिए।

नागरिकों की राजनैतिक भागीदारी से सरकारी कामकाज के स्तर में बहुत सुधार किया जा सकता है। इससे मतदाता सूची की जांच सही ढंग से होगी, बीपीएल श्रेणी की सही पहचान एवं आपदाओं के समय सही मदद मिल सकेगी।नागरिकों में जागरूकता लाकर एवं उन्हें इन सहयोगी संगठनों के लाभ बताकर उनकी शक्ति को बहुत बढ़ाया जा सकता है।

इकॉनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित वरुण गांधी के लेख पर आधारित।

 

 

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