केन्द्र-राज्य विवादों को सुलझाया जाना चाहिए

Afeias
05 May 2020
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Date:05-05-20

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हमारा देश गणराज्य है-यानी राज्यों का समूह। राज्यों की बराबर की भागीदारी के बिना केन्द्र की नीतियां सफल नहीं कही जा सकतीं। कोविड-19 के संदर्भ में हुए एक माह से अधिक के लॉकडाउन काल में राज्यों को लेकर केन्द्र का रवैया वैसा नहीं रहा है, जैसा होना चाहिए था। कई मुद्दों पर केन्द्र-राज्य के बीच का तनाव बढ़ता ही चला जा रहा है। इनमें रोग का नियंत्रण व प्रबंधन; लॉकडाउन का प्रबंधन; गतिविधियों को सामान्य करने के लिए प्रतिबंध हटाना, स्वास्थ्य, सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए धनराशि का आवंटन आदि प्रमुख विषय रहे हैं।

  • स्वास्थ्य का मामला सामान्यतः राज्यों से जुड़ा हुआ होता है। इसमें केन्द्र सरकार का हस्तक्षेप करना असामान्य लगता है। वायरस की अति संक्रामक प्रकृति के कारण ही शायद केन्द्र ने ऐसा किया हो, और इसी कारण से सन् 1897 के प्राचीन महामारी रोग अधिनियम को लागू किया हो।

राज्यों को परेशानी इस बात को लेकर है कि लॉकडाउन का आधार 2005 के आपदा प्रबंधन अधिनियम को बनाया गया है। इससे केन्द्र को प्रशासनिक और आर्थिक अधिकार पूर्ण रूप से मिल जाते हैं। इसके लिए बनाए गए नियम-कानूनों से राज्यों को समस्या का सामना करना पड़ रहा है।

इस पूरे प्रकरण में राज्यों को अपने निर्णय लेने की कोई छूट नहीं दी गई है। केरल ने अपनी तरह से लॉकडाउन में कुछ छूट देने की कोशिश की थी, ताकि आर्थिक पुनरुत्थान की दिशा में कुछ किया जा सके। केन्द्र ने तत्काल ही इस पर रोक लगा दी। इस माध्यम से केन्द्र का यही संदेश था कि राज्यों को केन्द्र के ही नियम-कानून मानने पड़ेंगे।

  • दूसरा विवाद आर्थिक संसाधनों को लेकर चल रहा है। राज्यों के राजस्व के बड़े स्रोत शराब और पेट्रोलियम हैं। गाड़ियों के न चलने से पेट्रोल की खपत खासी कम हो गई है। शराब की दुकानें बंद चल रही हैं। तमिलनाडु प्रतिवर्ष शराब की बिक्री से 30,000 करोड़ का राजस्व अर्जित करता है। अनेक राज्यों की लगभग यही स्थिति है। राज्यों का कहना है कि क्या केन्द्र सरकार इस नुकसान की भरपाई करेगी?

दूसरे ओर, केन्द्र ने सभी राज्यों को निर्देश दिए हैं कि वे प्रवासी मजदूरों के लिए आवास और भोजन की व्यवस्था करें। कई राज्यों को यह भार स्वरूप लग रहा है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने तो ऐसा कर पाने में अपनी असमर्थता स्पष्ट कर दी है।

अभी तक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को ठीक करने के लिए केन्द्र ने राज्यों को मात्र 15,000 करोड़ की निधि आवंटित की है। एक उन्नत किस्म के अस्पताल के निर्माण के लिए भी यह राशि पर्याप्त नहीं है।

केन्द्र को चाहिए कि वह इस महामारी और लॉकडाउन के दौर में स्वास्थ्य और आर्थिक मोर्चे पर राज्यों के साथ राजनैतिक सद्भाव का वातावरण बनाकर चले। अंतरराज्यीय सप्लाई चेन को दुरुस्त रखे, जिससे आर्थिक गतिविधियों की गति बनी रहे। ताकि आने वाली चुनौतियों को विवेकपूर्ण तरीके से बांटा गया होता, तो राज्यों पर भार नहीं पड़ता, और उनके तनाव कम हो जाते।

केन्द्र-राज्य संबंधों को सौम्य और सामंजस्यपूर्ण बनाने के लिए राजनीति में बड़े परिवर्तन किए जा सकते है। तभी संघवाद की रक्षा हो सकती है।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित आरती आर जेरथ के लेख पर आधारित। 27 अप्रैल, 2020