जियो-फेसबुक समझौते का प्रभाव

Afeias
04 May 2020
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Date:04-05-20

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हाल में ही फेसबुक ने रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के जियो प्लेटफार्म में 9.9 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने की घोषणा की है। मंदी और सुस्ती के इस दौर में यह देश में इस वर्ष का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश है। भारत में मीशो और लिटिल आई के बाद फेसबुक का यह तीसरा निवेश है। रिलायंस ने 2021 तक अपने को कर्जमुक्त करने का लक्ष्य रखा है। इस दिशा में यह उसका पहला कदम कहा जा सकता है। यह समझौता कई दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है।

महत्व

  • भारत फेसबुक के स्वामित्व वाली वाट्सएप के 40 करोड़, इंस्टाग्राम के 8 करोड़ और फेसबुक के 30 करोड़ उपभोक्ता हैं। कुल-मिलाकर ये अन्य किसी भी देश की तुलना में ज्यादा हैं। जियो के अपने 38 करोड़ ग्राहक हैं।

इस समझौते के जरिए रिलायंस का लक्ष्य देश के तीन करोड़ छोटे किराना व्यापारियों को वाट्सएप के माध्यम से डिजीटल कारोबार से जोड़ना है। जियोमार्ट के जरिए व्यापारी थोक बाजार से माल लेंगे, और वाट्सएप पर या अन्य प्रकार से आर्डर के अनुसार डिलीवरी करेंगे।

  • ई-कामर्स कंपनियों की पहुंच अभी केवल प्रमुख शहरों तक है। ये देश की 80 प्रतिशत आबादी तक नहीं पहुंच पाए हैं। फेसबुक-जियो साझेदारी से इसका छोटे शहरों, कस्बों से लेकर गांवों तक विस्तार हो सकेगा। अब किराना दुकानदारों के जरिए ग्राहक हर प्रकार का सामान छोटी-छोटी जगहों पर भी मंगवा सकेंगे।

दूसरा पक्ष

  • भारतीय सरकार नेट न्यूट्रलिटी के लिए प्रतिबद्ध है। इसके चलते कुछ ऐसे संस्थागत तौर-तरीके हैं, जिनके अनुसार टेलीकॉम और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर को सिद्धांतों का पालन करना पड़ता है। सरकार को यह जांचना होगा कि एक्सेस प्रदाता कुछ सूचना प्लेटफार्म के लिए पहुंच को बढ़ाएं, कम न करें। साथ ही इनके पास गई सामग्री पर भी सरकार को नजर रखनी होगी।
  • रिलायंस के समझौते के बाद अमेजॉन और वॉलमार्ट जैसी कंपनियों के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ने की संभावना बताई जा रही है। वास्तव में मैसेजिंग, पेमेंट और ई-कामर्स जैसी सेवाओं का एक ही मंच हो जाने पर इस क्षेत्र की अन्य कंपनियों के लिए अवसर सीमित हो जाएंगे।
  • इससे डेटा एकाधिकार की आशंका जताई जा रही है। वर्तमान में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का बोलबाला है, और यही आगे चलकर भू-राजनैतिक प्रभुत्व का आधार बनने वाला है। फेसबुक और जियो दोनों के पास ही करोड़ों यूजर्स की निजी सूचनाएं हैं। ए आई एल्गोरिद्म डेवलपर्स तक इनकी पहुंच न बन पाने की स्थिति में ये दोनों कंपनियां एकाधिकार का लाभ उठा सकती हैं।
  • भारतीय स्टार्टअप कंपनियों को अक्सर बिगटैक कंपनियों से प्रतिस्पर्धा करने में बहुत कठिनाई उठानी पड़ती है। इस समझौते का भारतीय तकनीकी की पारिस्थितिकी पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। सरकार को चाहिए कि वह बिगटैक नियमन पर कदम उठाए।

आने वाले समय में ही यह स्पष्ट हो सकेगा कि यह समझौता भारत में डिजीटल सर्वोदय की दृष्टि रखता है, या जियो द्वारा भारतीय टेलीकॉम बाजार पर किए गए आधिपत्य जैसा ही कोई परिणाम लेकर आता है। यह संयोजन हितों के कई संभावित संघर्षों को जन्म दे सकता है।

समाचार पत्रों पर आधारित।

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