कल्याणकारी योजनाओं के साथ हम कहाँ जा रहे हैं ?

Afeias
15 Feb 2019
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Date:15-02-19

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हाल ही में मोदी सरकार ने गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने की घोषणा की है। इसके अंतर्गत सामान्य वर्ग में आने वाले किसी भी व्यक्ति को, जिसकी आय 8 लाख रु. सालाना से कम है, सरकारी कॉलेजों और नौकरियों में आरक्षण का लाभ दिया जाएगा। सरकार की यह घोषणा अनेक प्रकार के विरोधाभासों को जन्म देती है। एक तरफ 5 लाख की सालाना आय से ऊपर वालों को आयकर का भुगतान करना अनिवार्य है, दूसरी तरफ 8 लाख तक की आय वाले को गरीब माना जा रहा है। इसके अलावा कॉलेजों में अतिरिक्त सीट और नौकरियों में अधिक रिक्तियां कैसे संभव हैं। हाल ही में रेल्वे की 90,000 रिक्तियों के लिए 2.5 करोड़ आवेदन आए हैं। आरक्षण की इस नई घोषणा की शर्तों को पूरा करने के लिए निधि कहां से आएगी? इन कल्याणकारी योजनाओं के चलते राजकोषीय घाटे का क्या होगा? सरकार की केवल यह घोषणा ही नहीं, अन्य योजनाएं भी ऐसी रही हैं, जो सरकारी खजाने के लिए अभिशाप बन रही हैं।

इन योजनाओं में मनरेगा का उदाहरण लिया जा सकता है। 2015 में प्रधानमंत्री ने स्वयं ही इसे ‘कांग्रेस की विफलता का स्मारक’ कहा था। परन्तु दो साल के सूखे के बाद मोदी सरकार ने न केवल इसे चलाए रखना ठीक समझा, बल्कि इसके लिए 6,084 करोड़ की अतिरिक्त धनराशि का प्रावधान करते हुए 2018-19 में इस पर होने वाले खर्च को रिकार्ड ऊँचाई पर पहुँचा दिया।

इस योजना के अंतर्गत 2014 से लेकर 2019 तक लाखों तालाब खोदे गए, अनेक पशुशालाएं बनाई गईं, और कई हजार आंगनबाड़ी केन्द्र बनाए गए।

पिछले तीन वर्षों में मनरेगा के माध्यम से 5 करोड़ लोगों को हर साल रोजगार उपलब्ध हुआ।

इतना ही नहीं तेलंगाना सरकार की रायथु बंधु योजना से प्रभावित होकर सरकार, छोटे और सीमांत किसानों को 6,000 रु. सालाना देने की घोषणा कर चुकी है।

सभी सरकार ने किसानों के बैंक खातों में 75,000 करोड़ रुपये सालाना देना शुरू कर दिया है। आने वाले वर्षों में इस धनराशि को बढ़ाने के संकेत दिए जा रहे हैं। पिछड़े किसानों को 500 रु. मासिक भत्ता भी देने की योजना है।

बैंक खातों में धनराशि का लाभ अक्सर भू-मालिकों को ही मिलता देखा गया है। आलोचकों के अनुसार इससे छोटी जोत और बटाई पर खेती करने वाले किसानों को कोई लाभ नहीं होगा। सच्चाई यह है कि आगामी चुनावों और विरोधी दल की जीत वाले राज्यों में ऋण माफी की घोषणा के बाद अब मोदी सरकार भी पीछे नहीं रहना चाहती।

गत माह 13 भारतीय अर्थशास्त्रियों ने आपसी परामर्श से यह निष्कर्ष निकाला है कि एक समावेशी और धारणीय प्रगति एजेंडे के अभाव में सरकार को ऋण माफी और आरक्षण जैसे साधनों का सहारा लेना पड़ रहा है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि मनरेगा और प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना गरीबों के लिए चलाई जा रही हैं। इस वर्ग से अलग खड़े लोगों को स्वयं के व अपने बच्चों के भविष्य की चिंता होने लगी है।

सच भी यही है कि भारत जैसे देश के लिए इतने व्यापक स्तर पर कल्याणकारी योजनाएं चलाकर क्या उसको समृद्ध बनाया जा सकता है?

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित चैतन्य कलबाग के लेख पर आधारित। 24 जनवरी, 2019