योग्यता बनाम आरक्षण
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आरक्षण मुद्दे पर हाल ही में आया उच्चतम न्यायालय का निर्णय बहुत महत्वपूर्ण है। यह निर्णय, ऑल इंडिया कोटे पर चली आ रही एक लंबी बहस, अस्पष्टता और अनिश्चितता की दृष्टि से बहुत मायने रखता है।
रिट पेटीशन का आधार –
- राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा के माध्यम से मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश पर अन्य पिछड़ा वर्ग एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के कोटा के मुद्दों का त्वरित समाधान किया जाना था।
- ऑल इंडिया कोटा में 15% स्नातक सीटें और 50% स्नातकोत्तर सीटें डोमेसाइल या अधिवास मुक्त अखिल भारतीय आधार पर भरी जाती हैं।
- हाल ही में सरकार ने ओबीसी आरक्षण के लिए भी इस श्रेणी के भीतर मौजूदा अनुसूचित जाति एवं जनजाति आरक्षण का विस्तार करने का निर्णय लिया था।
रिट याचिकाओं के द्वारा चुनौती –
- ओबीसी आरक्षण के लागू होने से पेशेवर योग्यता प्रभावित होगी और सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के साथ भेदभाव होगा।
- आर्थिक रूप से कमजोर या ईडब्ल्यूएस आरक्षण की अधिसूचना को चुनौती दी गई।
- एक अन्य रिट याचिका में ईडब्ल्यूएस कोटे के लिए 8 लाख की सालाना आय को अधिकतम सीमा बनाए जाने को चुनौती दी गई थी।
योग्यता-आरक्षण बाइनरी –
- उच्चतम न्यायालय ने सर्वप्रथम औपचारिक समानता के बजाय वास्तविक समानता के सिद्धांत पर बल दिया। यही, अवसर की समानता के संवैधानिक वायदे को रेखांकित करता है। वसंत कुमार (1985) और इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (1992) के मामले में स्पष्ट किया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 16(4) में आरक्षण का प्रावधान अपवाद नहीं है। बल्कि अनुच्छेद 16(1) में निहित समानता के सिद्धांत का विस्तार है। सभी नागरिकों के बीच अवसर और स्थिति की वास्तविक समानता के आकांक्षात्मक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आरक्षण महत्वपूर्ण है।
- इस निर्णय में सांस्कृतिक पूंजी की भूमिका को मान्यता दी गई। सांस्कृतिक पूंजी यह सुनिश्चित करती है कि एक बच्चे को परिवार के वातावरण से अनजाने में उच्च शिक्षा या अपनी पारिवारिक स्थिति के अनुरूप उच्च पद प्राप्त करने की महत्वकांक्षा जागे।
- न्यायालय का निर्णय प्रशासन की दक्षता और योग्यता के कमजोर पड़ने की रूढ़िवादिता चिंता को भी जताता है। यह मानता है कि कमजोर वर्गों के व्यक्तियों के कौशल के बारे में पूर्वाग्रही रूढियों को सुधारने की आवश्यकता है।
- अंत में, विवाद के मुख्य विषय पर आते हुए न्यायालय ने निर्णय में कहा है कि परीक्षा ‘केवल किसी व्यक्ति की वर्तमान क्षमता को दर्शा सकती है, लेकिन उसकी क्षमता या योग्यता को पूरी तरह से नहीं।’
नीतिगत रूप से यह निर्णय भाषाई, कक्षा, स्कूल बोर्ड और क्षेत्रीय पूर्वाग्रह से मुक्त परीक्षाओं को डिजाइन करने का रास्ता खोलता है। साथ ही, योग्यता के पीछे छिपे सामाजिक विशेषाधिकारों की मान्यता एवं जाति जनगणना की मांग को भी पुष्ट करती है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित योगेंद्र यादव और प्रणव धवन के लेख पर आधारित। 5 फरवरी 2022
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