विनिर्माण केंद्र बनने का एक अवसर

Afeias
21 Dec 2020
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Date:21-12-20

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कोविड-19 और अमेरिका-चीन के ट्रेड वॉर से उपजी अनियमितताओं और तनाव ने बहुत सी वैश्विक कंपनियों को आपूर्ति श्रृंखला का विकल्प ढूंढने को मजबूर कर दिया है। इन स्थितियों ने भारत को विनिर्माण के केंद्र की तरह खड़े होने का दूसरा अवसर प्रदान किया है। विनिर्मित उत्पादों में वैश्विक भाग का 16% निर्यात चीन करता आया है। 2015 से 2019 के बीच अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के आयात का पांचवा हिस्सा चीन से किया जाता रहा है। क्या भारत चीन पर अपनी निर्भरता कम करते हुए विश्व के अन्य देशों के लिए ‘प्लस वन’ डेस्टीनेशन बन सकता है? देखते हैं इससे संबंधित कुछ तथ्य –

  • प्रतिस्पर्धात्मक पारिस्थितिकी के विकास हेतु संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता –
    • पिछले तीन दशकों से भारत के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण का योगदान 15% ही है, जबकि चीन का 30% है।
    • भारत के सकल घरेलू उत्पाद में माल के निर्यात का प्रतिशत 12 है, जबकि चीन का 20% है।
    • विनिर्माण के क्षेत्र में विएतनाम तेजी से उभरकर सामने आ रहा है। भारत के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ती जा रही है।
    • इस बीच भारत ने पर्यावरण संबंधी मंजूरी और जी एस टी जैसे संरचनात्मक सुधारों के साथ ‘ईज ऑफ डुईंग बिजनेस’ में बारह पायदानों की छलांग लगाई है।
    • भारत को बुनियादी ढांचे और लॉजिस्टिक पर बहुत काम करने की आवश्यकता है। माल ढुलाई का काम ज्यादा से ज्यादा जलमार्ग जैसे सस्ते साधन से किया जाना चाहिए। परिवहन के अलग-अलग साधनों के बीच संपर्क को बेहतर किया जाना चाहिए।
  • प्रतिस्पर्धात्मक सुधारों का कार्यान्वयन जल्द हो –
    • चार श्रम कोडों का गठन सराहनीय है।
    • श्रम के घंटों को बढ़ाया जाना चाहिए। पाँच राज्यों ने इसे अपना लिया है।
    • श्रमिकों की बर्खास्तगी के अधिकार मिलने से प्रतिस्पर्धा को बढ़ाया जा सकता है।
    • भूमि सुधार समय की मांग है। विएतनाम की तर्ज पर भूमि को किराए पर देना, उप अनुबंध करना और गिरवी रखने जैसे प्रावधान अपनाएं जाने चाहिए।
  • अनुबंध-प्रवर्तन और विवाद समाधान की समय सीमा तय करना –
    • भारत में किसी अनुबंध को कार्यान्वित करने में 1440 दिवस लगते हैं, जबकि सिंगापुर को 150 दिन। इसका कारण न्यायालय में लंबित मामले हैं। व्यापार में सुगमता के लिए समय को कम किया जाना अत्यावश्यक है।
    • सरकार ने अनुबंध और विवाद समाधान को तय सीमा में संपन्न करने के लिए दिवाला और दिवालिया कोड और सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2019 तैयार किया है।
    • विवादों के शीघ्र निपटान और सस्ती प्रक्रिया के लिए कोर्ट से बाहर सुलह को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • विशेष क्षेत्र के विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण को अपनाना –
    • सरकार को चाहिए कि वह नए युग के क्षेत्रों; जैसे-मोबाइल फोन, रक्षा उपकरण, लिथियम आयन बैटरी आदि के विनिर्माण हेतु दीर्घकालीन दृष्टिकोण और नीति लेकर चले।
    • भारत से रेडीमेड कपडों का बहुत निर्यात होता है। इसे प्रोत्साहन मिलता रहे।
    • वैश्विक फार्मा बाजार में भारत का स्थान मजबूत करने के लिए सरकार ने 3000 करोड़ रुपये से बड़े दवाई पार्क के निर्माण की नीति बनाई है। उत्पादन संबंधी प्रोत्साहन योजना भी चलाई जा रही है।

सरकार के प्रयास प्रशंसनीय हैं, जिन पर और काम किया जाना बाकी है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित हेतल गांधी और ईशा चौधरी के लेख पर आधारित। 28 नवम्बर, 2020