वैश्विक होता रूपया
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आरबीआई ने इस सप्ताह सीमा पार व्यापार सौदों को निपटाने के लिए रुपये की अनुमति दे दी है। यह काम प्रगति पर है। अंतरराष्ट्रीय लेनदेन जो रुपये में तय किये गए हैं, के लिए भारतीय बैंक संरक्षक के रूप में कार्य कर सकते हैं। विदेशी मुद्रा बाजार और वैश्विक विदेशी मुद्रा भंडार की मुद्रा संरचना में क्रमिक बदलाव में मौजूद दीर्घकालिक अवसरों की दृष्टि से भारत को उपरोक्त कदम तुरंत उठाने चाहिए।
वैश्विक जींस कीमतों में मई के स्तर के बाद से गिरावट आई है। भारत के लिए यह शुभ संकेत है। लेकिन डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने से इसका अधिक लाभ नहीं उठाया जा सका है। जनवरी से अब तक विदेशी पोर्टफोलियो आउटफ्लो 30 अरब डॉलर को पार कर गया था। बाजार के हस्तक्षेप के अलावा, आरबीआई ने रुपये के मूल्यह्यस से निपटने के लिए अन्य उपायों को अपनाया है। फोरेक्स इनफ्लो को उदार बनाया गया है। इससे रुपये में ट्रेड निपटाने में सहूलियत होगी।
आरबीआई के इस विंडो से दो उद्देश्य पूरे होते हैं। एक तो इससे रूसी तेल पर छूट जैसे अवसर मिल सकेंगे। दूसरे, भारतीय फर्में पश्चिमी प्रतिबंधों को दरकिनार कर सकेंगी। इन प्रतिबंधों से वैश्विक वित्तीय व्यवस्था पर पश्चिम का ही प्रभुत्व बना रहता था।
दीर्घकालिक रूप से, वैश्विक विदेशी मुद्रा भंडार की संरचना में बदलाव के कारण रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की अधिक संभावना है। अमेरिकी डॉलर की पकड़ धीरे-धीरे घट रही है। दो दशक पहले के 70% की तुलना में यह 59% पर आ गई है।
यह प्रवृत्ति जारी रहेगी, क्योंकि देश अपनी होल्डिंगस को डी-रिस्क करते रहेंगे। उदारहण के लिए, बैंक ऑफ इजरायल ने अपने अमेरिकी डॉलर होल्डिंग्स के एक हिस्से को आस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन और जापान की मुद्राओं में पुनः आवंटित करने की योजना बनाई है। भारत को आगे के अवसर को भुनाने की जरूरत है। भारत सरकार को चाहिए कि वह प्रासंगिक नीतिगत बदलावों के माध्यम से आरबीआई द्वारा शुरू किए गए प्रयासों को पूरा करने का प्रयत्न करे।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 5 जुलाई, 2022