वास्तविक प्रतिव्यक्ति आय के लक्ष्य की प्राप्ति कैसे हो
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पिछले 10 वर्षों में भारत की सांकेतिक प्रति व्यक्ति आय दोगुनी हो गई है। हालांकि, इसमें से दो तिहाई तो मुद्रास्फीति की देन है। इससे आय की असमानता ही बढ़ती है। इसके लिए नीतियों में परिवर्तन की जरूरत होती है। सरकार को चाहिए कि वह मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाए, वित्तीय समावेशन बढ़ाए और राजकोषीय संसाधनों के बड़े हिस्से का पुनर्वितरण करे। इसके कई कारण हैं –
- उच्च प्रति व्यक्ति आय के स्तर पर असमानता होने से सरकारी रोजगार बढ़ाने का बहुत प्रभाव पड़ता है।
- वित्तीय हस्तांतरण का बेहतर प्रभाव निचले स्तर पर होता है।
- सामान्यतः अर्थव्यवस्था के विकास चरणों से परे, मुद्रास्फीति का प्रभाव एक समान रहता है। पिछले 10 वर्षों में भारत सरकार ने जो कल्याणकारी नीतियां बढ़ाई हैं, वे कानूनी रूप से मान्य घेरे के अंदर ही रही हैं। यह मुद्रास्फीति को प्रभावहीन बनाती है। फिर भी, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के लिए पूर्वाग्रह, लक्ष्य से ऊपर रहा है। यह उस अवधि से ऊपर है, जब पूंजी अधिशेष अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति, मौद्रिक लक्ष्यों से काफी कम रही थी। यह वह एक कारण कहा जा सकता है, जिसके चलते भारत को व्यापार और निवेश की बढ़ोत्तरी के लिए नीति में सुधार करना चाहिए। वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ इस प्रकार जुड़ने से भारत को ब्याज दर के अंतर को कम करने में मदद मिल सकती है, जिससे मुद्रास्फीति पर नियंत्रण अधिक प्रभावी हो जाता है।
भारत की मिश्रित नीतियों ने आर्थिक विकास की दिशा में आगे बढ़ने का प्रमाण दिया है। चीन की तुलना में हमने महामारी के बाद तेजी से विकास किया है। अब भारत को चाहिए कि वह वास्तविक प्रति व्यक्ति आय का लक्ष्य प्राप्त करे, जिससे असमानता न बढ़े।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 7 मार्च, 2023