उच्च शिक्षा प्रणाली में स्वायत्तता
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भारत में उच्च शिक्षा का एक व्यापक तंत्र मौजूद है। करीब 4 करोड़ से अधिक नामांकन के साथ हमारे देश में उच्च शिक्षा हासिल करने वाले छात्रों की संख्या, दुनिया के तीन-चौथाई देशों की आबादी से भी अधिक है। भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली न केवल बड़ी ही है, बल्कि विश्व में सबसे अधिक विविधता भी है। परंतु इनमें गुणवत्ता एक प्रमुख चुनौती है। कई दशकों से इस तंत्र में गुणवत्ता की सुधार लाने के लिए प्रयास हुए हैं, जो सफल नहीं रहे हैं।
उच्च शिक्षा प्रणाली की संभावनाओं को सार्थक बनाने एवं गुणवत्ता में सुधार के लिए सुझाव निम्नलिखित हैं –
1. सरकार को नीति बनाते समय बड़ी और विविध उच्च शिक्षा प्रणाली की जरूरतों का ध्यान रखना चाहिए।
2. राज्य को अपनी भूमिका संस्थानों की गुणवत्ता के आकलन तक ही सीमित रखनी चाहिए।
3. राज्यों को विश्वविद्यालायों को प्रवेश, भर्ती और दी जाने वाली डिग्री से जुड़ी सभी पाबंदियों से मुक्त करके उन्हें प्रतिस्पर्धा करने का मौका देना चाहिए।
4. राज्य सरकार के अंतर्गत संचालित होने वाले विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए मूल्यांकन और प्रमाणन कार्यक्रम अनिवार्य तौर पर लागू करने की आवश्यकता है, जो सार्वजनिक हो।
5. सरकारी तथा निजी, दोनों क्षेत्रों में शोध की फंडिंग में वृद्धि करनी चाहिए।
6. सरकार सार्वजनिक संस्थानों में वित्तीय अनुपालन की जाँच के लिए एक लोकपाल की नियुक्ति कर सकती है।
7. धीरे-धीरे इन व्यावसायिक संस्थानों के परिचालन व्यय के लिए सरकारी वित्तीय राशि कम की जाए और केवल पूंजीगत व्यय में ही समर्थन दिया जाए। इससे भी बेहतर स्वायत्तता आएगी।
8. राष्ट्रीय महत्व के संस्थान जैसे – IIT, IISC, IIM, आदि को अपना भविष्य बनाने के लिए स्वायत्ता दी जाए। वे छात्रों, शिक्षकों और फंडिंग के लिए एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करें।
9. देश के विश्व-स्तरीय विश्वविद्यालयों में सभी विषयों के साथ मानविकी और सामाजिक विज्ञान की प्रासंगिकता को प्रमुखता से बढ़ाया जाना चाहिए।
10. शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थानों की स्थापना एवं संचालन शिक्षाविदों एवं वैज्ञानिकों द्वारा किया जाना चाहिए, न कि नेताओं एवं अफसरशाहों द्वारा।
यहाँ महत्वपूर्ण निर्णय लेने का एक ही विकल्प है कि कोई निर्णय ही न लिया जाए और विस्तार को सीमित कर गुणवत्ता सुधारने के प्रयास न किए जाए।
11. ज्यादा-से-ज्यादा स्वायत्ता दी जाए, नीतिगत हस्तक्षेप कम हो एवं इसकी विविधता पर जोर दिया जाए।
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