कर्नाटक के पश्चिमी घाट में आदिवासी और वन अधिकार का अध्ययन

Afeias
12 Apr 2024
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कर्नाटक के पश्चिमी घाट के एक हिस्से में केरती आरक्षित वन क्षेत्र के जनजातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को समझने के लिए शोध किया गया है। इसमें कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।

कुछ बिंदु –

  • यद्यपि यहाँ के सभी येखा जनजाति के परिवार वन अधिकार अधिनियम के तहत जंगल में अपनी ‘जमीन‘ का दावा करने में सक्षम थे, लेकिन वे बहुत उत्साहित नहीं दिखे। इसका कारण यह बताया गया कि पिछले कुछ समय से उनकी आजीविका के लिए वन पर निर्भरता कम होती जा रही है।
  • लघु वन उपज एकत्र करने के लिए जंगल में जाना अब उन्हें थकाऊ लगता है।
  • अस्थिर बाजार और बिचैलियों के शोषण के कारण अब उपज बेचने का कोई लाभ उन्हें नहीं मिलता है।
  • इसके बजाय उन्होंने मजदूरी करना पसंद किया है।
  • वन अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन के बाद मजदूरी करने के साथ ही पूरे समुदाय को शराब के नशे की लत लग चुकी है। यहाँ तक कि उनके किशोर भी इस लत का शिकार हैं। इसके कारण वहाँ बहुत सी मौतें हो चुकी हैं।
  • सच्चाई यह है कि इस क्षेत्र के अनुसूचित जनजातियों में संख्यात्मक रूप से प्रमुख कुछ समुदाय ही जीवन के हर क्षेत्र में लाभ प्राप्त कर रहे है।

सरकार को इस तरह के सामाजिक मुद्दों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। नशा मुक्ति कार्यक्रम सक्रियता से चलाया जाना चाहिए। ऐसे कदम उठाने चाहिए, जो इन समूहों के सर्वोत्तम हित में हों।

द हिंदू’ में प्रकाशित लेख पर आधारित। 12 मार्च, 2024

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