उच्च न्यायालय के आदेशों की गुणवत्ता खराब क्यों हो रही है

Afeias
12 May 2022
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न्यायालय न केवल न्याय करने का भार उठाते हैं, बल्कि यह भी सुनिश्चित करते हैं कि न्याय होता हुआ दिखाई दे। इसी संदर्भ में उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में उच्च न्यायालय को न्यायिक अनुशासन बनाए रखने में विफलता का दोषी पाया है।

राजस्थान उच्च न्यायालय की एक पीठ ने बिना कोई कारण बनाए बलात्कार के आरोपी हिस्ट्री शीटर को जमानत दे दी। इसी प्रकार, इलाहबाद उच्च न्यायालय ने हत्या के आरोपी को बरी कर दिया और पांच महीने बाद टैगिंग के रूप में तर्क संगत निर्णय दिया। बॉम्बे और दिल्ली उच्च न्यायालय की कार्यप्रणाली में भी इसी प्रकार की कुछ खामियां देखने को मिली हैं।

न्यायिक त्रुटियों से जुड़े कुछ बिंदु –

  • विभिन्न स्तरों पर न्याय वितरण की खराब गुणवत्ता का अभी तक कोई संतोषजनक समाधान नहीं मिला है।
  • कॉलेजियम प्रणाली में भाई-भतीजावाद का आरोप लगने के बाद, इसके विकल्प के रूप में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) प्रस्तावित है। इस पर काम आगे नहीं बढ़ पाया है।
  • अधीनस्थ न्यायापालिका स्तर पर अखिल भारतीय न्यायिक सेवा या राष्ट्रीय जिला न्यायाधीशों की भर्ती परीक्षा जैसे प्रस्तावों ने कोई प्रगति नहीं की है।
  • इस बीच कॉलेजियम अपने स्तर पर भारत सरकार के साथ संघर्ष कर रहा है। उसके पसंद किए हुए उम्मीदवारों पर सरकार जल्दी मुहर नहीं लगाती है।
  • उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति 62 वर्ष है, जिसे बढ़ाया जाना चाहिए।
  • उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए कमजोर निर्णयों में से कुछ की ही जांच उच्चतम न्यायालय कर पाता है। बाकी निर्णयों के लिए अपील नहीं की जाती है।

इन सभी खामियों के पीछे न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या और नियुक्तियों का अभाव है। कानून के शासन की शिथिलता एक ऐसी शिथिलता है, जो शासन के सभी पहलुओं को प्रभावित करती है।

कानूनी विशेषाज्ञों का कहना है कि वैकल्पिक विवाद समाधान या अल्टरनेटिव डिस्प्यूट रिजाल्यूशन या एडीआर, विवादों को दूर करने का एक शक्तिशाली हथियार है, जिसका उपयोग अदालतों का बोझ कम करने और त्वरित समाधान प्रदान करने के लिए किया जाना चाहिए। इस हेतु मध्यस्थता विधेयक के मसौदे में एक मध्यस्थता परिषद् का प्रस्ताव रखा गया है।

उम्मीद की जा सकती है कि उच्च न्यायालयों के त्रृटिपूर्ण आदेशों के समाधान के लिए कॉलेजियम और भारत सरकार अनुकूल कदम उठाएंगे।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 22 अप्रैल, 2022