तटीय क्षेत्रों में विकास के लिए नीति आयोग का प्रस्ताव
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हाल ही में नीति आयोग ने तटीय क्षेत्रों के व्यावसायिक विनियमन को वैश्विक मानदंड़ों के अनुरूप करने का प्रस्ताव रखा है।
कुछ तथ्य –
- इस प्रस्ताव में तटीय विनियमन क्षेत्र या कोस्टल रेग्यूलेशन जोन की सीमा को 500 मीटर से घटाकर 200 मीटर करने का विचार है।
- इस बदलाव का उद्देश्य पर्यटन और बुनियादी ढाँचा विकास जैसी आर्थिक गतिविधियों के लिए 2,790 वर्ग किमी, तटीय भूमि को मुक्त करना है।
- पैनल ने ताइवान, इंडोनेशिया और वियतनाम की तरह औद्योगिक क्षेत्रों के लिए अनिवार्य हरित आवरण आवश्यकताओं को 33% से घटाकर 10% करने की सिफारिश की है। लेकिन प्रदूषणकारी उद्योगों के लिए यह 25% तक है।
क्या प्रभाव हो सकता है –
- आईपीसीसी (इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज) के आकलन के अनुसार अत्यधिक वर्षा और चक्रवात की घटनाएं बढ़ रही हैं। इससे निचले शहरों के लिए खतरा पैदा हो रहा है। घनी आबादी और कम आय वाले समुदायों के लिए परेशानियां बढ़ रही हैं।
- तटीय कटाव से भारत में 113 तटीय शहरों के जलमग्न होने का खतरा मंडरा रहा है।
- 11,000 कि.मी. से अधिक लंबी तटरेखा और तटीय विविधता के साथ सभी के लिए एक जैसा दृष्टिकोण अपनाना गलत है।
- औद्योगिक गतिविधि के बढ़ने से कार्बन उत्सर्जन भी बढ़ेगा। इसे देखते हुए 33-40% का मौजूदा हरित क्षेत्र प्राकृतिक सिंक के रूप में अत्यधिक महत्व रखता है।
भारत की उत्सर्जन की अपनी अलग प्रोफाइल है। इसे देखते हुए वियतनाम या अन्य देशों की तर्ज पर विकास करने के बजाय, अपने पारिस्थितिक जोखिमों के अनुसार काम किया जाना चाहिए।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 24 अक्टूबर 2025