स्थानीय निकायों के चुनाव समय पर होने चाहिए
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ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों के स्वशासन से आम नागरिकों के जीवन में बदलाव आता है। इसके लिए जरूरी है कि स्थानीय निकायों के चुनाव समय पर होते रहें।
ग्रामीण निकाय –
ग्रामीण स्वशासन के लिए पंचायती राज संस्था को संविधान के 73वें संविधान संशोधन अधिनियम में जोड़ा गया था। अधिनियम के माध्यम से संविधान में भाग- IX जोड़ा गया, जिसमें पंचायतों के लिए अनुच्छेद 243 से 243 (ओ) तक प्रावधान हैं।
शहरी निकाय –
- 74वें संशोधन के द्वारा संविधान में भाग IX – ए को जोड़ा गया। इसमें अनुच्छेद 243-पी से 243 – जेड तक के प्रावधान हैं।
- इन संशोधनों में प्रत्येक पाँच वर्ष में स्थानीय निकायों के चुनाव कराने को अनिवार्य बताया गया है।
- हाल ही में तमिलनाडु सरकार ने पंचायतों के चुनाव कराने के बजाय कई जिलों में इन निकायों के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त किए हैं। ये नियुक्तियां अगले छः माह के लिए की गई हैं। अपने फैसले के समर्थन में सरकार ने ग्रामीण और शहरी निकायों में चल रहे पुनर्गठन की बात कही है। इसके परिणामस्वरूप वार्डों का परिसीमन होगा। सरकार परिसीमन को स्थानीय निकायों के चुनाव कराने के लिए एक शर्त मान रही है।
- सुरेश महाजन बनाम मध्यप्रदेश राज्य मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि वार्ड के परिसीमन या गठन की शर्त को वैध नहीं माना जा सकता है।
- न्यायालय ने परिसीमन को एक सतत प्रक्रिया मानते हुए यह भी कहा था कि इसे बहुत पहले ही शुरू कर देना चाहिए, जिससे चुनाव की अधिसूचना समय पर जारी की जा सके।
- मुंबई और बेंगलुरू जैसे कई बड़े शहर भी स्थानीय निकाय चुनाव समय पर न कराने की सूची में हैं।देश के लोकतांत्रिक ढांचे में स्थानीय निकायों के महत्व को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। कई कमियों के बावजूद स्थानीय स्वशासन लोगों के जीवन में गुणात्मक अंतर लाता है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 11 जनवरी, 2025
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