श्रमिक सुरक्षा पर राष्ट्रीय समीक्षा की मांग करती सिलक्यारा की घटना
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हाल ही में हुई उत्तरकाशी के सिल्क्यारा सुरंग की घटना पूरे भारत में श्रमिकों की सुरक्षा की समीक्षा करने का मौका देती है। हमारे श्रमिकों को सुरक्षा के अधिकार के नाम पर वास्तव में कुछ नहीं दिया जाता है। श्रम कानूनों के दायरे में मौजूद अधिकार केवल कागजों पर हैं। उन्हें खतरनाक परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। कुछ बिंदु –
- श्रम कानूनों में ‘श्रमिक’ शब्द को समान रूप से परिभाषित नहीं किया गया है।
- कार्यस्थल पर होने वाली दुर्घटनाओं, चोटों और मौतों को जल्दी से रिपोर्ट ही नहीं किया जाता है। श्रम कानूनों में सुरक्षा मानदंड़ों और मुआवजे का उल्लेख है, लेकिन अनुपालन, निगरानी और पर्यवेक्षण खराब है।
- 13 श्रम कानूनों को व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यस्थल की परिस्थितियों से बदलने का प्रयास किया जा रहा है। इससे बचाव कार्य एक बड़ी चुनौती बन गया है।
- श्रम कोड 2019 को 2020 में वापस ले लिया गया था। इसकी कमियों को दूर करके ‘वर्कर’ शब्द को पारिभाषित करने की जरूरत है।
- भारत ने दो अंतरराष्ट्रीय श्रमिक सुरक्षा सम्मेलनों में से किसी का भी अनुमोदन नहीं किया है।
सभी भारतीय शहरों में निर्माण गतिविधि में तेजी देखी जा रही है। अधिकांश श्रमिक अंतर-राज्यीय प्रवासी होते हैं। सशक्त श्रम कानूनों के अभाव में उनकी असुरक्षा बढ़ जाती है। अकेले महाराष्ट्र में 2021 से 2023 तक श्रमिकों की मृत्यु में तीन गुना वृद्धि देखी गई है। निर्माण-स्थलों पर सुरक्षा की निगरानी के लिए कोई विशिष्ट राज्य एजेंसी नहीं होती है। केंद्रीय श्रम मंत्रालय और राज्य श्रम विभागों को श्रमिकों की सुरक्षा से जुड़े बिंदुओं पर तेजी से काम करना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 30 नवंबर, 2023