
शहरों की बिगड़ती स्थिति
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हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने हमारे शहरों की खराब स्थिति पर टिप्पणी की है। नई दिल्ली के कुछ हिस्सों का जलमग्न होना तथा जोशीमठ की दरारें आदि हाल की कुछ ऐसी खबरें रही हैं, जिन्होंने न्यायालय का ध्यान इस ओर खींचा है।
कुछ तथ्य –
- लगभग 8,000 मान्यता प्राप्त कस्बों और शहरों में से आधे, ग्रामीण संस्थाओं की तरह शासित हो रहे हैं।
- एक तिहाई से भी कम के पास मास्टर प्लान है या बनाया जा रहा है।
- अधिकांश शहरों में अतिक्रमण, जल निकायों का खात्मा और अवैध निर्माण जैसा मनमाना विस्तार हो रहा है। हाल ही में आई हिंडन नदी की बाढ़ अवैध विस्तार का ही परिणाम थी।
- जहाँ मास्टर प्लान मौजूद हैं, वहाँ भी शहरी-नियोजन बहुत अव्यवस्थित है। नियमों की धज्ज्यिां उड़ाई जा रही हैं।
- जहाँ शहरी नियोजन पर निवेश बढ़ाया भी जा रहा है, वहाँ भी कस्बों और शहरों को दक्षता और स्थिरता संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- अवैध निर्माण और बुनियादी ढांचे की कमी ही एकमात्र चुनौती नहीं है। प्रशासनिक ढांचे के लचर होने के साथ, मौजूद विनियमों और अनुपालन तंत्र के कार्यान्वयन की बड़ी समस्या है।
समाधान –
- शहरों की स्थिति को सुधारने के लिए स्थानीय सरकारों को सशक्त और जिम्मेदार बनाने की आवश्यकता होगी। तभी मास्टर प्लान सफल होंगे।
- ऐसी योजनाओं की जरूरत है, जो विकास और पारिस्थितिकी को संतुलित कर सकें।
- शहरों का विस्तार इस प्रकार से हो कि सेवाओं और अवसरों की पहुंच हर कोने तक हो।
- इस हेतु डिजाइनिंग और रेट्रोफिटिंग के लिए ऐसे योजनाकारों को लाया जाना चाहिए, जो भविष्य में विस्तार की गुंजाइश रखते हुए नियोजन कर सकें।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 01 अगस्त, 2023