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शहरीकरण के लिए व्यापक सुधारों की आवश्यकता
Date:19-02-21 To Download Click Here.
- इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए वित्त मंत्री ने कोच्चि, चेन्नई और बेंगलुरू की मेट्रो परियोजनाओं को केंद्रीय निधि से विस्तृत करने का लक्ष्य रखा है।
- बजट में सार्वजनिक बस परिवहन में सुधार एवं विस्तार हेतु भी 18,000 करोड़ रु. के निवेश की योजना के साथ इसे पीपीपी मॉडल पर चलाने का निर्णय लिया गया है। इस मॉडल से निजी बस संचालकों को भी बड़ी संख्या में न केवल अपनी बसें चलाने, बल्कि पूंजी लगाने और अधिग्रहण का भी अवसर मिल सकेगा।
- भारत की जनसंख्या के अनुपात में बसों की संख्या काफी कम है। थाइलैण्ड में जहाँ यह प्रति हजार पर 8.6 और दक्षिण अफ्रीका में 6.5 हैं, वहीं भारत में 1.2 है। कर्नाटक राज्य की स्थिति कुछ बेहतर है।
- शहरों में निजी बस संचालकों को परमिट देने का मामला, राजनैतिक दृष्टि से संवेदनशील है। इससे निपटने के लिए सरकार ने मोटर वाहन अधिनियम में संशोधन करके इस पर केंद्र की सर्वोच्चता बनाए रखी है।
गौर करने की बात है कि केंद्र की सर्वोच्चता बनाए रखने मात्र से शहरीकरण में वृद्धि नहीं हो सकती। इसके लिए एकीकृत तरीके से काम करना होगा। सच्चाई यह है कि शहरीकरण की चुनौती मेट्रो और बस परिवहन जैसे अनुदानों के अलावा अन्य बहुत कुछ की मांग करती है। राज्य सरकारें, शहरों के विकास के लिए असल जिम्मेदार हैं। ये परिवहन को विनियमित करने वाले प्राधिकरणों के संचालन में विफल रही हैं।
ऐसी आलोचना की जा रही है कि मौजूदा प्रतिमान, अधिकांश जनता के लिए मेट्रो और बस सेवाओं को महंगा कर देंगे। इसकी तुलना में शायद दो पहिया वाहनों का उपयोग सस्ता होगा। शहरों में महंगे मकानों के चलते बहुत से लोग उपनगरीय क्षेत्रों में रहते हैं, जहाँ से सार्वजनिक परिवहन को वहन योग्य कीमतों पर उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती है। इसके अलावा 2011 की जनगणना से अब तक अनेक कस्बे नगर की श्रेणी में आ चुके हैं। उनकी जनसंख्या के अनुसार बुनियादी ढांचों और परिवहन जैसी अन्य सुविधाएं जुटाने के लिए भी पर्याप्त निधि की आवश्यकता होगी। अच्छा तो यही होगा कि केंद्र, राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करे ताकि परिवहन में सुधार के लक्ष्य के साथ प्रमुख क्षेत्रों को एकीकृत किया जा सके।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 4 फरवरी, 2021