शहरी निकायों की वित्तीय स्थिति में सुधार जरूरी है
To Download Click Here.
नगरपालिका शासन के लिए उनकी वित्तीय व्यवस्था की मजबूती जरूरी है। देश के आर्थिक और विकासात्मक वादे की पूर्ति का आधार भी यही है। शहरी निकायों के वित्तीय सशक्तिकरण के लिए संवैधानिक प्रावधान किए गए हैं। लेकिन, तीन दशक से बढ़ते राजकोषीय घाटे, कर आधार के विस्तार में बाधाएं और संसाधन जुटाने में संस्थागत तंत्र की कमजोरी से चुनौतियां बनी हुई हैं। इन चुनौतियों को समझने और उनका मुकाबला करने के लिए हाल ही में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हयूमन सेटलमेंट्स के एक डेटा विश्लेषण पर गौर किया जा सकता है। यह डेटा 2012-13 और 2016-17 के बीच 24 राज्यों के 80 शहरी निकायों पर आधारित है।
प्रमुख बिंदु –
- निकायों के स्वयं के राजस्व का हिस्सा- प्रमुख राजस्व स्त्रोतों में कर, शुल्क, जुर्माना तथा केंद्र और राज्य सरकारों से वित्त हस्तांतरण है, जिन्हें अंतर सरकारी हस्तांतरण (आईजीटीएस) के रूप में जाना जाता है। स्वयं के राजस्व के उच्च हिस्से वाले शहर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं। अध्ययन से यह भी पता चला है कि यह निकायों के कुल राजस्व का 47% था। इसमें भी कर-राजस्व ही सबसे बड़ा घटक था। अध्ययन की अवधि में इसमें 7% की वृद्धि के बावजूद उनके सकल घरेलू उत्पाद में स्वयं के राजस्व की हिस्सेदारी 0.5% ही रही है। अन्य विकासशील और विकसित देशों की तुलना में भारतीय शहरी निकाय अपनी क्षमता का पूरा उपयोग नहीं कर रहे हैं।
- अंतर सरकारी हस्तांतरण पर निर्भरता- Nकई निकाय इस हस्तांतरण पर अत्यधिक निर्भर हैं। निकायों के कुल राजस्व में इसका हिस्सा लगभग 40% रहता है। स्थिर और पूर्वानुमेय (स्टेबल और प्रेडिक्टेबल) हस्तांतरण विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। लेकिन भारत में इस हस्तांतरण का पैमाना सकल घेरलू उत्पाद का लगभग 0.5% रहा है। यह 2% से 5% तक के अंतरराष्ट्रीय औसत से बहुत कम है। राज्य सरकारों से होने वाले राजस्व में वृद्धि करके और जीएसटी की आय का एक हिस्सा निकायों को आवंटित करके इसमें सुधार किया जा सकता है।
- छोटे शहरों की अनुदान पर निर्भरता- देश के छोटे शहरों के निकाय अधिकतर अनुदान पर निर्भर हैं। विभिन्न आकार के शहरों के राजस्व स्त्रोंतों की संरचना में काफी अंतर है। 50 लाख से अधिक की आबादी वाले शहर अपने राजस्व पर निर्भर करते हैं, जबकि इससे कम आबादी वाले शहरों की सरकारी हस्तांतरण पर निर्भरता अधिक है।
- संचालन और रखरखाव- बुनियादी ढांचे के रखरखाव और सेवा वितरण की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए संचालन और रखरखाव पर खर्च महत्वपूर्ण है। निकायों ने इन क्षेत्रों में अपना व्यय बढ़ाया भी है, परंतु यह अपर्याप्त है। इन खर्चों को सामान्यतः यूजर शुल्क के माध्यम से कवर किया जाना चाहिए। लेकिन जलापूर्ति, अपशिष्ट प्रबंधन तथा परिवहन जैसी सेवाओं के लिए लागत वसूली ठीक से नहीं की जाती है।
भारत में नगर निकायों के वित्तीय साधन अपर्याप्त हैं। संपत्ति कर, अन्य भूमि आधारित संसाधनों और यूजर शुल्कों के माध्यम से राजस्व में वृद्धि की जा सकती है। इन निकायों की वित्तीय संरचना में केंद्र और राज्य सरकारों का स्थिर सहयोग महत्वपूर्ण है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित अमीर बजाज और मनीष दुबे के लेख पर आधारित। 13 जुलाई, 2022