
सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र में डेटा की पारदर्शिता
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कुछ महत्वपूर्ण डेटा में गैप –
- उम्र और लिंग के आधार पर विभाजित मौतों पर राष्ट्रीय स्तर के महत्वपूर्ण डेटा का सही न मिलना। यह विश्व स्तर पर शोधकर्ताओं के उपयोग करने योग्य प्रारूप में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होना चाहिए।
- कई राज्यों और मीडिया वेबसाइटों से वेब स्क्रैपिंग का टिकाऊ न होना।
अन्य देशों के उदाहरण –
- इजरायल, ब्रिटैन और डेनमार्क में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा डेटाबेस एकीकृत रहे हैं। इसके पीछे कई प्रयास हैं। इजरायल की सबसे बड़ी स्वास्थ्य सेवा प्रदाता कंपनी ने 2015 में ही स्मार्ट फोन के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल रिकॉर्ड और टेलीकंसल्टेशन से देखभाल का प्रबंधन करने वाली स्वास्थ्य सूचना प्रौद्योगिकी में भारी निवेश किया था। पब्लिक हैल्थ इंग्लैण्ड और डेनिश नेशनल पेंशेंट रजिस्ट्री जैसे कई मॉडल हैं, जिन्हें अपनाकर भारत भी स्वास्थ्य क्षेत्र में बेहतर परिणाम की उम्मीद कर सकता है।
व्यावहारिक योजना क्या हो ?
- सर्वप्रथम, डेटा संग्रहकर्ता को एक राष्ट्रव्यापी नीति को प्रभावित करने में उसकी भूमिका का महत्व बताया जाए। उन्हें प्रोत्साहित किया जाए।
- कोविड के दैनिक मामलों, परीक्षणों, मौतों, टीकाकरण आदि का डेटा उम्र और लिंग के आधार पर उपलब्ध हो।
- जीनोम अनुक्रमण का राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधि नमूना दिया जाए।
- अनुक्रमण (सिक्वेंसिंग), परीक्षण और टीकाकरण डेटाबेस के लिंकेज के माध्यम से संक्रमण आदि का अनुमान प्राप्त किया जाए।
एक उन्नत और चुस्त डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र, न केवल कोविड, बल्कि देश की समग्र स्वास्थ्य स्थिति को बेहतर बनाने में मदद करता है। हाल ही में सरकार ने डिजीटल हैल्थ आईडी की पहल के द्वारा इस दिशा में कदम बढ़ाया है। उम्मीद की जा सकती है कि जल्द ही स्वास्थ्य एकीकृत डेटा उपलब्ध हो सकेगा।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित भ्रामर मुखर्जी के लेख पर आधारित। 2 जनवरी, 2022