गैर सरकारी संगठनों के साथ सौतेला व्यवहार क्यों ?

Afeias
13 Jan 2022
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पिछले कुछ वर्षों में, भारत में काम कर रहे गैर सरकारी संगठनों या एनजीओ को विदेशों से मिलने वाली निधि पर कड़ाई से जांच-पड़ताल की जा रही है। इसी संदर्भ में हाल ही में, मदर टेरेसा की संस्था ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ के लाइसेंस के नवीनीकरण की अपील को ठुकरा दिया गया था। सरकार का यह निर्णय फॉरेन कांट्रीब्यूशन रेग्यूलेशन एक्ट, 2010 अर्थात एफ सी आर ए के अंतर्गत दिया गया है। ज्ञातव्य हो कि इस दायरे में देश के 2,000 से अधिक एनजीओ आते हैं। इन सभी के लाइसेंस नवीनीकरण से पहले छानबीन की जा रही है। सरकार ने यह कदम क्यों उठाया है, और इसके क्या परिणाम हो सकते हैं ? जानते हैं –

  • विशेषज्ञों के अनुसार, एनजीओ को अपने पक्ष में यह साबित करने की आवश्यकता है कि उनको प्राप्त विदेशी धन का सही उपयोग किया गया है। दूसरे, उनका काम किसी भी प्रकार से सार्वजनिक हित या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा नहीं बन रहा है।
  • जिन संगठनों को मोदी सरकार की नाराजगी का सामना करना पड़ा है, उनमें से अधिकतर ईसाई और इस्लामी धर्मार्थ संगठन हैं। ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है कि ये विशिष्ट संवेदनशील क्षेत्रों में काम करने के साथ-साथ धर्म परिवर्तन में भी संलग्न हैं।

होने वाली हानि –

  • प्रतिबंधित संगठनों में से अधिकांश ऐसे हैं, जो प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन, मानवाधिकार, बालश्रम और मानव दासता, स्वास्थ्य और धार्मिक क्षेत्रों में योगदान दे रहे हैं।
  • वर्ष 2020 में सरकार ने एफ सी आर ए में संशोधन किया था। यह ऐसे समय में किया गया, जब देश को धन और समाज सेवा के लिए इन एनजीओ की सबसे अधिक आवश्यकता थी।

अब समय आ गया है कि सरकार एनजीओ के खिलाफ अपने कार्यों का अधिक पारदर्शी लेखा-जोखा दे। चीन और रुस ने एनजीओ कानूनों का इस्तेमाल उन संगठनों को प्रतिबंधित करने के लिए किया है, जो सरकार से असहमत हैं या उसकी आलोचना करते हैं। केंद्र सरकार का यह कदम भी इसी मानसिकता को प्रतिबिंबित करता है। इसको जल्द ही संबोधित किया जाना चाहिए।

समाचार पत्रों पर आधारित। 29 दिसम्बर, 2021

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