परोपकारी सहयोगी संगठनों का महत्व

Afeias
03 Feb 2022
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परोपकारी सहयोगी संगठन, सामाजिक प्रभाव के लिए एक साझा दृष्टिकोण और रणनीति का अनुसरण करते हैं। 2019 में, भारत में ऐसे 15 सहयोगी संगठन थे, जिनकी संख्या अब बढ़कर 18 हो गई है। इनमें कोविड एक्शन कोलैब, इंडिया प्रोटेक्टर्स एलायंस, द फ्यूचर इंपैक्ट कोलैबरेटिव तथा द कोएलीशन फॉर विमेन एमपॉवरमेन्ट आदि शामिल हैं।

ऐसा ही एक संगठन ‘स्वस्थ’ है, जो वन स्टॉप टेली-मेडिसीन पोर्टल उपलब्ध कराता है। इन संगठनों द्वारा संपादित कुछ प्रमुख कार्य –

  • इनका सबसे ज्यादा ध्यान सामाजिक कार्यक्रमों को लागू करने पर होता है।
  • फंडिंग जुटाना भी इनका लक्ष्य होता है।
  • सहयोगी दलों की नई पीढ़ी हाशिए पर रहने वाले समुदायों पर तेजी से ध्यान दे रही है। इनमें भी प्रवासी श्रमिकों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। ‘जन साहस’ संगठन ने एडेलगिव फाउंडेशन व अन्य दलों की साझेदारी में माइग्रेंट रेसीलियेन्स कोलेबरेटिव लांच किया था। इसका लक्ष्य, 13 राज्यों के लगभग एक करोड़ श्रमिकों को राहत पहुंचाना है।

चुनौतियां –

  • संगठन के अनेक भागीदारों के बीच विश्वास कायम करना और उनकी प्राथमिकताओं तथा, सहयोग के लक्ष्यों में संतुलन बनाना एक बड़ी चुनौती है।

संगठन के सभी अंशधारकों की आपसी सहमति बनाने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। जैसे, प्रवासी मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी और महिला श्रमिकों का शोषण ऐसे विषय हैं, जिस पर सब एकमत हुए हैं।

  • समुदाय आधारित एनजीओ और जमीनी स्तर के संगठन पर्याप्त फंडिंग नहीं जुटा पाते हैं।

छोटे और मध्यम आकार के संगठनों को, जिला व राज्य स्तर पर सहयोग करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इससे उन्हें रणनीतिक और वित्तीय सहायता एवं अपने कार्यक्रमों को लागू करने के लिए एक मंच मिल सकता है। जैसे-जैसे इन संगठनों के संसाधन और विशेषज्ञता एकजुट होकर सामने आते हैं, कुछ स्टार्ट अप सहयोगी, भागीदार बनने को तैयार हो जाते हैं।

भारत के सामाजिक ढांचे में इन संगठनों की अहम् भूमिका है। इनकी समृद्धि से सामाजिक विकास में तेजी लाई जा सकती है। अतः इनका अस्तित्व वांछनीय है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित प्रिथा वेंकटचलम और अक्षय गंभीर के लेख पर आधारित। 11 जनवरी, 2022

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