संसद में कार्यपालिका का बढ़ता प्राबल्य खतरनाक है

Afeias
15 Mar 2023
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हमारी संसदीय प्रक्रिया में, सांसदों का यह कर्तव्य है कि वह सरकार के कामों पर निरीक्षण और संतुलन का हिसाब बनाए रखें। हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपने एक भाषण के दौरान कार्यपालिका की जवाबदेही की बात कही थी। इस पर सरकार के ही एक मंत्री ने उन पर सदन के विशेषाधिकार के हनन का आरोप लगाया है। यह बहुत ही अजीब है। महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार से जवाब मांगने के लिए ऐसा आरोप लगाया जाना बिल्कुल ठीक नहीं है।

संसद को मुक्त बहस और चर्चा का मंच बना रहना चाहिए। लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति से यह अपेक्षा की जाती है कि वे सदस्यों को अनुशासित करने के बजाय संसद की गरिमा और महिमा को बनाए रखने का प्रयास करें।

संसद में विपक्षी नेता पर लगाया गया आरोप, विधायिका पर कार्यपालिका के कुटिल वर्चस्व का उदाहरण प्रस्तुत करता है। संसद ही नहीं, बहुत से राज्यों में भी इस प्रकार की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। ऐसे कई मुख्यमंत्री हैं, जो अपनी शक्ति के दम पर अपनी पार्टी पर नियंत्रण तो रखते ही हैं, विपक्ष को भी नियंत्रित करते हैं, और विधानसभा को बहुत हल्के में लेते हैं। इन सबके मद्देनजर विधानसभा की बैठकें कम हो गई हैं, और बहसें छिछली हो गई हैं।

कुछ बड़े लोकप्रिय नेता तर्क देते हैं कि वे सीधे जनता के प्रति जवाबदेह हैं। जबकि सच्चाई यह है कि लोग निर्वाचित सरकार से अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से जवाबदेही चाहते हैं, और विधायिका को उस बातचीत में मध्यस्थता करने का अधिकार है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया की रक्षा के लिए सरकार को संसदीय अधिकारों का दुरूपयोग न करते हुए, अपनी जवाबदेही दिखानी चाहिए। तभी लोकतंत्र को सफल माना जा सकता है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 18 फरवरी, 2023

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