सामाजिक ताने-बाने को उथल पुथल करता 127वां संशोधन

Afeias
02 Sep 2021
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Date:02-09-21

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हाल ही में संसद के दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021 पारित किया है। इसमें राज्यों को पिछ़डे वर्गों की अपनी-अपनी सूची तैयार करने का अधिकार दिया गया है। 2014 के बाद से संसद के सबसे विभाजनकारी और विघटनकारी सत्र में विधेयक का इस प्रकार से पारित होना संघवाद की विजय कही जा सकती है। साथ ही इससे यह भी पता चलता है कि पिछड़े समुदायों के लिए आरक्षण का मुद्दा चुनावी रूप से कितना महत्वपूर्ण हो गया है।

विधेयक में संशोधन –

यह विधेयक संविधान के 102वें संशोधन द्वारा सम्मिलित अनुच्छेद 338बी में कुछ गलतियों को सुधारने का प्रयास करता है। ज्ञातव्य हो कि इस अनुच्छेद के द्वारा राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को एक संवैधानिक इकाई बनाया गया था।

सुधार-पहला, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की अपनी-अपनी सूची तैयार करने का प्रावधान दिया गया।

दूसरा, इसके लिए उन्हें राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग परिषद् से परामर्श की जरूरत नहीं होगी।

किसी कानून के संशोधन के संबंध में कुछ प्रश्न अवश्य उठाए जाने चाहिए। जैसे संवैधानिक अधिनियम में गलतियां कैसे होती जाती हैं ? क्या 2018 में पारित किए गए विधेयक की अंतधारणाए तीन वर्ष में इतनी तेजी से बदल गई हैं ? क्या अधिनियम को रद्द करने में न्यायपालिका की कोई चाल रही है ? बहरहाल, इनमें से कोई भी इस संशोधन के संबंध में सटीक नहीं बैठता।

  • यह सामान्य जाति की राजनीति नहीं है। सैकड़ों उपजातियां आरक्षण के लिए हाथापाई करेंगी, जिससे सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल मचेगी।

कोई भी प्रमुख समूह कोटा की मांग कर सकता है, और उसे प्राप्त भी कर सकता है।

  • अब तक पिछड़ा वर्ग का चयन संवैधानिक रूप से निर्धारित एक आयोग द्वारा ही किया जाता था। यह एक जटिल कार्य रहा है। परंतु अब यह राजनैतिक स्तर पर किया जाएगा। अतः समाज में प्रभुत्व रखने वाले व मतों का बाहुल्य रखने वाले समूह को इसका लाभ मिलने की आशंका बनी रहेगी।

अतः इस विधेयक और 2018 में लाए गए मूल अधिनियम से समस्या हल होने वाली नहीं है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित डी श्याम बाबू के लेख पर आधारित। 13 अगस्त, 2021