रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत की नीति
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रूस-यूक्रेन युद्ध को चलते एक लंबा समय हो चला है। इस पूरे प्रकरण में महाशक्तियों के कुछ गुट बने रहे, और कुछ देशों ने तटस्थता की नीति अपनाए रखी है। इनमें से भारत भी एक है। लेकिन ऐसा क्या कारण है कि अन्य तटस्थ देशों की तुलना में भारत के रवैये और उसकी भूमिका को लेकर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं, और उस पर दबाव भी डाले जा रहे हैं।
भारत पर किस प्रकार के दबाव हैं –
- अभी तक भारत ने संयुक्त राष्ट्र में रूस के आक्रमण के लिए महत्वपूर्ण सभी प्रस्तावों से परहेज किया है। अब उसे रूस के विपक्ष में वोट देने को कहा जा रहा है।
- रूस से कम कीमत पर तेल खरीदने के भारत के निर्णय को लेकर दबाव है।
- भारत, रूबल में रूस को भुगतान न करे, अन्यथा उस पर अन्य देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का असर कम हो जाएगा।
ये दबाव क्यों बनाए जा रहें हैं ?
- राजनीतिक दृष्टि से कहें, तो पश्चिमी देशों ने इस हमले को ‘स्वतंत्र दुनिया’ पर एक हमला बताया है। भारत जैसा लोकतंत्र अगर इस दृष्टिकोण पर अगर चुप बैठता है, तो यह उक्त दृष्टिकोण को कमजोर करने वाला कदम होगा।
- आर्थिक दृष्टिकोण से रूस पर पश्चिमी देशों ने बड़े पैमाने पर प्रतिबंध लगाए थे। एशिया में केवल जापान, द. कोरिया और सिंगापुर ने इनका समर्थन किया है। चीन ने इसका विरोध करके रूस से व्यापार जारी रखने की बात कही है। अगर भारत भी रूस से व्यापार जारी रखता है, तो प्रतिबंधों का प्रभाव कम रहेगा।
- रणनीतिक रूप से शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से यह सबसे बड़ा वैश्विक संकट है। पिछले 30 वर्षों में भारत ने अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी में सुधार किया है। साथ ही रूस से भी संबंध अच्छे रखे हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भी अमेरिका भारत को चीन के विरोध में एक सहयोगी राष्ट्र मानता है। वह चीन के विरूद्ध भारत को सहयोग भी देने को तैयार है। ऐसे में, सभी पश्चिमी देशों को उम्मीद है कि भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता छोड़कर पश्चिमी देशों का साथ दे।
भारत का दृष्टिकोण –
तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य में तीन महाशक्तियां हैं, जिनमें से अमेरिका और रूस भारत के सहयोगी है, जबकि चीन प्रतिस्पर्धी है। सवाल यह है कि यूरोपीय देशों में चल रहे विवाद में, भारत किसी एक के साथ खड़ा होकर अपने प्रतिस्पर्धी को सशक्त होने का मौका क्यों दे। अतः भारत के लिए तटस्थता ही सर्वश्रेष्ठ विकल्प रह जाता है।
दूसरे, हर एक देश राष्ट्रीय हितों को देखते हुए अपनी विदेश नीति तय करता है, न कि नैतिक प्रतिबद्धता को देखते हुए। जहाँ अमेरिकी हित रूस की कमजोरी में है, वहीं भारत का हित रूस की मजबूती में है। भारत को न केवल रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र में रूस का सहयोग चाहिए, बल्कि भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से भी चाहिए। रूस, ईरान और अन्य मध्य एशियाई देशों के साथ सहयोग व सामंजस्य बनाए रखना भारत के लिए बहुत जरूरी है।
जी-20 को लेकर भारत पर दबाव –
सन् 1999 के आर्थिक संकट के बाद अंतरराष्ट्रीय वित्तीय स्थिरता की खातिर जी-20 का गठन किया गया है। इसकी आगामी बैठक भारत में इसी वर्ष होने वाली है। पश्चिमी देश चाहते हैं कि रूस को इस समूह से बाहर निकाल दिया जाए, परंतु चीन ने इसका विरोध किया है।
निष्कर्ष –
बहरहाल, भारत किसी शक्ति का पिट्ठू नहीं है। वह किसी गठबंधन का भी सदस्य नहीं है। किसी भी अन्य देश की तरह, भारत भी व्यावहारिक यथार्थवाद और अपने मूल राष्ट्रीय हितों के आधार पर नीतियां बनाने का अधिकार रखता है। भारत का सोचना यही है कि रणनीतिक स्वायत्तता में स्थिर एक तटस्थ स्थिति, जो दोनों पक्षों के साथ चैनलों को खुला रख सके, उसके हितों की पूर्ति करती है।
समाचार पत्रों पर आधारित।